December 07, 2025
Hindi Hindi

दुर्ग कांग्रेस कार्यकर्त्ता का हाल , जहाँ से चले थे अब भी वही पहुंचे है ... "चालीस साल की ठहराव: दुर्ग कांग्रेस — वहीं युग, वही कार्यकर्ता, वही सवाल"

  • Ad Content 1

चार दशक से बदलती राजनीति नहीं, बल्कि स्थिरता की कड़वी सच्चाई — कार्यकर्ताओं का समर्पण सलाम-योग्य, पर पार्टी में उनके लिए उन्नति का रास्ता कहीं खो गया।

दुर्ग / शौर्यपथ / जिस शहर ने कभी कांग्रेस को स्थानीय कांग्रेसियों के दम पर नई राह दिखाई थी, वही शहर आज 40 साल से उसी राजनीतिक ठहराव की गूँज सुनाता है। जहां एक ओर नित नए चेहरे, परंपरागत परिवारों के साये और पार्टी के भीतर सीमित अवसरों की वजह से तमाम कामकाजी कांग्रेसी वही पुराने ओहदे-संरचना में जमे हुए हैं — और जनता अब मुखर होकर पूछने लगी है: क्या दुर्ग कांग्रेस का भविष्य हमेशा केवल कार्यकर्ता स्तर तक ही सीमित रहेगा?

चार दशक की कहानी को समझने के लिए हमें जमीनी हकीकत देखनी होगी। 40 साल पहले अरुण वोरा ने दुर्ग शहर से विधायक के रूप में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया — और आज वही नाम, वही शख्स संगठन में जिलाध्यक्ष जैसी जगहों के लिए फिर से उभर रहा है। यही संकेत देता है कि संगठन में नेताओं का चक्र लगभग लगातार वही पुरानी राह पकड़ता आया है। जबकि पार्षद, ब्लॉक अध्यक्ष, और बुनियादी स्तर के कार्यकर्ता दशकों से अपनी भूमिकाएँ बखूबी निभा रहे हैं, पर उनमें से बहुत से लोग संगठन के उच्च ओहदों तक नहीं पहुँच पाए — क्योंकि जो नियंत्रण और निर्णय शक्ति है, वह अक्सर कुछ सीमित हाथों में ही केंद्रित रहती है।
यह कोई सनक या अतिशयोक्ति नहीं कि पिछले 40 सालों में दुर्ग कांग्रेस का संगठन एक स्थिर जल की तरह रहा — ऊपर से हल्की हलचल दिखती रही पर भीतर कोई गहरा परिवर्तन नहीं हुआ। पार्षद वही रहे, कार्यकर्ता वही रहे, और कुछ अपवादों को छोड़ कर कोई नेता विधायक या उससे ऊपर के पायदान तक नहीं पहुंच पाया। ब्लॉक स्तर पर समय-समय पर थोड़े बहुत बदलाव दिखाई देते हैं, पर अधिकतर बार वे भी “रिमोट कंट्रोल” जैसा ठहराव लिए हुए होते हैं — परिवर्तन का नहीं, केवल पदों का नामांतरण लगता है।
इसी ठहराव का परिणाम ये होता है कि चुनाव की मोहब्बत और संगठन के प्रति निष्ठा रखने वाले हजारों कांग्रेसी जिनका जज़्बा और समर्पण असली है, वे भी बार-बार वही भूमिका निभाते रहे — झंडा उठाना, रैलियों में हिस्सा लेना, विरोध-आंदोलन की अगुवाई करना — पर सत्ता के ठीक फायदे, शक्तियों और निर्णायक भूमिकाओं का लाभ चंद लोगों तक ही सिमटा रहता है। जनता भी अब इस असंतुलन को देख रही है और सवाल उठा रही है कि क्या परिवारवाद और पुराने किले ही संगठन के भविष्य का निर्धारण करेंगे?
अरुण वोरा का फिर से जिला अध्यक्ष पद के लिए आवेदन चर्चा की आग में घी डालने जैसा हुआ — न केवल इसलिए कि एक पुराना नाम वापस आया है, बल्कि इसलिए कि यह पुरानी परंपरा का प्रतीक बन चुका है: वही नेता, वही पथ। यही वजह है कि कार्यकर्ता समुदाय में बेचैनी और असंतोष बढ़ रहा है — वे पूछते हैं: क्या पूरी जिंदगी सिर्फ कार्यकर्ता बने रहने के लिए ही है? क्या किसी को संगठन के अंदर आगे बढ़ना है तो उसे किस ‘एनिवर्सरी पास’ या ‘परिवार के नाम’ की मोहर चाहिए?
दुर्ग की सियासत में यह ठहराव केवल कांग्रेस तक सीमित नहीं है; परन्तु विशेष रूप से दुर्ग कांग्रेस के लिए यह चिंताजनक है क्योंकि एक मजबूत स्थानीय पार्टी का मतलब ही होता है—तन-मन से जुड़े कार्यकर्ता जिनमें नेतृत्व कौशल विकसित होने पर वे पार्टी को नए ऊँचाई पर ले जा सकें। पर जब नेतृत्व और निर्णय सीमित तब प्रतिभा दबकर रह जाती है, नए विचारों का मार्ग बंद होता है और युवा/नवोदित कार्यकर्ता निराश होते हैं।
क्या है विकल्प?
यहाँ कुछ आवश्यक कदम हैं जिन्हें लागू कर के दुर्ग कांग्रेस अपने संगठनात्मक स्वास्थ्य और जनता के भरोसे को फिर से हासिल कर सकती है — (निम्न सुझाव जरूरी हैं पर उपयुक्त नीति-रूप देने का काम संगठन पर निर्भर करेगा):
पदोन्नति व संसाधन आवंटन में पारदर्शिता: स्थानीय स्तर पर सक्रिय कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन व सेवा को मापकर उन्हें आगे बढ़ाने का स्पष्ट मार्ग बनाना।
युवा और नए चेहरों के लिए आरक्षण/प्रोत्साहन: ताकि पार्टी में नयापन आए और परिवारवाद के आरोप कम हों।
समय-सीमित नेतृत्व और रोटेशन पॉलिसी: लंबे समय तक एक ही नामों का प्रभुत्व खत्म करके नए नेतृत्व को मौका।
कार्यकर्ता-केन्द्रित प्रशिक्षण और राजनीतिक विकास कार्यक्रम: ताकि पार्षद, ब्लॉक अध्यक्ष व अन्य कार्यकर्ता नेतृत्व की योग्यता विकसित कर सकें।
स्थानीय जनभागीदारी और संवाद: जनता व कार्यकर्ताओं की आशाओं को सुनने और नीति में शामिल करने का सशक्त मंच।

दुर्ग कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का हौसला और समर्पण काबिले-तारीफ है — वे 40 साल से जिन जिम्मेदारियों के साथ पार्टी के प्रति वफादार रहे, वे शहर की राजनीतिक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। पर सवाल यह है कि क्या पार्टी उन पर भी भरोसा कर सकेगी कि वे संगठन का भविष्य हों? या फिर वही पुराना सिलसिला चलता रहेगा — कुछ नाम ऊपर, बाकियों के लिए वही कार्यकर्ता जीवन? जनता और पार्टी के अंदर के लोग दोनों अब जवाब की मांग कर रहे हैं। यदि दुर्ग कांग्रेस सचमुच रचनात्मक बदलाव चाहती है तो उसे इन वर्षों की असंतुलता को पहचान कर उसकी जड़ में जाकर परिवर्तन लागू करना होगा—वरना 40 साल का यह ठहराव और भी लंबा चल सकता है।

पुल-कोट: “यदि केवल कुछ ही नेता सत्ता के लाभ उठा सकें और बाकी जीवनभर ‘कार्यकर्ता’ बने रहें — तो लोकतंत्र की जड़ें कमजोर पड़ती हैं; दुर्ग को अब जमीनी बदलाव चाहिए, न कि केवल नामों का फेर।”

Rate this item
(0 votes)

Leave a comment

Make sure you enter all the required information, indicated by an asterisk (*). HTML code is not allowed.

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)