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नई दिल्ली /शौर्यपथ / बीजिंग चीन का बेकाकू 5b रॉकेट अब खतरे की वजह नहीं बनेगा. चीन की अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि इसका बड़ा हिस्सा हिंद महासागर में गिर चुका है. वहीं इस रॉकेट का एक बड़ा हिस्सा वायुमंडल में प्रवेश करते ही खत्म हो गया था. रॉकेट की क्रैश लैंडिंग को लेकर आशंकित दुनियाभर के वैज्ञानिकों की इसपर नजर बनी हुई थी.
चीनी रॉकेट का अनियंत्रित बड़ा हिस्सा खतरे के तौर पर देखा जा रहा था. इसके 9 मई को धरती पर गिरने की आशंका व्यक्त की गई थी. लेकिन इसके लैंडिंग को लेकर कोई सटीक जानकारी नहीं मिल सकी थी. नासा समेत दुनियाभर की अंतरिक्ष एजेंसियों की नजर इसपर टिकी हुई थी. लॉन्ग मार्च 5b रॉकेट के कोर स्टेज का वजन 21 टन था. अगर रॉकेट का यह हिस्सा किसी आबादी वाले क्षेत्र में गिरता, तो बड़ा नुकसान हो सकता था.
इसे लेकर बीजिंग के अधिकारियों ने कहा था कि लॉन्ग मार्च -5 बी रॉकेट के फ्रीफ़ॉलिंग सेगमेंट से बहुत कम जोखिम था. बता दें कि 29 अप्रैल को चीन के नए अंतरिक्ष स्टेशन के पहले मॉड्यूल को पृथ्वी की कक्षा में लॉन्च किया था. चीनी एजेंसी ने बताया कि रॉकेट का अधिकांश हिस्सा वायुमंडल में प्रवेश करते ही नष्ट हो गया था.
अमेरिकी सैन्य डेटा पर आधारित मॉनिटरिंग सर्विस स्पेस-ट्रैक ने भी चीनी रॉकेट के मलबे के बारे में पुष्टि की। स्पेस ट्रैक ने ट्वीट कर कहा कि जो लोग #LongMarch5B की री-एंट्री को फॉलो कर रहे थे वे अब चैन की सांस ले सकते हैं।
नई दिल्ली / शौर्यपथ/ कोविड हालातों को लेकर ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सुप्रीमो और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एक बार फिर मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार किया है. केंद्र सरकार को अब तक की सबसे अवैज्ञानिक सरकार करार देते हुए ओवैसी ने कहा कि पहली लहर के बाद सरकार ने जीत का ऐलान कर दिया और खुद से ही खुद को शाबाशी दे दी. उन्होंने कहा कि अब दूसरी लहर के कहर को देखकर सरकार कुछ भी बोलने से कतरा रही है. उनके अपने वैज्ञानिक सलाहकार तीसरी लहर को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं. उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार के आदेश पर वैज्ञानिक अपनी स्थिति को बदल रहे हैं. ओवैसी की यह प्रतिक्रिया केंद्र सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार विजय राघवन के उस बयान पर आई है जहां उन्होंने तीसरी लहर की आशंका को व्यक्त किया है.
इसके बाद उन्होंने अगले ट्वीट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेशनल टास्क फोर्स गठित करने को लेकर सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि अगर दूसरी लहर के लिए सरकार तैयार रहती और उसका रवैया लापरवाही भरा नहीं होता तो इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह कदम दर्शाता है कि सरकार किस तरह संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता को खंडित करने की कोशिश कर रही है. यह एक तरह कार्यकारी के क्षेत्र में न्यायलय का हस्तक्षेप है.
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को एक नेशनल टॉस्क फोर्स का गठन किया है. जोकि देश में ऑक्सीजन की उपलब्धता और आपूर्ति का आकलन और सिफारिश करेगी. टॉस्क फोर्स में 12 सदस्य होंगे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टास्क फोर्स अभी और भविष्य के लिए पारदर्शी और पेशेवर आधार पर महामारी की चुनौतियों का सामना करने के लिए इनपुट और रणनीति प्रदान करेगी. दिल्ली, कर्नाटक समेत कई राज्य ऑक्सीजन की किल्लत को लेकर शिकायत कर रहे हैं.
नई दिल्ली / शौर्यपथ / भोपाल मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में दिल को झकझोर देने वाली तस्वीर सामने आई है. यहां एक पिता को अपने बेटी का शव खाट पर लेकर 35 किलोमीटर तक पैदल चलने के लिए मजबूर होना पड़ा. सुशासन की सरकार में विकास के दावे के बीच सिस्टम की अनदेखी की इस शर्मनाक तस्वीर को देखकर कई सवाल खड़े हो गए हैं. क्या हम इंसानी बस्ती में रहते हैं या फिर वाकई ये सिस्टम सड़ गया है? जिसके चलते एक लाचार बाप खाट पर अपनी बेटी के शव को लेकर पैदल चलने को मजबूर है.
यह मामला सिंगरौली के निवास पुलिस चौकी क्षेत्र के गड़ई गांव का है. जहां एक 16 साल की नाबालिग ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी. इसकी सूचना परिजनों ने निवास पुलिस चौकी में दी, लेकिन पुलिस प्रशासन व अन्य किसी जगह से सहयोग नहीं मिलने पर मृतका के लाचार पिता को बेटी का शव खाट पर लेकर पोस्टमार्टम कराने के लिए 35 किलोमीटर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
आपको जानकर हैरानी होगी कि यहीं से सिस्टम की शरारत शुरू हुई. पीड़ित को न ही शव वाहन मिला न ही निवास पुलिस ने कोई संजीदगी दिखाई. आखिरकार सिस्टम से हारे पिता को कलेजे के टुकड़े के शव को खाट पर लेकर 35 किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ा.
मृतका के पिता ने कहा, "करें तो क्या करें पुलिस ने सहयोग नहीं किया. शव वाहन बुलाने पर भी नहीं आया. अब इस सिस्टम से कितनी देर तक गुहार लगाते इसलिए मजबूरी में पोस्टमार्टम जैसे औपचारिकता पूरी करने के लिए शव को किसी तरह लेकर आ गए."
नई दिल्ली /शौर्यपथ / गुवाहाटी असम में विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के 6 दिन बाद तक मुख्यमंत्री पद को लेकर बना सस्पेंस आखिरकार रविवार को खत्म हो गया. बीजेपी नेता और पूर्वोत्तर में पार्टी के चाणक्य माने जाने वाले हेमंत बिस्वा सरमा असम के नए मुख्यमंत्री होंगे. मुख्यमंत्री के नाम पर फैसले के लिए आज राजधानी गुवाहाटी में बीजेपी विधायक दल की बैठक हुई. बीजेपी सूत्रों ने कहा कि हेमंत बिस्वा सरमा असम के मुख्यमंत्री के रूप में सर्बानंद सोनोवाल की जगह लेंगे.
सूत्रों ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से सरमा के नाम हरी झंडी मिलने के बाद रविवार को गुवाहाटी में आयोजित विधायक दल की बैठक में सोनोवाल ने हेमंत बिस्वा सरमा के नाम का प्रस्ताव रखा. हेमंत बिस्वा सरमा को विधायक दल का नेता चुन लिया गया है.
असम में हाल ही सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले राजग ने जीत दर्ज की है. 126 सदस्यों वाली विधानसभा में बीजेपी ने 60 सीटों पर जीत दर्ज की है जबकि उसके सहयोगी दल एजीपी को 9 सीटों और यूपीपीएल को 6 सीटों पर जीत मिली है.
साल 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सर्बानंद सोनोनवाल को अपनी मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया था और चुनाव में जीत के साथ असम में पहली बार सरकार बनाई थी. इस बार पार्टी ने मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान चुनावों के बाद करने का फैसला किया था.
करीब 6 साल पहले कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हेमंत बिस्वा सरमा को पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी को मजबूत करने का श्रेय दिया जाता है. वह सर्बानंद सोनोवाल सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय की भी जिम्मेदारी संभाल रहे थे.
नई दिल्ली /शौर्यपथ / राज्य में कोरोना वायरस के केस में बढ़ोतरी होने के कारण उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थान 20 मई तक बंद करने का ऐलान किया है. इसी के साथ ऑनलाइन क्लासेज की भी अनुमति नहीं दी है. आपको बता दें, उत्तर प्रदेश में कोरोनावायरस संक्रमण को काबू करने के लिए 30 अप्रैल से लागू कर्फ्यू की अवधि रविवार को 17 मई तक बढ़ा दी गई है.
कोरोना वायरस के कारण कई राज्यों में लॉकडाउन घोषित कर दिया है, जिस कारण स्कूल, कॉलेज, कोचिंग समेत राज्य के सभी संस्थान बंद है. 2020 और 2021 में देशभर के छात्रों की पढ़ाई का काफी नुकसान हुआ है. ऐसे में कई राज्यों ने अपनी बोर्ड परीक्षा भी स्थगित कर दी है.
बता दें, उत्तर प्रदेश सरकार ने एक महीने पहले कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को स्थगित कर दिया था और अधिकारियों को अभी यह तय नहीं करना है कि क्या कोरोनावायरस मामलों में वृद्धि के बीच इन परीक्षाओं को रद्द कर दिया जाएगा या नहीं.
वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई बैठक में, स्कूलों को 15 मई तक बंद करने का निर्णय लिया गया था. उत्तर प्रदेश में स्कूल शिक्षकों को भी 20 मई तक घर से काम करने की अनुमति दी गई थी. बता दें, केंद्र द्वारा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा 10वीं की परीक्षा रद्द करने और कक्षा 12वीं की परीक्षा स्थगित करने के फैसले के तुरंत बाद यूपी बोर्ड की 10वीं-12वीं की परीक्षाएं स्थगित कर दी गईं.
मुंबई/शौर्यपथ / कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार की ओर से लगाई गई सख्ती का असर अब आम आदमी की जेब पर पड़ता नज़र आ रहा है. लोगों के पास न काम है और न ही पैसा. टीकाकरण के लिए ऑनलाइन रेजिस्ट्रेशन करना पड़ता है, लेकिन स्मार्टफोन नहीं होने के वजह से लोग वह भी नहीं करा पा रहे हैं. किन्नर समाज भी इस लॉकडाउन से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. मुंबई से सटे उल्हासनगर में रहने वालीं रवीना जगताप किन्नर समाज से आती हैं, लॉकडाउन के कारण इनकी आमदनी के सारे साधन बंद हो चुके हैं. उनका कहना है कि अब तो हमें ये भी नहीं पता कि अपना गुजारा कैसे करें. रवीना जगताप का सवाल है कि क्या हमें कोई काम दे सकता है? अगर हम बिज़नेस करना चाहें तो कोई करेगा क्या?
उनका कहना है कि शासन ने जो महिला और पुरुष के लिए कुछ सुविधा की है, उसमें हमारा नाम तो लिया ही नहीं है, हम भी समाज के घटक हैं, हमारे तरफ भी ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार हम पर ध्यान नहीं देती है. केवल किन्नर समाज के लोग ही नहीं बल्कि मजदूर और घरों में काम करने वाले लोग भी परेशान हैं. 64 वर्षीय सबीना डिकोस्टा की तबीयत अक्सर खराब रहती है, काम करने की इच्छा नहीं है, लेकिन घर का गुज़ारा करने के लिए कुछ घरों में बर्तन धोने का काम करती हैं. अगले महीने बेटे की शादी है, जोकि मजदूरी करता है. कुछ दिनों से उसके पास भी काम नहीं है, शादी कैसे होगी पता नहीं. साथ ही बीमारी होने के वजह से दवाई के लिए भी पैसे जुटाना पड़ता है. वो कहती हैं कि मैं किसी से पैसे मांगकर दिन निकालती हूं, दवाई लेकर आती हूं. 8 दिन की दवाई एक दो दिन छोड़कर खाती हूं और किसी तरह 15 दिन निकालती हूं.
यही हाल लता अडगले का भी है, कहीं काम नहीं मिलने के वजह से वो घर पर ही रहने को मजबूर हैं. वो बताती हैं कि नाके पर जाते हैं, कोई काम नहीं मिलता है तो वापस आते हैं. घरों में काम है, बस वही करते हैं. इसी तरह मजदूरी और पेंटिंग का काम करने वाले विजय दाभाड़े हर रोज़ सुबह लेबर चौक जाते हैं, इस उम्मीद के साथ कि काम मिल जाएगा. सरकार ने कहा है कि मजदूरों को काम करने दिया जाएगा, लेकिन काम कहीं है ही नहीं. उन्होंने बताया कि हर महीने घर में 10 हज़ार का खर्च है ही, पिछले महीने केवल 10 दिन काम मिला है और इस महीने 3 दिन काम किया हूं. इतने रुपयों में घर नहीं चलेगा, इसलिए कहीं ना कहीं से कर्ज लेना है.
अपने गुज़ारे के लिए हो रही परेशानी के अलावा इन सभी लोगों के सामने टीका लगवाना भी एक चुनौती से कम नहीं. असंघटित कष्टकरी कामगार संघटना के अध्यक्ष सुनील अहिरे बताते हैं कि अधिकांश लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं है इसलिए वो टीकाकरण के लिए ऑनलाइन स्लॉट बुक नहीं कर पाते हैं और टीकाकरण केंद्र पर इनके लिए कोई सुविधा भी नहीं दी गई है . सरकार की ओर से जब भी किसी नियम का ऐलान किया जाता है, तब यह उम्मीद की जाती है कि अंतिम छोर में खड़े व्यक्ति के बारे में सोचकर उस नियम को बनाया गया होगा लेकिन ज़मीनी हालात देखकर ऐसा लगता नहीं है कि आम आदमी के बारे में सोचा गया होगा. ऐसे में केवल उम्मीद की जा सकती है कि सरकार इन परेशानियों को समझे और बदलाव लाए ताकि आदमी को इससे राहत मिल सके.
नई दिल्ली / शौर्यपथ / तिरुवनंतपुरम केरल के एक कवि ने आरोप लगाया है कि विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की हार पर वीडियो पोस्ट करने के लिए उन्हें 24 घंटे के लिए फेसबुक द्वारा ब्लॉक कर दिया गया. कवि सत्चिदानंदन ने कहा कि उन्हें एक "व्यंग्यात्मक वीडियो" व्हाट्सएप फॉरवर्ड के रूप में भेजा गया था. उन्होंने इस वीडियो को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया. इस पूरे घटनाक्रम में भाजपा ने किसी भी भूमिका से इनकार किया है.
कवि सत्चिदानंदन ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा, "मुझे फेसबुक पर पोस्ट करने या कमेंट करने से इसलिए रोक दिया गया क्योंकि मैंने केरल में भाजपा की हार पर तेजी से वायरल हो रहे एक व्यंगात्मक वीडियो को अपनी वाल पर पोस्ट किया. इस वीडियो में एक फिल्म की क्लिप है. जिसमें हिटलर हार के बाद अपने सैनिकों को संबोधित कर रहा है. जिसे एडिट कर अमित शाह पर मलयाली भाषा में फिल्माया गया, जिसमें चुनाव में हार के बाद शाह केरल में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं व कार्यकर्ताओं से बात कर रहे हैं.'' कवि ने कहा कि यह पोस्ट एक व्यंग्य था, लेकिन किसी के लिए अपमानजनक नहीं था.
कवि ने दावा किया कि उन्हें पहले भी फेसबुक से चेतावनी मिली थी, जब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक पोस्ट डाली थी.
नई दिल्ली/शौर्यपथ / कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है, इसमें कोरोना की दूसरी लहर को काबू में करने के लिए 6 अहम सुझाव दिए गए हैं. खड़गे ने कहा है कि कोरोना से संक्रमित अपनों के इलाज के लिए लोग जमीन, ज्वैलरी बेचने के साथ अपनी गाढ़ी कमाई लुटा रहे हैं. राज्यसभा में नेता विपक्ष खड़गे ने प्रधानमंत्री से सामूहिक और सहमति वाली रणनीति अपनाने की अपील की है. उन्होंने कहा कि सिविल सोसायटी और नागरिक समूह इस असाधारण राष्ट्रीय संकट के खिलाफ लड़ रहे हैं, जबकि केंद्र ने ऐसा लगता है कि अपनी जिम्मेदारियां छोड़ दी हैं.
खड़गे ने पत्र में पीएम से एक सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है, जिसमें महामारी से लड़ने का एक समग्र ब्लूप्रिंट तैयार किया जाए. साथ ही कोविड वैक्सीन के लिए आवंटित 35 हजार करोड़ रुपये का सबके टीकाकरण के लिए उचित तरीके से इस्तेमाल किया जा सके. खड़गे ने वैक्सीन के उत्पादन के लिए अनिवार्य लाइसेंसिंग की नीति भी खत्म करने को कहा है. साथ ही सभी संवेदनशील चिकित्सा उपकरणों, वैक्सीन(5 फीसदी), पीपीई किट (5 से 12 फीसदी), एंबुलेंस (28 फीसदी) और ऑक्सीजन कंसेन्ट्रेटर्स (12 फीसदी) पर टैक्स खत्म करने की मांग भी की है.
कर्नाटक के कांग्रेस नेता ने विदेशों से आई राहत सामग्री का भी जल्द से जल्द वितरण की मांग भी उठाई है. साथ ही रोजगार खो चुके प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा में न्यूनतम कार्यदिवस 100 से बढ़ाकर 200 दिन करने की मांग की है. यह पत्र कांग्रेस नेताओं की ओर से प्रधानमंत्री को की गई तीसरी अपील है. इससे पहले लोकसभा सांसद राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी पत्र लिख चुके हैं.
भारत कोरोना की दूसरी लहर को काबू करने के लिए जूझ रहा है. लगातार चार दिनों से 4 लाख से ज्यादा नए मामले रिपोर्ट हो रहे हैं. जबकि 22 अप्रैल के बाद से लगातार 3 लाख से ज्यादा कोरोना के केस सामने आए हैं. भारत में कोरोना के एक्टिव केस की संख्या 37.4 लाख तक पहुंच गई है, जो पिछले रिकॉर्ड से करीब चार गुना हैं.
नई दिल्ली /शौर्यपथ/बरेली केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों की अस्पतालों में भर्ती को लेकर व्याप्त अव्यवस्था और अधिकारियों द्वारा फोन नहीं उठाये जाने की शिकायत की है. गंगवार ने शनिवार को बरेली में आयोजित बैठक में मुख्यमंत्री को सौंपे गए पत्र में कहा "ऐसे मामले सामने आ रहे हैं कि रेफर किए जाने के बाद भी मरीज जब सरकारी अस्पताल में जाता है, तो उससे कहा जाता है कि जिला अस्पताल से दोबारा रेफर करवाकर लाएं. इससे मरीज की हालत और बिगड़ती जाती है. यह चिंता का विषय है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि संक्रमित मरीज को कम से कम समय में रेफरल अस्पतालों में तुरंत भर्ती किया जाए."
केंद्रीय मंत्री ने मल्टी पैरा मॉनिटर, बायोपैक मशीन, वेंटिलेटर तथा अन्य जरूरी उपकरणों को बाजार में डेढ़ गुना दाम पर बेचे जाने की भी शिकायत करत हुए अनुरोध किया कि सरकार इन चीजों का दाम निर्धारित करे. उन्होंने बरेली में चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण अधिकारियों द्वारा फोन नहीं उठाये जाने की भी शिकायत की और कहा कि इससे मरीजों को काफी असुविधा हो रही है.गंगवार ने पत्र में आग्रह किया कि ऐसे इंतजाम किए जाएं कि बरेली में संक्रमित मरीजों को किसी भी निजी अस्पताल में भर्ती कराया जा सके और उन निजी अस्पतालों को कोविड-19 अस्पतालों को मिलने वाली सुविधा भी दी जाए.
उन्होंने पत्र में कहा कि बरेली में खाली ऑक्सीजन सिलेंडर की भारी कमी है. गंगवार ने कहा कि इसका मुख्य कारण यह है कि शहर के बहुत से लोगों ने ऑक्सीजन सिलेंडर अपने घरों में एहतियात के तौर पर रख लिए हैं और वे इन्हें मनमाने दाम पर बेच भी रहे हैं. उन्होंने आग्रह किया कि प्रशासन ऐसे लोगों को चिह्नित करे और उनके खिलाफ कार्रवाई करे ताकि जरूरतमंदों तक ऑक्सीजन के सिलेंडर पहुंचाया जा सके.
केंद्रीय मंत्री ने मुख्यमंत्री योगी से आग्रह किया कि मध्य प्रदेश की तर्ज पर बरेली में भी कुछ निजी और सरकारी अस्पतालों को 50% छूट देने के साथ जल्द से जल्द ऑक्सीजन संयंत्र मुहैया कराया जाए ताकि ऑक्सीजन की कमी से होने वाली परेशानी से जल्द से जल्द निपटा जा सके. गंगवार ने कोविड-19 के टीके से संबंधित एक सुझाव देते हुए कहा कि आयुष्मान भारत से जुड़े सभी अस्पतालों में टीकाकरण किया जाए.
नई दिल्ली / शौर्यपथ/ इंदौर देश में 10 सरकारी बैंकों के बीच विलय की प्रक्रिया के बाद इन बैंकों की दो हजार से ज्यादा शाखाओं पर ताला लग चुका है. रिजर्व बैंक ने आरटीआई के तहत ये जानकारी दी है. केंद्रीय बैंक ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में 10 सरकारी बैंकों की कुल 2,118 बैंकिंग शाखाएं या तो हमेशा के लिए बंद कर दी गईं या इन्हें दूसरी बैंक शाखाओं में मिला दिया गया है. नीमच के RTI कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने रविवार को ये जानकारी सार्वजनिक की. आरबीआई ने उन्हें सूचना के अधिकार के तहत ये जानकारी दी है.
इसके मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में शाखा बंदी या विलय की प्रक्रिया से बैंक ऑफ बड़ौदा की सर्वाधिक 1283 शाखाओं का अस्तित्व खत्म हो गया. इस तरह से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की 332, पंजाब नेशनल बैंक की 169, यूनियन बैंक की 124, केनरा बैंक की 107, इंडियन ओवरसीज बैंक की 53, सेंट्रल बैंक की 43, इंडियन बैंक की पांच और बैंक ऑफ महाराष्ट्र एवं पंजाब एंड सिंध बैंक की एक-एक शाखा बंद हुई.
हालांकि यह साफ नहीं किया गया है कि इस अवधि के दौरान इन बैंकों की कितनी शाखाएं हमेशा के लिए बंद कर दी गईं और कितनी शाखाओं को दूसरी शाखाओं में मिला दिया गया. रिजर्व बैंक ने खुलासा किया कि 31 मार्च को समाप्त वित्त वर्ष 2020-21 में बैंक ऑफ इंडिया और यूको बैंक की कोई भी शाखा बंद नहीं हुई.आरटीआई के तहत दिए गए जवाब में इन 10 सरकारी बैंकों की शाखाओं के बंद होने या विलय का कोई कारण नहीं बताया गया है. लेकिन सरकारी बैंकों के विलय की योजना के एक अप्रैल 2020 से लागू होने के बाद सरकार ने यह तय किया था कि शाखाओं की संख्या तर्कसंगत बनाया जाए. जहां कई बैंकों की एक साथ शाखाएं हो, उन्हें कम किया जाए.
सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में 10 सरकारी बैंकों को मिलाकर इन्हें चार बड़े बैंकों में तब्दील कर दिया था. इसके बाद अब सरकारी बैंकों की तादाद घटकर 12 रह गई है. विलय के तहत एक अप्रैल 2020 से ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को पंजाब नेशनल बैंक में, सिंडिकेट बैंक को केनरा बैंक में, आंध्रा बैंक व कॉरपोरेशन बैंक को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में और इलाहाबाद बैंक को इंडियन बैंक में मिला दिया गया था.
वहीं अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने कहा कि सरकारी बैंकों की शाखाएं घटना भारत के बैंकिग उद्योग के साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था के हित में भी नहीं है. बड़ी आबादी के मद्देनजर देश को बैंक शाखाओं के विस्तार की जरूरत है. वेंकटचलम ने कहा कि सरकारी बैंकों की शाखाएं घटने से बैंकिंग उद्योग में नई नौकरियों में भी लगातार कटौती हो रही है. पिछले तीन साल में सरकारी बैंकों में नई भर्तियों में भारी कमी आई है.
अर्थशास्त्री जयंतीलाल भंडारी सरकारी बैंकों के विलय के सरकारी कदम को सही ठहराते हैं. भंडारी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए हमें छोटे आकार के कमजोर सरकारी बैंकों के बजाय बड़े आकार के मजबूत सरकारी बैंकों की जरूरत है.