August 12, 2025
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शौर्यपथ

शौर्यपथ

          शौर्यपथ / सम्पादकीय / कोरोना वायरस के संकेत मानव जाति को 1930 के दशक में ही मिलने लगे थे, लेकिन इस पर सबसे पहला अध्ययन एक महिला वैज्ञानिक डोरोथी हामरे ने किया था। इस वायरस पर उनका पहला शोध पत्र 1966 में प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्होंने इशारा कर दिया था कि यह मनुष्य की श्वसन प्रणाली पर चोट करने वाला घातक वायरस है। डोरोथी पहली वैज्ञानिक थीं, जिन्हें कोरोना प्रजाति के वायरस को अलग करने में कामयाबी मिली थी। इसके कुछ ही दिनों बाद डेविड टायरेल और मैल्कम ब्योने ने भी ऐसी ही कामयाबी हासिल की थी। डेविड टायरेल की ही प्रयोगशाला में जून अलमेदा ने पहली बार शोध करके बताया था कि कोरोना दिखता कैसा है। इस वायरस की संरचना मोटे तौर पर माला की तरह होती है। ग्रीक शब्द ‘कोरोने’ से लातीन शब्द ‘कोरोना’ बना था। ग्रीक में ‘कोरोने’ का अर्थ होता है माला या हार। यह शब्द पहली बार 1968 में इस्तेमाल हुआ, लेकिन तब यह वायरस बहुत खतरनाक नहीं हुआ था।
कोरोना परिवार के वायरस सार्स का खतरा इसी सदी में सामने आया। सार्स सबसे पहले साल 2002-03 में 26 देशों में फैला था और मर्स 2012 में करीब 27 देशों में। यह विडंबना ही है कि जो कोरोना वायरस मर्स सबसे ताकतवर था, वह सबसे कम फैला और जो कोविड-19 सबसे कमजोर है, उसने दुनिया को तड़पा रखा है। मर्स में तीन में से एक मरीज की जान चली जाती है। सार्स से दस में से कोई एक जान गंवाता है, लेकिन कोविड-19 सौ मरीजों में से दो की भी जान नहीं ले रहा है। त्रासद यह कि अभी चिकित्सा विज्ञान के पास तीनों में से किसी का पक्का इलाज नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन अगर बार-बार कह रहा है कि संभव है, कोविड-19 की दवा या वैक्सीन कभी न मिले, तो कोई आश्चर्य नहीं। मुश्किल यह कि कोरोना ही नहीं, लगभग सभी वायरस अपनी प्रजाति बदलते रहते हैं। अमेरिका में कोविड-19 की जो प्रजाति है, ठीक वही भारत में नहीं है, इसीलिए किसी देश में ज्यादा मरीजों की मौत हो रही है और कहीं कम। अमेरिका के वैज्ञानिक भी इससे वाकिफ हैं और उन्हें इसकी दवा खोजने की सबसे ज्यादा जल्दी है।
हालांकि अभी सबसे बड़ा सवाल है, अगर इलाज नहीं मिलेगा, तो क्या होगा? विशेषज्ञों के अनुसार, या तो दवा मिल जाए या फिर इंतजार करना होगा कि दुनिया के 65 प्रतिशत लोगों को एक-एक बार कोरोना हो जाए, जब उन सबके शरीर में कोविड-19 की एंटीबॉडी तैयार हो जाएगी, जब इस वायरस को नया ठौर नहीं मिलेगा, तब संक्रमण में गिरावट आती जाएगी। बोस्टन के वैज्ञानिक डॉक्टर डेन बराउच ने यह दावा किया है कि कोविड-19 का संक्रमण एक बार ठीक होने के बाद दूसरी बार नहीं होता है। बोस्टन में ही वायरोलॉजी और वैक्सीन रिसर्च सेंटर में सात और 25 के समूह में बंदरों पर अलग-अलग किए गए अध्ययन के नतीजे सकारात्मक हैं। जाहिर है, इससे वैक्सीन खोजने वालों को भी बल मिलेगा और इसके साथ ही प्लाज्मा थेरेपी के माध्यम से हो रहा प्रयोग भी विश्वास के साथ आगे बढ़ सकेगा। कोविड-19 पर विजय के लिए महायुद्ध जारी है। खोज में लगे वैज्ञानिक यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि इस बीच यह दुश्मन वायरस अपना स्वरूप न बदले और इंसानों के शिकंजे में आ जाए।

 

   शौर्यपथ / सब्जी उत्पादकों का दर्द
देशव्यापी लॉकडाउन में लगातार हो रहे विस्तार से सब्जी उत्पादक किसानों की स्थिति बेहद खराब होती जा रही है। वाहनों की आवाजाही बंद होने से सब्जियां मंडी तक नहीं पहुंच पा रही हैं, जिससे खेतों में सब्जियों की कीमतें लगातार कम हो रही हैं। इससे किसानों के लिए लागत मूल्य निकालना भी मुश्किल होता जा रहा है। यही वजह है कि औने-पौने दाम में भी किसान खेत में ही अपनी फसल बेच रहे हैं। न बिकने पर वे फसलों को नष्ट भी कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में सब्जी उगा रहे किसानों के हित में सरकार को त्वरित कदम उठाना चाहिए। फौरन ऐसी व्यवस्था बने कि सब्जियां मंडियों तक पहुंचें और किसानों को लागत मूल्य मिल सके। इससे शहरी बाजार में सब्जियों की कीमतें भी कम होंगी।
तकनीकी शिक्षा के खिलाफ
हाल ही में मिलिट्री इंजीनिर्यंरग सर्विस के 9,304 पद समाप्त करने को रक्षा मंत्री ने मंजूरी दे दी। यह सूचना जितनी दुखद है, उससे कहीं ज्यादा समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता (क्योंकि अस्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति से किसी व्यक्ति विशेष को तो फायदा होगा, पर कर्मियों को उचित वेतन नहीं मिलेगा) बढ़ाने वाली भी है। लिहाजा केंद्र सरकार को किसी फैसले के सकारात्मक पहलू के साथ-साथ नकारात्मक पक्ष पर भी ध्यान देना चाहिए। नकारात्मक पक्ष की बात करें, तो जिस तरह से रेलवे में भी तकनीकी छात्रों के लिए बहुत से पद समाप्त किए गए हैं और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निजी क्षेत्र में बदला जा रहा है, उससे तकनीकी छात्र हताश हो रहे हैं। इससे आने वाले समय में तकनीकी शिक्षा के प्रति छात्रों की रुचि कम हो जाएगी। यह भारत जैसे विकासशील देश के लिए घातक स्थिति होगी।
गहराता सीमा विवाद
भारत और नेपाल में इन दिनों सीमा विवाद चल रहा है। आखिर यह क्यों हो रहा है? दरअसल, नेपाल के व्यापार और राजनीति में मधेसियों का अच्छा-खासा वर्चस्व रहा है। विगत वर्षों में राजनीति में मधेसियों को किनारे किए जाने से नाराज भारत ने कई दिनों तक नेपाल के लिए सप्लाई भी रोक दी थी, जो बात उसे नागवार गुजरी थी। वहां जब से वामपंथी सरकार बनी है, उसका झुकाव स्वाभाविक रूप से चीन की तरफ भी बढ़ा है। चूंकि विश्व पटल पर कोरोना संकट चीन के लिए गले की हड्डी बन गया है, और विश्व स्वास्थ्य महासभा में उसकी जबावदेही तय करने की बात भारत ने भी कही है, इसलिए लिपुलेख दर्रे के बहाने उसने नेपाल के कान भरे हैं। भारत को तंग करने के लिए चीन बहाना खोजता रहता है। इस समय भी भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए उसने नेपाल को उकसाया है, जबकि वह खुद अभी एक बडे़ भंवर में फंसा हुआ है। अब देखने वाली बात यह है कि चीन-नेपाल की मूक दोस्ती कितनी दूर तक जाती है। डर यह है कि कहीं नेपाल भी चीन का उपनिवेश न बन जाए?
शर्मसार करती सियासत
मजदूरों के नाम पर सियासत करके कुछ लोग अत्यंत घृणित व मानवता को शर्मसार करने वाली मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। जो मजदूर रोजी-रोटी के चक्कर में गांव से पलायन करके शहर आए, वहां आज उनके लिए सिवाय पीड़ा के कुछ नहीं बचा है। आज भी पैदल यात्रा कर रहे मजदूरों की दशा हृदय को उद्वेलित करती है, लेकिन लोग इस पर भी राजनीति कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि अति आधुनिक बनने के चक्कर में इंसान संवेदनशून्य हो गया है। इस जटिल परिस्थिति में मजदूरों की सहायता के लिए बेहतर विकल्प तलाशे जाने चाहिए, न कि उन पर राजनीति करनी चाहिए। इस तरह की सियासत तुरंत बंद हो।

 

               ओपिनियन / शौर्यपथ / इसमें कुछ भी नया नहीं है। बंगाल की खाड़ी से एक चक्रवाती तूफान उठा और जान-माल के भारी नुकसान के झटके देकर विदा हो गया। तूफान गुजर जाने के बाद जब हम इसका आकलन कर रहे हैं, तो वही कहा जा रहा है, जो हर बार कहा जाता है- ‘प्राकृतिक आपदा को तो हम नहीं रोक सकते, लेकिन उससे होने वाले जान-माल के नुकसान को कम कर ही सकते हैं।’ यह सिर्फ चक्रवाती तूफान का चिंतन नहीं है। हर बार जब कहीं बाढ़ आती है, अतिवृष्टि होती है या भूकंप आता है, तो देश के बौद्धिक समुदाय में ऐसे वाक्यों को दोहराए जाने की होड़-सी लग जाती है। यह परंपरा काफी समृद्ध हो चुकी है। यही कोसी की बाढ़ में हुआ था, यही केदारनाथ की त्रासदी में और पिछले साल मुन्नार की अतिवृष्टि में भी यही दिखाई दिया। आपदा जब सिर पर आ चुकी होती है, तब हमें पता चलता है कि उसके मुकाबले के लिए हमारी तैयारियां पूरी नहीं थीं। अम्फान तो दो दिन पहले पश्चिम बंगाल और ओडिशा के तटों से टकराया है, पर पूरा देश तो पिछले दो महीनों से ही इस समस्या से लगातार दो-चार हो रहा है।
यह कहा जा सकता है कि हर कुछ साल बाद आने वाले चक्रवाती तूफान की तुलना में कोरोना वायरस के संकट को खड़ा नहीं किया जा सकता। महामारी का ऐसा संकट भारत में लगभग एक सदी बाद आया है, पिछली करीब चार पीढ़ियों ने महामारी के ऐसे प्रकोप को सिर्फ किताबों में पढ़ा है, और महामारी से कैसे निपटा जाता है, इससे आजाद भारत का प्रशासन पूरी तरह अनजान है। लेकिन बात शायद इतनी आसान नहीं है।
देश में पिछले डेढ़ दशक से एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण है। इसी के साथ हमने आपदा से निपटने के लिए एक आपदा राहत बल भी बनाया था। प्राधिकरण की स्थापना के समय ही इससे उम्मीद बांधी गई थी कि यह सभी तरह की प्राकृतिक और मानवीय आपदाओं के लिए देश को तैयार रखेगा। इस संस्था के आलिम-फाजिल से यह उम्मीद तो की ही जानी चाहिए कि किसी आपदा के समय क्या-क्या समस्याएं खड़ी हो सकती हैं, इसका एक खाका और इसके सभी परिदृश्य वे पहले से ही सोचकर रखें। मार्च में लॉकडाउन घोषित होने के बाद पूरा देश उस समय सोते से जागा, जब एक दिन अचानक पता चला कि पूरे देश में लाखों विस्थापित मजदूर अपने-अपने घरों को लौटने के लिए निकल पड़े हैं। ऐसा क्यों हुआ या ऐसी स्थिति क्यों पैदा हुई, यह एक अलग मामला है, परआपदा प्रबंधन के लिए बने संगठन ने ऐसे किसी परिदृश्य के बारे में सोचा भी नहीं था, यह जरूर एक परेशान करने वाला मसला है। अगर सरकार के सामने ऐसे परिदृश्य रखे गए होते, तो शायद उसके फैसले और इंतजाम अलग तरह के हो सकते थे।
मामला सिर्फ विस्थापित मजदूरों का नहीं है। हम यह पहले से ही जानते थे कि दुनिया के मुकाबले हमारे पास चिकित्सा सुविधाएं काफी कम हैं। न सिर्फ अस्पताल और उपकरण, बल्कि डॉक्टर और चिकित्साकर्मी भी आबादी के हिसाब से नाकाफी हैं। पर आपदा आई, तो अचानक ही हमें पता चला कि जो डॉक्टर और चिकित्साकर्मी हैं भी, उनके लिए भी हमारे पास न तो मानक स्तर के पर्याप्त मास्क हैं और न ही पीपीई किट। यह ठीक है कि जल्द ही देश के उद्यमियों ने मोर्चा संभाला, तो यह कमी कुछ ही समय में दूर हो गई, लेकिन कुछ मामलों में तो सचमुच देर हो गई। इसे इस तरह से देखें कि हमारे यहां आबादी के लिहाज से डॉक्टरों का जो अनुपात है, कोरोना का शिकार बनने वाले लोगों में डॉक्टरों का वह अनुपात कहीं ज्यादा है। यही बात बाकी चिकित्साकर्मियों के बारे में भी कही जा सकती है। उम्मीद है कि आगे ऐसी समस्या शायद न आए, लेकिन अभी तक जो हुआ, उसके लिए हम खुद को कभी माफ नहीं कर पाएंगे। और, इसमें एक बड़ा दोष निश्चित रूप से देश के योजनाविदों का है।
हालांकि एक सच यह भी है कि हालात पूरी दुनिया में लगभग ऐसे ही हैं। खासकर अमेरिका में जो हुआ, वह उसके बारे में कई धारणाएं बदलने को मजबूर कर देता है। एक ऐसा देश, जो पिछले कई दशकों से जीवाणु-युद्ध के खतरों का खौफ पूरी दुनिया को बांटता रहा हो, उससे यह उम्मीद तो की जानी चाहिए कि वह जीवाणुओं के किसी भी हमले के लिए हमेशा तैयार होगा। लेकिन इस पूरे दौर में अमेरिकी प्रशासन ने सिर्फ यही दिखाया कि उसका स्तर भी बहुत कुछ हमारे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण जैसा ही है।
लेकिन एक फर्क जरूर है। चक्रवाती तूफान अमेरिका में भी आते हैं, और शायद ज्यादा ही आते हैं, पर भारत के मुकाबले वह अपने लोगों को इसके कहर से काफी कुछ बचा लेता है। भयानक चक्रवाती तूफानों के बीच अक्सर लंबा अंतराल होता है, न हम अपने लोगों को हर दूसरे साल आने वाली बाढ़ से बचा पाते हैं और न सूखे से। आपदा ही क्यों, हर साल जब बरसात शुरू होती है और देश के छोटे-बड़े तमाम शहरों की सड़कें व गलियां जलमग्न होने लगती हैं, तब पता चलता है कि नालियों की सफाई का सालाना काम अभी तक किया ही नहीं गया। आने वाली समस्याओं को लेकर यही परंपरागत रवैया हमारे नीति-नियामक अक्सर आपदाओं के मामले में भी अपनाते हैं। जो प्रशासनिक तंत्र हर साल आने वाली समस्याओं के लिए पहले से तैयारी नहीं रख पाता, उससे यह उम्मीद कैसे की जाए कि वह कोरोना और अम्फान जैसी अचानक आ टपकने वाली आपदाओं के लिए देश को पहले से तैयार रखेगा? इन दिनों आपदा को अवसर में बदलने की बातें बहुत हो रही हैं, लेकिन आपदा से सबक लेना हम कब शुरू करेंगे?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

दुर्ग / शौर्यपथ खास खबर / दुर्ग नगर पालिक निगम की बदहाल व्यवस्था का नज़ारा किसी से छुपा हुआ नहीं है . दुर्ग निगम का दूसरा पर्याय घोटाला कहे तो कोई गलत नहीं होगा हर कार्य में विवाद के लिए दुर्ग निगम की कार्य प्रणाली जगजाहिर है .वर्तमान में प्रदेश सहित देश में कोरोना आपदा है और इस आपदा से निपटने के लिए पुलिस विभाग , स्वास्थ्य विभाग और निगम विभाग की बड़ी महती भूमिका है किन्तु दुर्ग की पोलिसे टीम और स्वास्थ्य टीम तो अपना कार्य बखूबी कर रही है किन्तु वही दुर्ग का स्वास्थ्य विभाग कई मामलो में बहुत ही पीछे है . कोरोना से जंग में सफाई मित्रो की अहम् भूमिका होती है किन्तु दुर्ग निगम के सफाई मित्र जान जोखिम में डाल कर कार्य कर रहे है . दुर्ग निगम के सफाई मित्रो की माने तो कोरोना के कारण हुए लॉक डाउन के दिवस से भी ज्यादा दिन बीत जाने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग के सफाई मित्रो को हैण्ड सेनेटाईज़र की आपूर्ति बराबर नहीं हो रही है . इन सफाई मित्रो को लॉक डाउन के दिनों में एक -२ बोतल सेनेटाईज़र ( १०० ग्राम ) से जयादा नहीं मिला वही दस्ताने इतनी निम्न स्तर का वितरित किया गया जो एक दो बार के उपयोग से ही खराब हो गया वही सफाई मित्रो को गाली गलोच का मामला भी उजागर हुआ . स्वास्थ्य अधिकारी दुर्गेश गुप्ता द्वारा सफाई से सम्बंधित कर्मचारियों को गाली गलौच से संबोधित किया जाता है एक - दो ऑडियो वाइरल भी हुए और इसकी जानकारी निगम के स्वास्थ्य प्रभारी हमीद खोखर को भी दी गयी साथ ही आयुक्त को भी जानकारी उपलब्ध कराई गयी किन्तु ना ही स्वास्थ्य प्रभारी ने मामले को संज्ञान लिया और ना ही आयुक्त बर्मन द्वारा किसी तरह की कोई कार्यवाही की गयी .ये वही आयुक्त बर्मन है जो नाली में यदि कोई आम जनता गलती से भी एक चाय की डिस्पोजल गिलास फेक दे तो उससे जुरमान वसूलने का कार्य बखूबी करते है किन्तु वही निगम का स्वास्थ्य अधिकारी किसी कर्मचारी से अपशब्द कहे तो आयुक्त बर्मन मौन रहते है क्या स्वास्थ्य कर्मचारी गुलाम है जो इस तरह का व्यवहार अधिकारियों द्वारा किये जाने पर भी आयुक्त मौन है वही शहर में कोरोना वारियर्स का खिताब पाने में आगे स्वास्थ्य प्रभारी भी मौन है . निगम आयुक्त तो शासकीय कर्मचारी / अधिकारी है आज नहीं तो कल उनकी पदस्थापना अन्य जगह हो जाएगी अधिकारी होने के नाते सिर्फ अपने मन की कर रहे है किन्तु स्वास्थ्य प्रभारी हमीद खोखर को जनता के प्रतिनिधि के रूप में इस पद की प्राप्ति हुई है आखिर हमीद खोखर क्यों मौन है स्वास्थ्य विभाग के सफाई कर्मियों पर हो रहे मानसिक प्रताड़ना पर क्या स्वास्थ्य विभाग के प्रभारी का यही दायित्व है कि अधिकारियों के बदसलूकी पर भी मौन रहे या फिर निगम के कर्मचारियों पर हो रहे बदसलूकी पर मौन रहकर महापौर के कार्यकाल को काला दिवस के रूप में परिवर्तित करने का मन बना रहे है .
क्या स्वास्थ्य प्रभारी भूल गए है कि वो वार्ड के पार्षद के साथ शहर के स्वास्थ्य मंत्री भी है ?
हमीद खोखर जो वार्ड ४१ के पार्षद है और वार्ड के आम जनता के चहेते है इतने चहेते कि पार्षद निधि के राशन को भी स्वयंसेवी संस्था द्वारा अपना बताने पर मौन रहे जैसा कि हमीद खोखर के करीबियों द्वारा एक वीडियो वाइरल कर आम जनता से सुखा राशन ( निगम का ) के लिए भी शहर के किसी भी हिस्से से संपर्क करने की बात कही गयी किन्तु हमीद खोखर मौन रहे क्या हमीद खोखर के लिए सिर्फ वार्ड ही महत्तवपूर्ण है शहर नहीं , शहर में सफाई कर रहे सफाई मित्र नहीं . या फिर स्वास्थ्य विभाग के पद में हमीद खोखर इतने मगरूर हो गए कि सिर्फ वार्ड की जनता पर ही ध्यान दे रहे है .
भाजपाई को भी बना दिया कांग्रेस राज में पदाधिकारी
हमीद खोखर के कार्यो से कई कांग्रेसी भी नाराज चल रहे है . सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार हमीद खोखर अपने ख़ास साथी को आदर्श कन्या स्कूल में समिति का अध्यक्ष बनाने में कामयाब हो गए जो कांग्रेस सरकार के पहले भाजपा समर्थित थे किन्तु मिथ्या जानकारी के साथ जमीनी कांग्रेसी कार्यकर्ताओ को दरकिनार कर आदर्श कन्या स्कूल में एक पुरुष वर्ग से समिति में शामिल करा लिया गया जिसे हटाने की अनुशंषा भी विधायक द्वारा कलेक्टर को की गयी किन्तु मामला फिर दब गया . क्या स्वास्थ्य प्रभारी का दबाव के चलते विधायक वोरा के पत्र पर कार्यवाही नहीं की जा रही है ?
शहर में साफ़ सफाई की बात करे तो स्वास्थ्य विभाग कोई अहम् योगदान नहीं है . शहर के नालो की नालियों की सफाई की कमान निगम के आयुक्त बर्मन के हांथो में है इसमें कोई दो राय नहीं है कि निगम क्षेत्र की नालियों की / नालो की सफाई का कार्य जिस बेहतरीन तरीके से हुआ है वो निगम आयुक्त बर्मन की दें है इसका श्रेय भी निगम आयुक्त को ही जाता है . स्वास्थ्य अधिकारी दुर्गेश गुप्ता की बात करे तो प्लेसमेंट कर्मचारियों की भारती में विवादित होने के बाद भी , कर्मचारी के बदले उसके बेटे से कार्य कराने के बाद भी आयुक्त तो मौन है किन्तु जनप्रतिनिधि के नाते हमीद खोखर का मौन शहर की आम जनता के गले नहीं उतर रहा है . गरीबो , मजलूमों , पीडितो का साथ देने की बात करने वाले स्वास्थ्य प्रभारी हमीद खोखर का इन मामलो में मौन रहना और राजनितिक पद का लाभ उठाने का आरोप शहर की जनता लगा रही है किन्तु इन सब कार्यो से निगम की छवि धूमिल होने के साथ महापौर बाकलीवाल के कार्यप्रणाली पर भी आम जनता संदेह की नजर से देख रही है .
महापौर को ही उठाने होंगे अब कड़े कदम
निगम के स्वास्थ्य विभाग की बदहाल व्यवस्था , स्वास्थ्य अधिकारी दुर्गेश गुप्ता द्वारा कर्मचारियों से गाली गलौच जिसे समाज में बदतमीजी की संज्ञा दी जाती है पर एवं स्वास्थ्य प्रभारी की इन सभी मामलो में निष्क्रियता पर अब आम जनता की नजर शहर के महापौर बाकलीवाल पर टिकी है जो शहर में निगम क्षेत्र में सुचारू व्यवस्था बनाने में प्रयासरत है अब जनता को इंतज़ार है दुर्व्यवहार पर कार्यवाही का , निष्क्रियता पर संज्ञान का , विधायक वोरा के पत्र को सार्थक रूप में लाने का ...

रिसाली निगम / शौर्यपथ दुर्ग / छत्तीसगढ़ में कोरोना कहर केे बीच कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी दुर्ग के आदेशानुसार शनि-रवि को पूर्व निर्धारित पूर्ण तालाबंदी (प्रतिबंधित मुक्त दुकानों को छोड़कर) का पालन कराने आज रिसाली आयुक्त प्रकाश कुमार सर्वें के निर्देश एवं जोन आयुक्त रमाकांत साहू के मार्ग दर्शन में निगम की उडऩदस्ता टीम द्वारा अलग अलग समूहो में बंट कर सभी वार्डो के बजारों/ चौक-चैाराहों एवं व्यवसायिक प्रतिष्ठानों का व्यापक निरीक्षण किया गया।
निरीक्षण के दौरान रूआबांधा बाजार क्षेत्र में सब्जी व्यवसाय कर रहें 75 वर्षीय बुजुर्ग को समझा बुझा कर घर वापस भेजा गया तथा रूआबांधा में ही बगैर मास्क पहने व्यवसाय कर रहे दुकानदार को कड़ी फटकार लगाई गई तथा भविष्य में मास्क पहनकर दुकान संचालित करने की चेतावनी दी गई। वहीं कृष्णा टाकिज रोड रिसाली में खुली मीठाई की दुकान को बंद कराया गया ,रिसाली निगम क्षेत्रांतर्गत प्राय: सभी जगहों पर मेडिकल/दुध व्यवसाय /चश्मा/पैथौलाजी आदि व्यवसाय को छोड़कर प्राय: सभी दुकाने बंद पाई गई लोगो की आवाजाही व सड़के सुनसान दिखाई दी .
निगम के ग्रामीण वार्ड पुरैना, जोरातराई, डुण्डेरा के रहवासियों द्वारा लॉकडाउन का अक्षरश पालन किया गया निरीक्षण के दौरान राजस्व निरीक्षक, अनिल मेश्राम के नेतृत्व में रामेश्वर निषाद, पुनीत बंजारे, विनोद शुक्ला, सतीश देवांगन निगम बी.एस.पी के असलम खान, जगतार भाई सहित निगम के राजस्व विभाग एवं स्वास्थय विभाग के कर्मचारी शामिल रहे हैं।

राजनांदगांव / शौर्यपथ / कलेक्टर जयप्रकाश मौर्य ने छुरिया विकासखंड के ग्राम आमगांव में रात 10 कोरोना पॉजिटिव मरीज मिलने पर क्वारेन्टाईन सेंटर का निरीक्षण किया और उन्होंने ग्रामवासियों से बातचीत की। उन्होंने सभी ग्रामवासियों को सावधानी एवं सचेत रहने के लिए कहा। कलेक्टर ने ग्रामवासियों से कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। संक्रमण के फैलाव को रोकने के लिए हमें जागरूक रहना पड़ेगा। सोशल डिस्टेसिंग का सभी पालन करें और मॉस्क का उपयोग करें, सेनेटाईजर का उपयोग करें, साबुन से अपना हाथ समय-समय पर हाथ धोते रहें।
कलेक्टर ने कहा कि संक्रमित मरीज भी हास्पिटल में इलाज के बाद ठीक होकर गांव वापस आ जाएंगे। उन्होंने कहा कि यह पूरा क्षेत्र अतिसंक्रमित प्रतिबंधित क्षेत्र होगा और यहां किसी का भी आवागमन नहीं होना चाहिए। उन्होंने सभी कोरोना संक्रमित मरीजों की ट्रेव्हल हिस्ट्री की भी जानकारी ली। उन्होंने कहा कि मनरेगा के काम बंद रहेंगे। गांव में किसी भी को सर्दी, खांसी, बुखार हो तत्काल एएनएम को सूचित करें। क्वारेन्टाईन सेंटर को समय-समय पर सेनेटाईज करते रहे। सरपंच एवं सचिव सजग रहें तथा सर्दी, खांसी एवं बुखार के लक्षणों का परीक्षण करवाते रहें।
सभी कोरोना पॉजिटिव मरीजों को मेडिकल कॉलेज पेंड्री (कोविड-19 हॉस्पिटल) एम्बुलेंस से भेजा गया। इस दौरान मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी मिथलेश चौधरी, एसडीएम डोंगरगांव वीरेन्द्र सिंह एवं ग्रामवासी उपस्थित थे।

रायपुर / शौर्यपथ / केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह के द्वारा करोना काल में सरकारी अधिकारी कर्मचारियों के साथ दुव्र्यवहार और गलत शब्दों के प्रयोग की निंदा करते हुए राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा ने कहा है कि मारपीट की धमकी देना और अधिकारी कर्मचारियों के साथ इस तरीके का दुव्र्यवहार करना केंद्रीय मंत्री पद की गरिमा के अनुरूप नहीं हैं। आज करोना से लड़ाई में सरकारी कर्मचारी अधिकारी डॉक्टर स्वास्थ्य कर्मी और पुलिस के जवान अग्रिम पंक्ति के सिपाही की भूमिका निभा रहे हैं।
करोना योद्धाओं के लिए धमकी की भाषा का प्रयोग करके रेणुका सिंह ने उजागर कर दिया है कि केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा का वास्तविक चाल चरित्र और चेहरा कैसा है ! छत्तीसगढ़ शांति प्रेम और सद्भाव का प्रदेश है और ऐसी हिंसक प्रवृत्ति का प्रदर्शन करने वाले नेताओं का छत्तीसगढ़ की राजनीति में कोई स्थान नहीं है।

रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि प्रदेश के किसानों, मजदूरों और वनवासियों की जेब में पैसा आने से न केवल उनकी आर्थिक स्थिति मजबूती होगी बल्कि इससे ग्रामीण और शहरी व्यवसाय में भी बढ़ोतरी होगी। पिछले साल हमने देखा है कि किसानों की ऋण माफी और 2500 क्विंटल में धान खरीदी से देशव्यापी मंदी के बावजूद छत्तीसगढ़ इससे अछूता रहा यह इस साल भी होगा।
मुख्यमंत्री बघेल आज यहां आकाशवाणी से प्रसारित विशेष भेंटवार्ता में कोरोना संकट के दौर में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसानों, प्रवासी मजदूरों, वनवासियों और ग्रामीणों सहित समाज के सभी वर्गो के हित में उठाए जा रहे कदमों के बारें में विस्तार से जानकारी देते हुए उपरोक्त बातें कहीं। मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश के किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम मिले, उनके साथ न्याय हो इसके लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने राजीव गांधी किसान न्याय योजना शुरू की है। इस योजना से प्रदेश के 19 लाख किसानों को 5750 करोड़ रूपए चार किश्तों में दिया जा रहा है। पहली किश्त 1500 करोड़ रूपए की राशि 21 मई को किसानों के खातों में राजीव गांधी जी की शहादत दिवस पर दी गई है। राज्य सरकार द्वारा पिछले साल किसानों की ऋण माफी और 25 सौ प्रति क्विंटल में धान खरीदी की गई थी, लेकिन भारत सरकार के निर्देशानुसार हमें इस साल समर्थन मूल्य पर ही धान खरीदी करनी पड़ी। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में किसानों की जो स्थिति है वह किसी से छुपी हुई नहीं है और ऐसी स्थिति में उनका हक है कि हम वह राशि उन्हें दे। ऐसी स्थिति में हम लोगों ने राजीव गांधी किसान योजना लागू की और इस योजना के तहत जो धान के साथ-साथ मक्का उत्पादक किसानों को 10 हजार रूपए प्रति एकड़ और गन्ना उत्पादक किसानों को 13 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से कृषि आदान सहायता राशि मुहैया करा रहे है। आने वाले वर्ष में दलहन तिलहन की फसल को भी इस योजना में शामिल करेंगे ताकि किसान अपनी पसंद से कोई भी लगाएं उनकों इसका लाभ मिलें प्रदेश के भूमिहीन किसानों को भी इस योजना में शामिल करने के लिए हमने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में विभागीय अधिकारियों की कमेटी बना दी गई है जो 2 महीने के भीतर अध्ययन करके अपनी रिपोर्ट कैबिनेट के सामने प्रस्तुत करेगी।
वनोपज संग्रहण से आदिवासियों को पिछली से साल से इस साल आमदनी में बढ़ोत्तरी
मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि लॉकडाउन के बावजूद भी हमने छत्तीसगढ़ में मनरेगा के काम शुरू किए और अभी लगभग 26 लाख मजदूर मनरेगा में काम कर रहे हैं। दूसरी तरफ राजीव गांधी किसान योजना के तहत हमने किसानों के खातों में राशि दी है इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के 44 प्रतिशत वनांचल में आदिवासी और परंपरागत निवासी रहते है। जिनकी अर्थव्यवस्था लघु वनोपज पर आधारित है। इस परिस्थिति में भी जब सारी दुकानें बंद है जो लोग लघु वनोपज खरीदते हैं वह काम बंद पड़ा था। ऐसे समय में हमने ग्रामीण स्तर पर स्व सहायता समूहों के माध्यम से महुआ, इमली की खरीदी की शुरुआत की है। महुआ इमली और इसके बाद तेंदूपत्ता के काम को भी हमने रोका नहीं। भारत सरकार ने महुआ का समर्थन मूल्य 17 रूपए तय किया था जब मांग बढ़ी तो छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे 17 से बढ़ाकर 30 रूपए कर दिया इस प्रकार पिछले वर्षों में जितनी आमदनी लोगों को हुई थी उस से बढ़कर आमदनी इस साल हुई। जंगल में रहने वाले हमारे भाई बहन हैं उनकी जेब में 2500 करोड़ रुपए आएगा ।
मुख्यमंत्री ने कहा कि एक तरफ किसान और दूसरी तरफ मजदूर और तीसरी तरफ हमारे आदिवासी जो वनांचल में रहते हैं इन सबकी जेब में पैसा आएगा जब इनकी जेब में पैसा होगा और इनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी तो चाहे वह ग्रामीण व्यवसाय हो चाहे वह शहर के व्यवसाय हो वह बढ़ेगा ही। इसका अनुभव हमने पिछले साल ही कर लिया है। हमने ऋण माफी की और 2500 रूपए प्रति क्विंटल में धान खरीदी की। पूरे देश में मंदी का दौर रहा लेकिन छत्तीसगढ़ में मंदी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा इस वर्ष भी ऐसा होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासी कभी पलायन नहीं करते थे और जंगल में ही उनकी सारी आवश्यकता पूरी हो जाती थी लेकिन धीरे-धीरे जंगल से आंवला, चिरौंजी और आम के पेड़ काटने लगे और आय के जो स्रोत थे वह घटने लगे। इस साल हमने निर्णय लिया है कि ऐसे पेड़ लगाए जाए जिनसे आदिवासियों को सीधा लाभ मिलें। हम इस साल 70 लाख फलदार पौघे लगाने जा रहे है। जिसमें हर्रा, बहेरा, चिरौंजी, आंवला आदि होंगे जो आदिवासियों की आय के स्रोत बनेंगे। साथ मैंने यह निर्देश भी दिया है कि वन अधिकार का जो पट्टा दिया है वहां इन पेड़ों का लगाएं और इन पेड़ों के बीच में जिमीकांदा-हल्दी आदि जो पेड़ की छाया में भी पैदा हो सकते हैं उन्हें भी लगाए ताकि निरंतर आए मिलती रहे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान में 90 प्रतिशत से अधिक औद्योगिक प्रतिष्ठान हैं वह प्रारंभ हो चुके हैं। अभी ये पूरी क्षमता के साथ वह काम नहीं कर रहे हैं लेकिन समय धीरे-धीरे बीते जा रहा है वैसे वैसे उनकी क्षमता बढ़ती जा रही है। जो व्यवसाय शहरी मजदूरों को रोजगार देते हैं हमारी कोशिश है कि वो जल्दी से जल्दी खुले। श्री बघेल ने बताया कि प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए हमने 43 स्पेशल ट्रेन चलाने की सहमति दी है। विभिन्न प्रदेशों आने वाले मजदूरों के 16 हजार 499 क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाए हैं जिसमें लोगों के रहने, भोजन और स्वास्थ्य जांच आदि की व्यवस्था की गई है।
किसी भी प्रदेश के श्रमिक सभी हमारे मेहमान है
मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ 7 राज्यों से घिरा हुआ है। इन राज्यों के अलावा कई अन्य राज्यों के मजदूर छत्तीसगढ़ से होकर गुजर रहे हैं। बड़ी संख्या में मजदूर पैदल आ रहे है जिनके लिए राज्य सरकार भोजन, पानी, स्वास्थ्य जांच के साथ चरणपादुका और उन्हें राज्य की सीमा तक सकुशल पहुंचाने की व्यवस्था कर रही है। हम यह समझते हैं कि ये जो श्रमिक हैं वह किसी भी प्रदेश के हो हमारे मेहमान हैं उनकी बराबर देखभाल हो। मैं सभी भाई बहनों से अपील करना चाहता हूॅ। संकट की इस घड़ी में जो लोग आ रहे हैं वह हमारे अपने हैं, हमारे रिश्तेदार है,ं हमारे भाई-बहन हैं। हमारे गांव के लोग हैं, हमारे शहर के लोग हैं ऐसे में हम लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि उनकी देखभाल करें उनके साथ ऐसा कोई व्यवहार न करें जिससे उन्हें ठेस पहुंचे। साथ ही हमारी गाइडलाइन है उसका भी कड़ाई से पालन होना होना चाहिए उनकी देखरेख भी करें और नियमों का कड़ाई से पालन भी करें । हमारे मजदूर भाई जो दूसरे प्रदेश से आए हैं उनसे भी मैं अपील करना चाहता हूं कि यह संकट के समय में थोड़ा धैर्य और संयम रखें आप अपने गांव पहुंच गए हैं हजारों किलोमीटर चलकर आए हैं अब थोड़े दिन की बात है।
मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि जो कोरोना पॉजिटिव मरीज आए हैं उनके साथ हम लोग को अच्छा व्यवहार करना चाहिए और साथ ही उनके इलाज की व्यवस्था हमें करनी है। मैं समझता हूं कि पहले प्रथम चरण में हम सभी छत्तीसगढ़ के लोगों ने मिलकर काम किया है, संकट आया है इससे हमें घबराने की आवश्यकता नही है। जब हमने प्रथम चरण में बहुत अच्छा काम करके दिखाएं हैं तो द्वितीय चरण में भी अच्छा काम करेंगे कुछ दिन की बात है। यदि आप ठीक ढंग से बचाव कर लिए तो हम करोना को परास्त करने में सफल होंगे।
मुख्यमंत्री ने बताया कि बीपीएल परिवारों के राशनकार्डधारियों को जून माह का भी चावल भी निशुल्क मिलेगा। जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उन्हें भी प्रति व्यक्ति के मान से 5 किलो चावल मिलेगा। जिनके पास जॉब कार्ड मनरेगा का नहीं है उसको भी हम तत्काल जॉब कार्ड बना कर देंगे ताकि उन्हें मनरेगा में काम मिल सके । यहां के उद्योग के श्रमिक बाहर गए है बाहर से श्रमिक यहां आएं है उद्योग को इन श्रमिकों को एडजस्ट करना चाहिए और उनकों अवसर देना चाहिए। हम मनरेगा के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में निर्माण कार्य भी प्रारंभ कर रहे है जिससे मजदूरों को रोजगार मुहैया हो सकेगा। हमारी कोशिश है कि सब को रोजगार दे सके। हमने लॉकडाउन के प्रारंभ होने के साथ ही सब्जियों सहित सभी जरूरी आवश्यकताओं की सामग्रियों की सुचारू व्यवस्था सुनिश्चित की। कालाबाजारी पर कड़ाई से निगरानी रखी जिससे लोगों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना नही करना पड़ा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आने वाले दिनों में हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी पड़ेगी। भीड़-भाड़ वाली जगह में जाने से बचे। मास्क अनिवार्य रूप से लगाए और अपने हाथों को धोते रहे। इन सुरक्षात्मक उपायों को अपनाने से ही हम सभी इस संक्रमण पर विजय प्राप्त कर सकेंगे।

दुर्ग / शौर्यपथ / लॉक डाउन के दौरान कैसे ग्रामीणों के वक्त का सबसे बेहतर इस्तेमाल हो, इसको लेकर सभी क्वारन्टीन केंद्रों में कुछ न कुछ गतिविधि चलाई गई लेकिन धमधा में एक विशेष काम हुआ। यहां लोगों को शब्दों की ताकत से परिचित कराया गया। सभी क्वारन्टीन केंद्रों में निरक्षर लोगों की पहचान कर इन्हें साक्षर बनाने शब्दों की पहचान कराने का काम शुरू हुआ। इस महायज्ञ की शुरुआत हुई राजपुर ग्राम से। यहां नागपुर से प्रवासी श्रमिक हीरा बाई आईं थीं। एसडीएम सुश्री दिव्या वैष्णव ने उनसे कहा कि आपको साक्षर बनाना है हमारा साथ दोगी। हीराबाई ने हामी भरी, खूब मेहनत की, अब अक्षर पहचान लेती हैं। हस्ताक्षर कर लेती हैं। उनके लिए अक्षर का सुनहरा संसार खुल गया है। इसके लिए धमधा ब्लॉक के बीईओ, सरपंच और सचिव ने भी काफी काम किया।
हीरा बाई ने बताया कि उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है। अब वे अंगूठा नहीं लगाएंगी। सिग्नेचर करेंगी। ऐसा सोचकर भी बहुत अच्छा लगता था और अब मैं यह कर रही हूं। हीरा बाई ने बताया कि काम करते थे, कहाँ पर क्या लिखा है। यह समझ नहीं आता था, पता नहीं कितने बार लोगों ने लूटा होगा। अब अक्षर की ताकत साथ है। लॉक डाउन के समय का अच्छा उपयोग हो गया है। एसडीएम ने बताया कि यह समय इनके लिए काफी उपयोगी है क्योंकि साक्षरता की कक्षा में एक दो घंटे ही समय दे सकती थीं। अब तो पूरा दिन है। सबसे बड़ी बात यह है कि अक्षर ज्ञान को लेकर जो निष्ठा हीरा बाई ने दिखाई, वो काबिलेतारीफ है। हम अब सभी क्वारन्टीन केंद्रों में निरक्षर लोगों को चिन्हांकित कर इस दिशा में काम कर रहे हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। बातचीत में हीरा बाई ने आखिर में छत्तीसगढ़ी में कहा। कभी बाप-पुरखा इस्कूल नहीं देखें रहंव, मोर दाई-ददा मन मोला पढ़ाये बर नहीं भेजिस हे अउ ए बीमारी के डर हा मोला 14 दिन भर इस्कूल में बन्द कर देहे। 14 दिन की अवधि हीराबाई ने लॉक डाउन की जरूर काटी है लेकिन इसके प्रतिफल में उन्हें 40 साल की निरक्षरता से आजादी मिल गई है। साक्षर होने के उनके संकल्प से अन्य लोगों को भी सृजनात्मक गतिविधि करने और हुनर बढ़ाने का प्रोत्साहन मिला है। एसडीएम ने बताया कि शुक्रवार को कलेक्टर श्री अंकित आनंद ने धमधा ब्लॉक के विभिन्न क्वारन्टीन केंद्रों का निरीक्षण किया और इस तरह के सृजनात्मक कार्य करने और सीखने लोगों को प्रोत्साहित भी किया।

रायपुर / शौर्यपथ / मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने झीरम घाटी में 25 मई 2013 को हुए नक्सल हमले में शहीद नेताओं और जवानों को नमन करते हुए उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है। झीरम घाटी के नक्सल हमले में छत्तीसगढ़ के विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा सहित कई नेता और जवान शहीद हो गए थे।
झीरम घाटी शहादत दिवस की पूर्व संध्या पर जारी अपने संदेश में मुख्यमंत्री बघेल ने कहा है कि झीरम घाटी के शहीदों की स्मृति में 25 मई को हर वर्ष Óझीरम श्रद्धांजलि दिवसÓ मनाया जाएगा। प्रदेश के सभी शासकीय एवं अर्धशासकीय कार्यालयों में नक्सल हिंसा में शहीदों की स्मृति में 25 मई को दो मिनट का मौन धारण कर श्रद्धांजलि दी जाएगी तथा राज्य को पुन: शांति का टापू बनाने के लिए शपथ भी ली जाएगी।

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