December 08, 2025
Hindi Hindi
Uncategorised

Uncategorised (34582)

अन्य ख़बर

अन्य ख़बर (5894)

धर्म संसार / शौर्यपथ / प्रभु यीशु के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाने वाला क्रिसमस का त्योहार पूरी दुनिया में मनाया जाता है। यह त्योहार कई मायनों में बेहद खास है। क्रिसमस को बड़ा दिन, सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहा जाता है। प्रभु यीशु ने दुनिया को प्यार और इंसानियत की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने का संदेश दिया। प्रभु यीशु को ईश्वर का इकलौता प्यारा पुत्र माना जाता है। इस त्योहार से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
क्रिसमस ऐसा त्योहार है जिसे हर धर्म के लोग उत्साह से मनाते हैं। यह एकमात्र ऐसा त्योहार है जिस दिन लगभग पूरे विश्व में अवकाश रहता है। 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला यह त्योहार आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च में 6 जनवरी को मनाया जाता है। कई देशों में क्रिसमस का अगला दिन 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप मे मनाया जाता है। क्रिसमस पर सांता क्लॉज़ को लेकर मान्यता है कि चौथी शताब्दी में संत निकोलस जो तुर्की के मीरा नामक शहर के बिशप थे, वही सांता थे। वह गरीबों की हमेशा मदद करते थे उनको उपहार देते थे। क्रिसमस के तीन पारंपरिक रंग हैं हरा, लाल और सुनहरा। हरा रंग जीवन का प्रतीक है, जबकि लाल रंग ईसा मसीह के रक्त और सुनहरा रंग रोशनी का प्रतीक है। क्रिसमस की रात को जादुई रात कहा जाता है। माना जाता है कि इस रात सच्चे दिल वाले लोग जानवरों की बोली को समझ सकते हैं। क्रिसमस पर घर के आंगन में क्रिसमस ट्री लगाया जाता है। क्रिसमस ट्री को दक्षिण पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है। फेंगशुई के मुताबिक ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। पोलैंड में मकड़ी के जालों से क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा है। मान्यता है कि मकड़ी ने सबसे पहले जीसस के लिए कंबल बुना था।

दुर्ग / शौर्यपथ / नगर निगम की सामान्य प्रशासन विभाग की प्रभारी जयश्री जोशी ने भाजपा पार्षदों के आरोपो का जवाब देते हुए दोहराया है कि शहर में बार-बार पानी सप्लाई बंद होने और स्ट्रीट लाइट व्यवस्था ठप होने के लिए पिछले 20 साल में पूर्व महापौरों की कार्य प्रणाली जिम्मेदार है। जयश्री ने कहा कि शहरवासियों की फिक्र किए बगैर जिस तरह से 20 साल तक नगर निगम का पूरा सिस्टम चौपट रहा। सही मायनों में जनता की समस्याएं दूर न करने के कारण ही शहर का समग्र विकास नहीं हो पाया।
जयश्री ने कहा कि भाजपा पार्षदों को 20 साल के कार्यकाल का महिमा मंडन करने से पहले यह स्पष्ट कर दें कि अगर बहुत अच्छे काम किए गए हैं तो दुर्ग में भाजपा विधानसभा और दुर्ग नगर निगम चुनाव में कैसे हार गई। जयश्री ने तंज कसते हुए कहा कि पिछले कार्यकाल में महापौर चंद्रिका चंद्राकर के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाने वाले भाजपा पार्षद बताएं कि खुद के वार्ड में वे अपने पति रत्नेश चंद्राकर को क्यों नहीं जिता पाई।
जयश्री ने कहा कि बीते 20 वर्षों के कार्यकाल में काम नहीं हुआ बल्कि विकास के नाम पर दिखावेबाजी होती रही। कमीशनखोरी चरम पर रही। इसी दिखावेबाजी और कमीशनखोरी के कारण भाजपा की इतनी करारी हार हुई है। जयश्री ने कहा कि उनके द्वारा पूर्व महापौरों पर लगाए गए आरोप नगर निगम की पिछली परिषद के कार्यकाल पर करारा तमाचा है।
राज्य निर्माण के बाद पहली बार दुर्ग शहर में इतनी बेहतरीन प्लानिंग के साथ विकास कार्य हो रहे हैं। जयश्री ने भाजपा पार्षदों से कहा है कि शहर में जनहित का ध्यान रखकर समग्र विकास कैसे होता है, यह जानने-समझने के लिए उन्हें विधायक अरुण वोरा और महापौर धीरज बाकलीवाल से विकास का सबक सीखना चाहिए। 20 साल तक विकास कार्यों को लेकर भाजपा पार्षदों के ज्ञान चक्षु नहीं खुल पाए हैं, तो अब खुल जाएंगे।
जयश्री ने कहा कि उन्होंने भा जपा से पार्षद चुनाव जीता और लोक कर्म प्रभारी बनने के बाद लगातार मेहनत की और सभी 60 वार्डों में लगातार विकास कार्य कराने सक्रिय रही। इसी का नतीजा रहा कि उन्हें दूसरी बार भी लोक कर्म प्रभारी बनाया गया। कठपुतली बनने से इंकार करने और नगर निगम में गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ आवाज उठाने के कारण 2014 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें सामान्य सीट होने और योग्यता के बावजूद महापौर की टिकट नहीं दी।
जयश्री ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने सम्मान के साथ इस बार के चुनाव में पार्षद की टिकट दी और एमआईसी प्रभारी बनाया। उनके पार्टी बदलने पर हायतौबा मचाने वाले भाजपा पार्षद बताएं कि मध्यप्रदेश में 22 विधायकों को किसने दलबदल कराया? उन्होंने कहा कि जिनके घर कांच के होते हैं उन्हें हाथ में पत्थर रखने से बचना चाहिए।

नई दिल्ली / शौर्यपथ/ भारतीय नौसेना में लिंग-समानता को साबित करने वाले एक कदम के तहत सब-लेफ्टिनेंट कुमुदिनी त्यागी तथा सब-लेफ्टिनेंट रिति सिंह को नौसेना के युद्धपोत पर क्रू के…
नई दिल्ली / शौर्यपथ/ जेल से छूटने के बाद डॉक्टर कफील खान ने आज कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकात की. डॉक्टर कफ़ील खान की जेल से रिहाई के बाद…
नई दिल्ली / शौर्यपथ / भारत में कोरोनावायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. हालांकि, इसी बीच सोमवार को देश के कई राज्यों में आंशिक रूप से स्कूल खोल…
नई दिल्ली/ शौर्यपथ / रेप केस में आरोपी यूपी के पूर्व मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को झटका लगा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो महीने की अंतरिम जमानत देने के आदेश…
नई दिल्‍ली / शौर्यपथ/ केंद्र सरकार ने सोमवार को बताया कि देश में वर्ष 2017 और 2018 के दौरान पुलिस द्वारा सख्त राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत करीब 1200 लोगों…
नई दिल्ली / शौर्यपथ / केंद्र सरकार ने राज्यसभा में अवैध प्रवासियों को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में सोमवार को कहा कि अवैध प्रवासी भारत में 'बहुत गुप्त…
नई दिल्ली / शौर्यपथ / रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को केंद्र सरकार की कैबिनेट कमेटी ने मंजूरी दे दी है. कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने…
नई दिल्ली / शौर्यपथ / गाजीपुर शहर के महुआबाग मोहल्ला स्थित सरकारी जमीन पर होटल बनाने के आरोप में बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की पत्नी, उनके दोनों पुत्रों सहित 12…

शौर्यपथ लेख / कृषि बिल जिसे पास करवाने के लिए मेरी नजर में मत विभाजन होना था नहीं हुआ संख्या बल के आधार पर भारत के सबसे बड़े बिल को पास कर दिया गया . कृषि बिल पर कौन राजनीती कर रहा ये हमारा मुद्दा नहीं है मुद्दा ये है कि कृषि बिल को जो कि किसानो के लिए एक महत्तवपूर्ण बिल है क्योकि भारत को कृषि प्रधान देश कहा जाता है ऐसे में बिल पास करवाने का जो तरीका निकाला गया क्या हो सही था . क्या संख्या बल के दम पर चुने हुए सांसद बिना किसी की राय लिए कृषको के भाग्यविधाता बनने की कोशिश नहीं कर रहे है . इतने बड़े विधेयक को पास करने की इतनी जल्दबाजी क्यों की गयी क्या यही भारत का लोकतंत्र है जहा संख्या बल के दम पर विपक्ष को दबाया जा रहा है . इस बिल पर कौन राजनीति कर रहा है सत्ता पक्ष या विपक्ष ये अलग मुद्दा है किन्तु यहाँ जिस तरह नियमो की अनदेखी की जा रही है क्या ये एक नए प्रथा को जन्म नहीं दे रहा है . चलिए ये मान लिया जाए कि कृषि बिल किसानो के हित का है तो सरकार इस बात को लिखित में क्यों नहीं दे रही है कि किसानो को उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा . संसद में इस बात को ऑन रिकार्ड क्यों नहीं स्वीकार कर रही है कि किसानो को समर्थन मूल्य ( न्यूनतम मूल्य ) प्राप्त होगा . चलो मान लिया जाये कि मोदी सरकार किसानो के हित के लिए आगे बढ़ रही है तो इस बात में आखिर सरकार को परेशानी क्यों हो रही है संसद में लिखित में न्यूनतम समर्थन मूल्य की बात को स्वीकार करने में . आज राज्यसभा में सबको यह बात तो दिखी कि किस तरह से सांसदों का उग्र व्यवहार था किन्तु ये कोई क्यों नहीं देख रहा है कि आखिर इतने उग्र क्यों हुए सांसद कि उन्हें उप सभापति के चेयर तक जाना पडा रुल बुक फाड्नी पड़ी और माइक से छेड़खानी करने की नौबत आयी . चाहे कोई भी स्थिति हो इस तरह का व्यवहार निंदनीय है किन्तु क्या ये सही है कि रुल बुक के अनुसार अगर कोई भी सांसद किसी बिल के लिए मत विभाजन की मांग करता है तो सदन के सभापति / उपसभापति को नियमानुसार सदन के सदस्यों की मांग को माननी पड़ती है और मत विभाजन की प्रक्रिया निभानी होती है किन्तु यहाँ क्या हुआ एक से ज्यादा सदस्य मत विभाजन की मांग करते रहे रुल बुक के अनुछेद की याद दिलाते रहे सदन के लिए बनाए गए नियमो के अनुसरण की बात करते रहे किन्तु सदन के अनुछेद को नहीं माना गया . जब सदन के अनुछेद को नहीं माना जा रहा है तो फिर रुल बुक का क्या औचित्य शायद यही पीड़ा लेकर सदन के सदस्य / सदस्यों ने रुल बुक को फाड़ दिया होगा खैर रुल बुक को फाड़ने वाले और सदन के नियमो की अवहेलना करने वाले सांसदों को एक हफ्ते के लिए सस्पेंड कर दिया गया है किन्तु की सिर्फ सदस्यों की ही गलती हुई इस सारे घटना क्रम में और किसी की गलती नहीं है . क्या सदन में संख्या बल है तो जंगल राज की तरह व्यवहार होगा सरकार का . लोकतंत्र में सर्व सम्मति का उच्च स्थान है किन्तु साथ ही विपक्ष की बात को सुनने का और निराकरण करने की परम्परा भी रही है किन्तु क्या वर्तमान स्थिति में ऐसा हो रहा है कोई भी बात स्पष्ट रूप से आखिर क्यों नहीं कही जा रही है सदन के बाहर जिस बात के वादे किये जा रहे है वही बात सदन के अंदर कहने में आखिर क्या परेशानी . अगर मन साफ़ है और नियत सही है तो सदन के अंदर भी उसी बात को कही जा सकती है जिसे बाहर बार बार सफाई देने के लिए कहा जा रहा है .


कृषि बिल में आखिर ऐसी क्या बात है जो किसानो को तो परेशान कर रही है साथ ही सरकार के घटक दल भी विरोध कर रहे है किन्तु यहाँ एक बार फिर संख्या बल का नशा सर पर होने का दंभ दिख रहा है जिसके कारण यह भी नहीं दिख रहा है कि सालो पुरानी साथी पार्टी की नारजगी का भी कोई असर सरकार पर नहीं पड़ रहा है . आज भले ही सारी बाते आपके पक्ष में हो किन्तु ये समय है यहाँ इंदिरा गांधी जैसी सरकार को भी धुल चाटनी पड़ी है राजनितिक के मैदान में . इस देश में ऐसे ऐसे राजनितिक कारनामे हुए है कि जब सारा देश मोदी के पक्ष में था तब दिल्ली विधान सभा में भाजपा को मुह की खानी पड़ी , छत्तीसगढ़ में स्थिति बदतर हुई , सत्ता के कारण शिवसेना - भाजपा में दरार हो गयी - सत्ता के खेल में जनता की पसंद को दरकिनार कर मध्यप्रदेश , हरियाणा , गोवा , कर्णाटक ,बिहार में कैसे सरकार बनी ये सभी ने देखा यहाँ कितने बार लोकतंत्र की हत्या हुई इस पर सब मौन रहे .


कृषि बिल से सरकार का कहना है कि इससे किसानो को बहुत लाभ होगा और विपक्ष का कहना है कि नुक्सान होगा . किसानो को क्या और कैसे फायदा होगा ये किसान को समझाने की जिम्मेदारी बिल पास करवाने वालो की होती है / सरकार की होती है आखिर सरकार क्यों नहीं किसानो के शंकाओ का समाधान कर रही . सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या मर्यादा तोड़ने की सारी जिम्मेदारी सिर्फ विपक्ष की होती है सत्ता पक्ष की नहीं होती ताली एक हाँथ से नहीं बजती और यही हाल कल संसद में हुआ . कल के व्यवहार से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सरकार के बिल को पास करवाने के लिए प्रश्नकाल को भी दफन करने का फैसला क्या सही है आखिर उपसभापति ने विपक्ष की मांग को भी क्यों नहीं माना , प्रवर समिति में भेजने की मांग को भी क्यों नहीं माना क्या ये निति संगत है . कृषि बिल संसद में ध्वनी मत से पास हुआ किन्तु संसद फेल हो गया . हाउस रुल 252 के अनुसार कोई भी सदस्य चाहता है या चेयरमेन के फैसले को चेलेंज करता है तो रुल 252 के तहत मत विभाजन का आदेश देना होता है किन्तु जिस तरह से कल की कार्यवाही हुई उससे साफ सन्देश जाता है कि सरकार किसी भी तरह से बिल उसी दिन पास कराना चाहती थी और हुआ भी यही कृषि बिल ध्वनी मत से पास हो गया और आठ सांसद एक हफ्ते के लिए सस्पेंड हो गए .


इन सबमे सबसे बड़ी बात जो ध्यान देने वाली है उसके अनुसार वर्तमान सरकार एनडीए -2 में कुल 82 बिल पास हुए जिसमे से 17 बिल प्रवर समिति को / मत विभाजन के लिए भेजे गए यानी कि लगभग २० प्रतिशत बिल में विपक्ष की राय को महत्तव दिया गया उसी तरह एनडीए 1 में 25 प्रतिशत बिल को पास कराने के लिए विपक्ष के राय को महत्तव दिया गया वही अगर यूपीए 2 ( सरकार ) की बात करे तो 71 प्रतिशत बिल के लिए विपक्ष की राय ली गयी वही यूपीए -1 में 60 प्रतिशत बिल पास होने के लिए विपक्ष को महत्तव दिया गया . इन आंकड़ो से ही साफ़ नजर आता है कि वर्तमान सरकार संख्या बल के आधार पर किस तरह बिल पास करवा रही है . बिल पास होने के कई मायने है पूर्ण बहुमत से बिल पास होना मतलब सभी की पूर्ण सहमती , मत विभाजन से बिल पास होना मतलब वो बिल जिस पर विपक्ष सवाल उठा रही है और सत्ता पक्ष समर्थन कर रही है ऐसे बिल के पास होने के लिए सदन के चेयर पर्सन द्वारा मत विभाजन करवाना और बहुमत के आधार पर बिल को पास या फेल करना जिसमे विवाद की स्थिति अल्प समय के लिए होती है किन्तु ध्वनिमत से बिल पास करना यानी कि विपक्ष की शंकाओं को नजर अंदाज करते हुए सत्ता पक्ष बल संख्या के आधार पर बिल को पास करवा लेती है उसे ध्वनिमत से पास हुआ बिल करार दिया जाता है और ऐसा ही कृषि बिल के साथ हुआ राज्यसभा में कृषि बिल विवादों के बीच विपक्ष की मांगो को नजरंदाज कर यहाँ तक कि सत्ता के घटक दलों की भावना को भी नजर अंदाज कर पास करा लिया गया और एक नए प्रथा का श्री गणेश जो हुआ है उस पर एक सीढ़ी और आगे बढ़ गयी सरकार इस तरह कृषि प्रधान देश में जमीनी किसानो से चर्चा किये बिना सरकार ने एक नए नियम को लागू कर दिया अब इससे किसानो को फायदा है या नुक्सान ये तो आने वाला समय ही बताएगा . ( शरद पंसारी - संपादक - शौर्यपथ दैनिक समाचार पत्र )

हमारा शौर्य

हमारे बारे मे

whatsapp-image-2020-06-03-at-11.08.16-pm.jpeg
 
CHIEF EDITOR -  SHARAD PANSARI
CONTECT NO.  -  8962936808
EMAIL ID         -  shouryapath12@gmail.com
Address           -  SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)