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शौर्यपथ /मां बनने के बाद सबसे बड़ी समस्या होती है बढ़े हुए वजन को कम करना। इसके अलावा भी डिलीवरी के बाद मां को कई तरह की परेशानियां होती हैं। जैसे शरीर में दर्द या कमजोरी महसूस होना। ऐसे में बहुत जरूरी है कि मां और बच्चे की देखभाल के साथ उनकी डाइट का भी ख्याल रखा जाए।आज हम आपको अजवाइन के ऐसे देसी लड्डू की रेसिपी बता रहे हैं, जो डिलीवरी के बाद बच्चे और मां दोनों के लिए बेहद लाभदायक है।अजवाइन में आयरन, सोडियम, मैग्नीशियम, विटामिन ए और विटामिन सी पाया जाता है, जो हमारी त्वचा और शरीर दोनों के लिए फायदेमंद होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर भी होता है जो पाचन क्रिया को ठीक रखने में मदद करता है।
सामग्री :
अजवाइन के लड्डू बनाने के लिए 1 किलो अजवाइन पिसी हुई, डेढ़ किलो गेहूं के आटे, 250 ग्राम गोंद, 1 सूखा नारियल कटा हुआ, देसी चीनी या गुड़ और आवश्यकतानुसार देसी घी की जरूरत होती है।
अजवाइन के लड्डू ऐसे बनाएं :
गैस पर कढ़ाई रखें और उसे गर्म होने दें।
अब कढ़ाई में 1 बड़ा चम्मच घी डालें और धीमी आंच पर घी को गर्म होने दें।
इसके बाद घी में गोंद डालें और इसे अच्छी तरह से भूनने के बाद किसी खाली बर्तन में निकाल लें।
अब गर्म-गर्म ही गोंद को पीस लें।
दोबारा कढ़ाई को गर्म करके उसमें घी डालें।
अब आटा डाल दें और इसको तब तक धीमी आंच पर पकाएं जब तक कि उसमें से खुशबू न आने लगे।
फिर इसमें गोंद और पिसा हुआ नारियल डालें।
इसमें पिसी हुई अजवाइन डालकर आटे के साथ मिला दें।
ठंडा होने पर इसमें चीनी या गुड़ डाल दें
चीनी मिलाने से अजवाइन का तीखापन कम हो जाता है।
अब इस चूरमे से लड्डू बना लें।
अजवाइन के लड्डू खाने के फायदे
-अजवाइन महिलाओं को प्रसव के बाद होने वाली पीड़ा से राहत दिलाने का सबसे अच्छा उपाय है। इसमें एंटी-इंफ्लामेट्री गुण होते हैं जो प्रसव के बाद होने वाले दर्द को दूर करते हैं।
-अजवाइन मां और बच्चे दोनों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
-यह कफ और बलगम को भी ठीक करती है और सर्दी, जुकाम से बचाती है।
-अजवाइन का पानी नियमित रूप से पीने से शरीर से सारी गंदगी बाहर निकल जाती है। अजवाइन डिलीवरी के बाद शरीर को डिटॉक्सिफाई करने के गुण रखती है।
-इसमें कुछ ऐसे गुण होते हैं जो स्तनपान करवाने वाली महिलाओं के दूध को और पौष्टिक बनाते हैं।
-गर्भावस्था के बाद महिलाओं को हमेशा वजन बढ़ने की शिकायत होती है जिसे अजवाइन से कम किया जा सकता है।
-अक्सर प्रसव के बाद महिलाओं को पीठ और पैरों में दर्द की परेशानी होती है, अजवाइन खाने से इस दर्द में राहत मिलती है।
धर्म संसार /शौर्यपथ /हम द्वार के आसपास स्वस्तिक बनाकर शुभ और लाभ लिखते हैं। आखिर यह शुभ लाभ क्यों लिखते हैं और इनका भगवान शिव या शंकरजी से क्या संबंध है यह बहुत ही कम लोग जानते होंगे। आओ आज हम बताते हैं कि इसका रहस्य क्या है।
शिवपुत्र गणेशजी को देवगणों का अधिपति नियुक्त किया गया है। गणेशजी की बहन का नाम अशोक सुंदरी हैं और उनके भाई का नाम कार्तिकेय है। दुनिया के प्रथम धर्मग्रंथ ऋग्वेद में भी भगवान गणेशजी का जिक्र है। ऋग्वेद में 'गणपतिÓ शब्द आया है। यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है।
दरअसल, भारतीय धर्म और संस्कृति में भगवान गणेशजी सर्वप्रथम पूजनीय और प्रार्थनीय हैं। उनकी पूजा के बगैर कोई भी मंगल कार्य शुरू नहीं होता। कोई उनकी पूजा के बगैर कार्य शुरू कर देता है तो किसी न किसी प्रकार के विघ्न आते ही हैं। सभी धर्मों में गणेश की किसी न किसी रूप में पूजा या उनका आह्वान किया ही जाता है। गणेशजी की पूर्ति या चित्र के आसपास रिद्धि सिद्धि और शुभ लाभ क्यों लिखा जाता है यह कई लोग जानते होंगे।
दरअसल विघ्ननाशक की ऋद्धि और सिद्धि नामक दो पत्नियां हैं जो प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं। सिद्धि से 'क्षेमÓ और ऋद्धि से 'लाभÓ नाम के दो पुत्र हुए। लोक-परंपरा में इन्हें ही शुभ-लाभ कहा जाता है। कहते हैं शिवपुत्र गणेश के भाई कार्तिकेय ने विवाह नहीं किया था।
शुभ और लाभ गणेशजी के पुत्र होने के नाते भगवान शंकर के पोते हुए यानि की शिवजी शुभ और लाभ के दादाजी हुए।
धर्म संसार /शौर्यपथ / महालक्ष्मी ने क्यों धरा बेलवृक्ष का रूप, शिव ने क्यों माना बिल्ववृक्ष को शिवस्वरूप ? नारदजी ने एक बार भोलेनाथ की स्तुति कर पूछा – प्रभु आपको प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम और सुलभ साधन क्या है. हे त्रिलोकीनाथ आप तो निर्विकार और निष्काम हैं, आप सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं। फिर भी मेरी जानने की इच्छा है कि आपको क्या प्रिय है?
शिवजी बोले- नारदजी वैसे तो मुझे भक्त के भाव सबसे प्रिय हैं, फिर भी आपने पूछा है तो बताता हूं
मुझे जल के साथ-साथ बिल्वपत्र बहुत प्रिय है।जो अखंड बिल्वपत्र मुझे श्रद्धा से अर्पित करते हैं मैं उन्हें अपने लोक में स्थान देता हूं।
नारदजी भगवान शंकर औऱ माता पार्वती की वंदना कर अपने लोक को चले गए। उनके जाने के पश्चात पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- हे प्रभु मेरी यह जानने की बड़ी उत्कट इच्छा हो रही है कि आपको बेलपत्र इतने प्रिय क्यों है। कृपा करके मेरी जिज्ञासा शांत करें।
शिवजी बोले- हे शिवे! बिल्व के पत्ते मेरी जटा के समान हैं।उसका त्रिपत्र यानी तीन पत्ते, ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद हैं। शाखाएं समस्त शास्त्र का स्वरूप हैं। बिल्ववृक्ष को आप पृथ्वी का कल्पवृक्ष समझें जो ब्रह्मा-विष्णु-शिवस्वरूप है।
हे पार्वती! स्वयं महालक्ष्मी ने शैल पर्वत पर बिल्ववृक्ष रूप में जन्म लिया था इस कारण भी बेल का वृक्ष मेरे लिए अतिप्रिय है। महालक्ष्मी ने बिल्व का रूप धरा, यह सुनकर पार्वतीजी कौतूहल में पड़ गईं।
पार्वतीजी कौतूहल से उपजी जिज्ञासा को रोक न पाई।उन्होंने पूछा- देवी लक्ष्मी ने आखिर बिल्ववृक्ष का रूप क्यों लिया? आप यह कथा विस्तार से कहें।
भोलेनाथ ने देवी पार्वती को कथा सुनानी शुरू की। हे देवी, सत्ययुग में ज्योतिरूप में मेरे अंश का रामेश्वर लिंग था। ब्रह्मा आदि देवों ने उसका विधिवत पूजन-अर्चन किया था।
इसका परिणाम यह हुआ कि मेरे अनुग्रह से वाणी देवी सबकी प्रिया हो गईं। वह भगवान विष्णु को सतत प्रिय हो गईं।
मेरे प्रभाव से भगवान केशव के मन में वाग्देवी के लिए जितनी प्रीति उपजी हुई वह स्वयं लक्ष्मी को नहीं भाई।
लक्ष्मी देवी का श्रीहरि के प्रति मन में कुछ दुराव पैदा हो गया। वह चिंतित और रूष्ट होकर चुपचाप परम उत्तम श्रीशैल पर्वत पर चली गईं।
वहां उन्होंने तप करने का निर्णय किया और उत्तम स्थान का चयन करने लगीं।
महालक्ष्मी ने उत्तम स्थान का निश्चय करके मेरे लिंग विग्रह की उग्र तपस्या प्रारम्भ कर दी। उनकी तपस्या कठोरतम होती जा रही थी।
हे परमेश्वरी कुछ समय बाद महालक्ष्मी जी ने मेरे लिंग विग्रह से थोड़ा उध्र्व में एक वृक्ष का रूप धारण कर लिया।अपने पत्तों और पुष्प द्वारा निरंतर मेरा पूजन करने लगीं।
इस तरह महालक्ष्मी ने कोटि वर्ष ( एक करोड़ वर्ष) तक घोर आराधना की। अंतत: उन्हें मेरा अनुग्रह प्राप्त हुआ।
मैं वहां प्रकट हुआ और देवी से इस घोर तप की आकांक्षा पूछकर वरदान देने को तैयार हुआ।
महालक्ष्मी ने मांगा कि श्रीहरि के हृदय में मेरे प्रभाव से वाग्देवी के लिए जो स्नेह हुआ है वह समाप्त हो जाए।
शिवजी बोले- मैंने महालक्ष्मी को समझाया कि श्रीहरि के हृदय में आपके अतिरिक्त किसी और के लिए कोई प्रेम नहीं है। वाग्देवी के प्रति उनका प्रेम नहीं अपितु श्रद्धा है।
यह सुनकर लक्ष्मीजी प्रसन्न हो गईं और पुन: श्रीविष्णु के ह्रदय में स्थित होकर निरंतर उनके साथ विहार करने लगी।
हे पार्वती! महालक्ष्मी के हृदय का एक बड़ा विकार इस प्रकार दूर हुआ था। इस कारण हरिप्रिया उसी वृक्षरूपं में सर्वदा अतिशय भक्ति से भरकर यत्नपूर्वक मेरी पूजा करने लगी।
हे पार्वती इसी कारण बिल्व का वृक्ष, उसके पत्ते, फलफूल आदि मुझे बहुत प्रिय है। मैं निर्जन स्थान में बिल्ववृक्ष का आश्रय लेकर रहता हूं।
बिल्ववृक्ष को सदा सर्वतीर्थमय एवं सर्वदेवमय मानना चाहिए. इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। बिल्वपत्र, बिल्वफूल, बिल्ववृक्ष अथवा बिल्वकाष्ठ के चन्दन से जो मेरा पूजन करता है वह भक्त मेरा प्रिय है।
बिल्ववृक्ष को शिव के समान ही समझो।वह मेरा शरीर है. जो विल्व पर चंदन से मेरा नाम अंकित करके मुझे अर्पण करता है मैं उसे सभी पापों से मुक्त करके अपने लोक में स्थान देता हूं।
हे देवी उस व्यक्ति को स्वयं लक्ष्मीजी भी नमस्कार करती हैं जो बिल्व से मेरा पूजन करते हैं। जो बिल्वमूल में प्राण छोड़ता है उसको रूद्र देह प्राप्त होता है।
मेरी पूजा के लिए बेल के उत्तम पत्तों का ही प्रयोग करना चाहिए.
धर्म संसार /शौर्यपथ /भगवान विश्वकर्मा की पूजा के दिन कुछ ऐसे भी कार्य हैं जिन्हें करना वर्जित माना गया है। आइए जानते हैं कि कौन से वो कार्य हैं जो विश्वकर्मा पूजा के दिन नहीं करना चाहिए और कौन-कौन से कार्य करना चाहिए।
- विश्वकर्मा पूजा पर भूलकर भी औजारों को इधर-उधर न फेंके नहीं तो आपको विश्वकर्मा भगवान के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है।
1- इस दिन आप न तो स्वयं अपने औजारों का इस्तेमाल करें और न हीं किसी और को करने दें।
2- जिन वस्तुओं का आप अपने जीवन में रोज प्रयोग करते हैं उनकी विश्वकर्मा पूजा पर साफ-सफाई करना न भूलें।
3- अगर आप विश्वकर्मा भगवान की मूर्ति रखकर उनकी पूजा कर रहे हैं तो अपने औजारों को पूजा में रखना न भूलें।
4- अगर आपकी कोई फैक्ट्री है तो विश्वकर्मा पूजा के दिन उनकी पूजा न करना भूलें।
5- जिन लोगों की भी फैक्ट्री आदि है या फिर उनका मशीन से जुड़ा कोई काम है तो उन्हें विश्वकर्मा पूजा के दिन अपनी मशीनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
6- यदि आपके पास कोई वाहन हैं तो आपको विश्वकर्मा पूजा के दिन उसकी साफ-सफाई और पूजा करना नहीं भूलना चाहिए।
7- विश्वकर्मा पूजा के दिन किसी भी पुराने औजार को अपने घर, फैक्ट्री या दुकान से बाहर न फेंकें, ऐसा करना विश्वकर्मा जी का अपमान जाता है।
8- आपको विश्वकर्मा पूजा के दिन भूलकर भी मांस और मदिरा का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
9- अपने व्यापार की वृद्धि के लिए आपको विश्वकर्मा पूजा के दिन निर्धन व्यक्ति और ब्राह्मण को दान अवश्य देना चाहिए।
खाना खजाना /शौर्यपथ लंच या डिनर के बाद अगर कुछ मीठा खाने का मन है लेकिन कोई झंझट नहीं चाहते तो ट्राई करें ये झटपट बनने वाली ब्रेड रसमलाई रेसिपी। यह खाने में टेस्टी होने के साथ सिर्फ 10 मिनट में बनकर तैयार हो जाती है। तो आइए जानते हैं कैसे बनाई जाती है यह टेस्टी रेसिपी।
ब्रेड रसमलाई बनाने के लिए सामग्री
-ब्राउन ब्रेड- 4
-2 छोटी चम्मच स्किम्ड मिल्क पाउडर
-4 बड़ी चम्मच फुल क्रीम मिल्क
-3/4 कप गाढ़ा दूध
-जरूरत अनुसार हरी इलायची
-जरूरत अनुसार बादाम
-जरूरत अनुसार पिस्ता
-जरूरत अनुसार केसर
ब्रेड रसमलाई बनाने की विधि-
ब्रेड रसमलाई बनाने के लिए सबसे पहले एक सैंडविच ब्रेड के सभी किनारे काटकर ब्रेड को गोलाई का आकार दें। अब एक पैन में दूध उबाल लें। दूध को उबलते समय लगातार उसे चम्मच से हिलाते रहें ताकि दूध पैन के तले में ना चिपक जाए। दूध को तब तक पकाएं जब तक दूध की मात्रा का एक तिहाई हिस्सा ना बच जाए। अब इस गाढे़ दूध में मिल्क पाउडर डालकर उसे अच्छी तरह से मिलाएं। मिल्क पाउडर को मिलाते समय गैस की आंच धीमी करके इस मिक्सर को 2 से 3 मिनट तक पकाएं।
उसके बाद इसमें कंडेंस मिल्क डालकर अच्छी तरह से मिला लें।अब इस मिश्रण में केसर, इलायची का पाउडर, बारीक कटे बादाम और पिस्ता डालकर पैन में ही इसे अच्छी तरह से मिला लें। इन सभी सामग्रियों को डालने के बाद इस पूरे मिश्रण को गाढ़ा होने तक 4 से 5 मिनट तक तेज आंच में पकाएं। अब कटे हुए ब्रेड को सर्विंग प्लेट में रखें और कंडेंस मिल्क, इलायची पाउडर, बारीक कटे बदाम, पिस्ता सभी के द्वारा तैयार किए गए मिश्रण को इनके ऊपर डालें। आपकी ब्रेड रसमलाई तैयार है। इसे ठंडा होने के बाद सर्व करें।
योग /शौर्यपथ / दिन की अच्छी शुरुआत करने के लिए सूर्य नमस्कार सबसे अच्छा व्यायाम है। जिस प्रकार 12 राशियां, 12 महीने होते हैं, उसी प्रकार सूर्य नमस्कार भी 12 स्थितियों से मिलकर बना है। अभी लॉकडाउन का समय चल रहा है, ऐसे समय में आप सूर्य नमस्कार को अपना कर अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं-
सूर्य नमस्कार का अभ्यास इन 12 स्थितियों में किया जाता है, आइए जानें-
(1) दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
(2) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
(3) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
(4) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएं। मुखाकृति सामान्य रखें।
(5) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।
(6) श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।
(7) इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।
(8) यह स्थिति - पांचवीं स्थिति के समान
(9) यह स्थिति - चौथी स्थिति के समान
(10) यह स्थिति- तीसरी स्थिति के समान
(11) यह स्थिति - दूसरी स्थिति के समान
(12) यह स्थिति - पहली स्थिति की भांति रहेगी।
सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियां हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं। यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है।
सूर्य नमस्कार के द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं अथवा इनके होने की संभावना समाप्त हो जाती है। इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। इस अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं।
आस्था /शौर्यपथ / कई बार हम किसी महत्वपूर्ण कार्य को करने के लिए घर से बाहर जा रहे होते हैं, तो मन में आशंका रहती है कि जिस कार्य के लिए जा रहे हैं तो उसमें सफलता मिलेगी या नहीं। इस तरह की शंका आशंका का समाधान करने और कार्य में सफलता पाने के लिए यहां जानिए कुछ खास 10 उपाय।
1. पहला तो यह कि घर से निकलने के पहले राहु काल देख लें। राहु काल में घर से ना निकलें उससे पहले या बाद में निकलें।
2. घर से निकलने के पहले दिशाशूल भी देख लें। किसी दिशा विशेष में दिन विशेष पर की जाने वाली यात्रा से संबंधित है। अगर किसी कारणवश उक्त दिशा में यात्रा करनी भी पड़े तो उसके निवारण के कुछ आसान से उपाय होते हैं जिन्हें जानकर यात्रा को निर्विघ्न बानाया जा सकता है।
3. यदि किसी कार्य के लिए आप घर से बाहर जा रहे हैं तो दही और शक्कर खाकर निकलें।
4. घर से निकलने से पहले हाथ में रोटी लें और रास्ते में कौआ नजर आए तो रोटी के टुकड़े करके वहां डाल दें।
5. घर से निकलने से पूर्व श्री गणेशाय नमः बोलते हुए दाहिना पैर घर के बाहर निकाले फिर उल्टी दिशा में चार कदम पीछे जाएं और फिर कार्य के लिए जाएं।
6. यदि किसी विशेष कार्य के लिए जा रहे हैं तो घर से निकलने से पूर्व गुड़ खाएं और थोड़ा पानी पिएं।
7. घर से निकलते समय तुलसी के पौधे की पत्ती खाना भी अति शुभ माना जाता है।
8. घर से निकलने के पूर्व अपने ईष्टदेव की पूजा करके ही घर से बाहर निकलें।
9. घर की दहलीज के बाहर कुछ काली मिर्ची के दाने बिखेर दें और उस पर से पैर रखकर निकल जाएं फिर पीछे पलटकर न देंखे।
10. घर से निकलने के पहले शीशे में अपना चेहरा जरूर देखें। ऐसा करना भी शुभ होता है।
टिप्स ट्रिक्स /शौर्यपथ / कई लोगों को रात में ढंग से नींद नहीं आती और आती भी है तो बुरे बुरे सपनों के कारण नींद खुल जाती है। अक्सर सांप के सपने, भूत प्रेत के सपने आते हैं या कुछ ऐसे सपने आते हैं जिसके चलते डर लगा रहता है। सभी तरह के बुरे सपनों से मुक्त के यहां पर दिए जा रहे हैं 10 उपाय।
1. आप सोने वाले बिस्तर के नीचे काले कपड़े में फिटकरी बांधकर रखें। इससे बुरे स्वप्न आना, नींद में चमकना या किसी अनजान भय से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। किसी भी मंगलवार या रविवार के दिन फिटकरी का एक टुकड़ा बच्चे के सिरहाने रख दें। रात में बच्चे को सोते समय बुरे स्वप्न नहीं आएंगे और न ही बच्चा चमकेगा या चिखेंगा।
2. प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करते रहें। धीरे-धीरे आपको बुरे स्वप्न आना दूर हो जाएंगे।
3. सोने से पूर्व प्रतिदिन कर्पूर जलाकर सोएंगे तो आपको बेहद अच्छी नींद आएगी और साथ ही हर तरह का तनाव खत्म हो जाएगा। कर्पूर के और भी कई लाभ होते हैं।
4. आप सोने जा रहे हैं तो यह भी तय करें कि आपके पैर किस दिशा में हैं। दक्षिण और पूर्व में कभी पैर न रखें। पैरों को दरवाजे की दिशा में भी न रखें। इससे सेहत और समृद्धि का नुकसान होता है। पूर्व दिशा में सिर रखकर सोने से ज्ञान में बढ़ोतरी होती है। दक्षिण में सिर रखकर सोने से शांति, सेहत और समृद्धि मिलती है।
5. शनि मंदिर में जाकर पांच शनिवार छाया दान कर दें। छाया दान अर्थात एक कटोरी में तेल भरकर उसमें अपना चेहरा देखकर उसे शनि मंदिर में दान कर दें।
6. अपने सिर के आसपास से 7 बार एक पानीदार नारियल वार कर उसे किसी देवस्थान पर जला दें। मंदिर में सीदा दान कर दें।
7. सिरहाने यानि तकीये के नीचे चाकू या कोई धारदार औजार रखकर सोएं।
8. काल और सफेद कंबल अपने उपर से 21 बार वार कर उसे किसी गरीब को दान कर दें।
9. सोने से 2 घंटे पूर्व रात का खाना खा लेना चाहिए। रात का खाना हल्का और सात्विक होना चाहिए। अच्छी नींद के लिए खाने के बाद वज्रासन करें, फिर भ्रामरी प्राणायाम करें और अंत में शवासन करते हुए सो जाएं।
10. शनिवार के दिन हनुमानजी का नाम लेकर पैरों में अंगुठे के पास वाली अंगुली में या तर्जनी अंगुली में काला धागा बांध लें इससे मस्तिष्क को ताकत मिलेगे और बुरे या डरावने सपने नहीं आएंगे।
धर्म संसार /शौर्यपथ /धर्म एवं ज्योतिष के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म द्वादशी का व्रत किया जाता है। इसे गोविंद द्वादशी भी कहते हैं। इस वर्ष 24 फरवरी 2021, बुधवार को किया जाएगा। इस दिन खास तौर पर भगवान विष्णु का पूजन तिल से किया जाता है तथा पवित्र नदियों में स्नान व दान करने का नियम है। इनसे मनुष्य को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
हमारे धार्मिक पौराणिक ग्रंथ पद्म पुराण में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन किया गया है, जिसमें कहा गया है कि पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। अत: सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान अवश्य ही करना चाहिए।
महाभारत में उल्लेख आया है कि जो मनुष्य माघ मास में तपस्वियों को तिल दान करता है, वह कभी नरक का दर्शन नहीं करता। माघ मास की द्वादशी तिथि को दिन-रात उपवास करके भगवान माधव की पूजा करने से मनुष्य को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। अतः इस प्रकार माघ मास के स्नान-दान की अपूर्व महिमा है। यह भी मान्यता है कि भीष्म द्वादशी का व्रत करने से सभी मनोकामना पूरी होती हैं।
शास्त्रों में माघ मास की प्रत्येक तिथि पर्व मानी गई है। यदि असक्त स्थिति के कारण पूरे महीने का नियम न निभा सके तो उसमें यह व्यवस्था भी दी है कि 3 दिन अथवा 1 दिन माघ स्नान का व्रत का पालन करें।
'मासपर्यन्तं स्नानासम्भवे तु त्र्यहमेकाहं वा स्नायात्।'
इतना ही नहीं इस माह की भीष्म द्वादशी का व्रत भी एकादशी की तरह ही पूर्ण पवित्रता के साथ चित्त को शांत रखते हुए पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से किया जाता है तो यह व्रत मनुष्य के सभी कार्य सिद्ध करके उसे पापों से मुक्ति दिलाता है। अत: इस दिन के पूजन-अर्चन का बहुत अधिक महत्व है।
पूजन विधि-
इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु जी की केले के पत्ते, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मौली, रोली, कुमकुम, फल आदि से पूजन करें। पूजन के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत का प्रसाद बनाकर भगवान को भोग लगाएं तथा भीष्म द्वादशी की कथा सुनें अथवा पढ़ें। इस दिन विष्णु जी के साथ देवी लक्ष्मी का पूजन तथा स्तुति करें और पूजन के पश्चात चरणामृत एवं प्रसाद का वितरण करें।
इस दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान में दक्षिणा एवं तिल अवश्य दें। ब्राह्मण भोजन के बाद ही स्वयं भोजन करें। इस दिन 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' का जाप किया जाना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए ताकि यह व्रत सफल हो सकें।
खाना खजाना /शौर्यपथ /सूजी का ढोकला एक गुजराती रेसिपी है, जो नाश्ते का एक बेहतरीन विकल्प माना जाता है। यह टेस्टी रेसिपी हेल्दी होने के साथ-साथ जल्दी भी बन जाती है। फटाफट बनने वाला सूजी का ढोकला अगर धनिया या पुदीने की चटनी के साथ सर्व किया जाए तो नाश्ते का मजा दोगुना बढ़ जाता है।खास बात यह है कि सूजी का ढोकला नाश्ते में करने से आप अपने मोटापे को भी कम कर सकते हैं। तो देर किस बात की आइए जानते हैं कैसे बनाया जाता है यह इंस्टेंट बनने वाला मुलायम और स्पंजी सूजी का ढोकला।
सूजी ढोकला बनाने के लिए सामग्री-
-1 कप सूजी
-1 छोटी चम्मच दही
-2 छोटी चम्मच चीनी
-जरूरत के अनुसार धनिये के पत्ते
-2 बड़ी चम्मच सूरजमुखी का तेल
-5 - करी पत्ता
-जरूरत के अनुसार हरी मिर्च
-जरूरत के अनुसार नमक
-जरूरत के अनुसार पानी
-1 छोटी चम्मच सरसों के बीज
-2 बड़ी चम्मच कटा हुआ अंकुरित लहसुन
-जरूरत के अनुसार सोडा
सूजी ढोकला बनाने की आसान विधि-
सूजी ढोकला बनाने के लिए सबसे पहले एक कटोरी में सूजी, खट्टा दही, चीनी, नमक डालकर सभी सामग्री को अच्छी तरह से मिला लें। अब इसमें ताजा कटा हुआ लहसुन और थोड़ा पानी मिलाकर तब तक हिलाएं जब तक कि आपको एक चिकना गाढ़ा बैटर ना मिल जाए। अब प्लेट को थोड़ा तेल डालकर चिकना कर लें। एक पैन में, थोड़ा पानी डालें और इसे उबलने दें। अब बैटर वाले कटोरे में थोड़ा सोडा और थोड़ा पानी डालें और इसे अच्छी तरह से हिलाएं। घी लगी थाली में ढोकला बैटर डालें और इसे उबलते पानी के साथ पैन में रखें। ढोकले को 15 मिनट तक स्टीम करें। एक पैन में तेल, सरसों, करी पत्ता, हरी मिर्च डालें और एक मिनट के लिए भूनें। इसे उबले हुए ढोकलों पर डालें और इमली की चटनी या चाय या कॉफी के साथ परोसें।
सेहत /शौर्यपथ /सुबह-सुबह नर्म घास पर चलने के अलावा मिट्टी और रेत पर भी चलना चाहिए। सुबह-शाम करीब 15-20 मिनट तक घास पर नंगे पांव पर चलने से हर तरह से फायदा होता है। हेल्थ के लिहाज से घास पर चलने के कई लाभ हैं। हेल्थ एक्सपर्ट की मानें, तो इससे आंखों की रोशनी तो इंप्रूव होती ही है साथ ही इससे तनाव भी कम होता है। यहां पढ़ें सुबह-सुबह घास पर नंगे पांव चलने के ये फायदे
आंखों की रोशनी
सुबह-सुबह जब घास पर नंगे पैर चलते हैं तो हमारी बॉडी का पूरा प्रेशर पैरों के अंगूठों पर होता है। इन प्वाइंट्स की मदद से आंखों की रोशनी इंप्रूव होती है। इसके अलावा हरे रंग की घास देखने से आंखों को राहत भी मिलती है।
एलर्जी का इलाज
ग्रीन थेरेपी का मुख्य अंग है हरी-भरी घास पर नंगे पैर चलना या बैठना। सुबह-सुबह ओस में भीगी घास पर चलना बहुत बेहतर माना जाता है। जो पांवों के नीचे की कोमल कोशिकाओं से जुड़ी तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक राहत पहुंचाता है।
पैरों की एक्सरसाइज होती है
पैरों की होती है एक्सरसाइज सुबह-सुबह नंगे पैर घास पर चलने से पैरों की अच्छी एक्सरसाइज होती है। इससे पैरों के मांसपेशियों तलवो और घुटनों को रिलेक्स मिलता है।
तनाव से मिलता है आराम
सुबह-सुबह नंगे पैर घास पर चलने से दिमाग शांत रहता है। सुबह ताजा हवा, सूरज की रोशनी, हरियाली दिमाग को तरोताजा कर देती है। इस वातावरण में रहने से आप काफी रिलेक्स और डिप्रेशन से दूर रहते हैं।
मधुमेह रोगियों के लिए खास
मधुमेह रोगियों के लिए हरियाली के बीच बैठना, टहलना और उसे देखना बहुत अच्छा माना जाता है। ऐसे लोगों में कोई भी घाव आसानी से नहीं भरता, परंतु मधुमेह रोगी यदि हरियाली के बीच रह कर नियमित गहरी सांस लेते हुए टहले तो शरीर में ऑक्सीजन की पूर्ति होने से समस्या से निजात पाया जा सकता है।
सेहत /शौर्यपथ /बढ़ते वजन से छुटकारा पाने के लिए अगर आप कई उपाय आजमाकर थक चुके हैं तो अब सोने से पहले ये 3 हेल्दी वेट लॉस ड्रिंक्स ट्राई करके देखें। खास बात यह है कि वजन घटाने के लिए आपको एक्सरसाइज या घंटों जिम में पसीना भी नहीं बहाना पड़ेगा। आइए जानते हैं कौन से हैं वो 3 ड्रिंग्स जिनका सोने से पहले सेवन करने से आप बढ़ते वजन से आसानी से छुटकारा पा सकते हैं।
कैमोमाइल टी-
कैमोमाइल टी वजन घटाने के लिए बेस्ट ड्रिंक मानी जाती है। अगर आप भी अपने बढ़ते वजन को कंट्रोल करना चाहते हैं तो रात को सोने से पहले कैमोमाइल टी का सेवन करना न भूलें। ऐसा करने से न सिर्फ आपका वजन नियंत्रित रहेगा बल्कि आपको नींद भी अच्छी आएगी। हेल्थ पर हुए कई अध्ययनों में यह सुझाव दिया गया है कि कैमोमाइल टी शुगर लेवल को नियंत्रित करके वजन घटाने में मदद करती है।
दालचीनी की चाय-
यदि आप कम समय में ही अपना वजन घटाना चाहते हैं, तो यह दालचीनी चाय का सेवन शुरू कर दें। वेट कंट्रोल करने के लिए दालचीनी की चाय बेस्ट नेचुरल ड्रिंक मानी जाती है। इस चाय में मेटाबॉलिज्म बढ़ाने के गुण मौजूद होने के साथ कई एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबायोटिक गुण भी मौजूद होते हैं जो इसे अच्छा डिटॉक्स ड्रिंक बनाते हैं। दालचीनी की चाय का सेवन करने से फैट को जलाने में मदद मिलती है।
मेथी की चाय-
अगर बढ़ते वजन के साथ आपको नींद न आने की समस्या भी परेशान करती है तो मेथी की चाय का सेवन जरूर करें। इसके अलावा अगर किसी दिन आपको लगे कि आपने जरूरत से ज्यादा भोजन खा लिया है, तो पाचन में सुधार के साथ खाना पचाने में यह चाय आपकी मदद कर सकती है। मेथी की चाय बनाने के लिए सबसे पहले एक चम्मच मेथी एक गिलास पानी में रातभर भिगोकर रख दें। सुबह इसे छानकर पानी अलग कर दें और इस पानी को गुनगुना कर रात में सोने से पहले पीएं। नियमित रूप से इसके सेवन से आप बहुत जल्दी वजन कंट्रोल कर लेंगे।
सेहत /शौर्यपथ /सुबह पेट साफ न होना छोटी-सी बात लग सकती है लेकिन उन लोगों को इस समस्या के बारे में अच्छी तरह पता है, जो अक्सर इसका सामना करते हैं। आपको भी अगर सुबह पेट साफ न होने की समस्या है, तो सुबह की शुरुआत लौंग चबाने से कर दें, जिससे आपकी समस्या काफी हद तक ठीक हो जाएगी। लौंग विटामिन सी, फाइबर, मैंगनीज, एंटीऑक्सिडेंट और विटामिन-के से भरपूर होती है। आइए, जानते हैं सुबह खाली पेट दो लौंग चबाने के फायदे-
इम्युनिटी बढ़ती है
लौंग में विटामिन सी और कुछ एंटी ऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में सफेद रक्त कोशिकाओं को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं। यह आपके शरीर को किसी भी संक्रमण या बीमारियों से लड़ने में मदद करता है।
पाचन में सुधार करती है
सुबह लौंग का सेवन करने से आपको पाचन संबंधी किसी भी समस्या का इलाज करने में मदद मिलती है। लौंग पाचन एंजाइमों के स्राव को बढ़ाती है, जो कब्ज और अपच जैसे पाचन संबंधी विकारों को रोकती है। लौंग फाइबर से भरा होता है जो आपके पाचन स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
लिवर फंक्शन को बढ़ावा देती है
आपका लिवर शरीर को डिटॉक्स करता है और आपके द्वारा सेवन की जाने वाली दवाओं को मेटाबोलाइज करता है। अपने लिवर के कामकाज को बेहतर करने के लिए आपके पास रोज लौंग होनी चाहिए। लौंग में यूजेनॉल होता है, जो लीवर फंक्शन को बेहतर बनाने के लिए जाना जाता है।
दांत दर्द को ठीक करती है
दांत दर्द को रोकने के लिए लौंग का तेल आमतौर पर दांतों पर लगाया जाता है। लौंग का सेवन दांत दर्द को कम करने में भी मदद कर सकता है। लौंग में संवेदनाहारी गुण होते हैं, जो कुछ समय के लिए असुविधा को रोकते हैं। इसके अलावा, अगर आप अपने दांत का इलाज करवा चुके हैं तो लौंग का सेवन दर्द को शांत करने में मदद कर सकता है।
सिरदर्द से राहत देती है लौंग
लौंग में यूजेनॉल होता है जिसमें एनाल्जेसिक और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह इस मसाले को सिर दर्द के लिए एक अद्भुत उपाय बनाता है। आप इनका सेवन कर सकते हैं। एक गिलास दूध के साथ लौंग का पाउडर लें। लौंग का तेल लगाने से भी आपको आराम मिल सकता है।
हड्डियों के लिए अच्छी है लौंग
लौंग में फ्लेवोनॉयड्स, मैंगनीज और यूजेनॉल होते हैं जो हड्डी और संयुक्त स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं। लौंग का सेवन हड्डियों के घनत्व को बढ़ाने में मदद करता है।
लिवर होता है मजबूत
आपका लिवर शरीर को डिटॉक्स करता है और आपके द्वारा सेवन की जाने वाली दवाओं को मेटाबोलाइज करता है।अपने लिवर के कामकाज को बेहतर करने के लिए आपके पास रोज लौंग होनी चाहिए।
धर्म संसार /शौर्यपथ /एकादशी व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठतम माना जाता है। माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी व्रत रखा जाएगा। इस साल यह तिथि 23 फरवरी 2021 (मंगलवार) को है। मान्यता है कि जया एकादशी के दिन विधि-विधान से पूजा व व्रत रखने भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मां लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाती हैं और समस्त कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जया एकादशी के दिन श्रीहरि का नाम जपने से पिशाच योनि का भय नहीं रहता है।
जया एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त-
एकादशी तिथि आरंभ- 22 फरवरी 2021 दिन सोमवार को शाम 05 बजकर 16 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त- 23 फरवरी 2021 दिन मंगलवार शाम 06 बजकर 05 मिनट तक।
जया एकादशी पारणा शुभ मुहूर्त- 24 फरवरी को सुबह 06 बजकर 51 मिनट से लेकर सुबह 09 बजकर 09 मिनट तक।
पारणा अवधि- 2 घंटे 17 मिनट।
जया एकादशी व्रत पूजा विधि-
1. इस दिन व्रती को सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए।
2. इसके बाद पूजा स्थल को साफ करना चाहिए। अब भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की मूर्ति, प्रतिमा या उनके चित्र को स्थापित करना चाहिए।
3. भक्तों को विधि-विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए।
4. पूजा के दौरान भगवान कृष्ण के भजन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
5. प्रसाद, तुलसी जल, फल, नारियल, अगरबत्ती और फूल देवताओं को अर्पित करने चाहिए।
6. पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करना चाहिए।
7. अगली सुबह यानि द्वादशी पर पूजा के बाद भोजन का सेवन करने के बाद जया एकादशी व्रत का पारण करना चाहिए।
एकादशी पर भूलकर न करें ये काम-
1. पुत्रदा एकादशी व्रत के दिन भूलकर भी जुआ नहीं खेलना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से व्यक्ति के वंश का नाश होता है।
2. पुत्रदा एकादशी व्रत में रात को सोना नहीं चाहिए। व्रती को पूरी रात भगवान विष्णु की भाक्ति,मंत्र जप और जागरण करना चाहिए।
3. एकादशी व्रत के दिन भूलकर भी चोरी नहीं करनी चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन चोरी करने से 7 पीढ़ियों को उसका पापा लगता है।
4. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए व्रत के दौरान खान-पान और अपने व्यवहार में संयम के साथ सात्विकता भी बरतनी चाहिए।
5. इस दिन व्रती को भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए किसी भी व्यक्ति से बात करने के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन क्रोध और झूठ बोलने से बचना चाहिए।
6. एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और शाम के समय सोना नहीं चाहिए।
जया एकादशी व्रत कथा-
एक समय में देवराज इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ गंधर्व गान कर रहे थे, जिसमें प्रसिद्ध गंधर्व पुष्पदंत, उनकी कन्या पुष्पवती तथा चित्रसेन और उनकी पत्नी मालिनी भी उपस्थित थे।
इस विहार में मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित हो गंधर्व गान में साथ दे रहे थे। उसी क्रम में गंधर्व कन्या पुष्पवती, माल्यवान को देख कर उस पर मोहित हो गई और अपने रूप से माल्यवान को वश में कर लिया। इस कारण दोनों का चित्त चंचल हो गया।
वे स्वर और ताल के विपरीत गान करने लगे। इसे इंद्र ने अपना अपमान समझा और दोनों को श्राप देते हुए कहा- तुम दोनों ने न सिर्फ यहां की मर्यादा को भंग किया है, बल्कि मेरी आज्ञा का भी उल्लंघन किया है। इस कारण तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्युलोक जाकर वहीं अपने कर्म का फल भोगते रहो।
इंद्र के श्राप से दोनों भूलोक में हिमालय पर्वतादि क्षेत्र में अपना जीवन दुखपूर्वक बिताने लगे। दोनों की निद्रा तक गायब हो गई। दिन गुजरते रहे और संकट बढ़ता ही जा रहा था। अब दोनों ने निर्णय लिया कि देव आराधना करें और संयम से जीवन गुजारें। इसी तरह एक दिन माघ मास में शुक्लपक्ष एकादशी तिथि आ गयी।
दोनों ने निराहार रहकर दिन गुजारा और संध्या काल पीपल वृक्ष के नीचे अपने पाप से मुक्ति हेतु ऋषिकेश भगवान विष्णु को स्मरण करते रहे। रात्रि हो गयी, पर सोए नहीं। दूसरे दिन प्रात: उन दोनों को इसी पुण्य प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई और दोनों को पुन: अप्सरा का नवरूप प्राप्त हुआ और वे स्वर्गलोक प्रस्थान कर गए।
उस समय देवताओं ने उन दोनों पर पुष्पवर्षा की और देवराज इंद्र ने भी उन्हें क्षमा कर दिया। इस व्रत के बारे में श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं, ‘जिस मनुष्य ने यह एकादशी व्रत किया, उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए। यही कारण है कि सभी एकादशियों में जया एकादशी का विशिष्ट महत्व है।'