April 26, 2025
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 *समाज की मजबूती है संस्कृति: रोकें विकृति- डॉ  अलंग*
 रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ शासन के संस्कृति विभाग के सहयोग से बहुमत संस्था तथा श्री चतुर्भुज मेमोरियल फाउंडेशन के द्वारा साहित्य संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन भिलाई निवास में किया गया।
   कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध लेखक डॉ संजय अलंग (आई ए एस) ने मानव समाज में सभ्यता -संस्कृति की उपादेयता को रेखांकित किया।विशिष्ट अतिथि पद्मश्री अजय मंडावी,ई व्ही  मुरली ने भी लोकजीवन पर विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में लोकनाट्य,चित्रकला जनजातीय जीवन, तालाब और जनजीवन पर क्रमशः विजय मिश्रा 'अमित,डॉ सुनीता वर्मा, डुमन लाल ध्रुव और गोविंद पटेल ने रोचक जानकारियों से संगोष्ठी को सार्थक किया।
      इसी क्रम में आयोजित सम्मान समारोह के अंतर्गत सर्वश्री लोक बाबू, दुर्गा प्रसाद पारकर, देवेंद्र गोस्वामी, राजेंद्र सोनबोईर, मयंक चतुर्वेदी, मो.जाकिर हुसैन, श्वेता उपाध्याय, रौनक जमाल, कमलेश चंद्राकर, डॉ संजय दानी, डुमन लाल ध्रुव एवं विजय मिश्रा 'अमित' को साहित्य धर्मिता के कुशल निर्वहन हेतु चतुर्भुज मेमोरियल कृति सम्मान से विभूषित किया गया।
   इस अवसर बहुमत के संस्थापक विनोद मिश्र ने स्वागत उद्बोधन के साथ ही बहुमत और चतुर्भुज मेमोरियल फाउंडेशन के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के अन्य महत्वपूर्ण भूमिकाओं का निर्वहन डॉ अरुण श्रीवास्तव,राजीव चौबे ,मुमताज, नरेंद्र बंछोर, सीमा श्रीवास्तव,श्वेता उपाध्याय सुमन कन्नौजे,जसवीर कौर ने सफलता पूर्वक किया। समारोह में दुर्ग,भिलाई, रायपुर के साहित्यकार बड़ी संख्या में शामिल हुए।

धर्म / शौर्यपथ / 

लंका में महा बलशाली मेघनाद के साथ बड़ा ही भीषण युद्ध चला, अंतत: मेघनाद मारा गया। रावण जो अब तक मद में चूर था राम सेना, खास तौर पर लक्ष्मण का पराक्रम सुनकर थोड़ा तनाव में आया।

रावण को कुछ दुःखी देखकर रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई, रावण को याद आया कि यह दोनों तो उसके बचपन के मित्र रहे हैं।
लंका का राजा बनने के बाद उनकी सुध ही नहीं रही थी। रावण यह भली प्रकार जानता था कि अहिरावण व महिरावण तंत्र-मंत्र के महा पंडित, जादू टोने के धनी और मां कामाक्षी के परम भक्त हैं।

रावण ने उन्हें बुलावा भेजा और कहा कि वह अपने छल-बल-कौशल से श्री राम व लक्ष्मण का सफाया कर दे। यह बात दूतों के जरिए विभीषण को पता लग गयी। युद्ध में अहिरावण व महिरावण जैसे परम मायावी के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए।
विभीषण को लगा कि भगवान श्री राम और लक्ष्मण की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करनी पड़ेगी। इसके लिए उन्हें सबसे बेहतर लगा कि इसका जिम्मा परम वीर हनुमान जी को राम-लक्ष्मण को सौंप कर दिया जाए। साथ ही वे अपने भी निगरानी में लगे थे।

राम-लक्ष्मण की कुटिया लंका में सुवेल पर्वत पर बनी थी। हनुमान जी ने भगवान श्री राम की कुटिया के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा खींच दिया। कोई जादू टोना तंत्र-मंत्र का असर या मायावी राक्षस इसके भीतर नहीं घुस सकता था।
अहिरावण और महिरावण श्री राम और लक्ष्मण को मारने उनकी कुटिया तक पहुंचे, पर इस सुरक्षा घेरे के आगे उनकी एक न चली, असफल रहे। ऐसे में उन्होंने एक चाल चली, महिरावण विभीषण का रूप धर के कुटिया में घुस गया।

राम व लक्ष्मण पत्थर की सपाट शिलाओं पर गहरी नींद सो रहे थे। दोनों राक्षसों ने बिना आहट के शिला समेत दोनो भाइयों को उठा लिया और अपने निवास पाताल की ओर लेकर चल दिए।

विभीषण लगातार सतर्क थे, उन्हें कुछ देर में ही पता चल गया कि कोई अनहोनी घट चुकी है। विभीषण को महिरावण पर शक था, उन्हें राम-लक्ष्मण की जान की चिंता सताने लगी।
विभीषण ने हनुमान जी को महिरावण के बारे में बताते हुए कहा कि वे उसका पीछा करें। लंका में अपने रूप में घूमना राम भक्त हनुमान के लिए ठीक न था, सो उन्होंने पक्षी का रूप धारण कर लिया और पक्षी का रूप में ही निकुंभला नगर पहुंच गये।

निकुंभला नगरी में पक्षी रूप धरे हनुमान जी ने कबूतर और कबूतरी को आपस में बतियाते सुना। कबूतर, कबूतरी से कह रहा था कि अब रावण की जीत पक्की है। अहिरावण व महिरावण राम-लक्ष्मण को बलि चढा देंगे, बस सारा युद्ध समाप्त।
कबूतर की बातों से ही बजरंगबली को पता चला कि दोनों राक्षस राम लक्ष्मण को सोते में ही उठाकर कामाक्षी देवी को बलि चढाने पाताल लोक ले गये हैं। हनुमान जी वायु वेग से रसातल की और बढ़े और तुरंत वहां पहुंचे।

हनुमान जी को रसातल के प्रवेश द्वार पर एक अद्भुत पहरेदार मिला। इसका आधा शरीर वानर का और आधा मछली का था, उसने हनुमान जी को पाताल में प्रवेश से रोक दिया।

द्वारपाल हनुमान जी से बोला कि मुझ को परास्त किए बिना तुम्हारा भीतर जाना असंभव है। दोनों में लड़ाई ठन गयी। हनुमान जी की आशा के विपरीत यह बड़ा ही बलशाली और कुशल योद्धा निकला।
दोनों ही बड़े बलशाली थे, दोनों में बहुत भयंकर युद्ध हुआ, परंतु वह बजरंगबली के आगे न टिक सका। आखिर कार हनुमान जी ने उसे हरा तो दिया पर उस द्वारपाल की प्रशंसा करने से नहीं रह सके।

हनुमान जी ने उस वीर से पूछा कि हे वीर तुम अपना परिचय दो। तुम्हारा स्वरूप भी कुछ ऐसा है कि उससे कौतुहल हो रहा है। उस वीर ने उत्तर दिया- मैं हनुमान का पुत्र हूं और एक मछली से पैदा हुआ हूं, मेरा नाम है मकरध्वज।

हनुमान जी ने यह सुना तो आश्चर्य में पड़ गए। वह वीर की बात सुनने लगे, मकरध्वज ने कहा- लंका दहन के बाद हनुमान जी समुद्र में अपनी अग्नि शांत करने पहुंचे, उनके शरीर से पसीने के रूप में तेज गिरा।
उस समय मेरी मां ने आहार के लिए मुख खोला था। वह तेज मेरी माता ने अपने मुख में ले लिया और गर्भवती हो गई. उसी से मेरा जन्म हुआ है। हनुमान जी ने जब यह सुना तो मकरध्वज को बताया कि वह ही हनुमान हैं।

मकरध्वज ने हनुमान जी के चरण स्पर्श किए और हनुमान जी ने भी अपने बेटे को गले लगा लिया और वहां आने का पूरा कारण बताया। उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि अपने पिता के स्वामी की रक्षा में सहायता करो।

मकरध्वज ने हनुमान जी को बताया कि कुछ ही देर में राक्षस बलि के लिए आने वाले हैं। बेहतर होगा कि आप रूप बदल कर कामाक्षी के मंदिर में जा कर बैठ जाएं। उनको सारी पूजा झरोखे से करने को कहें
हनुमान जी ने पहले तो मधुमक्खी का वेश धरा और मां कामाक्षी के मंदिर में घुस गये। हनुमान जी ने मां कामाक्षी को नमस्कार कर सफलता की कामना की और फिर पूछा- हे मां क्या आप वास्तव में श्री राम जी और लक्ष्मण जी की बलि चाहती हैं ?

हनुमान जी के इस प्रश्न पर मां कामाक्षी ने उत्तर दिया कि नहीं। मैं तो दुष्ट अहिरावण व महिरावण की बलि चाहती हूं। यह दोनों मेरे भक्त तो हैं पर अधर्मी और अत्याचारी भी हैं। आप अपने प्रयत्न करो. सफल रहोगे।

मंदिर में पांच दीप जल रहे थे अलग-अलग दिशाओं और स्थान पर, मां ने कहा यह दीप अहिरावण ने मेरी प्रसन्नता के लिए जलाये हैं जिस दिन ये एक साथ बुझा दिए जा सकेंगे, उसका अंत सुनिश्चित हो सकेगा।
इस बीच गाजे-बाजे का शोर सुनाई पड़ने लगा। अहिरावण, महिरावण बलि चढाने के लिए आ रहे थे। हनुमान जी ने अब मां कामाक्षी का रूप धरा। जब अहिरावण और महिरावण मंदिर में प्रवेश करने ही वाले थे कि हनुमान जी का महिला स्वर गूंजा।

हनुमान जी बोले- मैं कामाक्षी देवी हूं और आज मेरी पूजा झरोखे से करो। झरोखे से पूजा आरंभ हुई ढेर सारा चढावा मां कामाक्षी को झरोखे से चढाया जाने लगा। अंत में बंधक बलि के रूप में राम लक्ष्मण को भी उसी से डाला गया. दोनों बंधन में बेहोश थे।

हनुमान जी ने तुरंत उन्हें बंधन मुक्त किया। अब पाताल लोक से निकलने की बारी थी, पर उससे पहले मां कामाक्षी के सामने अहिरावण महिरावण की बलि देकर उनकी इच्छा पूरी करना और दोनों राक्षसों को उनके किए की सज़ा देना शेष था।
अब हनुमान जी ने मकरध्वज को कहा कि वह अचेत अवस्था में लेटे हुए भगवान राम और लक्ष्मण का खास ख्याल रखे और उसके साथ मिलकर दोनों राक्षसों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया।

पर यह युद्ध आसान न था। अहिरावण और महिरावण बडी मुश्किल से मरते तो फिर पाँच पाँच के रूप में जिदां हो जाते। इस विकट स्थिति में मकरध्वज ने बताया कि अहिरावण की एक पत्नी नागकन्या है।

अहिरावण उसे हर लाया है. वह उसे पसंद नहीं करती, पर मन मार के उसके साथ है, वह अहिरावण के राज जानती होगी। उससे उसकी मृ त्यु का उपाय पूछा जाये. आप उसके पास जाएं और सहायता मांगे।
मकरध्वज ने राक्षसों को युद्ध में उलझाये रखा और उधर हनुमान अहिरावण की पत्नी के पास पहुंचे। नागकन्या से उन्होंने कहा कि यदि तुम अहिरावण के मृ त्यु का भेद बता दो तो हम उसे मारकर तुम्हें उसके चंगुल से मुक्ति दिला देंगे।

अहिरावण की पत्नी ने कहा- मेरा नाम चित्रसेना है। मैं भगवान विष्णु की भक्त हूं। मेरे रूप पर अहिरावण मर मिटा और मेरा अपहरण कर यहां कैद किये हुए है, पर मैं उसे नहीं चाहती. लेकिन मैं अहिरावण का भेद तभी बताउंगी, जब मेरी इच्छा पूरी की जायेगी।

हनुमान जी ने अहिरावण की पत्नी नागकन्या चित्रसेना से पूछा कि आप अहिरावण की मृत्यु का रहस्य बताने के बदले में क्या चाहती हैं ? आप मुझसे अपनी शर्त बताएं, मैं उसे जरूर मानूंगा।
चित्रसेना ने कहा- दुर्भाग्य से अहिरावण जैसा असुर मुझे हर लाया. इससे मेरा जीवन खराब हो गया। मैं अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना चाहती हूं. आप अगर मेरा विवाह श्री राम से कराने का वचन दें तो मैं अहिरावण के वध का रहस्य बताऊंगी।

हनुमान जी सोच में पड़ गए. भगवान श्री राम तो एक पत्नी निष्ठ हैं. अपनी धर्म पत्नी देवी सीता को मुक्त कराने के लिए असुरों से युद्ध कर रहे हैं. वह किसी और से विवाह की बात तो कभी न स्वीकारेंगे. मैं कैसे वचन दे सकता हूं ?

फिर सोचने लगे कि यदि समय पर उचित निर्णय न लिया तो स्वामी के प्राण ही संकट में हैं। असमंजस की स्थिति में बेचैन हनुमानजी ने ऐसी राह निकाली कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
हनुमान जी बोले- तुम्हारी शर्त स्वीकार है, पर हमारी भी एक शर्त है. यह विवाह तभी होगा, जब तुम्हारे साथ भगवान राम जिस पलंग पर आसीन होंगे, वह सही सलामत रहना चाहिए। यदि वह टूटा तो इसे अपशकुन मांगकर वचन से पीछे हट जाऊंगा।

जब महाकाय अहिरावण के बैठने से पलंग नहीं टूटता तो भला श्रीराम के बैठने से कैसे टूटेगा !

यह सोच कर चित्रसेना तैयार हो गयी. उसने अहिरावण समेत सभी राक्षसों के अंत का सारा भेद बता दिया।

चित्रसेना ने कहा- दोनों राक्षसों के बचपन की बात है. इन दोनों के कुछ शरारती राक्षस मित्रों ने कहीं से एक भ्रामरी को पकड़ लिया. मनोरंजन के लिए वे उसे भ्रामरी को बार-बार काटों से छेड़ रहे थे।
भ्रामरी साधारण भ्रामरी न थी. वह भी बहुत मायावी थी, किंतु किसी कारण वश वह पकड़ में आ गई थी. भ्रामरी की पीड़ा सुनकर अहिरावण और महिरावण को दया आ गई और अपने मित्रों से लड़ कर उसे छुड़ा दिया।

मायावी भ्रामरी का पति भी अपनी पत्नी की पीड़ा सुनकर आया था. अपनी पत्नी की मुक्ति से प्रसन्न होकर उस भौंरे ने वचन दिया था कि तुम्हारे उपकार का बदला हम सभी भ्रमर जाति मिलकर चुकाएंगे।

ये भौंरें अधिकतर उसके शयन कक्ष के पास रहते हैं. ये सब बड़ी भारी संख्या में हैं। दोनों राक्षसों को जब भी मारने का प्रयास हुआ है और ये मरने को हो जाते हैं तब भ्रमर उनके मुख में एक बूंद अमृत का डाल देते हैं।
उस अमृत के कारण ये दोनों राक्षस मरकर भी जिंदा हो जाते हैं. इनके कई-कई रूप उसी अमृत के कारण हैं. इन्हें जितनी बार फिर से जीवन दिया गया उनके उतने नए रूप बन गए हैं. इसलिए आपको पहले इन भंवरों को मारना होगा।

हनुमान जी रहस्य जानकर लौटे. मकरध्वज ने अहिरावण को युद्ध में उलझा रखा था. तो हनुमान जी ने भंवरों का खात्मा शुरू किया. वे आखिर हनुमान जी के सामने कहां तक टिकते।

जब सारे भ्रमर खत्म हो गए और केवल एक बचा तो वह हनुमान जी के चरणों में लोट गया. उसने हनुमान जी से प्राण रक्षा की याचना की. हनुमान जी पसीज गए. उन्होंने उसे क्षमा करते हुए एक काम सौंपा।
हनुमान जी बोले- मैं तुम्हें प्राण दान देता हूं पर इस शर्त पर कि तुम यहां से तुरंत चले जाओगे और अहिरावण की पत्नी के पलंग की पाटी में घुसकर जल्दी से जल्दी उसे पूरी तरह खोखला बना दोगे।

भंवरा तत्काल चित्रसेना के पलंग की पाटी में घुसने के लिए प्रस्थान कर गया. इधर अहिरावण और महिरावण को अपने चमत्कार के लुप्त होने से बहुत अचरज हुआ पर उन्होंने मायावी युद्ध जारी रखा।

भ्रमरों को हनुमान जी ने समाप्त कर दिया फिर भी हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों अहिरावण और महिरावण का अंत नहीं हो पा रहा था. यह देखकर हनुमान जी कुछ चिंतित हुए।
फिर उन्हें कामाक्षी देवी का वचन याद आया. देवी ने बताया था कि अहिरावण की सिद्धि है कि जब पांचो दीपकों एक साथ बुझेंगे तभी वे नए-नए रूप धारण करने में असमर्थ होंगे और उनका वध हो सकेगा।

हनुमान जी ने तत्काल पंचमुखी रूप धारण कर लिया. उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख।

उसके बाद हनुमान जी ने अपने पांचों मुख द्वारा एक साथ पांचों दीपक बुझा दिए. अब उनके बार बार पैदा होने और लंबे समय तक जिंदा रहने की सारी आशंकायें समाप्त हो गयीं थी. हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों शीघ्र ही दोनों राक्षस मारे गये।
इसके बाद उन्होंने श्री राम और लक्ष्मण जी की मूर्च्छा दूर करने के उपाय किए. दोनो भाई होश में आ गए. चित्रसेना भी वहां आ गई थी. हनुमान जी ने कहा- प्रभो ! अब आप अहिरावण और महिरावण के छल और बंधन से मुक्त हुए।

पर इसके लिए हमें इस नागकन्या की सहायता लेनी पड़ी थी. अहिरावण इसे बल पूर्वक उठा लाया था. वह आपसे विवाह करना चाहती है. कृपया उससे विवाह कर अपने साथ ले चलें. इससे उसे भी मुक्ति मिलेगी।

श्री राम हनुमान जी की बात सुनकर चकराए. इससे पहले कि वह कुछ कह पाते हनुमान जी ने ही कह दिया- भगवन आप तो मुक्तिदाता हैं. अहिरावण को मारने का भेद इसी ने बताया है. इसके बिना हम उसे मारकर आपको बचाने में सफल न हो पाते।
कृपा निधान इसे भी मुक्ति मिलनी चाहिए. परंतु आप चिंता न करें. हम सबका जीवन बचाने वाले के प्रति बस इतना कीजिए कि आप बस इस पलंग पर बैठिए, बाकी का काम मैं संपन्न करवाता हूं।

हनुमान जी इतनी तेजी से सारे कार्य करते जा रहे थे कि इससे श्री राम जी और लक्ष्मण जी दोनों चिंता में पड़ गये. वह कोई कदम उठाते कि तब तक हनुमान जी ने भगवान राम की बांह पकड़ ली।

हनुमान जी ने भावावेश में प्रभु श्री राम की बांह पकड़ कर चित्रसेना के उस सजे-धजे विशाल पलंग पर बिठा दिया. श्री राम कुछ समझ पाते कि तभी पलंग की खोखली पाटी चरमरा कर टूट गयी। पलंग धराशायी हो गया. चित्रसेना भी जमीन पर आ गिरी. हनुमान जी हंस पड़े और फिर चित्रसेना से बोले- अब तुम्हारी शर्त तो पूरी हुई नहीं, इसलिए यह विवाह नहीं हो सकता. तुम मुक्त हो और हम तुम्हें तुम्हारे लोक भेजने का प्रबंध करते हैं।

चित्रसेना समझ गयी कि उसके साथ छल हुआ है. उसने कहा कि उसके साथ छल हुआ है. मर्यादा पुरुषोत्तम के सेवक उनके सामने किसी के साथ छल करें, यह तो बहुत अनुचित है. मैं हनुमान को श्राप दूंगी।

चित्रसेना हनुमान जी को श्राप देने ही जा ही रही थी कि श्री राम का सम्मोहन भंग हुआ. वह इस पूरे नाटक को समझ गये. उन्होंने चित्रसेना को समझाया- मैंने एक पत्नी धर्म से बंधे होने का संकल्प लिया है. इसलिए हनुमान जी को यह करना पड़ा. उन्हें क्षमा कर दो।
क्रुद्ध चित्रसेना तो उनसे विवाह की जिद पकड़े बैठी थी. श्री राम ने कहा- मैं जब द्वापर में श्री कृष्ण अवतार लूंगा, तब तुम्हें सत्यभामा के रूप में अपनी पटरानी बनाउंगा. इससे वह मान गयी।

हनुमान जी ने चित्रसेना को उसके पिता के पास पहुंचा दिया. चित्रसेना को प्रभु ने अगले जन्म में पत्नी बनाने का वरदान दिया था. भगवान विष्णु की पत्नी बनने की चाह में उसने स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया।

श्री राम और लक्ष्मण, मकरध्वज और हनुमान जी सहित वापस लंका में सुवेल पर्वत पर लौट आये।

निकला मित्र सवेरा घंटिया धन-धन बाजी,
सुना राम के गीत रामधन मन में साजी।

(यह प्रसंग स्कंद पुराण और आनंद रामायण के सारकांण्ड की कथा से लिया गया है ।)

जय हनुमान जी महाराज , जय श्री राम ?

शौर्यपथ
 // बुधवार, 11 दिसंबर को अगहन शुक्ल एकादशी है, इसे मोक्षदा एकादशी कहते हैं, इस तिथि पर गीता जयंती मनाई जाती है। गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसकी जयंती मनाते हैं। माना जाता है कि द्वापर युग में महाभारत युद्ध शुरू होने से ठीक पहले अगहन शुक्ल एकादशी पर ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता उपदेश दिया था।
 // अंतरराष्ट्रीय योग दिवस जिसकी पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में रखकर की जिसकी स्वीकृति संयुक्त राष्ट्र ने 11 दिसंबर 2014 दे दी।
 // 11 दिसम्बर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस मनाया जाता है ।
 // 11 दिसंबर ग्रेगोरियन कैलेंडर में 345वां दिन है। इस दिन इंडियाना अमेरिका का 19वां राज्य बना, एल्कोहॉलिक्स एनॉनिमस के सह-संस्थापक बिल विल्सन ने अपना अंतिम पेय लिया और अपोलो 17 चंद्रमा पर उतरने वाला अंतिम अपोलो मिशन बन गया। प्रसिद्ध जन्मदिनों में जॉन केरी, हैली स्टेनफेल्ड और ओशो शामिल हैं।

व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / हिंदू धर्म में मकर संक्रांति एक महत्वपूर्ण त्योहार है. सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं. हर वर्ष कुल 12 संक्रांति आती हैं जिनमें से मकर संक्रांति, जिसे पौष संक्रांति भी कहा जाता है, सबसे महत्वपूर्ण मनाई जाती है. यह त्योहार भारत व नेपाल में मनाया जाता है. मकर संक्राति नए साल का पहला बड़ा त्योहार होता है. मकर संक्रांति के दिन से भगवान सूर्य उत्तरायण होते हैं और इसीलिए इस त्योहार को खिचड़ी और उत्तरायण पर्व भी कहा जाता है. यह ठंड के कम होने और सूर्य देव के लंबे समय तक चमकने का प्रतीक होता है. पूरे देश में इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस दिन नदियो में स्नान और दान का बहुत महत्व होता है. आइए जानते हैं अगले वर्ष कब है मकर संक्रांति और इस दिन से जुड़ी तरह-तरह की परंपराएं कौनसी हैं.
वर्ष 2025 में मकर संक्रांति कब है |
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वर्ष 2025 में सूर्य देव मकर राशि में 14 जनवरी मंगलवार को प्रवेश करेंगे. भगवान सूर्य सुबह के समय 9 बजकर 3 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे. यह समय मकर संक्रांति क्षण होगा. सूर्य गोचर होने के कारण मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाएगी. 14 जनवरी, 2025 को मकर संक्रांति के दिन पुण्य काल की कुल अवधि 8 घंटे 42 मिनट की है. पुण्य काल सुबह 9 बजकर 3 मिनट से शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगी. इस दिन एक घंटा 45 मिनट का महा पुण्य काल है. सुबह 9 बजकर 3 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक महा पुण्य काल रहेगा.
मकर संक्रांति पर स्नान-दान का मुहूर्त
14 जनवरी को स्नान और दान का शुभ मुहूर्त सुबह 9 बजकर 3 मिनट से सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक है. महा पुण्य काल में यह करना उत्तम रहेगा. हालांकि, पुण्य काल में भी स्नान और दान किया जा सकता है.
पतंग उड़ाने से लेकर दान तक की परंपराएं
देशभर में मकर संक्रांति को पतंग उड़ाने से लेकर नदी स्नान और दान करने की परंपराएं हैं. इस दिन पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के आसपास लोहड़ी मनाई जाती है. इस दिन तिल से बने तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं और दोस्तों और परिजनों को तिल व गुड़ खिलाया जाता है. इसके अलावा पवित्र नदियों में स्नान और दान करने की भी परंपरा है. मकर संक्रांति के दिन नदी स्नान के बाद लोग पितरों का तर्पण भी करते हैं. यह दिन अपने पूर्वजों को याद करने का भी अवसर माना जाता है. इस दिन को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाया जाता है.
क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति
मकर संक्रांति मूल रूप से खेती से जुड़ा त्योहार है. यह खरीफ फसलों की कटाई के बाद मनाया जाता है. इसके अलावा यह लंबी ठंड के बाद सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश करने और दिन की अवधि लंबे होने के लिए मनाया जाता है. यह दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने-मिलाने का भी त्योहार है.
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं और इस दिन से देवताओं का दिन प्रारंभ माना जाता है. इस दिन के बाद भगवान सूर्य  मकर राशि से होते हुए मिथुन राशि तक गोचर करते हैं और इस दौरान सूर्य कैलेंडर के 6 माह आते हैं. इस समय से गर्मी धीरे-धीरे बढ़ने लगती है और ठंड कम होने लगती है. मकर संक्रांति के बाद से दिन का समय अधिक और रात का समय कम होने लगता है. वर्ष में जब भगवान सूर्य कर्क राशि में गोचर करते हैं तो उसे सूर्य का दक्षिणायन होना शुरू होता है. सूर्य के दक्षिणायन होने को देवताओं की रात्रि शुरू होना माना जाता है. इस दिन से दिन का समय कम और रात का समय ज्यादा होने लगता है.

खुद के टीबी जैसी बीमारी से मुक्त होने के लिए मुख्यमंत्री को प्रकट किया आभार

      रायपुर / शौर्यपथ / एम्स रायपुर के आडिटोरियम में आज निक्षय निरामय छत्तीसगढ़ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में 100 दिन तक टीबी, मलेरिया एवं कुष्ठ रोगियों की पहचान की जाएगी तथा उनका उपचार किया जाएगा। कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे लोगों का भी सम्मान किया गया जिन्होंने टीबी और कुष्ठ जैसी बीमारियों से लड़ाई लड़ी और आज स्वस्थ जीवन का आनंद उठा रहे हैं। इन्हीं मे से एक हैं बस्तर के तोकापाल की रहन वाली बबीता नाग जो कुछ समय पहले तक टीबी के रोग से पीड़ित थीं। इन्होंने सरकारी अस्पताल में अपनी जांच करायी और शासन की योजनाओं का लाभ लेते हुए समय पर दवाइयां और पोषण आहार का सेवन किया। इसकी वजह से बबीता पूरी तरह स्वस्थ हैं। बबीता ने अपने ठीक होने का श्रेय मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय को दिया है जिनकी पहल की वजह से वो टीबी जैसी बीमारी के प्रति जागरूक हो सकीं और समय पर अपना इलाज कराया। मुख्यमंत्री को धन्यवाद देने के लिए बबीता ने आज निक्षय निरामय छत्तीसगढ़ कार्यक्रम में उपस्थित थीं। उन्होने मुख्यमंत्री को अपने हाथों से निक्षय निरामय सूत्र बांधा और प्रदेश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों की सराहना की।

-अब तक जिले में लगभग 2 लाख 57 हजार महिलाओं को 10 किश्त में लगभग 242 करोड़ रूपए की राशि हुई प्राप्त
-महिलाओं ने मुख्यमंत्री को तहेदिल से कहा शुक्रिया

       राजनांदगांव / शौर्यपथ / महतारी वंदन योजना महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण एवं स्वावलंबन की दिशा में कारगर साबित हो रही है। महिलाओं के सम्मान और उन्हें जीवन में आगे बढऩे की प्रेरणा मिली है। इस योजना अंतर्गत महिलाओं के खाते में प्रतिमाह 1000 रूपए की राशि प्राप्त हो रही है। अब तक जिले में लगभग 2 लाख 57 हजार महिलाओं को 10 किश्त में लगभग 242 करोड़ रूपए की राशि प्राप्त हुई है। महिलाओं के चेहरों पर यह खुशी आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता की है। उन्होंने मोबाईल पर महतारी वंदन योजना अंतर्गत प्राप्त राशि का नोटिफिकेशन दिखाकर अपनी खुशी जाहिर की।
राजनांदगांव शहर के शीतला पारा वार्ड नंबर 8 मोतीपुर निवासी श्रीमती मधु साहू ने बताया कि वह महतारी वंदन योजना से प्राप्त राशि को बचत कर रही हैं। एक ही परिवार के तीन महिलाएं इस योजना से लाभान्वित हो रही है। 50 वर्षीय श्रीमती सरोज निर्मलकर गृहिणी हंै। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए बताया कि वह इस राशि का उपयोग घरेलू खर्च में करती हैं। वही उनकी देवरानी श्रीमती रजनी निर्मलकर ने बताया कि वह प्राप्त राशि का उपयोग बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए कर रही है। उनकी बहू श्रीमती कंचन निर्मलकर ने बताया कि महतारी वंदन योजना अंतर्गत प्राप्त राशि का उपयोग अपने बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं। एक ही परिवार की दो महिला श्रीमती वेणु साहू एवं श्रीमती शोभा साहू भी महतारी वंदन योजना के तहत लाभान्वित हो रही हैं। उन्होंने बताया कि वह इस राशि का उपयोग घरेलू कार्य में कर रही है। सभी महिलाओं ने महतारी वंदन योजना के तहत राशि प्राप्त होने पर मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय को तहेदिल से शुक्रिया कहा।

हितग्राही महिलाओं को अब तक 6530.41 करोड़ रूपए की मदद   

    रायपुर / शौर्यपथ /  छत्तीसगढ़ महिलाओं के स्वास्थ्य, पोषण, आर्थिक स्वावलंबन और सशक्तिकरण को बढ़ावा के उद्देश्य से विष्णु देव सरकार द्वारा संचालित महतारी वंदन योजना से हितग्राही महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव आया है। महिलाएं इस मदद की राशि से अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के साथ ही अतिरिक्त आय उपार्जन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने लगी है।
   श्रीमती बिंदिया प्रजापति को जब से महतारी वंदन योजना के तहत हर महिने एक-एक हजार रूपए मिल रहे है, उनके चेहरे में खुशी की चमक देखते ही बन रही है। मरवाही विकासखण्ड के ग्राम धरहर की श्रीमती प्रजापति महतारी वंदन की राशि का उपयोग अपने ईंट व्यवसाय के कारोबार को बढ़ाने में कर रही है। आर्थिक रूप से कमजोर बिंदिया बाई को पहले ईंट बनाने के लिए मिट्टी, पकाने के लिए भूंसी-लकड़ी आदि के लिए उधारी लेना पड़ता था, अब उन्हें दूसरों के सामने हाथ नहीं फैलाना पड़ता।
   बलौदा बाजार जिला के वनांचल ग्राम बल्दा कछार की निवासी श्रीमती ममता परंपरागत रूप से बांस शिल्प की कला कृति बनाकर जीवकोपार्जन करती है। पहले वह आर्थिक तंगी के कारण बांस शिल्प बनाने के लिए बांस नहीं खरीद पाती थी पर अब उन्हें महतारी वंदन योजना से प्रतिमाह 1 हजार रूपये मिलते है, जिसका उपयोग वह बांस खरीदने में करती है। वह झेंझरी, सुपा, पर्रा, टुकनी सहित अन्य सजावटी वस्तुएं अधिक संख्या में बना पाती है, जिसे बेचकर उन्हें अच्छी खासी आमदनी मिल रही है, जिसमें बचत कर वो अपनी बेटियों को शिक्षित कर रही हैं। कोरिया जिले के ग्राम जमड़ी की निवासी श्रीमती सुनीता साहू के जीवन में महतारी वंदन योजना ने बदलाव लाया। तीन बच्चों की मां श्रीमती साहू ने योजना से मिली राशि को बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए निवेश करना शुरू कर दिया है।
   बस्तर जिले के बकावंड ब्लॉक मुख्यालय की निवासी लाभार्थी श्रीमती चंद्रमणि और उनके परिवार के पास कृषि भूमि नहीं है पति-पत्नी दोनों मजदूरी कर 6 सदस्यीय परिवार का किसी तरह भरण-पोषण करते हैं। राज्य सरकार की महतारी वंदन योजना अब उनके परिवार के लिए सहारा साबित हो रही है। जिससे चंद्रमणि को एक हजार रूपए तथा उसकी सास रुकनी को महतारी वंदन योजना से 500 रुपए एवं वृद्धावस्था पेंशन योजनान्तर्गत 500 रूपए मिल रही है, जो इस गरीब परिवार के लिए बहुत ज्यादा तो नहीं लेकिन उपयोगी साबित हो रही है।
    इसी तरह कई महिलाएं हैं जो मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की सरकार की महत्वाकांक्षी योजना महतारी वंदन योजना की बदौलत आर्थिक रूप से सशक्त बन रही है। सरकार का यह कदम उनके जीवन में बड़ा बदलाव ला रहा है।
   गौरतलब है कि उक्त योजना का शुभारंभ 10 मार्च 2024 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था। राज्य की लगभग 70 लाख हितग्राही महिलाओं को हर माह एक हजार रूपए की आर्थिक सहायता दी जा रही है। मार्च से लेकर दिसम्बर तक हितग्राही महिलाओं को 10 मासिक किश्तों में 6530 करोड़ 41 लाख रूपए की आर्थिक सहायता दी जा चुकी है।

 मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के आग्रह पर रायगढ़ की सरस्वती यादव ने बटन दबाकर प्रदेश की महिलाओं को जारी किया महतारी वंदन योजना की दसवीं किश्त के 652 करोड़

     रायगढ़ / शौर्यपथ /  मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कल रायगढ़ में आयोजित कार्यक्रम में महतारी वंदन योजना की राशि जारी की। इस दौरान मुख्यमंत्री साय के सुशासन की झलक देखने को मिली। मंच में उनसे मिलने पहुंची महतारी वंदन योजना की हितग्राही सरस्वती यादव को उन्होंने बटन दबाकर प्रदेश की महिलाओं के खाते में महतारी वंदन योजना की दसवीं किश्त की राशि जारी करने का आग्रह किया, जिस पर सरस्वती यादव ने बटन दबाकर प्रदेश की 70 लाख महिलाओं को महतारी वंदन योजना की 10वीं किश्त के रूप में 652 करोड़ रूपए की राशि अंतरित की। यह पहला मौका होगा जब किसी योजना के हितग्राही ने ही योजना की राशि जारी की है।

   दुर्ग / शौर्यपथ / दो एकड़ जमीन में खेती-किसानी व मनरेगा में छोटी-मोटी मजदूरी कर, एक छोटे से कच्चे मकान में गुजर बसर करने वाला मजदूर शोभित राम की यह कहानी है। दुर्ग जिले के अछोटी ग्राम के 45 वर्षीय श्री शोभित राम खेती-मजदूरी से प्राप्त आय को अपने परिवार का भरण-पोषण करने एवं तीनों बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।
शोभित राम ने बताया कि पक्का मकान बनाने का हर व्यक्ति का सपना होता है। आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए तो पक्का मकान बनाना एक सपने के समान होता है। उनकी पूरी जिंदगी निकल जाती है और पक्का मकान बनाने का सपना, सपना ही बनकर रह जाता है। लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना उनके जीवन में एक नई रोशनी की किरण लेकर आया। जब शोभित को इस योजना के तहत पक्के मकान की स्वीकृति मिली, तो यह उनके लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। प्रधानमंत्री आवास योजना वर्ष 2019-20 में आवास स्वीकृति हुआ। आवास स्वीकृति उपरान्त प्रथम किश्त 35 हजार, द्वितीय किश्त 45 हजार एवं तृतीय किश्त 30 हजार और चौथी किश्त 10 हजार रूपए प्राप्त हुए। पक्के मकान में दो कमरा और एक किचन कुछ ही महीनों के भीतर तैयार हो गया। स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय का निर्माण किया गया है। साथ ही उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेण्डर प्राप्त हुआ। उनके परिवार को पक्का नया घर मिल जाने से सभी सदस्य बहुत खुश है। हितग्राही शोभित राम ने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना गरीबों के लिए वास्तव में एक उपहार है। इसने न केवल उनके जीवन स्तर में सुधार आया, बल्कि समाज में भी प्रतिष्ठा बढ़ने लगी है।

चित्रोत्पला फिल्म सिटी से छत्तीसगढ़ी फिल्मों, नाटकों के साथ पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
पद्मश्री विभूतियों की सम्मान राशि प्रतिमाह 5 हजार रूपए से बढ़ाकर 10 हजार रुपए करने की घोषणा

     रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ में 147 करोड़ रूपए की लागत से चित्रोत्पला फिल्म सिटी बनेगी। इसके लिए भारत सरकार ने 147 करोड़ रूपए की स्वीकृति दी है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने आज छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ी भाषा में दिए गए अपने सम्बोधन में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के प्रस्ताव पर केन्द्र सरकार द्वारा फिल्म सिटी के निर्माण की स्वीकृति प्रदान करते हुए राशि की स्वीकृति दी गई है। उन्होंने कहा कि चित्रोत्पला फिल्म सिटी के निर्माण से छत्तीसगढ़ी फिल्मों, छत्तीसगढ़ी नाटकों को प्रोत्साहन तो मिलेगा ही, साथ ही पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।
मुख्यमंत्री साय ने कार्यक्रम में पद्मश्री सम्मान से विभूषित छत्तीसगढ़ की विभूतियों को दी जाने वाली सम्मान राशि प्रतिमाह 5 हजार रूपए से बढ़ाकर 10 हजार रूपए करने की घोषणा की। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास के लिए लगातार काम कर रही है। छत्तीसगढ़ी गुरतुर भाषा है, जो हमें आपस में दिल से जोड़ती है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी फिल्में काफी लोकप्रिय हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा को बढ़ावा देने में छत्तीसगढ़ी फिल्मों का भी बड़ा योगदान है।
मुख्यमंत्री ने साहित्य परिषद में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के विलय की समाप्ति की घोषणा करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग राजभाषा छत्तीसगढ़ी को बढ़ावा देने का कार्य करता रहेगा। उल्लेखनीय है कि पूर्व में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का साहित्य परिषद में विलय कर दिया गया था।
मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ी भाषा को समृद्ध करने वाले छह साहित्यकारों को शॉल-श्रीफल और स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग द्वारा प्रकाशित छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखित 12 पुस्तकों का विमोचन भी किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा को लोकप्रिय बनाने और राजभाषा का सम्मान देने के लिए यह जरूरी है कि हम छत्तीसगढ़ी भाषा में बातचीत करें और नई पीढ़ी को भी छत्तीसगढ़ी बोलना सिखाए। उन्होंने साहित्यकारों से छत्तीसगढ़ी भाषा में उपन्यास, कविता और इतिहास का लेखन करने का आव्हान किया। उन्होंने कहा कि विधानसभा में सदस्य छत्तीसगढ़ी में अपना सम्बोधन दे सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सांसद के रूप में वे छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवें अनुसूची में शामिल कराने का प्रयास करेंगे।
कार्यक्रम में पद्श्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे और डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम में संस्कृति विभाग के सचिव श्री अन्बलगन पी., संचालक संस्कृति एवं राजभाषा श्री विवेक आचार्य ने छत्तीसगढ़ी राजभाषा में सम्बोधन दिया। राजभाषा आयोग की सचिव डॉ. अभिलाषा बेहार ने बताया कि आयोग द्वारा छत्तीसगढ़ी में 2700 से अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। आयोग द्वारा अब तक छत्तीसगढ़ी भाषा की 1400 पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है।

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