रायपुर। शौर्यपथ । मेकाहारा जैसे प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में अब आयुष्मान कार्ड, जन-आयुष योजनाओं के नाम पर मिलने वाली मुफ्त जांचें बंद कर दी गई हैं। MRI के लिए 4000 से 5500 रुपये, जबकि सीटी स्कैन के 2500 से 3500 रुपये तक वसूले जा रहे हैं—यह राशि 10-15% निजी अस्पतालों से भी ज्यादा है। नए सॉफ्टवेयर के नाम पर लॉकिंग दिक्कतें, इनसाइट टेस्ट तक नहीं हो पा रहे।
अस्पताल में सैकड़ों मरीज घंटों लाइन लगाकर हलाकान हैं, कई लौट जाते हैं। पैसों की वसूली होने के बावजूद जांचें नहीं हो रहीं। पहले आयुष्मान कार्डधारी मरीजों को बेफिक्र इलाज-सुविधा मिलती थी, अब वे भी भटक रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल लगातार ऐसे मामलों में चुप्पी साधे हुए हैं। विभागीय खामियों और बढ़ती परेशानी पर न उनका कोई एक्शन, न मुख्यमंत्री या भाजपा संगठन का कोई संज्ञान नज़र आ रहा है। भाजपा महामंत्री पवन साय से नागरिक सवाल पूछ रहे हैं कि क्या प्रदेश के अस्पतालों की दुर्दशा देखकर भी मन नहीं पसीजता? आखिर राज्य में स्वास्थ्य विभाग की ऐसी बदहाली किसके संरक्षण में हो रही है? कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार का खेल बेशर्मी से जारी है।
सरकार अगर अब भी जनहितैषी व्यवस्थाएं ठीक नहीं करती, तो विपक्ष और जनता जल्द ही सरकार को इसका सख्त परिणाम दिखा सकते हैं।
तस्वीर बया कर रही हैं कि मेकाहारा अस्पताल की ओपीडी में मरीजों की लंबी कतारें लगी हैं, महिला-मरीज व्हीलचेयर में हैं और इंतजार का माहौल भयावह है—यह सरकारी व्यवस्था की जमीनी सच्चाई दर्शाता है, जिसमें इलाज से ज्यादा वेटिंग और अव्यवस्था से लोग जूझ रहे हैं।
ऐसे में सुशासन के दावे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था के आगे फीके पड़ रहे हैं—सरकारी अस्पताल तक निजी अस्पतालों से महंगे, सुविधाएं ठप और मरीज पूरी तरह से असहाय।