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"महापौर बाघमार के आदेश हवा में! निगमकर्मियों की मनमानी से सवालों में शहरी शासन"

"स्वच्छता अभियान के कर्मचारी बना दिए गए बाबू! नियमों की उड़ रही धज्जियां"

– शौर्यपथ विशेष रिपोर्ट

दुर्ग। क्या नगर निगम अब कर्मचारियों की मनमानी से चलेगा या चुने हुए जनप्रतिनिधियों के निर्देशों से? यह सवाल आज दुर्ग निगम के कर्मचारियों के मन में गूंज रहा है। कारण है – महापौर अलका बाघमार द्वारा दिए गए स्पष्ट निर्देशों की अनदेखी और अधिकारियों की कार्यशैली में गहराई से जमी उदासीनता।
  हाल ही में सामने आया मामला न केवल एक कर्मचारी की पदस्थापना से जुड़ा है, बल्कि यह सीधे-सीधे शहरी प्रशासन की गंभीर चूक और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का उदाहरण भी बन चुका है।

महापौर का निर्देश... और उसका उल्लंघन!

मामला जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र पंजीयन शाखा से जुड़ा है, जहां पिछले दो वर्षों से मिशन क्लीन सिटी के अंतर्गत नियुक्त एक कर्मचारी कार्यालयीन कार्य में सलग्न है – जबकि मिशन क्लीन सिटी के कर्मचारियों को शुद्धत: फील्ड ड्यूटी (साफ-सफाई एवं नगर व्यवस्था) के लिए ही नियुक्त किया गया है।
  महापौर अलका बाघमार ने इसे गंभीर मानते हुए उक्त कर्मचारी को मूल कार्यक्षेत्र (फील्ड ड्यूटी) में वापस भेजने के निर्देश स्वास्थ्य विभाग के सक्षम अधिकारी धर्मेश मिश्रा को दिए। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से आज तक उस कर्मचारी की पदस्थापना वहीं की वहीं बनी हुई है।

जब इस पर स्वास्थ्य अधिकारी धर्मेश मिश्रा से जानकारी मांगी गई तो उनका उत्तर था – "कर्मचारी को नियंत्रित स्थान पर भेज दिया गया है।"
लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है – संबंधित कर्मचारी अब भी जन्म-मृत्यु पंजीयन शाखा शाखा में कार्यरत है। तो क्या अधिकारी झूठ बोल रहे हैं? या फिर महापौर के निर्देश अब महज कागजों तक सीमित रह गए हैं?

नियमों की धज्जियां, प्रशासन की चुप्पी

स्वच्छ भारत मिशन जैसे महत्वपूर्ण अभियान के कर्मचारी यदि कार्यालयों में भृत्य की भूमिका में बैठाए जाएंगे, तो न तो मिशन सफल होगा और न ही प्रशासन पर जनता का विश्वास बच पाएगा। नगर निगम का यह रवैया साफ तौर पर यह संकेत देता है कि यहां या तो नियमों की समझ नहीं है, या फिर नियमों की धज्जियां उड़ाना अब सामान्य चलन बन गया है।

एक चिंगारी से उठेगा आंदोलन?

इस खुलासे के बाद निगम के अन्य मिशन क्लीन सिटी कर्मचारी भी अब अंदरखाने सक्रिय हो गए हैं। जिनकी शैक्षणिक योग्यता बेहतर है, वे भी अब फील्ड की जगह कार्यालयों में पदस्थापना की मांग करने लगे हैं। यह स्थिति अगर आगे भी बनी रही, तो यह न केवल प्रशासनिक असंतुलन को जन्म देगी, बल्कि एक बड़े असंतोष और आंदोलन की भूमि भी तैयार करेगी।

प्रश्न जनता का, जवाब प्रशासन का...?

क्या निगम में महापौर के निर्देशों का कोई औचित्य नहीं बचा?
क्या अधिकारी जानबूझकर नियमों को तोड़ रहे हैं?
और क्या नगर निगम का प्रशासन अब "जुगाड़ व्यवस्था" से संचालित होगा?
शहर अब जवाब मांग रहा है। प्रशासन को यह तय करना होगा कि वह नियमों के साथ चलेगा या चुप्पी की चादर ओढ़े रहेगा।

मिशन क्लीन सिटी के अंतर्गत, कर्मचारियों द्वारा मुख्य रूप से डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण और निपटान का कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त, वे सूखा और गीला कचरा अलग-अलग एकत्र करते हैं, और कचरे को सॉलिड एंड लिक्विड रिसोर्स मैनेजमेंट (एसएलआरएम) केंद्रों में अलग-अलग करके रिसाइकिलिंग उद्योगों को बेचते हैं.
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि मिशन क्लीन सिटी का उद्देश्य न केवल शहरों को साफ रखना है, बल्कि सफाई कर्मचारियों के जीवन को भी बेहतर बनाना है.

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