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“बाघमार सरकार” का नया फॉर्मूला — जनता की नहीं, अपनी पार्टी के पार्षदों की भी कोई सुनवाई नहीं!

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तकिया पारा वार्ड के भाजपा पार्षद खालिक रिज़वी ने इंदिरा मार्केट और बस स्टैंड पार्किंग घोटाले का मुद्दा उठाया,

पर एक माह बाद भी कार्रवाई शून्य — निगम की दीवारों में गूंजती रह गई जनता की पुकार।

दुर्ग। शौर्यपथ।

दुर्ग नगर निगम की सामान्य सभा में जिस आवाज़ ने आम जनता की लूट की बात उठाई थी, वह अब शहरी सरकार की दीवारों में गूंज बनकर रह गई है। तकिया पारा वार्ड के भारतीय जनता पार्टी के पार्षद खालिक रिज़वी ने हाल ही में संपन्न हुई सामान्य सभा में बस स्टैंड और इंदिरा मार्केट पार्किंग में हो रही खुली लूट का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया था। रिज़वी ने स्पष्ट कहा था कि निगम की पार्किंग व्यवस्था जनता से जबरन वसूली में तब्दील हो चुकी है और प्रशासन आंख मूंदे बैठा है।

सभा में सभापति श्याम शर्मा ने भी मामले पर संज्ञान लेने का भरोसा दिया था और महापौर श्रीमती अलका बाघमार ने इसे गंभीरता से सुनने का आश्वासन दिया था। उस समय ऐसा प्रतीत हुआ था मानो अब जनता को राहत मिलेगी, परंतु एक माह बीतने के बाद भी न पार्किंग दरों के बोर्ड लगाए गए हैं, न ही किसी ठेकेदार पर कार्रवाई हुई है।

स्पष्ट है — गंभीरता केवल सामान्य सभा तक सीमित थी, उसके बाद सब कुछ “सामान्य” ही हो गया।

नगर निगम के अधीन बस स्टैंड और इंदिरा मार्केट पार्किंग स्थल पर आज भी मनमानी वसूली जारी है। वहीं निगम के आयुक्त सुमित अग्रवाल और बाजार प्रभारी शेखर चंद्राकर की चुप्पी यह संकेत देती है कि निगम में “मौन ही नीति” बन चुकी है।

सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि पार्किंग ठेकेदारों और भाजपा नेताओं के बीच नजदीकी संबंधों की चर्चा अब खुलकर हो रही है। यही वजह है कि मामला न केवल दबा दिया गया, बल्कि अब उस पर लीपापोती के संकेत साफ दिखाई दे रहे हैं।

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब भाजपा के अपने पार्षद की आवाज़ ही बेअसर साबित हो जाए, तो आम जनता की आवाज़ कौन सुनेगा?

दुर्ग की “बाघमार सरकार” ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि इस शहरी सत्ता के लिए जनता की नहीं, अपने ही पार्षदों की भी कोई हैसियत नहीं?

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