नई दिल्ली /शौर्यपथ /भारत सूफी संतों की धरती रही है. अमरोहा में विश्व विख्यात शाह विलायत की मजार है. इस दरगाह की खासियत यह है कि डंक मारने के लिए कुख्यात बिच्छू यहां किसी को डंक नहीं मारते. इसीलिए इसे बिच्छू वाली दरगाह या मजार भी बोलते हैं. यहां पर चुनाव के समय कई नेता भी आते हैं. बहुत सारे श्रद्धालुओं की आस्था यहां से जुड़ी हुई है. साथ ही फिल्मी सितारे भी यहां इबादत करने आते हैं.
दरगाह में बैठै एक शख्स ने एनडीटीवी को बताया कि इस दरगाह में बिच्छू ही नहीं सांप भी नहीं काटते हैं. वहीं थोड़ी दूर पर नसरुद्दीन शाह रहमतुल्लाह अली की दरगाह में गधे और घोड़े मिल जाएंगे. वहां की खासियत यह है कि गधे और घोड़े बेशक दरगाह बैठेंगे या लेटेंगे लेकिन लीद और पेशाब दरगाह की हद से बाहर करेंगे.
वहीं अगर लोकसभा चुनावों की बात करें तो अमरोहा सीट की सियासी लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है. यहां निवर्तमान सांसद और इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार कुंवर दानिश अली का मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार कंवर सिंह तंवर से है,लेकिन बीएसपी उम्मीदवार के चलते अमरोहा का मुस्लिम मतदाता असमंजस में है. अमरोहा के सियासी मुकाबले को वैसे बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे मुजाहिद हुसैन ने दिलचस्प बना दिया है.
आंकड़े देखें तो पता चलता है.अमरोहा लोकसभा सीट पर पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 5.70 लाख, एससी 2.75 लाख, जाट 1.25 लाख, सैनी 1.25 लाख व अन्य 5 लाख के करीब हैं. वैसे हर पार्टी जानती है कि इस चुनाव में जीत का ढोल तभी बजेगा जब अमरोहा के ढोलक बनाने वालों को सहूलियत मिलेगी. देश दुनिया में अमरोहा ही एक मात्र ऐसी जगह है जहां ढोलक बनता है. पहले यहां तीन हजार लोग काम करते थे, अब डेढ़ लाख लोग इस रोजगार से जुड़े हैं, इसमें ज्यादातर मुस्लिम हैं.