नई दिल्ली/शौर्यपथ /माफिया छवि वाले मुख्तार अंसारी की इस साल 28 मार्च को उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में मौत हो गई थी. मुख्तार की मौत के बाद गाजीपुर में पहली बार लोकसभा का चुनाव हो रहा है.मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने 2019 में बसपा के टिकट पर गाजीपुर से लोकसभा का चुनाव जीता था. गाजीपुर के साथ-साथ पड़ोस के बलिया, मऊ, आजमगढ़ और वाराणसी जैसे जिले में भी अंसारी परिवार का प्रभाव माना जाता है. अंसारी परिवार एक संपन्न राजनीतिक परिवार है.मुख्तार की मौत के बाद उसे अब सहानुभूति वोट मिलने का भरोसा है. इस बार गाजीपुर में बीजेपी , सपा और बसपा में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है. इस सीट पर लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में एक जून का मतदान कराया जाएगा.
अफजाल अंसारी की सपा में वापसी
अफजाल अंसारी चुनाव से पहले ही बसपा छोड़ सपा में शामिल हुए हैं. सपा ने गाजीपुर से उनके उम्मीदवारी की घोषणा भी बहुत पहले ही कर दी थी. उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही बीजेपी ने अफजाल के सामने पारस नाथ राय को उतारा है. उन्हें जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का करीबी माना जाता है. अबतक हुए चुनावों में मनोज सिन्हा के चुनाव की जिम्मेदारी राय ही उठाते रहे हैं.इस बार वो खुद ही चुनाव मैदान में हैं. वो विद्यार्थी परिषद से होते हुए बीजेपी में आए हैं.वहीं डॉक्टर उमेश कुमार सिंह बसपा के उम्मीदवार हैं.
अपने चाचा का चुनाव प्रचार करते मुख्तार अंसारी के बेटे उमर अंसारी.
अफजाल में 2019 के चुनाव में सिन्हा को मात दी थी. अफजाल अंसारी को पांच लाख 66 हजार 82 वोट और मनोज सिंन्हा को चार लाख 46 हजार 690 वोट मिले थे. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के रामजी को 33 हजार 877 और कांग्रेस के अजीत प्रताप कुशवाहा को 19 हजार 834 वोट मिले थे.इस बार के चुनाव में सुभासपा बीजेपी की सहयोगी है तो कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाया है.मनोज सिन्हा 1996, 1999 और 2014 में गाजीपुर से चुनाव जीत चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले मनोज सिन्हा मोदी की पहली सरकार में रेल राज्य मंत्री बनाया गया था. वहीं अफजाल अंसारी ने 2004 का चुनाव गाजीपुर से सपा के टिकट पर जीता था.
उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी लोकसभा सीट
इस बार के चुनाव में मतदाताओं की संख्या के लिहाज से गाजीपुर प्रदेश की सबसे बड़ी लोकसभा सीट है. गाजीपुर में 2024 में 20 लाख 74 हजार 883 मतदाता हैं.पूर्वांचल की इस सीट पर एकछत्र राज्य कभी किसी पार्टी ने नहीं किया. एक समय पूर्वांचल के जिलों में कम्युनिस्ट आंदोलन का दौर था. उस दौरान 1967, 1971 और 1991 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने यहां से चुनाव में जीत दर्ज की थी. इसके अलावा पांच बार कांग्रेस, दो बार समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी, बसपा और निर्दलीय ने एक बार इस सीट से जीत दर्ज की है.
गाजीपुर लोकसभा सीट में छह विधानसभा क्षेत्र जखनिया (सुरक्षित), सैदपुर (सुरक्षित), गाजीपुर सदर, जंगीपुर और जामनिया आते हैं. इनमें से जखनिया को छोड़कर बाकी की सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है. जखनिया में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के त्रिवेणी राम विधायक हैं. हालांकि 2022 का विधानसभा चुनाव सपा और सुभासपा ने मिलकर लड़ा था. लेकिन बाद में सुभासपा ने सपा से रिश्ता तोड़ लिया. चार विधानसभा क्षेत्रों पर सपा का कब्जा अफजाल की लड़ाई को मजबूत बना सकता है.
गाजीपुर में अफजाल अंसारी का प्लान-बी क्या है?
इस बार गाजीपुर में कुल 10 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं. लेकिन मुकाबला बीजेपी, सपा और बसपा के बीच ही है. बीजेपी के पारसनाथ राय, सपा के अफजाल अंसारी और बसपा के उमेश कुमार सिंह गाजीपुर जिले के ही रहने वाले हैं. तीनों ही उम्मीदवारों ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया हुआ है. बसपा उम्मीदवार के पास कानून में डॉक्टरेट की डिग्री है.
चुनाव प्रचार करते बीजेपी उम्मीदवार पारसनाथ राय.
इस बार अफजाल अंसारी की बेटी नुसरत अंसारी भी चुनाव मैदान में हैं. दरअसल गाजीपुर की एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट ने 29 अप्रैल 2023 को अफजाल अंसारी को गैंगस्टर एक्ट के एक मामले में चार साल की सजा सुनाई थी. इससे उनकी लोकसभा की सदस्यता निरस्त हो गई. उन्हें जेल भेज दिया गया था. उनकी अपील पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत तो दे दी थी, लेकिन सजा पर रोक नहीं लगाई थी.इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर रोक लगाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट को उनकी अपील को 30 जून से पहले निस्तारित करने को कहा है. सजा पर लगी रोक के बाद अफजाल की लोकसभा सदस्यता बहाल हो गई थी.
अगर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सजा रद्द नहीं की तो चुनाव जीतने के बाद भी अफजाल अंसारी को सांसद पद छोड़ना पड़ेगा, क्योंकि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत दो साल से अधिक की सजा पाया हुआ व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकता है. इस मामले में हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही है. 23 को सुनवाई पूरी नहीं हो पाई. अब यह सुनवाई 27 मई को फिर से शुरू होगी. ऐसे में अदालत उनकी सजा पर रोक नहीं लगाती है तो अफजाल अपनी बेटी के नाम पर वोट मांगेंगे. इसलिए उन्होंने बेटी का पर्चा भरवाया है.
पीएम नरेंद्र मोदी की जनसभा 25 मई को
अफजाल अंसारी ने अपना राजनीतिक करियर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) से की थी. गाजापुर के तत्कालीन सांसद सरजू पांडेय उनके राजनीतिक गुरु थे. अफजाल 1985 में पहली बार भाकपा के टिकट पर मोहम्मदाबाद सीट से विधायक चुने गए. इसके बाद वो राजनीति में आगे ही बढ़ते गए. अंसारी परिवार की पकड़ की हालत यह है कि गाजीपुर में मुसलमानों की आबादी करीब 10 फीसदी है, इसके बाद भी वो दो बार वहां से लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं.
वहीं अगर बसपा उम्मीदवार डॉक्टर उमेश कुमार सिंह की बात करें तो वो बरास्ता छात्र राजनीति संसदीय राजनीति में आए हैं. गाजीपुर के सैदपुर के मुड़ियार गांव के रहने वाले उमेश सिंह 1991-92 में वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र संघ का महामंत्री चुने गए थे.वकालत के पेश में रमें उमेश सिंह अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से प्रभावित होकर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे.बाद में उन्होंने आप से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वो बसपा में शामिल हो गए.
गाजीपुर में बीजेपी उम्मीदवार पारसनाथ राय के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 मई को जनसभा करने वाले हैं. वहीं समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव अपने उम्मीदवार के समर्थन में 27 मई को एक जनसभा को संबोधित करेंगे. इससे पहले वो मुख्तार अंसारी की मौत के बाद शोक जताने के लिए सात अप्रैल को उनके घर गए थे.