"एक मासूम सवाल... पर बहुत गहरी बात!"
✍️ शौर्यपथ विशेष रिपोर्ट
रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र गुप्ता ने सोशल मीडिया पर एक सवाल पूछा — "कांग्रेस सरकार के आबकारी घोटाले में तत्कालीन मंत्री कवासी लखमा जेल में हैं, तो फिर उसी सरकार के मेडिकल घोटाले में स्वास्थ्य मंत्री रहे टीएस सिंहदेव पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं?"
यह सवाल जितना मासूम दिखता है, उतना ही गहरे और असहज करने वाले तथ्यों को उजागर करता है। पत्रकारिता का धर्म है सवाल पूछना और लोकतंत्र का आधार है — जवाबदेही।
पूर्ववर्ती कांग्रेस शासनकाल में हुए बहुचर्चित मेडिकल घोटाले, जिसमें सीजीएमएससी (छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉरपोरेशन) के माध्यम से उपकरणों, दवाओं और रिएजेंट की खरीदी में भारी गड़बड़ियां उजागर हुईं, आज भी पूर्ण जांच की राह देख रहा है। हाल ही में मोक्षित ग्रुप के दुर्ग स्थित तीन ठिकानों पर केंद्रीय एजेंसी की छापेमारी यह दर्शाती है कि जांच अब भी अधूरी है और कई कड़ियाँ बाकी हैं।
एक पक्ष कार्रवाई में, दूसरा अनछुआ क्यों?
तत्कालीन आबकारी मंत्री कवासी लखमा, जिन पर शराब घोटाले में संलिप्तता के आरोप लगे, वे इस समय जेल में हैं। परंतु जब बात मेडिकल घोटाले की होती है, तो स्वास्थ्य मंत्री रहे टीएस सिंहदेव का नाम कहीं जांच के दायरे में नहीं आता। जबकि सीजीएमएससी में हुए तमाम निर्णय उन्हीं के कार्यकाल में हुए।
देवेंद्र गुप्ता का सवाल यहीं तीखा हो जाता है —
"क्या यह जाति और सामाजिक हैसियत का भेदभाव है?"
आदिवासी समाज से आने वाले कवासी लखमा पर बिना झिझक कार्रवाई होती है, लेकिन क्षत्रिय समाज से आने वाले प्रभावशाली नेता टीएस सिंहदेव अब तक जांच से अछूते क्यों हैं?
सहयोगी पर भी लगे हैं आरोप
टीएस बाबा के स्वास्थ्य मंत्री रहते उनके निजी सचिव रहे आनंद सागर पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि आज वही आनंद सागर विधानसभा में भाजपा नेता रमन सिंह के सहयोगी के रूप में सक्रिय हैं। इससे सवाल और भी जटिल हो जाता है —
क्या यह पूरा सिस्टम ही मिलावट से ग्रस्त है? क्या राजनीतिक अदला-बदली जांच की दिशा तय करती है?
सवाल जनता का है, जवाब भी जनता को चाहिए
देवेंद्र गुप्ता की यह टिप्पणी महज एक पत्रकार की जिज्ञासा नहीं, बल्कि प्रदेश की जागरूक जनता का प्रतिनिधित्व करती है।
जनता पूछ रही है —
क्या मेडिकल घोटाले की निष्पक्ष जांच होगी?
क्या रसूखदार नेताओं पर भी जांच एजेंसियों का शिकंजा कसेगा?
क्या दोषियों को जाति, पद या पार्टी से ऊपर उठकर सजा मिलेगी?
लोकतंत्र में सवाल पूछना अपराध नहीं, कर्तव्य है।
और जो जनता का पैसा लूटे, वह चाहे कोई भी हो — उसे कानून के कठघरे में आना ही चाहिए।
देवेंद्र गुप्ता का सवाल अगर वाकई मासूम है, तो फिर इस ‘मासूमियत’ में वो ताकत छिपी है जो सत्ता के गलियारों में पसरी चुप्पी को तोड़ सकती है।