कोंडागांव। शौर्यपथ से दीपक वैष्णव की विशेष रिपोर्ट।
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में मुख्यमंत्री समग्र ग्रामीण विकास योजना के तहत स्वीकृत मिनी स्टेडियम निर्माण में भारी भ्रष्टाचार और वसूली घोटाला उजागर हुआ है। बड़ेकनेरा और राजागांव ग्राम पंचायतों में कुल 26 लाख 9 हजार 791 रुपये की वसूली का मामला जांच में सामने आया है, जिसने स्थानीय शासन प्रणाली की विश्वसनीयता पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।
मामले की पड़ताल में यह तथ्य सामने आया कि दोनों पंचायतों ने बिना निर्माण मूल्यांकन और कार्य पूर्णता के पहली किस्त की भारी राशि ठेकेदार को जारी कर दी, वह भी कथित रूप से जिला पंचायत के दो अधिकारियों के दबाव में।
? क्या हुआ था खेल मैदान के नाम पर खेल?
सूत्रों और पंचायत सचिवों के लिखित बयान के अनुसार,
मुख्यमंत्री समग्र विकास योजना के अंतर्गत बड़ेकनेरा और राजागांव ग्राम पंचायतों को 31 लाख 61 हजार रुपये की प्रशासनिक स्वीकृति मिली थी। इसका उद्देश्य था—ग्रामीण युवाओं के लिए खेल सुविधा हेतु मिनी स्टेडियम का निर्माण।
लेकिन योजना का “मैदान” अभी तक धरातल पर नजर नहीं आया, जबकि पैसा उड़ान भर गया।
ग्राम पंचायत बड़ेकनेरा और राजागांव, दोनों ने ही लगभग 15.80 लाख रुपये की राशि कार्य प्रारंभ से पहले ही ठेकेदार को चेक के माध्यम से दे दी।
⚠️ अधिकारियों के दबाव की बात, ठेकेदार ‘नियत’ बताया गया
दोनों पंचायत सचिवों ने जांच में साफ कहा है कि —
“जिला पंचायत कार्यालय में पदस्थ सहायक परियोजना अधिकारी गजेन्द्र कश्यप और डाटा एंट्री ऑपरेटर मनीष पटेल के कहने पर ही राशि ठेकेदार विवेक कुमार गावड़े (ग्राम ठाकुरटोला, जिला राजनांदगांव) को दी गई। उन्होंने कहा था कि यही ठेकेदार कार्य करेगा।”
इस बयान ने जिला पंचायत कार्यालय तक भ्रष्टाचार की परतें खोल दी हैं।
? अब सवालों की फेहरिस्त लंबी और जवाब अधूरा —
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जब निर्माण कार्य का मूल्यांकन ही नहीं हुआ, तो ठेकेदार को इतनी बड़ी रकम क्यों और किस अधिकार से दी गई?
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क्या यह पूरा प्रकरण पंचायतों और जिला पंचायत अधिकारियों की मिलीभगत का परिणाम नहीं है?
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आखिर वसूली की प्रक्रिया कब शुरू होगी, जबकि जांच में तथ्य स्पष्ट हो चुके हैं?
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क्या इस प्रकार का “कागजी विकास” ही नया प्रशासनिक मॉडल बन गया है?
?️ प्रशासन का जवाब – “जांच जारी, दोषी बचेंगे नहीं”
इस पूरे मामले पर जब शौर्यपथ ने अनुविभागीय अधिकारी अजय उरांव से चर्चा की, तो उन्होंने कहा —
“जांच जारी है, और जो भी दोषी पाया जाएगा, उससे वसूली की जाएगी — चाहे वह प्रशासनिक अधिकारी ही क्यों न हो।”
लेकिन यह कथन भी अब जनता के मन में भरोसा नहीं जगा पा रहा। कारण साफ है — घोटाले का पैसा चला गया, मैदान बना नहीं, और कार्रवाई अब तक अधर में।
? जनता पूछ रही — वसूली कब, जिम्मेदारी किसकी?
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की जनहित नीति और विकास की पारदर्शी छवि को ऐसे मामले कलंकित कर रहे हैं। अगर शासन ने तत्काल सख्त कार्रवाई नहीं की, तो यह घोटाला आने वाले समय में ग्रामीण विकास योजनाओं की विश्वसनीयता पर स्थायी चोट कर सकता है।
? निष्कर्ष / संपादकीय टिप्पणी
कोंडागांव का यह मामला केवल “एक पंचायत” की कहानी नहीं, बल्कि यह बताता है कि विकास योजनाओं की जड़ें जब ईमानदारी से नहीं सींची जातीं, तो भ्रष्टाचार का पौधा स्वयं फल देने लगता है।
अब सवाल सिर्फ 26 लाख की वसूली का नहीं — बल्कि जनधन की रक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही की पुनःस्थापना का है।