दुर्ग। शौर्यपथ।
लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि जनता और प्रशासन के बीच की सबसे मजबूत कड़ी माने जाते हैं। शहर की जनता ने भी इसी विश्वास के साथ शहरी सरकार की मुखिया के रूप में श्रीमती अलका बाघमार को चुना था—उम्मीद थी कि वे आने वाले पांच वर्षों तक जनता और प्रशासन के बीच सेतु का कार्य करेंगी।
परंतु अब वही जनता पूछ रही है कि क्या यह सेतु सिर्फ एक तरफ से ही जुड़ा है?
प्रशासनिक अधिकारी आते-जाते रहते हैं, उनका स्थानांतरण सामान्य प्रक्रिया है—
परंतु जनता का विश्वास हर बार चुनाव में तय होता है।
इसलिए जब निगम प्रशासन बस स्टैंड पार्किंग में खुलेआम हो रही लूट पर मौन साधे रहता है और कार्रवाई केवल इंदिरा मार्केट पार्किंग तक सीमित रहती है, तब सवाल उठना लाज़मी है—
क्या यह प्रशासनिक निष्पक्षता है या महापौर की भेदभावपूर्ण नीति?
तक़िया पारा वार्ड के पार्षद खालिद रिज़वी ने इंदिरा मार्केट पार्किंग में तय दर से अधिक वसूली का मुद्दा उठाकर जनता के बीच चर्चा का विषय बना दिया,लेकिन सवाल यह भी है कि बस स्टैंड पार्किंग, जहां समान गड़बड़ी जारी है, वहां निगम प्रशासन आँख मूंद कर क्यों बैठा है? क्या वहां किसी जनप्रतिनिधि या प्रभावशाली व्यक्ति का हित जुड़ा है? या फिर यह मुद्दा राजनीतिक सुविधा के तराजू पर तौला जा रहा है?
दुर्ग शहर में हर पार्किंग स्थल—चाहे वह कलेक्टर परिसर का हो या अस्पताल क्षेत्र का, तय दर से अधिक वसूली की खुली लूट चल रही है। इसके बावजूद निगम प्रशासन की कार्रवाई का निशाना सिर्फ इंदिरा मार्केट क्यों बना हुआ है?
जनता का कहना है कि यह “न्याय नहीं, भेदभाव की नीति” है।
वहीं, शहर के जानकार यह भी कहते हैं कि जब से ‘बाघमार सरकार’ ने सत्ता संभाली है, शहर की तस्वीर और बिगड़ी है।अतिक्रमण बढ़े हैं, यातायात अव्यवस्थित हुआ है, और आवारा मवेशियों ने सड़कों को कब्जा लिया है, परंतु महापौर का ध्यान सिर्फ “प्रोटोकॉल” वाले कार्यक्रमों तक सीमित दिखाई देता है।
जनता का व्यंग्य भी अब चर्चा में है —
“जहां वोट नहीं, वहां नोटिस नहीं — यही है बाघमार नीति!”
राजनीतिक गलियारों में यह भी कहा जा रहा है कि अगर आज दुर्ग में निगम चुनाव फिर से हों, तो महापौर अलका बाघमार की जमानत जब्त होना तय है। बीजेपी पार्षदों के भीतर भी इस बात को लेकर नाराज़गी है कि विकास कार्य कागजों पर हैं जमीनी स्तर पर शून्य , वही ठेकेदारों को भुगतान बिना काम के हो रहे हैं।
जनता सवाल कर रही है —क्या महापौर बाघमार संविधान की शपथ के प्रति जवाबदेह रहेंगी या फिर सत्ता सुख के आगे संवैधानिक मूल्यों की बलि चढ़ेगी?
दुर्ग शहर अब एक ही उम्मीद पर टिका है —कि शहरी सरकार भेदभाव की नीति से ऊपर उठकर निष्पक्षता की राह चुने,वरना आने वाला चुनाव इस मौन को जवाब में बदल देगा।