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“जब जांच बनी ढाल — चिलपुटी स्कूल प्रकरण में प्राचार्य कृष्णा सिंह को बचाने की साजिश?” “बेटा करता रहा चौकीदारी, प्राचार्य की शह पर चलता रहा ‘बाप के नाम वेतन’ खेल” Featured

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दीपक वैष्णव की ख़ास रिपोर्ट

कोंडागांव / शौर्यपथ / कोंडागांव जिले के चिलपुटी स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में हुई एक गंभीर कहानी अब झूठे जांच-प्रतिवेदनों और प्रशासनिक मिलीभगत के आरोपों के केंद्र में आ गई है। दैनिक अख़बार में प्रकाशित खबर के बाद सूचना का अधिकार (RTI) से प्राप्त दस्तावेजों ने खुलासा किया है कि विद्यालय के पूर्व प्रभारी प्रिंसिपल कृष्णा सिंह के पक्ष में कथित तौर पर मंगाई गई और अधूरी जांच रिपोर्ट तैयार कर प्रशासन को गुमराह करने का प्रयास किया गया।

पत्रकारों व ग्रामीणों की शिकायत का सार:
खबरों में यह आरोप था कि प्रधानाचार्य कृष्णा सिंह ने अपने पद के दुरुपयोग के तहत चौकीदार श्यामलाल यादव के पुत्र को स्कूल में कार्य करवा लिया — यानी “बाप की जगह बेटा” को सरकारी वेतन पर काम पर लगाया गया। शिकायत में यह भी कहा गया कि चौकीदार स्वास्थ्‍य खराब होने का बहाना कर रहा है, जबकि उसका पुत्र नियमित रूप से स्कूल में उपस्थित दिखाया गया। इस खबर के बाद जिला प्रशासन ने जांच कराई — पर उसी जांच की प्रतिवेदनों में ऐसे कई अंतर पाए गए जो शंकास्पद हैं।

RTI दस्तावेजों और जांच रिपोर्ट में पायी गई गड़बड़ियाँ (मुख्य बिंदु)

गैर-व्यावहारिक बयान और अभावित गवाहों का उल्लेख — जांच रिपोर्ट में केवल स्कूल के पदस्थ शिक्षकों का उल्लेख है, किन्तु किसी भी शिक्षक के बयान के साथ उनका नाम, दिनांक या हस्ताक्षर नहीं जोड़ा गया। ऐसे अनाम—निराधार बयानों को रिपोर्ट में तथ्य के रूप में पेश किया गया है।
   रात-कार्यकर्ता का दिन में 'पुत्र द्वारा खाना पहुँचाने' जैसा विरोधाभासी बयान — रिपोर्ट में लिखा गया है कि चौकीदार का पुत्र रोज स्कूल खाना पहुँचाया करता था; जबकि चौकीदार की ड्यूटी रात्रि में है — रात में चौकीदार विद्यालय की निगरानी करता है और दिन में शिक्षक उपस्थित रहते हैं। यह तर्क व व्यावहारिकता से मेल नहीं खाता।
 श्रमिक की अस्वस्थता एवं चिकित्सीय दस्तावेजों का समय-क्रम — सूत्रों व RTI से मिली जानकारी के अनुसार चौकीदार का मेडिकल रिकॉर्ड और चिकित्सीय प्रमाणपत्र पत्रकार के स्कूल पहुंचने व खबर प्रकाशित होने के कुछ ही दिनों पहले विद्यालय/विभाग में जमा कराए गए थे, जिससे शक उठता है कि मेडिकल दस्तावेज घटनाक्रम के अनुरूप बाद में तैयार कर दिए गए।
   जांच समिति का गठन और जिम्मेदारियों का अनियमित वितरण — जांच समिति में नरेंद्र कुमार नायक (प्राचार्य) को जांच अधिकारी व इरसाद (इरशाद) अंसारी (सहायक विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी) को प्रस्तुतकर्ता नामित किया गया था। हालांकि RTI प्रतिलेखों से प्रतीत होता है कि ये अधिकारी स्वयं पूर्वप्रभारी के अनुकूल रिपोर्ट तैयार करने में सक्रिय रहे।
  चौकीदार की वास्तविक स्थिति — स्थानीय सूत्रों का कहना है कि श्यामलाल यादव वर्षों पहले लकवे से प्रभावित हुए थे और वे स्वयं दैनिक कार्य करने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे व्यक्ति के स्थान पर पुत्र का अनियमित तौर पर नियुक्त/काम करवाने के आरोपों की गंभीरता और जांच की आवश्यकता बनती है।

दस्तावेज क्या कहते हैं — निष्पक्षता बनाम छिपाने की साज़िश
RTI से प्राप्त जांच प्रारूप व शासकीय आदेशों के संलग्न प्रतिलिपियों का विश्लेषण दर्शाता है कि जांच समिति ने मूलभूत प्रक्रिया — गवाहों के साक्ष्य, हस्ताक्षर, दिनांक और चिकित्सीय प्रमाणों की वैधता — पर समुचित प्रश्न नहीं उठाए या उठाकर भी सही दस्तावेज नहीं दिए। इससे यह आशंका जोर पकड़ती है कि रिपोर्ट को घटना के अनुरूप मोड़कर तैयार किया गया, ताकि पूर्वप्रभारी को अनावश्यक लाभ/रक्षा दी जा सके।

स्थानीय प्रतिक्रिया और माँगें
ग्रामवासी, शिक्षक व स्थानीय अभियंताओं ने कहा कि यदि ऐसा सच है तो संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए — न केवल रिपोर्ट तैयार करने वाले सदस्यों के विरुद्ध बल्कि उस प्रकरण की वास्तविकता छिपाने के लिए मंथन करने वालों के विरुद्ध भी। ग्रामीणों ने स्पष्ट मांग की है कि इस मामले की स्वतंत्र रूप से पुनः जांच कराई जाए और यदि आवश्यकता हो तो FIR के तहत धाराओं के मुताबिक कार्रवाई की जाए (संभावित धाराएँ — धोखाधड़ी, सरकारी कागजातों में हेराफेरी/झूठे दस्तावेज, सार्वजनिक पद का दुरुपयोग इत्यादि)।


    

क्या कहा जाना चाहिए प्रशासन को — सुझाव
 इस मामले की निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच तृतीय-पक्ष (जिला से बाहर) अधिकारी अथवा एसपी/डीएम स्तर द्वारा करवाई जाए।
जांच समिति की ओर से पेश की गई रिपोर्ट में दिये गए सभी बयानों के मूल साक्ष्य (हस्ताक्षरित बयान, उपस्थिति सूची, चिकित्सा प्रमाण) सार्वजनिक किए जाएं।
यदि जांच में अनियमितता सिद्ध होती है तो तत्काल अनुलग्न अधिकारियों/जांच सदस्यों के विरुद्ध अनुशासनात्मक व आवश्यक कानूनी कार्यवाही की जाए। चौकीदार व उसके पुत्र की नियुक्ति/भुगतान संबंधी समस्त दस्तावेजों की भी स्वतंत्र ऑडिट करवाई जाए।

 प्रेस की भूमिका और प्रशासन की जवाबदेही
यह मामला सिर्फ एक शिक्षक बनाम चौकीदार का मामूली विवाद नहीं है; यह सार्वजनिक भरोसे और सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता से जुड़ा प्रश्न है। मीडिया द्वारा उठाई गई शिकायतों पर प्रशासन को पारदर्शिता के साथ जवाब देना होगा। वर्तमान RTI दस्तावेजों व प्राप्त जानकारियों के आधार पर यह आग्रह किया जा रहा है कि कागजी रिपोर्टों के बारे में प्रशासन जल्‍दीबाजी में निष्कर्ष पर न पहुंचे — बल्कि सत्यापन के लिए स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करे, ताकि दुहराव और संभावित साज़िशों से बचा जा सके।

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शौर्यपथ