दुर्ग / शौर्यपथ / किसी भी शहर के विकास में सबसे महत्तवपूर्ण विभाग अधोसंरचना का ही होता है अगर यही विभाग भर्राशाही की चपेट में आ जाये तो शहर के विकास की सिर्फ बाते ही होगी विकास नहीं होगा . २० साल निगम में भाजपा की सत्ता रही और विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने हमेशा से शहर के धीमी रफ़्तार के विकास पर भाजपा की सत्ता को घेरा साथ ही रबर स्टाम्प की सरकार का भी ठप्पा लगाया गया दुर्ग की जनता ने इस बार कांग्रेस को मौका दिया किन्तु पिछले एक साल में शहर में विकास के नाम पर सिर्फ मनमानी ही होती रही भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुच गए इन एक साल में दुर्ग निगम की कांग्रेस सरकार में ऐसे कई कार्य हुए जो नियम विरुद्ध हुए वो भी सभी की जानकारी में ..
बिना निविदा के कार्य की परम्परा का हुआ विकास -- पिछले एक साल में दुर्ग निगम में ऐसे कई कार्य हुए है जिनकी निविदा कार्य प्रारंभ होने के बाद हुई है . कार्य के लिए मनचाहे ठेकेदारों को महत्तव देने की इस परम्परा से निर्माण कार्य की गुणवत्ता में गिरावट आयी वही जनप्रतिनिधियों के खासम ख़ास लोगो के बीच ही कार्य वितरण खुले आम होने लगा यही कार्य पिछली सरकार में परदे के पीछे होने पर मिलीभगत का आरोप लगाने वाली तात्कालिक विपक्षी कांग्रेस अब मौन है और सिर्फ स्वविकास की और ध्यान केन्द्रित कर रही है .
जनप्रतिनिधियों का ठेकेदारी में परोक्ष और अपरोक्ष रूप से शामिल होना - जन्प्रतिन्धी जनता की सेवा का वचन देकर सत्ता के गलियारे में पहुंचाते है और ऐसा वर्तमान की बाकलीवाल सरकार ने भी किया किन्तु सत्ता मिलते ही निगम के ठेकेदारी के कार्यो में जनप्रतिनिधि अपने रिश्तेदारों को ज्यादा महत्तव देने लगे तो कई जनप्रतिनिधि ऐसे है कि खुद ही ठेकेदारी करने लगे है ऐसे में कार्य की गुणवत्ता का न्दाज़ा लगा ही सकते है कि किस तरह से कार्य होगा क्योकि यही जनप्रतिनिधि विपक्ष की भूमिका का निर्वहन करते समय अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप लगते हुए नहीं थकते थे अब जब खुद ही ठेकेदारी में आगे आ गए है तो किस बात की जाँच और कैसी कार्यवाही जब ना जाँच का डर हो और ना कार्यवाही की चिंता तो फिर गुणवत्ता का क्या काम जो मिले सब अंदर की प्रथा का शुभारम्भ हो गया बाकलीवाल सरकार में जहां चुने हुए जनप्रतिनिधि जनता के कार्यो से ज्यादा अपने ठेकेदारी में व्यस्त है .
पोस्टर की राजनीती से शहर को कर रहे दिग्भ्रमित -- निगम की बाकलीवाल सरकार जनता के हितो की रक्षा के बजाये स्वयं के गुणगान में व्यस्त है उन्हें न शहर की चिंता है न ही प्रदेश सर्कार के मुखिया की इसका जीता जगता प्रमाण है पोस्टर की की राजनीती का हर कार्य की उपलब्धि शहर के लोगो को पोस्टर के माध्यम से देने का प्रयास करती निगम की बाकलीवाल सरकार के समय अवैध होर्डिंग्स का खेल जोरो पर है और बाजार प्रभारी मौन है महापौर मौन है , गौरव पथ में अतिक्रमण का जोर है वही निगम के बरामदे को बेचने का प्रस्ताव पारित हो रहा है , अधिकारियों के कार्य में दखलंदाजी का नतीजा तो शहर में दुर्गेश गुप्ता के मामले में देख ही लिया कि किस तरह शहर की सरकार एक अधिकारी को प्रभार से हटाने के लिए एक जुट हो गया काश ऐसी ही एक जुटता निगम क्षेत्र के विकास के लिए की होती तो आज शहर के राजेन्द्र पार्क का शौचालय बनकर तैयार हो जाता , इंदिरा मार्केट का शेड तैयार हो जाता , व्यस्तम बाजार इंदिरा मार्केट अतिक्रमण मुक्त हो जाता किन्तु इन सबमे ध्यान ना देकर सर अपने नेता के प्रचार प्रसार में ही ध्यान देने वाली निगम सरकार पर आरोप लगते हुए कई पार्षद अज भी देकेहे जा सकते है . आपसी विवाद की नित नयी गाथा वर्तमान सरकार में देखने को मिलती रहती है .
दुसरो को रबर स्टाम्प कहने वाली कांग्रेस आज खुद एक मुहर के जैसे कर रही कार्य - निगम में पिछले १० साल की सरकार को रबर स्टाम्प कहने वाली कांग्रेस आज खुद एक स्टाम्प की भांति कार्य कर रही है निगम की सरकार का शायद ही कोई फैसला होगा जिसमे दुर्ग विधायक का हस्तक्षेप न हो . चर्चा तो यहाँ तक है कि निगम में कोई भी कार्य हो वोरा बंगले के निर्देश पर ही मूर्त रूप लिया जाता है एक बार फिर शहर को एक ऐसी सरकार मिली जिसका मुखिया खुद की सोंच को भी मूर्त रूप नहीं दे पा रहा शःय्द ही कोई ऐसा कार्य हो जिस पर निगम के मुखिया का स्वतः फैसला हो कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि कौन सा कार्य कब होना किसे करना ये सब निगम कार्यालय में नहीं कही और निर्धारित होता है निगम कार्यालय में तो सिर्फ मुहर लगती है . आअज भी निगम कार्यालय में ऐसे ईई गोस्वामी का वर्चस्व है जिसके कारण निगम के १० लाख की वक्युम मशीन जिसे साल भर पहले खरीदा गया था आज कचरे के ढेर में पडा है , आज भी ऐसे ईई गोस्वामी पर जनप्रतिनिधि भरोसा कर रहे है जो जिला पीडब्ल्यूडी के कार्यो को बिना टेंडर अपने मनपसंद ठेकेदार से करवा कर आज भी बेदाग़ है ,आअज भी निगम के सत्ता प्रमुखों का भरोसा उस ईई पर है जो दीपावली में लोगो को लिफाफे बांटने के आरोप पर मौन है , आज भी ऐसे इंजिनियर पर निगम के जनप्रतिनिधि मौन है जिसने सडक पर उद्यान और नए सीसी रोड पर डामरीकरण कर दिया हो , आज भी निगम का पीडब्ल्यूडी विभाग ये जवाब नहीं दे पा रहा है कि एमआईसी भवन में डेढ़ लाख में लाखो का काम कैसे हो गया कौन से मद से कहा कम हो रहा इसकी भी जानकारी निगम प्रशासन के पास नहीं है .
महापौर और आयुक्त का नहीं तालमेल - दुर्ग निगम शायद प्रदेश की पहली ऐसी निगम है जहाँ कांग्रेस के महापौर और निगम आयुक्त का आपसी तालमेल नहीं और कार्य की जगह सिर्फ एक दुसरे की शिकायतों का दौर चालु है आखिर किस बात से दोनों ही मुखिया में आपस में नहीं बन रही या तो निगम आयुक्त भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे है और निगम महापौर इसका विरोध कर रहे या फिर निगम महापौर भर्ष्टाचार में लिप्त है और आयुक्त इसका विरोध कर रहे है कारण जो भी हो किन्तु इस आपसी खींचातानी से परेशानी सिर्फ निगम क्षेत्र की जनता को हो रही है . चर्चा तो यहाँ तक है कि निगम आयुक्त कार्यो को खुली प्रतिस्पर्धा में करवाना चाहते है वही निगम की कांग्रेस सरकार इसे मनचाहे ठेकेदारों से करवाना चाहती है , निगम आयुक्त दस्तावेजो के आधार पर कार्य को करना चाहते है वही निगम सरकार अपने तरीके से कार्य को करवाना चाहती है . कारण जो भी हो किन्तु सिर्फ चाँद लोगो की वजह से आज दुर्ग निगम क्षेत्र बदहाली की स्थिति में है और जनता त्रस्त ..