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शर्मनाक कूटनीति

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सम्पादकीय लेख /शौर्यपथ / कोरोना के समय भी नकारात्मक कूटनीति के लिए मौका निकाल लेना बेहद अमानवीय और शर्मनाक है। पाकिस्तान 31 मई के बाद से ही अपने यहां स्थित भारतीय दूतावास के अधिकारियों-कर्मचारियों को परेशान करने में जुटा था। सोमवार को यह सूचना भी आ गई कि दो भारतीय दूतावासकर्मी लापता हैं। जो पाकिस्तानी खुफिया बल इस्लामाबाद में भारतीयों को कभी अकेला नहीं छोड़ता, वह उनकी तलाश की कोशिश का दावा कर रहा है। पाकिस्तान का भारतीयों के प्रति जैसा निर्मम व्यवहार रहा है, उसे देखते हुए भारत को कड़ा रुख अपनाना ही चाहिए। कोरोना के समय में पहली बार नई दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास के प्रभारी अधिकारी को बुलाकर यथोचित आपत्ति दर्ज कराई गई है। इतिहास में हम देख चुके हैं, पाकिस्तान भारतीयों को पकड़कर उन पर झूठे आरोप मढ़ने की भी साजिश करता रहा है। नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय को ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास को भी सचेत रहना होगा। अपने लोगों की सुरक्षा के लिए हर संभावना को टटोलना चाहिए और आगे के लिए सावधान रहना चाहिए।
पाकिस्तान के ऐसे व्यवहार की वजह है। 31 मई को ही दो पाकिस्तानी दूतावासकर्मियों को भारत छोड़ने का फरमान सुनाया गया था। ये दोनों पाकिस्तानी एक भारतीय से दस्तावेज लेते और बदले में पैसे व फोन देते पकडे़ गए थे। पकडे़ जाने पर इन्होंने खुद को भारतीय नागरिक बताया, लेकिन पूछताछ में उनकी कलई खुल गई। उन्हें भारत छोड़ना पड़ा। कूटनीति में बदला बहुत चलता है, जिसमें पाकिस्तान शुरू से माहिर है। दोनों भारतीयों को अगर बदला लेने की मंशा से गायब किया गया है, तो इसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम है। येन-केन-प्रकारेण बदला लेने की यह प्रवृत्ति कतई सभ्य नहीं है। इसमें जो बदनामी होती है, उसकी परवाह अब पाकिस्तान को करनी चाहिए। कोई भी देश अपने यहां किसी दूसरे देश के जासूस को स्वीकार नहीं करेगा, लेकिन किसी सामान्य दूतावासकर्मी को परेशान करना कूटनीतिक धर्म या विधान के किसी पैमाने पर तार्किक या न्यायपूर्ण नहीं है। बहुत दुखद है, कोरोना के समय भी घुसपैठ की कोशिशें जारी हैं, आतंकी हमले जारी हैं। चीन की ओर से जमीन का विस्तार जारी है? नेपाल की ओर से नक्शा बदल जारी है? केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने सही कहा है कि हम चीन या पाकिस्तान से जमीन नहीं चाहते, केवल शांति चाहते हैं? वाकई भारत ने कभी किसी की जमीन पर नया या अनर्गल दावा नहीं किया, जो उसका हिस्सा है, उसी की रक्षा के बारे में वह सोचता रहता है।
                                      हमें हर कोण से सोचना होगा। पिछले एक महीने से देश के खिलाफ कुछ पड़ोसी देशों की जो सक्रियता बढ़ी है, कहीं वह भारतीय कूटनीति में इन दिनों दिखती शिथिलता का परिणाम तो नहीं है? भारत कहीं फिर से अपने शत्रुओं का सॉफ्ट टारगेट तो नहीं बन रहा? भारत को अपनी परंपरागत अच्छाई और संवाद से ही अपनी कूटनीतिक समस्याओं का समाधान करना होगा। जैसे को तैसा की नीति ओछी होती है और उसे भलमनसाहत व अच्छाई से ही माकूल जवाब मिलता है। गले मिलना अच्छा है, पर उससे पहले सामने वाले के आस्तीन में देख लेना चाहिए। अफसोस, दक्षिण एशिया में ऐसे पड़ोसी, ऐसे नेता हैं, जो महामारी के दुखद समय में भी घात लगा सकते हैं, इसलिए सावधान रहिए।

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शौर्यपथ