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एक दवा को मंजूरी

सम्पादकीय लेख / शौर्यपथ / भारत में कोरोना संक्रमण के खिलाफ एक दवा को दी गई मंजूरी किसी खुशखबरी से कम नहीं है। हल्के और मध्यम प्रकार के कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए इस एंटीवायरल दवा ‘फेविपिराविर’ को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने अपनी इजाजत दे दी है। न केवल भारत में दवा आधिकारिक रूप से बनेगी, बल्कि यहां दवा बेचने की भी इजाजत मिल गई है। यह दवा जापान में फ्लू के खिलाफ प्रयोग में रही है और कोविड-19 के इलाज में भी इससे काम में लिया जा रहा है। भारतीय कंपनी भी इसके जेनेरिक संस्करण का निर्माण करती है और कोरोना के दिनों में भी कुछ देशों में इसकी आपूर्ति कर रही है। अब यह दवा भारत में भी कोरोना के खिलाफ काम आएगी, लेकिन इसे केवल डॉक्टर की आधिकारिक सलाह या देखरेख में ही लेने की मंजूरी दी गई है। दवा बनाने वाली कंपनी को अपने परीक्षण में बहुत उत्साहजनक नतीजे मिले हैं और अब इस दवा के सामूहिक प्रयोग से इसकी असली ताकत का बेहतर अंदाजा हो सकेगा। विशेषज्ञ मान रहे हैं कि यह दवा ‘गेम चेंजर’ हो सकती है। यह दवा कोरोना के प्रारंभिक चरण में कारगर हो सकती है और कोरोना मामलों को गंभीर अवस्था में जाने से बचा सकती है। आगामी दो महीने में इस दवा के कारगर होने के संबंध में पुख्ता आंकड़े उपलब्ध हो जाएंगे। चूंकि यह दवा बहुत सस्ती है, इसका प्रयोग आसान है, इसलिए भी इसका कारगर होना भारत जैसी विशाल आबादी वाले देश और पूरी दुनिया के लिए बड़ी बात होगी।
जब भारत में कोरोना संक्रमण के कुल मामले 4.12 लाख से ज्यादा हो गए हैं, जब 13 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, तब ऐसी किसी उम्मीद बंधाती दवा को मंजूरी देना और भी जरूरी हो गया था। भारत की बात करें, तो अभी 1.70 लाख से ज्यादा सक्रिय मामले हैं, जिनमें से गंभीर मामले पांच प्रतिशत के करीब पहुंच गए हैं। 95 प्रतिशत से ज्यादा मामले हल्के या मध्यम प्रकार के हैं और इनमें भी जिन मामलों में लक्षण स्पष्ट हैं, वहां यह दवा यदि रामबाण सिद्ध हो जाए, तो यह भारत के लिए बड़ी सफलता होगी।
खास बात यह है कि यह दवा एंटीवायरल है और इन दिनों दुनिया के वैज्ञानिक कोरोना की सीधी दवा या वैक्सीन की बजाय एंटीवायरल दवा बनाने में जुटने लगे हैं। कोरोना से लड़ने में ऐसी और भी दवाओं की जरूरत पड़ेगी। संभव है, विभिन्न चरणों और विभिन्न लक्षणों के लिए अलग-अलग एंटीवायरल दवाएं बनें। लेकिन यह तो मानना ही होगा कि यह कोरोना की सोलह आना पुख्ता दवा नहीं है, अभी भी फिजिकल डिस्टेंसिंग ही सबसे मुकम्मल उपाय है। भारत में लॉकडाउन खुलने के बाद संक्रमण में आई तेजी यह साफ कर देती है कि लोगों ने शारीरिक दूरी बनाए रखने में कोताही बरती है। लोगों को और मुस्तैदी से बताना होगा कि आज कोरोना से बचने के लिए भीड़ से बचना और अनजान लोगों से शारीरिक दूरी बनाना स्वस्थ रहने की बुनियादी शर्त है। ऐसे शोध सामने आ चुके हैं कि मास्क न पहनने पर संक्रमित होने का खतरा 70 प्रतिशत से भी ज्यादा बढ़ जाता है और मास्क पहनने पर खतरा 40 प्रतिशत घट जाता है। जिन देशों ने मास्क का यथोचित प्रयोग किया है, वहां संक्रमण काबू में आ रहा है। बेशक, पुख्ता दवा के मिलने तक कोरोना के खिलाफ जारी युद्ध में मास्क ही असली कवच है।

 

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शौर्यपथ