पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर रहस्यों से भरा हुआ है। पुराणों के अनुसार, पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। इनकी नगरी जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाई। पुरी को चार धाम में से एक माना जाता है। पुरी को धरती का बैकुंठ भी कहा गया है।
इस मंदिर में भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ भगवान विराजमान हैं। चैतन्य महाप्रभु इस नगरी में कई साल रहे। पुरी की रथयात्रा विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा मानी जाती है। इस मंदिर का रसोई घर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर माना जाता है। कितने भी श्रद्धालु मंदिर में आ जाएं, लेकिन यहां अन्न की कभी कमी नहीं होती है। मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी समाप्त हो जाता है। रसोईघर में चूल्हे पर एक के ऊपर एक सात बर्तन रखकर प्रसाद तैयार किया जाता है और सबसे ऊपर वाले बर्तन का प्रसाद सबसे पहले तैयार होता है। मंदिर के शिखर पर लगा पवित्र सुदर्शन चक्र अष्टधातु से निर्मित है। इसे स्थापित करने की तकनीक आज भी रहस्य है। पुरी में आप कहीं भी हों, सुदर्शन चक्र को हमेशा सामने ही पाएंगे। मंदिर के शिखर पर लगा ध्वज हमेशा हवा के विपरीत लहराता है। कहा जाता है कि इस मंदिर के ऊपर से कभी कोई पक्षी या विमान नहीं उड़ पाता है। एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित ध्वज को रोजाना बदलते हैं। कहा जाता है कि अगर एक दिन भी ध्वज नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा। मंदिर के मुख्य गुंबद की छाया किसी भी समय जमीन पर नहीं पड़ती है। महान सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था। उन्होंने वसीयत की थी कि कोहिनूर हीरा इस मंदिर को दान कर दिया जाए।