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कथक के पर्याय बिरजू महाराज का रविवार देर रात निधन हो गया। अब दैनिक भास्कर से खास बातचीत में शास्त्रीय गायक पंडित साजन मिश्र ने बताया, "पंडित बिरजू महाराज दुनिया की इकलौती हस्ती थे, जो शास्त्रीय संगीत की तीनों विधाओं- गायन, वादन और नृत्य के लीजेंड रहे हैं। अगर आज कोई कथक का नाम ही ले लें तो मन में सिर्फ एक नाम उभरेगा- पंडित बिरजू महाराज। इसके पीछे एक लंबी तपस्या है। वे मेरे ससुर थे, इसलिए मैं उन्हें सिर्फ प्रोफेशनली नहीं जानता हूं। उनकी जिंदगी के तमाम पहलू देख चुका हूं।"
दिल का दौरा पड़ा, पोती की गोद में प्राण त्याग दिए
'महाराज जी' के नाम से मशहूर बिरजू महाराज का अगले महीने 85वां जन्मदिन होता। वे पोतियों रागिनी-यशस्विनी और दो शिष्यों के साथ अंत्याक्षरी खेल रहे थे। अचानक दिल का दौरा पड़ा, उन्होंने नजरें ऊपर कीं, पोती की गोद में सिर रखा और प्राण त्याग दिए। देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से अलंकृत बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी, 1938 को हुआ था। लोधी कॉलोनी शमशान स्थल पर जब उनकी चिता सजी तो शिष्यों ने उनकी बंदिश पर हथेलियों से ताल देकर श्रद्धांजलि दी।
2 जगह नाचकर पैसे जुटाए, तब उनके पिता का श्राद्ध हो सका था
पंडित साजन मिश्र ने आगे बताया, "बचपन में उनका नाम था- ब्रजमोहन मिश्र, जो पहले बिरजू और बाद में समय के साथ-साथ पं. बिरजू महाराज हो गया। उनके दादा लखनऊ के नवाब वाजिद अली के यहां राजनर्तक थे। घर में संगीत का माहौल था। लेकिन, माली हालत खराब थी। बचपन में उन्हें पतंग उड़ाने का शौक था। पैसे नहीं होते थे तो वे पतंगवाले बब्बन मियां को नाच दिखाते, तो कुछ पतंगें मिल जातीं। 9 साल के ही थे कि पिता चल बसे। पिता के दसकर्म के लिए भी दो जगह नाचकर पैसे जुटाए, तब जाकर श्राद्धकर्म हो सका था।"
'देवदास' और 'बाजीराव मस्तानी' तक कई फिल्मों में नृत्य निर्देशन किया
साजन मिश्र ने कहा, "कुछ बड़े हुए तो कपिला वात्स्यायन उन्हें दिल्ली ले आईं और एक डांस स्कूल में भर्ती कर दिया। वहां 13 की उम्र में ही वे नृत्य सिखाने लगे। चाचा लच्छू महाराज ने कई बार फिल्मों में काम करने का न्योता दिया, लेकिन तब उनकी अम्मा कहा करती थीं कि फिल्मों में काम करोगे तो पुरखों की परंपरा टूट जाएगी। इसलिए फिल्मों में काम नहीं किया। फिर जब सत्यजीत रे ने 'शतरंज के खिलाड़ी' के लिए गीत में मौका दिया तो उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसके बाद 'दिल तो पागल है', 'देवदास' और 'बाजीराव मस्तानी' तक कई फिल्मों में नृत्य निर्देशन किया।
पंडित साजन मिश्र ने आगे कहा, "वे आखिरी वक्त तक खुद को बिंदादीन की ड्योढ़ी (पुश्तैनी घर) का शागिर्द बताते रहे। उनमें पुरखों के प्रति कितना समर्पण था, इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि अभी एक हफ्ते पहले ही उन्होंने कहा था कि जब मेरा अंतिम संस्कार हो तो मेरी राख का कुछ हिस्सा बिंदादीन की ड्योढ़ी तक जरूर पहुंचाना, कुछ गोमती और कुछ बनारस में बहा देना।"