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मुसीबत में मिला अच्छे मौका हाथ से न जाने पाए

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     शौर्यपथ / किसी देश के इतिहास में ऐसे मौके बहुत नहीं होते, जब विकास की राह बदलने का मौका मिलता है। देश में यह ऐतिहासिक मौका ‘आत्मनिर्भर भारत’ को महत्व देने के साथ ही विकास के स्थानीयकरण पर केंद्रित है। यह भारत में आर्थिक तरक्की की राह बदलने की एक विलक्षण सोच है। स्वायत्तशासी विकास की रणनीति का मुख्य तत्व एक ऐसी आर्थिक संरचना का निर्माण है, जो देश में उपलब्ध सभी संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता के लिए सबसे मुफीद हो। इसमें अपने संसाधनों पर आधारित राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के आत्मनिर्भर विकास, सार्वजनिक व निजी उद्यमों के बीच संबंध-सहयोग और एमएसएमई व ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण जैसे उपायों को रणनीति का अभिन्न अंग बनाया गया है।
आर्थिक पैकेज का यह प्रयास आर्थिक सुधारों को एक विशेष क्रम में रखने की वकालत भी करता है। यह एक ऐसी बहस है, जो 1991 के बाद से शैक्षणिक और नीतिगत स्तर पर होती रही है। राहत पैकेज का विवरण वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 13 से 17 मई तक पांच दिन में विस्तार से बताया है। प्रयास यह है कि लॉकडाउन से बाहर निकलने के साथ ही अर्थव्यवस्था के सामने जो प्रमुख चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं, उन्हें संभालने के साथ-साथ उन प्रवासियों को लाभदायक रोजगार देना, जो शहर लौटना नहीं चाहते। प्रयास यह भी है कि आपूर्ति में पैदा व्यवधानों को दूर किया जाए। यह दर्ज करना दिलचस्प है कि इस आर्थिक पैकेज कार्यक्रम के तहत पांच अलग-अलग क्षेत्रों पर गौर करना प्रस्तावित है। सबसे अव्वल है, प्रभावित लोगों को सामाजिक सुरक्षा देना। दूसरा, ऋण और नकदी प्रवाह से समर्थन करना। तीसरा, बुनियादी ढांचा निर्माण को वित्तीय सहयोग देना। चौथा, शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक आधारित सुधार करना। पांचवां, श्रम बाजार में नीतिगत सुधार करना। खासकर कोयला, रक्षा, खनिज, नागरिक उड्डयन, अंतरिक्ष व परमाणु ऊर्जा, रियल इस्टेट आदि में श्रम सुधार।
वैश्विक स्तर पर हम पाते हैं कि भारत द्वारा उठाए गए कदम अन्य देशों से मेल खाते हैं। विशिष्ट पैकेज के आकार, दायरे और आर्थिक सुधार कुछ भिन्न हो सकते हैं, लेकिन मजबूत नीति के लिए तय क्षेत्र कमोबेश समान हैं। आर्थिक पैकेज में सरकारों ने राजकोषीय, मौद्रिक व वृहद आर्थिक मजबूत नीतियों, दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति, उपकरण व स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे, टीका विकसित करने, बेरोजगारों, कमजोर और बीमार व्यक्तियों को राहत देने, आवश्यक आपूर्ति सुनिश्चित करने, खाद्य सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया है।
आर्थिक पैकेज के आकार को देखें, तो कुछ देशों में दिए गए पैकेज ज्यादा हैं, जैसे जापान में जो आर्थिक पैकेज दिया गया है, वह वहां की जीडीपी का 21.1 प्रतिशत है, बेल्जियम में 13.5 प्रतिशत, ईरान में 13.7 प्रतिशत, सिंगापुर में 91.3 प्रतिशत और अमेरिका में 11 प्रतिशत है। अन्य ज्यादातर विकसित या विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में दिए गए आर्थिक पैकेज उनकी जीडीपी का तीन से आठ प्रतिशत तक हैं। कुछ अफ्रीकी और एशियाई देशों में इससे भी कम आर्थिक पैकेज दिया गया है। भारत में दिया गया कुल आर्थिक पैकेज जीडीपी के 11 प्रतिशत से भी ज्यादा है। दुनिया के उभरते देशों के बीच देखें, तो भारत में दिया गया पैकेज अधिक ही है। मौजूदा स्थिति में आर्थिक पैकेज के पीछे जो मूल भावना है, उसे तेजी से लागू करने की जरूरत है। संबंधित मंत्रालयों को अति-सक्रियता से काम करना होगा, सामूहिक रूप से आगे बढ़ने के लिए सबको एक साथ लाना होगा। नौकरशाही को प्रेरित करना होगा।
दो अन्य खास कारक और भी हैं। एक यह कि देश में ज्यादा पूंजी वाली दीर्घकालिक परियोजनाओं के वित्त पोषण को संस्थागत तंत्र की जरूरत है। आईडीबीआई और आईसीआईसीआई के निजीकरण के बाद से भारत ने बहुत हद तक औद्योगिक विकास के वित्त पोषण को गंवा दिया है। जिन वित्तीय संस्थाओं पर बड़ी कंपनियां निर्भर रहती हैं, वे पूंजी संग्रह में धीमी वृद्धि का सामना कर रही हैं। दूसरा कारक, आरबीआई को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वह सरकारी बैंकों (पीएसबी) के साथ मिलकर बेहतर काम करे। जो सरकारी सहायता मिली है, उसे सरकारी बैंकों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

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शौर्यपथ