शौर्यपथ / सब्जी उत्पादकों का दर्द
देशव्यापी लॉकडाउन में लगातार हो रहे विस्तार से सब्जी उत्पादक किसानों की स्थिति बेहद खराब होती जा रही है। वाहनों की आवाजाही बंद होने से सब्जियां मंडी तक नहीं पहुंच पा रही हैं, जिससे खेतों में सब्जियों की कीमतें लगातार कम हो रही हैं। इससे किसानों के लिए लागत मूल्य निकालना भी मुश्किल होता जा रहा है। यही वजह है कि औने-पौने दाम में भी किसान खेत में ही अपनी फसल बेच रहे हैं। न बिकने पर वे फसलों को नष्ट भी कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में सब्जी उगा रहे किसानों के हित में सरकार को त्वरित कदम उठाना चाहिए। फौरन ऐसी व्यवस्था बने कि सब्जियां मंडियों तक पहुंचें और किसानों को लागत मूल्य मिल सके। इससे शहरी बाजार में सब्जियों की कीमतें भी कम होंगी।
तकनीकी शिक्षा के खिलाफ
हाल ही में मिलिट्री इंजीनिर्यंरग सर्विस के 9,304 पद समाप्त करने को रक्षा मंत्री ने मंजूरी दे दी। यह सूचना जितनी दुखद है, उससे कहीं ज्यादा समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता (क्योंकि अस्थाई कर्मचारियों की नियुक्ति से किसी व्यक्ति विशेष को तो फायदा होगा, पर कर्मियों को उचित वेतन नहीं मिलेगा) बढ़ाने वाली भी है। लिहाजा केंद्र सरकार को किसी फैसले के सकारात्मक पहलू के साथ-साथ नकारात्मक पक्ष पर भी ध्यान देना चाहिए। नकारात्मक पक्ष की बात करें, तो जिस तरह से रेलवे में भी तकनीकी छात्रों के लिए बहुत से पद समाप्त किए गए हैं और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निजी क्षेत्र में बदला जा रहा है, उससे तकनीकी छात्र हताश हो रहे हैं। इससे आने वाले समय में तकनीकी शिक्षा के प्रति छात्रों की रुचि कम हो जाएगी। यह भारत जैसे विकासशील देश के लिए घातक स्थिति होगी।
गहराता सीमा विवाद
भारत और नेपाल में इन दिनों सीमा विवाद चल रहा है। आखिर यह क्यों हो रहा है? दरअसल, नेपाल के व्यापार और राजनीति में मधेसियों का अच्छा-खासा वर्चस्व रहा है। विगत वर्षों में राजनीति में मधेसियों को किनारे किए जाने से नाराज भारत ने कई दिनों तक नेपाल के लिए सप्लाई भी रोक दी थी, जो बात उसे नागवार गुजरी थी। वहां जब से वामपंथी सरकार बनी है, उसका झुकाव स्वाभाविक रूप से चीन की तरफ भी बढ़ा है। चूंकि विश्व पटल पर कोरोना संकट चीन के लिए गले की हड्डी बन गया है, और विश्व स्वास्थ्य महासभा में उसकी जबावदेही तय करने की बात भारत ने भी कही है, इसलिए लिपुलेख दर्रे के बहाने उसने नेपाल के कान भरे हैं। भारत को तंग करने के लिए चीन बहाना खोजता रहता है। इस समय भी भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए उसने नेपाल को उकसाया है, जबकि वह खुद अभी एक बडे़ भंवर में फंसा हुआ है। अब देखने वाली बात यह है कि चीन-नेपाल की मूक दोस्ती कितनी दूर तक जाती है। डर यह है कि कहीं नेपाल भी चीन का उपनिवेश न बन जाए?
शर्मसार करती सियासत
मजदूरों के नाम पर सियासत करके कुछ लोग अत्यंत घृणित व मानवता को शर्मसार करने वाली मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। जो मजदूर रोजी-रोटी के चक्कर में गांव से पलायन करके शहर आए, वहां आज उनके लिए सिवाय पीड़ा के कुछ नहीं बचा है। आज भी पैदल यात्रा कर रहे मजदूरों की दशा हृदय को उद्वेलित करती है, लेकिन लोग इस पर भी राजनीति कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि अति आधुनिक बनने के चक्कर में इंसान संवेदनशून्य हो गया है। इस जटिल परिस्थिति में मजदूरों की सहायता के लिए बेहतर विकल्प तलाशे जाने चाहिए, न कि उन पर राजनीति करनी चाहिए। इस तरह की सियासत तुरंत बंद हो।