मेलबॉक्स / शौर्यपथ / अगर अमेरिका आत्म-चिंतन करता, तो जान पाता कि उसके यहां रंगभेद को लेकर बदलाव कागजी ही हैं और जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। दुनिया के इस स्वयंभू नेता को यह समझना चाहिए कि अक्सर जमीनी सच्चाई कागजी दावों से अलग होती है। यह किसी भी देश में हो सकता है, इसलिए मानवाधिकार, धार्मिक सहिष्णुता, व्यक्तिगत आजादी जैसे मुद्दों पर दुनिया को धमकाना और उन पर अपनी राय थोपना ठीक कतई नहीं है, खासतौर से भारत जैसे लोकतांत्रिक देश पर। रही बात अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की, तो चुनावी वर्ष में वह कोरोना और रंगभेद, दोनों संकटों को ठीक से संभाल नहीं पाए और अपनी खीझ चीन, विश्व स्वास्थ्य संगठन और रंगभेद विरोधियों पर अलग-अलग तरीकों से उतार रहे हैं।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद
लॉकडाउन हुआ अनलॉक
जब भारत में लॉकडाउन किया गया था, तब सभी इसके अनलॉक होने का इंतजार कर रहे थे। उस समय परिस्थितियां भी इतनी विपरीत नहीं थीं। तब कोरोना के इक्का-दुक्का मरीज ही मिल रहे थे, लेकिन आज प्रतिदिन हजारों की संख्या में नए मरीज सामने आ रहे हैं। यह सही है कि लॉकडाउन की वजह से देश को काफी आर्थिक नुकसान हुआ, लेकिन क्या अभी सही समय था अनलॉक का? अब तक सिर्फ शहर संक्रमित थे, लेकिन अनलॉक होने के बाद गांवों की हालत भी खराब हो जाएगी। सड़कों पर पहले की तरह भारी भीड़ दिखने भी लगी है। सुरक्षा उपायों को भी नजरअंदाज किया जा रहा है। ऐसे में, सरकार को अपने फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए। लॉकडाउन में ज्यादातर लोग मजबूरी में ही सही, घर में जरूर थे, लेकिन अनलॉक-1 की घोषणाा होते ही वे अब घरों से बाहर निकलने लगे हैं, जिससे कोरोना के फैलने का खतरा बढ़ गया है।
मधु त्रिवेदी, नारायणा गांव, नई दिल्ली
स्कूल न खुलें अभी
सरकार ने अब स्कूलों को खोलने की अनुमति दे दी है। हालात देखकर इस पर फैसला लिया जाएगा। लेकिन क्या स्कूल अभी बच्चों के लिए सुरक्षित हैं? भले ही बड़े लोगों की तुलना में बच्चे कम संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन उन पर खतरा कहीं ज्यादा है, खासकर छोटे बच्चों पर। इसीलिए स्कूल खोलना अभी जोखिम भरा फैसला होगा। इस पर राज्य सरकारों को जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, आखिर यह नई पीढ़ी के जीवन का सवाल है। हम चाहें, तो घर में ही बच्चों को पढ़ाने के तौर-तरीके विकसित कर सकते हैं। ऑनलाइन कक्षा के माध्यम से ऐसा किया भी गया है। ऐसी ही रणनीति आगे भी अपनाई जा सकती है। बच्चों को स्कूल बुलाना इसलिए भी जोखिम भरा होगा, क्योंकि बच्चे दो गज की दूरी का शायद ही वे पालन कर पाएंगे। फिर, वे यहां-वहां हाथ भी लगाएंगे, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है। ऐसे में, किसी स्कूल में एक भी नया संक्रमण काफी सारे बच्चों को बीमार बना सकता है। लिहाजा सरकार अपने फैसले पर फिर से मंथन करे।
रजत यादव, सुजानपुर, कानपुर
नई उपलब्धि
कहते हैं, रास्ते में चाहे जितनी भी परेशानी आए, यदि सफल होने की चाह रहे, तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। कोरोना महामारी के बीच भी अमेरिका ने अपने अंतरिक्ष मिशन को पूरा करने की आस नहीं छोड़ी। नौ वर्षों के अथक परिश्रम और प्रयासों के बाद वह इतिहास रचने में सफल हो गया। हालांकि, पहले प्रयास की राह में मौसम बाधा बन गई, मगर 31 मई को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष की ओर रवाना कर दिया गया। यह पहला मौका है, जब कोई निजी अंतरिक्ष यान से अपने मिशन पर रवाना हुआ है। नासा ने इस मिशन को पूरा करके अमेरिका के खाते में एक नई उपलब्धि दर्ज करा दी है।
निशा कश्यप, औरंगाबाद, बिहार