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दुर्ग की कांग्रेस : परिवारवाद से मुक्ति ही बचाएगी संगठन का भविष्य, और भाजपा का बढ़ता कद क्या कांग्रेस को करेगा कमजोर Featured

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संपादकीय लेख / शौर्यपथ /

दुर्ग की राजनीति में हाल के घटनाक्रम यह साफ संकेत देते हैं कि कांग्रेस यदि आत्ममंथन नहीं करती तो भविष्य और संकटपूर्ण हो सकता है। एक ओर विधायक गजेंद्र यादव का तेजी से उभार और कैबिनेट मंत्री के रूप में उनकी सक्रिय भूमिका है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस उसी पुराने परिवारवाद के बोझ तले संघर्ष करती दिख रही है। यही प्रवृत्ति कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी बन चुकी है।

लगातार हार और कार्यकर्ताओं का मोहभंग
पिछले विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए चेतावनी की घंटी थे। लगातार सात चुनाव में मैदान में उतरे पुराने चेहरे पर जनता ने विश्वास खो दिया। इस बार तो हार का अंतर चौंकाने वाला रहा — लगभग 50 हज़ार वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी अरुण गोरा की पराजय।
ऐसे नतीजे यह साबित करते हैं कि जनता अब परिवारवाद से ऊब चुकी है। वहीं कार्यकर्ताओं में भी लंबे समय से उत्साह की कमी साफ झलकने लगी है।

गजेंद्र यादव : सत्ता पक्ष में मजबूत चेहरा
दुर्ग से विधायक गजेंद्र यादव का कैबिनेट मंत्री बनना स्थानीय राजनीति की पूरी तस्वीर बदल चुका है। वे लगातार सक्रिय रूप से जनता से जुड़े हैं और शासन प्रशासन में उनकी पकड़ मज़बूत दिखाई देती है।
आज की स्थिति यह है कि दुर्ग की राजनीति में वे सबसे प्रभावशाली नेता बनकर उभरे हैं। ऐसे में परिवारवाद से बंधी कांग्रेस उनके सामने कहीं टिकती नहीं दिख रही।

संगठन की असली ज़रूरत : नया नेतृत्व, नई सोच
अगर कांग्रेस को दुर्ग में फिर से मजबूत होना है तो सबसे पहले उसे परिवारवाद की बेड़ियों से मुक्त होना होगा। ज़रूरत ऐसे नेतृत्व की है जो—

कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चल सके,

संगठन को बूथ स्तर तक मज़बूत कर सके,

और जनता के बीच यह संदेश दे सके कि कांग्रेस अब “किसी परिवार की पार्टी” नहीं, बल्कि “जनता और कार्यकर्ताओं की पार्टी” है।

केंद्र और प्रदेश के लिए चुनौतीपूर्ण सवाल
अब सवाल कांग्रेस के केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व पर है। क्या वे फिर से कमजोर होते संगठन को उसी परिवार के हवाले करेंगे जिसने चुनाव दर चुनाव पार्टी को हार की ओर धकेला है?
या फिर वे जमीनी नेतृत्व को आगे बढ़ाने का साहस दिखाएंगे? यही फैसला आने वाले समय में कांग्रेस का भविष्य तय करेगा।

निष्कर्ष : आत्ममंथन की घड़ी
आज जब गजेंद्र यादव सत्ता पक्ष में मज़बूती से खड़े हैं, तब कांग्रेस संगठन दुर्ग में लगभग निष्क्रिय दिखाई देता है। यह कांग्रेस के लिए आत्ममंथन की सबसे गहरी घड़ी है।
यदि पार्टी परिवारवाद से बाहर निकलकर नई सोच और नया नेतृत्व देती है तो संगठन फिर से कार्यकर्ताओं और जनता का विश्वास जीत सकता है। अन्यथा, कांग्रेस दुर्ग की राजनीति में मात्र इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाएगी।

?️ (यह लेख राजनीती से जुड़े व्यक्तियों से चर्चा के आधार पर एवं वर्तमान में कांग्रेस की दुर्ग में राजनैतिक स्थिति व कार्यकर्ताओ की मंशा पर आधारित है , समाचार पत्र की नीति से इनका संबन्ध अनिवार्य नहीं है।)

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