April 24, 2025
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शौर्य की बाते ( सम्पादकीय )

शौर्य की बाते ( सम्पादकीय ) (164)

    रायपुर। शौर्यपथ।

  दुर्ग में हाल ही में मासूम बच्ची के साथ हुई वीभत्स घटना ने हर किसी को झंझोर कर रख दिया इस वीभत्स घटना की निंदा सभी वर्ग के लोगों द्वारा किया जा रहा है समाचार पत्रों में न्यूज़ चेनल में रिश्तो को कलंकित और मासूम बच्ची के लिए गहन दुख की बात कही जा रही है वहीं पुलिस प्रशासन द्वारा मामले पर माननीय न्यायालय में मजबूती के साथ साक्ष्य रखने और आरोपी को जल्द से जल्द सजा हो इस बात के लिए भी कड़े कदम उठाए जा रहे हैं .वैशाली नगर विधायक द्वारा वकीलों से अपील की जा रही है कि माननीय न्यायालय में मासूम बच्ची के पक्ष में मजबूत साक्ष्य रखें ताकि आरोपी को मृत्युदंड मिले हर कही सिर्फ इसी बात की चर्चा आम है कि दोषियों पर कड़ी से कड़ी  कार्यवाही हो वहीं इसका अगर दूसरा पहलू देखा जाए तो इस जघन्य अपराध और शहर में हुए अन्य अपराधों में अपराधी के लिए कुछ बातें सामान है ..
  सुखा नशा में कुछ अंग्रेजी दवाइयां ऐसी है जो नशे के रूप में इस्तेमाल होती है वही ड्रग विभाग के अधिकारी से चर्चा करने पर यह जानकारी प्राप्त हुई है कि ड्रग विभाग द्वारा लगातार मेडिकल दुकानों का निरीक्षण किया जा रहा है एक अनुमान के मुताबिक पिछले तीन-चार महीना में लगभग 300 से अधिक दुकानों का निरीक्षण किया भी गया वहीं आवश्यकता पडऩे पर पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर तकरीबन दर्जन भर करवाई भी की गई वहीं 40 से 50 मेडिकल दुकानों को नोटिस भी भेजा गया शहर में ड्रग विभाग पुलिस प्रशासन लगातार नशीली दवाइयां के अवैध व्यापार परिवहन पर सख्ती पूर्ण करवाई तो कर रही है बावजूद इसके शहर में सुखा नशा का प्रकोप लगातार बढ़ता ही जा रहा है ऐसे में अब इस तरह के जघन्य और वीभत्स अपराध को रोकने के लिए राजनीति से परे उठकर सभी राजनीतिक दलों को और आम जनता को एक जन अभियान छेडऩे की आवश्यकता है जिससे सुखा नशा करने वालों की पहचान हो और उसके द्वारा जहां से सुखा नशा मिलता है उसे तक पहुंचा जा सके सीढी दर सीढी कार्यवाही बिना जन सहयोग के संभव नहीं.
 राजनीति से परे और एक सभ्य समाज जहां एक बेटी सुरक्षित रह सके और समाज अपराध मुक्त हो इसके लिए जिला प्रशासन पुलिस प्रशासन को दोष देने की अपेक्षा जन सहयोग से समाज में व्याप्त इस सूखे नशे की बुराई से छुटकारा पाया जा सकता है जिस प्रकार से हाल ही के दिनों में लगातार घटनाएं बढ़ रही है और अधिकतर अपराधों में नशा प्रमुख कारण बना हुआ है ऐसे में अगर जन सहयोग ना हो तो इस तरह के अपराधों के साए में कभी भी कोई भी आ सकता है .
  हम जिस समाज में रहते हैं उसे समाज को सुरक्षित रखने के लिए कहीं ना कहीं आमजन को भी विरोध की राजनीती छोड़कर सहयोग की जिम्मेदारी निभानी होगी ताकि और इस तरह के अपराधों को रोकने हेतु जिला प्रशासन पुलिस प्रशासन को भी पूरा सहयोग करना होगा तभी समाज से सूखे नशे का कारोबार खत्म होगा और और खत्म होगी उस पिता की चिंता जिनकी बेटियों घर से बाहर पढ़ाई करने घूमने जाते या अन्य जरुरी कार्यो से घर से बाहर जाति है या माता पिता से दूर होती है . आज एक बेटी के लिए पूरा शहर दुखी है अगर आज नहीं जागे तो सूखे नशे का जाल कभी ना कभी कभी भी किसी को भी अपने आगोश में ले सकता है .

लेख - शरद पंसारी (संपादक - शौर्यपथ दैनिक समाचार )

शौर्यपथ लेख /
           जिनको मेरे सामने आपने अस्तित्व को, अपने ओहदे को चीख चीख कर बताना पड़े मुझे उनसे सम्मान की क्या जरूरत है । जिनके काम मेरे से बनते हों क्या सचमुच मैं उनसे सम्मान की हकदार हूं । जहां मेरी उपस्थिति से काम बनते हो वो मुझे सम्मान क्या देंगें। सच में... खुद के लिए क्या कहूं, निःशब्द हूं.....हैरान हूं । एक स्त्री हूं मैं । एक बार फिर से कहूंगी कि मेरे जैसी सिर्फ मैं ही हूं.....नायाब। जब मुझ जैसा कोई नहीं इसलिए अक्सर आईने में खुदको देख लिया करती हूं । मैं खुद का मान हूं । पर इसमें मेरी उपलब्धि कैसी मुझे बनाने वाला तो कोई और है,  जिसने सिर्फ इंसान बनाये थे । जिनमें कोई भेद नहीं था । खुदको एक इंसान से स्त्री तो मैंने खुद  ही बनाया है और मुझसे कहीं अधिक  पुरुष की  खुदको वर्चस्व में रखने की सोच ने । एक इंसान से स्त्री बनने का रास्ता जितना भयावह रहा उससे बहुत अधिक भयानक सफर है एक स्त्री से फिर इंसान समझे जाने तक का । मैंने ही तो पुरुष को पुरुष बनने दिया,और खुदको कमजोर बनाती गई। पर अब मैं समझ गई हूं कि मैं एक इंसान हूं ।हां ....मुझ में ऐसी बहुत सी खूबियां है जो मुझे दूसरो से अलग करती हैं।  हां सच है..... मुझे जरूरत नहीं किसी पुरुष की । मैं सक्षम हूं हर प्रकार से खुद के लिए । हां ..अगर किसी को जरूरत है मेरी , तो सबसे पहले  मुझे एक इंसान की तरह देखे फिर मुझमें स्त्री को । हां ...मैं समझ चुकी हूं कि .. .... कि मैं एक इंसान हूं  ।  मेरी  इंसान होने की सोच पर मुझे नाज है जो मुझे औरों से अलग करती है। और मेरी यही सोच मेरी दुनियां बदल रही है। जिसमें मैं जी रही हूं अपने अनगिनत रूपों में और अपने ही कैनवास को अनगिनत रंगों  से भर रही हूं। मेरी प्रतिस्पर्धा नहीं किसी से सिर्फ खुदको पहचान चुकी हूं । मेरे सफर ने मुझे मेरे अस्तित्व की  पहचान करा दी है । मुझे गर्व है कि मैं एक स्त्री हूं ।

डॉ. अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग छत्तीसगढ़

 दुर्ग / शौर्यपथ / 6 महीने की जेल यात्रा के बाद भिलाई नगर विधायक देवेंद्र यादव को उच्चतम न्यायालय से बेल मिल गई पिछले साल अगस्त महीने में विधायक देवेंद्र यादव को बलौदा बाजार पुलिस ने हिंसा,अग्निकाण्ड  सहित अन्य आरोपो के आधार पर हिरासत में लिया था पिछले 6 महीने से देवेंद्र यादव की उच्च न्यायालय में बैल एप्लीकेशन लगातार खारिज होती रही और 20 फरवरी को उच्चतम न्यायालय द्वारा देवेंद्र यादव को बेल मिला .देवेंद्र यादव के जमानत मिलने की खबर के बाद विधायक देवेंद्र यादव के समर्थकों में जहां उत्साह देखने को मिला वही आरोप प्रत्यारोपों का दौर भी आरंभ हो गया सोशल मीडिया में यह ज्ञान सामने आने लगा कि देवेंद्र यादव को बेल मिला है और वह दोष मुक्त नहीं हुए तो फिर जश्न कैसा और यह सही भी है कि बलौदा बाजार पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपो के बाद माननीय न्यायालय द्वारा भिलाई नगर विधायक देवेंद्र यादव को अभी दोष मुक्त नहीं किया गया वहीं उच्चतम न्यायालय द्वारा विधायक देवेंद्र यादव को सिर्फ जमानत मिला है तो फिर जश्न कैसा यह सवाल सोशल मीडिया पर लगातार घूम रहा है वहीं इसका दूसरा पहलू यह भी है कि देवेंद्र यादव दोष मुक्त नहीं हुए सिर्फ जमानत मिली परंतु वह दोषी भी सिद्ध नहीं हुए मामला अभी माननीय न्यायालय में विचाराधीन है विचाराधीन मामले पर दोषी करार किया जाना भी कहीं ना कहीं न्यायपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप जैसा ही है ऐसे कई मामले पूर्व में सामने आ चुके हैं जिसमें सालों बाद हुए फैसले में कई आरोपी दोष मुक्त हुए हैं तो कई आरोपी दोषी सिद्ध हुए .
  भारतीय संविधान में न्यायपालिका की व्यवस्था है जिसमें आरोपी तब तक मुजरिम नहीं कहलाता जब तक माननीय न्यायालय द्वारा उन्हें दोषी करार नहीं दिया जाता और ना ही उन्हें दोष मुक्त कहा जाता जब तक माननीय न्यायालय में मामला विचाराधीन होता है दोष मुक्त और दोषी दो शब्दों में जमीन आसमान का फर्क है किसी व्यक्ति के ऊपर कोई मामला विचाराधीन है ना उसे दोष मुक्त कहा जा सकता और ना ही दोषी कहा जा सकता है माननीय न्यायालय के फैसले के बाद ही यह सिद्ध होता है कि मुलजिम निर्दोष है या फिर मुजरिम है शब्दों के इस खेल में अब जब की भिलाई नगर विधायक देवेंद्र यादव को जमानत मिल गई है ऐसे में विधायक यादव के समर्थकों में उत्साह है और जय संविधान के नारे लगाए जा रहे हैं वहीं विपक्ष इस जश्न को दिखावा बता रहा है और फिर से जेल जाने की बात कही जा रही मतलब कि खूब राजनितिक होना भी एक अहम् हिस्सा होता जा रहा है .
   माननीय न्यायालय के विचाराधीन मामले में टिप्पणी किया जा रहा है जमानत पर छूटा व्यक्ति तब तक मुक्त नहीं हो सकता जब तक माननीय न्यायालय से उसे दोष मुक्त सिद्ध ना करे . दोष मुक्त और दोषी ,मुजरिम और मुलजिम ,विचाराधीन ,जमानत इन कानूनी शब्दों का संविधान में और न्यायपालिका में महत्वपूर्ण स्थान है परंतु वर्तमान समय में सोशल मीडिया में महा ज्ञानियों की कहीं कमी नहीं ऐसे में एक पक्ष जमानत पर ऐसी खुशियां मना रहा जैसे कि माननीय न्यायालय ने जमानत ना देकर दोष मुक्त कर दिया हो वही दूसरा पक्ष जमानत के बाद खुशियों को बेमानी बताकर ऐसी टिप्पणियों की भरमार कर दी जैसे मुलजिम ना होकर मुजरिम हो .
 यह सत्य है कि भारत के लंबे इतिहास में प्रशासनिक कार्यालय (जिलाधीश कार्यालय) पर कभी आगजनी का मामला सामने नहीं आया यह पहली ऐसी घटना है जब किसी कलेक्टर कार्यालय पर आगजनी हुई हो . मामला बेहद गंभीर है और आगजनी में शामिल व्यक्तियों को माननीय न्यायालय द्वारा ऐसी सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए जो कि एक ऐसी मिसाल बने की भविष्य में कभी कोई शासकीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की ना सोच सके भारतीय न्यायपालिका को सुस्त कहा जाता है परंतु इसका दूसरा और महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि भारत का नागरिक (गरीब से लेकर आमिर ) आज भी न्याय के लिए इस न्याय के मंदिर पर ही भरोसा करता है और न्याय की उम्मीद में आज भी लाखों करोड़ों लोग न्यायालय की तरफ रुख करते हैं ताकि उन्हें इंसाफ मिल सके देर से ही सही किंतु न्यायपालिका के मंदिर से न्याय जरूर मिलता है और दोषी को सजा . बलोदा बाजार हिंसा मामले में भी आने वाले समय में यही देखने को मिलेगा की न्यायपालिका ने दोषियों को सख्त से सख्त सजा दी और निर्दोषों को दोष मुक्त किया जिसका इंतजार प्रशासन ,राजनीति के लोगों सहित प्रदेश एवं देश की आम जनता को भी है और यह इंतजार भविष्य में फैसले के साथ ही पूर्ण होगी .क्योंकि न्याय के मंदिर से सिर्फ न्याय ही मिलता है जिनका विश्वास सभी को है और इसके फैसले सभी को मंजूर होते हैं
  क्या है बलौदाबाजार हिंसा: बलौदाबाजार जिले के महकोनी गांव में 15 और 16 मई की दरमियानी रात अमर गुफा में धार्मिक चिन्ह को नुकसान पहुंचाने के बाद समुदाय विशेष का गुस्सा फूट गया. इस मामले में पुलिस ने तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया. लेकिन समाज के लोग इससे संतुष्ट नहीं हुए और सीबीआई जांच की मांग की. इसी घटना को लेकर 10 जून को बलौदाबाजार के दशहरा मैदान में सभा की गई. जिसमें प्रदेशभर के समाज के लोग पहुंचे. सभा के बाद आक्रामक भीड़ ने बलौदाबाजार एसपी और कलेक्ट्रेट कार्यालय में आग लगा दी. कई गाडिय़ां फूंक दी गई. इस सभा में भिलाई नगर विधायक देवेंद्र यादव भी पहुंचे थे. जिससे उन पर भीड़ को उकसाने का आरोप लगा.
  17 अगस्त को हुई थी देवेंद्र यादव की गिरफ्तारी: कांग्रेस विधायक देवेंद्र यादव की 17 अगस्त को गिरफ्तारी हुई थी. उन्हें भिलाई में उनके घर से गिरफ्तार किया गया था. उसके बाद 17 अगस्त की रात को ही बलौदाबाजार कोर्ट में पेशी हुई. देवेंद्र यादव की दूसरी पेशी 20 अगस्त को हुई. उसके बाद बलौदाबाजार कोर्ट में तीसरी पेशी 27 अगस्त को हुई. 3 सितंबर को चौथी पेशी हुई. 9 सितंबर को पांचवीं पेशी हुई. 17 सितंबर को उनकी छठवीं पेशी बलौदाबाजार कोर्ट में हुई. इसके बाद कई पेशी होने के बाद विधायक देवेंद्र यादव जमानत याचिका के लिए अपील की. लेकिन बलौदाबाजार सीजेएम कोर्ट, जिला सत्र न्यायालय बलौदाबाजार और हाईकोर्ट बिलासपुर से उनकी जमानत याचिका खारिज हो गई. जिसके बाद विधायक ने सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका लगाई. जिस पर कोर्ट ने 20 फरवरी की तारीख सुनवाई के लिए तय की . 20 फरवरी को भिलाई नगर विधायक देवेन्द्र यादव को जमानत मिली .
न्यायपालिका पर विश्वास : जमानत मिलने के बाद विधायक देवेन्द्र यादव ने कहा कि उन्हें न्याय पालिका पर पूरा विश्वास है और उन्हें न्याय जरुर मिलेगा जिसका सीधा अर्थ है कि न्याय पालिका के फैसले चाहे जो भी हो उन्हें स्वीकार्य है . ऐसे में वर्तमान समय में दोषी /दोषमुक्त जैसे शब्द के कोई मायने नहीं होते . न्यायालय के आदेश ही सर्वोपरि है और न्याय के लिए जंग पक्ष और विपक्ष कर रहे है जो फैसला होगा वह सभी को मान्य होगा .

निजी विचार - लेख (शरद पंसारी संपादक शौर्यपथ दैनिक समाचार )

दुर्ग । शौर्यपथ । भारतीय जनता पार्टी आज दुर्ग शहर ही नहीं प्रदेश एवं देश में एक ब्रांड के नाम से जाना जाता है भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों की जीत उनकी निजी जीत न होकर मजबूत संगठन और उन सक्रिय कार्यकर्ताओं की मेहनत का नतीजा है जिन्होंने सालों संगठन को मजबूत करने में अपना पूरा योगदान दिया ऐसे में निगम चुनाव हो या फिर विधानसभा या लोकसभा भारतीय जनता पार्टी का प्रत्याशी होना ही जीत की ओर एक कदम आगे बढ़ा देता है परंतु वर्तमान समय में दुर्ग नगर निगम में कुछ ऐसे पार्षद भी निर्वाचित हो गए हैं जो ना ही संगठन में अपनी कोई अहम भूमिका निभाई और ना ही भारतीय जनता पार्टी के पुराने कार्यकर्ता रहे परंतु मौका परस्ती और दल बदलू की राजनीति के कारण इनके भाग्य का सितारा भी बुलंदी की ओर पहुंच गया .ऐसे ही एक प्रत्याशी दुर्ग नगर निगम में निर्वाचित होकर आज वार्ड का जनप्रतिनिधित्व करेगा जो पूर्व में हुए निगम चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर आए और कांग्रेस सरकार में शामिल होकर कांग्रेसी पार्षद की भूमिका निभाते रहे .वही जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई तो एक बार फिर अपनी दल बदलू नीति के तहत भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए और साल भर में ही उन सक्रीय कार्यकर्ताओं के सपने को रौंद कर फिर से भारतीय जनता पार्टी के बैनर तले निगम चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने लगे . परंतु कहा जाता है भारतीय जनता पार्टी में प्रत्याशी होना ही जीत की ओर तेजी से कदम बढ़ाने के बराबर होता है ऐसे में वार्ड नंबर 35 से कुलेश्वर साहू अपने दल बदलू नीति के बाद एक बार फिर नगर निगम में वार्ड नंबर 35 का जनप्रतिनिधित्व करेंगे .चुनावी सीजन में वार्ड की जनता से चर्चा के दौरान कुलेश्वर साहू के बारे में कुछ बातों का खुलासा किया जो आज के लोकतंत्र में आम जनता को सोचने पर मजबूर करता है चर्चा के दौरान वार्ड के कुछ युवाओं ने कहा कि कुलेश्वर साहू सिर्फ चखना सेंटर चलाने और इससे होने वाली कमाई के लिए ही चुनावी मैदान में उतरते हैं वार्ड में विकास कार्य के नाम पर शून्य की स्थिति है कांग्रेस सरकार में शामिल होकर साहू चखना सेंटर चलाते रहे और फिर सरकार बदलने के बाद एक बार फिर अपना रंग दिखाते हुए भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर अपने व्यापार की रक्षा के लिए प्रयत्नशील रहे . वार्ड की जनता के अनुसार नयापारा  शराब भट्टी के समीप आज भी पार्षद कुलेश्वर साहू का दुकान है जहां शराबियो की ज़रूरत के सामान मिल जाती है प्रशासन ऐसे कार्यों में कितना सख्त है यह तो साफ नजर आ रहा है परंतु निर्दलीय से कांग्रेसी और कांग्रेसी से भाजपाई 5 साल में लगातार पार्टी बदलने की प्रक्रिया कहीं ना कहीं लोकतंत्र पर विश्वास रखने वालों के लिए एक गहरा आघात है इस वार्ड के कई भाजपा कार्यकर्ता भी जो सालों से चुनावी जंग में उतरने का सपना देख रहे थे कहीं ना कहीं उनके साथ भी अन्याय हुआ परंतु मजबूत संगठन और उनके फैसले के आगे बेबस और एक बार फिर दल बदलू का तमगा लिए कुलेश्वर साहू वार्ड नंबर 35 से पार्षद बन जश्न मना रहे हैं और लोकतंत्र को खुलेआम आइना दिखा रहे हैं .
लेख : वार्ड वासी से चर्चा के आधार पर

राष्ट्रव्यापी उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है पोषण माह अभियान
पोषण अभियान से महिलाओं और बच्चों के आहार और व्यवहार में आ रहा सकारात्मक बदलाव
राज्य के 52 हजार से अधिक आंगनबाड़ियों में चल रहा है पोषण अभियान

  रायपुर / शौर्यपथ / प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर राष्ट्रीय पोषण अभियान ने एक जन आंदोलन का रूप ले लिया है। चालू माह में पोषण अभियान को राष्ट्रव्यापी उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। राज्य के 52 हजार से अधिक आंगनबाड़ियों में पोषण अभियान संचालित हो रहा हैं। वहीं स्वास्थ्यवर्धक विभिन्न गतिविधियों को आयोजन भी किया जा रहा है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी ने गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं, किशोरियों और छह वर्ष की आयु तक के बच्चों की पोषण स्थिति पर ध्यान केंद्रित करके कुपोषण को दूर करने के लिए वर्ष 2018 में ’राष्ट्रीय पोषण अभियान’ के रूप में शुरू किया था।
  मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि सुपोषण छत्तीसगढ़ बनाने के लिए हमारी सरकार दृढ़ संकल्पित है, उन्होंने राज्य के समस्त जनप्रतिनिधि, पंचायती राज संस्था के प्रतिनिधियों महिला स्व-सहायता समूहों, प्रबुद्ध वर्ग, विद्यार्थी वर्ग, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के निकायों के प्रतिनिधि एवं समस्त जनसमुदाय से अपील करते हुए कहा है कि पोषण माह की गतिविधियों में पूरे उत्साह और ऊर्जा के साथ छत्तीसगढ़ को कुपोषण और एनीमिया मुक्त बनाने में सहभागी बने। महिलाओं और बच्चों को पोषण के प्रति जागरूक करने के लिए है जन प्रतिनिधियों, पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों, महिला स्वसहायता समूह, प्रबुद्ध नागरिकों, विद्यार्थियों और स्थानीय जन समुदाय को शामिल किया गया है।
  महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े ने कहा कि सितंबर माह के प्रथम दिवस से पोषण माह 2024 मनाया जा रहा है, जो पोषण जागरूकता को बढ़ावा देने और एक स्वस्थ भारत के निर्माण की दिशा में समर्पित एक राष्ट्रव्यापी उत्सव है। इस वर्ष अपने 7वें चरण में, पोषण माह अभियान एनीमिया की रोकथाम, विकास निगरानी, सुशासन और प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्रभावी सेवा वितरण, पोषण भी पढ़ाई भी और पूरक पोषण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पोषण माह के तहत् छत्तीसगढ़ के लगभग 52 हजार आंगन बाड़ी केन्द्रों में महिलाओं और बच्चों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने और उनके पोषण संबंधित देख-भाल के लिए समझाईश दी जा रही है। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ को एनीमिया और कुपोषण मुक्त बनाने के लिए गांवों में महिला बाल विकास विभाग द्वारा सुुपोषण रथ के माध्यम से जागरूकता लाई जा रही।

    
 राष्ट्रीय पोषण माह के अंतर्गत राज्य के सभी आंगनबाड़ी केंद्रो में प्रतिदिन पोषण व स्वच्छता संबंधी विभिन्न गतिविधियां आयोजित हो रही हैं। साथ ही जिले में 23 सितंबर 2024 तक सभी केंद्रों में वजन त्यौहार मनाया जा रहा है। इस दौरान आंगनबाड़ी केंद्रों में 0 से 06 वर्ष के बच्चों का वजन एवं ऊंचाई मापना, पोषण स्तर की जांच एवं उनके अभिभावकों को पोषण संबंधित जानकारी दी जा रही है। राज्य में राष्ट्रीय पोषण माह अंतर्गत अब तक डैशबोर्ड में 29 लाख 60 हजार 333 गतिविधियों की एंट्री की जा चुकी है। महिला एवं बाल विकास विभाग की संचालक सुश्री तूलिका प्रजापति ने विभाग के सभी अधिकारी-कर्मचारियों को की जा रही शत-प्रतिशत गतिविधियों की ऑनलाइन एंट्री करने के निर्देश दिए हैं।
   सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में भी समूह बैठक में वजन त्यौहार के बारे में चर्चा की जा रही है। ग्रामीण महिलाओं से चर्चा के दौरान 0 से 06 साल के बच्चे, किशोरी बालिकाओं को खान-पान और स्वास्थ्य देखभाल के बारे में बताया जा रहा है। महिला बाल विकास की योजनाओं की जानकारी देने के साथ ही गर्भवती महिलाओं से पौष्टिक आहार भोजन में शामिल करने का आग्रह किया जा रहा है।
  राष्ट्रीय पोषण माह के साथ ही 12 से 23 सितम्बर तक प्रदेश की आंगनबाड़ियों में वजन त्यौहार भी मनाया गया। जिसके अंतर्गत बच्चों के वजन में बढ़ोत्तरी को मापने के साथ ही सामुदायिक जागरूकता का कार्य भी किया गया। वजन त्यौहार के दौरान बच्चों के वजन सहित अन्य विवरण महिला और बाल विकास विभाग के मोबाइल ऐप पर दर्ज किया गया। इसी तरह, पोषण माह के दौरान सुपोषण चौपाल, अन्नप्राशन दिवस, परिवार चौपाल, पोषण मेला, व्यंजन प्रदर्शन जैसे आयोजन पंचायत और शहरी क्षेत्रों में किए जा रहे हैं। पोषण के प्रति बच्चों को जागरूक करने के लिए स्कूलों में नारा लेखन, निबंध, चित्रकला और दीवार लेखन, स्पर्धाएं आयोजित की जा रही हैं। साथ ही स्वस्थ बालक-बालिका प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जा रहा है। राष्ट्रीय पोषण माह के तहत ग्राम पंचायत के सहयोग से आंगनबाड़ी केंद्रों और शालाओं में पोषण वाटिका भी विकसित की जा रही है।
  राष्ट्रीय पोषण माह 2024 सिर्फ़ एक अभियान नहीं है - यह एक आंदोलन है। किशोरियों को शामिल करके ’एनीमिया मुक्त भारत’ कार्यक्रम के लिए निरंतर समर्थन देकर और सामुदायिक भागीदारी का लाभ उठाकर, भारत कुपोषण मुक्त भविष्य की ओर अपनी यात्रा को तेज़ कर रहा है।
  पोषण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता सतत विकास के लिए उसकी महत्वाकांक्षा का आधार है। आइए हम सब मिलकर काम करने का संकल्प लें, ताकि भारत में हर बच्चे, माँ और परिवार को पौष्टिक भोजन और स्वस्थ भविष्य मिल सके। इस अभियान में हम सभी शामिल हों। साथ मिलकर हम कुपोषण मुक्त भारत का लक्ष्य हासिल कर सकते हैं।

साभार -
•डॉ.दानेश्वरी सम्भाकर
सहायक संचालक     

शौर्यपथ / सनातन धर्म में इस तिथि में ऋषि पंचमी मनाया जाता है। इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है। ऋषि पंचमी का व्रत महिलाओं के लिए विशेष होता है। द्रिक पंचांग के अनुसार, 08 सितंबर को इन्द्र योग का निर्माण हो रहा है।
 8 सितंबर का दिन भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में याद किया जाता है। इसी दिन 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में बम ब्लास्ट हुआ था। इस हमले में करीब 37 लोगों मारे गए थे। साथ ही 125 से अधिक लोग घायल हुए थे।
8 सितंबर को विश्व साक्षरता दिवस के रूप में मनाया जाता है .
8 सितंबर की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ

    1271 - जाॅन XXI का पोप के रूप में चयन।
    1320 - गाजी मलिक दिल्ली का सुल्तान बना।
    1331 - स्टीफन उरोस चतुर्थ ने खुद को सर्बिया का राजा घोषित किया।
    1449 - टुमू किले का युद्ध- मंगोलिया ने चीन के सम्राट को बंधक बनाया।
    1553 - इंग्लैंड में लिचफिल्ड शहर का निर्माण।
    1563 - मैक्सीमिलियन को हंगरी का राजा चुना गया।
    1689 - चीन और रूस ने नेरट्सजिंस्क (निरचुल) की संधि पर हस्ताक्षर किया।
    1900 - टेक्सास के गैलवेस्टोन में चक्रवाती और ज्वारीय तूफान से 6000 लोगों की मौत
    1952 - जेनेवा में काॅपीराइट के लिये पहले विश्व सम्मेलन में भारत समेत 35 देशों ने किये हस्ताक्षर।
    1962 - चीन ने भारत की पूर्वी सीमा में घुसपैठ किया।
    1988 - जाने माने व्यवसायी विजयपत सिंघानिया अपने माइक्रो लाइट सिंगल इंजन एयरक्राफ्ट से लंदन से अहमदाबाद पहुँचे।
    1991 - मैसिडोनिया गणराज्य स्वतंत्र हुआ।
    1997 - अमेरिकी ओपन टेनिस चैम्पियनशिप में पैट्रिक राफ़्टर को प्रथम ग्रैंड स्लैम ख़िताब मिला।
    1998 - 2001 में निर्धारित 13वें गुट निरपेक्ष आंदोलन की मेजबानी बांग्लादेश को सौंपी गयी।
    2000 - भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र शांति शिखर सम्मेलन के दौरान हिन्दी में भाषण देते हुए पाकिस्तान को लताड़ा।
    2002 - नेपाल में माओवादियों ने 119 पुलिस कर्मियों को मार डाला।
    2003 - इस्रायल के प्रधानमंत्री एरियल शैरोन चार दिवसीय भारत यात्रा पर नई दिल्ली पहुँचे।
    2006 - महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में मालेगाँव बम धमाके।
    2008 -
        सर्वोच्च न्यायालय ने कैनफिना म्यूचुअल फण्ड घोटाले मामले के मुख्य अभियुक्त और शेयर दलाल केतन पारिख व अन्य आरोपियों को ज़मानत दी।
        प्रसिद्ध अमेरिका पत्रिका फोर्ब्स ने भारतीय अरबपति लक्ष्मी मित्तल को लाइफ टाइम अचीवमेण्ट अवार्ड देने की घोषणा की।
    2009 - भारत ने विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकोव को नए कलपुर्ज लगाकर तैयार करने के लिए रूस को 10 करोड़ 20 लाख डालर दिये।

रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ की संस्कृति अपनी अति विशिष्ट परंपराओं और पर्वों के लिए जानी जाती है और हर पर्व, प्रकृति के पीछे गहरे समर्पण की मिसाल देता है। हरियाली को लेकर ऐसा ही दुर्लभ पर्व हरेली है, जब पूरी धरती हरीतिमा की चादर ओढ़ लेती है। धान के खेतों में रोपा लग जाता है और खेतों में चारों ओर प्रकृति अपने सुंदर नजारे में अपने को व्यक्त करती है। धरती माता का पूरा स्नेह पृथ्वीवासी या हर जीव-जन्तु पर उमड़ता है और इस स्नेह के प्रतिदान के लिए हम हरेली में प्रकृति को पूजते हैं। इस बार हरेली पर्व पर एक और खुशी हमारे प्रदेशवासियों के साथ जुड़ रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक पेड़ माँ के नाम पर लगाने के अभियान का आगाज किया है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में यह अभियान पूरे उत्साह से चल रहा है। मुख्यमंत्री ने हरेली के अवसर पर लोगों से पेड़ लगाने की अपील की है। यह पेड़ वे अपनी माँ के नाम लगाएंगे साथ ही धरती माँ के नाम लगाएंगे, जो धरती हमें इतना कुछ देती है, उसके श्रृंगार के लिए पौधा लगाएंगे और सहेजेंगे। यह पौधा हमारी हरेली की स्मृतियों को सुरक्षित रखने के लिए भी यादगार होगा। साथ ही प्रदेश भर में जहां भी खुले मैदानों में पौधरोपण के आयोजन होंगे वहां लोग गेड़ी का आनंद भी लेंगे। अपनी प्रकृति और परिवेश से जुड़ने और इसे समृद्ध करने से बढ़कर सुख और क्या होगा।
छत्तीसगढ़ का पहला लोक पर्व हरेली
  छत्तीसगढ़ का सबसे पहला लोक पर्व हरेली है, जो लोगों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था से परिचय कराता है। हरेली का मतलब हरियाली होता है, जो हर वर्ष सावन महीने के अमावस्या में मनाया जाता है। हरेली मुख्यतः खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है। इस त्यौहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि संबंधी सभी यंत्रों नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई कर उन्हें एक स्थान पर रखकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। घर में महिलाएं तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी व्यंजन खासकर गुड़ का चीला बनाती हैं। हरेली में जहाँ किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं, आपस में नारियल फेंक प्रतियोगिता करते हैं, वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते हैं।
  हरेली के दिन गांव में पशुपालन कार्य से जुड़े यादव समाज के लोग सुबह से ही सभी घरों में जाकर गाय, बैल और भैंसों को नमक और बगरंडा का पत्ता खिलाते हैं। हरेली के दिन गांव-गांव में लोहारों की पूछपरख बढ़ जाती है। इस दिन गांव के लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीष देते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है। इसके बदले में किसान उन्हे दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि देते हैं। ग्रामीणों द्वारा घर के बाहर गोबर से बने चित्र बनाते हैं, जिससे वह उनकी रक्षा करे।
हरेली से तीजा तक गेड़ी दौड़ का आयोजन
   हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला के समय जिस दिन बासी खाने का कार्यक्रम होता है उस दिन तक होता है। बच्चे तालाब जाते हैं स्नान करते समय गेड़ी को तालाब में छोड़ आते हैं, फिर वर्षभर गेड़ी पर नहीं चढ़ते हरेली की प्रतीक्षा करते हैं। चूंकि वर्षा के कारण गांव के कई जगहों पर कीचड़ भर जाता है, इस समय गेड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता। बच्चे गेड़ी के सहारे कहीं से भी आ जा सकते हैं। गेड़ी का संबंध कीचड़ से भी है। कीचड़ में चलने पर किशोरों और युवाओं को गेड़ी का विशेष आनंद आता है। रास्ते में जितना अधिक कीचड़ होगा गेड़ी का उतना ही अधिक आनंद आता है। वर्तमान में गांव में काफी सुधार हुआ है गली और रास्तों पर काम हुआ है। अब ना कीचड़ होती है ना गलियों में दलदल। फिर भी गेड़ी छत्तीसगढ़ में अपना महत्व आज भी रखती है। गेड़ी में बच्चे जब एक साथ चलते हैं तो उनमें एक दूसरे से आगे जाने की इच्छा जागृत होती है और यही स्पर्धा बन जाती है। बच्चों की ऊंचाई के अनुसार दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाते हैं और बांस के टुकड़े को बीच में फाड़कर दो भाग कर लेते हैं, फिर एक सिरे को रस्सी से बांधकर पुनः जोड़ देते हैं इसे पउवा कहा जाता है। पउवा के खुले हुए भाग को बांस में कील के ऊपर फंसाते हैं पउवा के ठीक नीचे बांस से सटाकर 4-5 इंच लंबी लकड़ी को रस्सी से इस प्रकार बांधते है, जिससे वह नीचे ना जा सके लकड़ी को घोड़ी के नाम से भी जाना जाता है। गेड़ी में चलते समय जोरदार ध्वनि निकालने के लिए पैर पर दबाव डालते हैं जिसे मच कर चलना कहा जाता है।
नारियल फेंक प्रतियोगिता
  नारियल फेंक बड़ों का खेल है इसमें बच्चे भाग नहीं लेते। प्रतियोगिता संयोजक नारियल की व्यवस्था करते हैं, एक नारियल खराब हो जाता है तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है। खेल प्रारंभ होने से पूर्व दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा। प्रतिभागी शर्त  स्वीकारते हैं, जितनी बार निश्चित किया गया है उतने बार में नारियल दूरी पार कर लेता है तो वह नारियल उसी का हो जाता है। यदि नारियल फेंकने में असफल हो जाता है तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है। नारियल फेंकना कठिन काम है इसके लिए अभ्यास जरूरी है। पर्व से संबंधित खेल होने के कारण बिना किसी तैयारी के लोग भाग लेते है।
बस्तर क्षेत्र में हरियाली अमावस्या पर मनाया जाता है अमुस त्यौहार
  छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा हरियाली अमावस्या पर अपने खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की पतली छड़ी गाड़ कर अमुस त्यौहार मनाया जाता है। इस छड़ी के ऊपरी सिरे पर शतावर, रसना जड़ी, केऊ कंद को भेलवां के पत्तों में बांध दिया जाता है। खेतों में इस छड़ी को गाड़ने के पीछे ग्रामीणों की मान्यता यह है कि इससे कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है। इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है। इसके लिए किसानों द्वारा एक दिन पहले से ही तैयारी कर ली जाती है। जंगल से खोदकर लाई गई जड़ी बूटियों में रसना, केऊ कंद, शतावर की पत्तियां और अन्य वनस्पतियां शामिल रहती है, पत्तों में लपेटकर मवेशियों को खिलाया जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि इससे कृषि कार्य के दौरान लगे चोट-मोच से निजात मिल जाती है। इसी दिन रोग बोहरानी की रस्म भी होती है, जिसमें ग्रामीण इस्तेमाल के बाद टूटे-फूटे बांस के सूप-टोकरी-झाड़ू व अन्य चीजों को ग्राम की सरहद के बाहर पेड़ पर लटका देते हैं। दक्षिण बस्तर में यह त्यौहार सभी गांवों में सिर्फ हरियाली अमावस्या को ही नहीं, बल्कि इसके बाद गांवों में अगले एक पखवाड़े के भीतर कोई दिन नियत कर मनाया जाता है।
साभार : • डॉ. दानेश्वरी संभाकर,सहायक संचालक

 शौर्यपथ लेख : छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार का विशेष महत्व है। हरेली छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार है। इस त्यौहार से ही राज्य में खेती-किसानी की शुरूआत होती है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्यौहार परंपरागत् रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन किसान खेती-किसानी में उपयोग आने वाले कृषि यंत्रों की पूजा करते हैं और घरों में माटी पूजन होता है। गांव में बच्चे और युवा गेड़ी का आनंद लेते हैं। इस त्यौहार से छत्तीसगढ़ की संस्कृति और लोक पर्वों की महत्ता भी बढ़ गई है। ग्रामीण क्षेत्रों में गेड़ी के बिना हरेली तिहार अधूरा है।
परंपरा के अनुसार वर्षों से छत्तीसगढ़ के गांव में अक्सर हरेली तिहार के पहले बढ़ई के घर में गेड़ी का ऑर्डर रहता था और बच्चों की जिद पर अभिभावक जैसे-तैसे गेड़ी भी बनाया करते थे। हरेली तिहार के दिन सुबह से तालाब के पनघट में किसान परिवार, बड़े बजुर्ग बच्चे सभी अपने गाय, बैल, बछड़े को नहलाते हैं और खेती-किसानी, औजार, हल (नांगर), कुदाली, फावड़ा, गैंती को साफ कर घर के आंगन में मुरूम बिछाकर पूजा के लिए सजाते हैं। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ के चीला का भोग लगाया जाता है। अपने-अपने घरों में अराध्य देवी-देवताओं के साथ पूजा करते हैं। गांवों के ठाकुरदेव की पूजा की जाती है।

हरेली पर्व के दिन पशुधन के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औषधियुक्त आटे की लोंदी खिलाई जाती है। गांव में यादव समाज के लोग वनांचल जाकर कंदमूल लाकर हरेली के दिन किसानों को पशुओं के लिए वनौषधि उपलब्ध कराते हैं। गांव के सहाड़ादेव अथवा ठाकुरदेव के पास यादव समाज के लोग जंगल से लाई गई जड़ी-बूटी उबाल कर किसानों को देते हैं। इसके बदले किसानों द्वारा चावल, दाल आदि उपहार में देने की परंपरा रही हैं।
सावन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरेली पर्व मनाया जाता है। हरेली का आशय हरियाली ही है। वर्षा ऋतु में धरती हरा चादर ओड़ लेती है। वातावरण चारों ओर हरा-भरा नजर आने लगता है। हरेली पर्व आते तक खरीफ फसल आदि की खेती-किसानी का कार्य लगभग हो जाता है। माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं। कृषि औजारों को धोकर, धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ का चीला भोग लगाया जाता है। गांव के ठाकुर देव की पूजा की जाती है और उनको नारियल अर्पण किया जाता है।
हरेली तिहार के साथ गेड़ी चढ़ने की परंपरा अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी परिवारों द्वारा गेड़ी का निर्माण किया जाता है। परिवार के बच्चे और युवा गेड़ी का जमकर आनंद लेते है। गेड़ी बांस से बनाई जाती है। दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाई जाती है। एक और बांस के टुकड़ों को बीच से फाड़कर उन्हें दो भागों में बांटा जाता है। उसे नारियल रस्सी से बांध़कर दो पउआ बनाया जाता है। यह पउआ असल में पैर दान होता है  जिसे लंबाई में पहले कांटे गए दो बांसों में लगाई गई कील के ऊपर बांध दिया जाता है। गेड़ी पर चलते समय रच-रच की ध्वनि निकलती हैं, जो वातावरण को औैर आनंददायक बना देती है। इसलिए किसान भाई इस दिन पशुधन आदि को नहला-धुला कर पूजा करते हैं। गेहूं आटे को गंूथ कर गोल-गोल बनाकर अरंडी या खम्हार पेड़ के पत्ते में लपेटकर गोधन को औषधि खिलाते हैं। ताकि गोधन को विभिन्न रोगों से बचाया जा सके। गांव में पौनी-पसारी जैसे राऊत व बैगा हर घर के दरवाजे पर नीम की डाली खोंचते हैं। गांव में लोहार अनिष्ट की आशंका को दूर करने के लिए चौखट में कील लगाते हैं। यह परम्परा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है।
हरेली के दिन बच्चे बांस से बनी गेड़ी का आनंद लेते हैं। पहले के दशक में गांव में बारिश के समय कीचड़ आदि हो जाता था उस समय गेड़ी से गली का भ्रमण करने का अपना अलग ही आनंद होता है। गांव-गांव में गली कांक्रीटीकरण से अब कीचड़ की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है। हरेली के दिन गृहणियां अपने चूल्हे-चौके में कई प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाती है। किसान अपने खेती-किसानी के उपयोग में आने वाले औजार नांगर, कोपर, दतारी, टंगिया, बसुला, कुदारी, सब्बल, गैती आदि की पूजा कर छत्तीसगढ़ी व्यंजन गुलगुल भजिया व गुड़हा चीला का भोग लगाते हैं। इसके अलावा गेड़ी की पूजा भी की जाती है। शाम को युवा वर्ग, बच्चे गांव के गली में नारियल फेंक और गांव के मैदान में कबड्डी आदि कई तरह के खेल खेलते हैं। बहु-बेटियां नए वस्त्र धारण कर सावन झूला, बिल्लस, खो-खो, फुगड़ी आदि खेल का आनंद लेती हैं।
साभार : आलेख - छगन लोन्हारे

(आलेख : संजय पराते)
शौर्यपथ आलेख /नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) की निष्पक्ष तरीके से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को आयोजित कर पाने की असफलता ने न केवल इसमें घुसे भ्रष्टाचार को उजागर किया है, बल्कि हमारी समूची शिक्षा प्रणाली के ढहने की ओर भी इशारा किया है ; जिसे नई शिक्षा नीति से सबको संस्कारित करने और कानून के जरिए पेपर लीक जैसे मामलों पर लगाम लगाने के ढपोरशंखी दावे की आड़ में दबाने की कोशिश की जा रही है। पूरे मामले को 'नैतिकता' के आवरण में ढंका जा रहा है और इन मामलों में राजनीति न करने की अपील विपक्ष और देश की जनता से की जा रही है, जबकि शिक्षा प्रणाली का मुद्दा राजनीति से जुड़ा सीधा मसला है। असली मुद्दा यह है कि देश की शिक्षा प्रणाली को सार्वभौम और सार्वजनिक बनाया जाएगा या फिर अन्य क्षेत्रों की तरह ही उसका संपूर्ण निजीकरण किया जाएगा और उसे 'माल' बनाकर कुछ व्यक्तियों और समूहों की इजारेदारी कायम की जाएगी। इस मूल सवाल से भाजपा और उसके संगी-साथी बचकर निकल जाना चाहते हैं।
पहले नीट (एनआईआईटी) के बारे में। जिस परीक्षा के नतीजे 14 जून को आने वाले थे, उसके नतीजे 4 जून को घोषित करना और उस समय, जब पूरा देश लोकसभा चुनाव नतीजों के हो-हल्ले में फंसा हो, आश्चर्य की बात थी। इससे आसानी से नतीजा निकाला जा सकता है कि परीक्षा के नतीजों को किसी शोरगुल में दबाने की साफ साजिश थी। परीक्षा के नतीजों में जो गड़बड़ियां सामने आई, वह इस बात को प्रमाणित करने के लिए काफी हैं।
किन गड़बड़ियों से इस परीक्षा के नतीजों पर प्रश्न चिन्ह लगे हैं? (री-नीट के बाद) कम-से-कम 61 ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्हें 720 में से 720 अंक मिले हैं, जबकि पिछले वर्ष आयोजित परीक्षा में ऐसे केवल 2 लोग ही थे। कई ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्हें 718 और 719 अंक मिले थे। गणितीय दृष्टि से, इस प्रकार के अंक मिलना असंभव है, क्योंकि बहु वैकल्पिक प्रश्नों वाली परीक्षा में प्रत्येक सही उत्तर के लिए 4 अंक निर्धारित थे और प्रत्येक गलत उत्तर देने पर कुल सही प्राप्तांकों में से एक अंक कटना था। इस प्रकार, एक गलत उत्तर के साथ पूरा सही पेपर बनाने वाले उम्मीदवार को 715 अंक ही मिल सकते थे। एनटीए का स्पष्टीकरण है कि ऐसा 1563 उम्मीदवारों को ग्रेस मार्क्स मिलने के कारण हुआ है, जिन्हें परीक्षा के लिए निर्धारित समय से कम समय मिला था, या उन्हें गलत उत्तर देने के लिए इसलिए ग्रेस अंक मिले हैं, क्योंकि कक्षा बारहवीं की एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक में अशुद्धियां थी और गलत जानकारी दी गई थी। लेकिन परीक्षा की मूल योजना में ग्रेस मार्क्स की कोई अवधारणा नहीं थी और इससे काफी पीछे के उम्मीदवार सामने आ गए थे। बाद में एनटीए ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ग्रेस मार्क्स वापस लेकर ऐसे उम्मीदवारों के लिए पुनः परीक्षा आयोजित की है। यह भी अब विवाद के दायरे में है कि ऐसे उम्मीदवारों के लिए परीक्षा आयोजित करना उचित था, क्योंकि उम्मीदवारों को कम समय मिलने की बात संबंधित परीक्षा केंद्रों के प्रभारियों ने नकार दी है। इससे यह सवाल सहज ही उठ खड़ा होता है कि क्या कुछ परीक्षा केंद्रों को कुछ विशेष उम्मीदवारों के लिए बनाया गया था, जहां उन्हें अनुचित लाभ दिलाया जा सके? यह आशंका इसलिए भी सही है कि कुछ परीक्षा केंद्रों के कुछ उम्मीदवारों को लाइन से ऐसे उच्च अंक मिले हैं। इसके साथ ही, सरकार के निर्देशन में एनसीईआरटी द्वारा तैयार हमारे पाठ्य पुस्तकों की सटीकता पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है। इस घपले-घोटाले के उजागर होने के बाद ताबड़तोड़ तरीके से एक के बाद एक दूसरी प्रतियोगी परीक्षाएं भी बिना किसी उजागर कारण के स्थगित की गई है, जिससे यह स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है कि इन परीक्षाओं के पर्चे भी लीक हो चुके थे और कुछ उम्मीदवारों को नाजायज फायदा दिलाने की सेटिंग हो चुकी थी।
एनटीए जिन प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करता है, उनमें हर साल लगभग 1.25 करोड़ परीक्षार्थी शामिल होते हैं और नीट के घपले के साथ अन्य स्थगित परीक्षाओं से कम से कम 50 लाख विद्यार्थी प्रभावित हुए हैं और इसलिए देश का छात्र समुदाय नीट को पुनः आयोजित करने तथा एनटीए को खत्म किए जाने की मांग कर रहा है, तो इसमें गलत कुछ नहीं है। पूरे देश के स्तर पर आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में भ्रष्टाचार, अपारदर्शिता और प्रक्रियागत विफलता से केंद्र सरकार भी बरी नहीं हो सकती, इसलिए सभी प्रभावित छात्रों को केंद्र सरकार द्वारा मुआवजा दिए जाने और शिक्षा मंत्री के इस्तीफे की मांग भी जोर पकड़ती जा रही है। इस मामले में इंडिया समूह से जुड़े राजनैतिक दलों के छात्र संगठन भी एकजुट हो रहे हैं, जिन्होंने 3 जुलाई को जंतर मंतर में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन करने के बाद 4 जुलाई को अखिल भारतीय छात्र हड़ताल का आह्वान किया है।


अब एनटीए के बारे में। वर्ष 2018 तक नीट और नेट जैसी परीक्षाएं सीबीएसई द्वारा आयोजित की जाती थी, जो केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित होती है और जिसकी सीधी जवाबदेही जनता के प्रति बनती है। 2018 के बाद इन परीक्षाओं के आयोजन की जिम्मेदारी एनटीए को सौंप दी गई, जो सोसायटी एक्ट के तहत मात्र एक पंजीकृत संस्था है। हालांकि इसके सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है, लेकिन यह यह संस्था सरकार के किसी अधिनियम से शासित नहीं है और इसलिए आम जनता के प्रति इसकी कोई जवाबदेही भी नहीं बनती। अगस्त 2023 में प्रदीप जोशी नाम के व्यक्ति को इस संस्था के चेयरमैन पद पर मोदी सरकार ने बैठा दिया, जिनके पास विशिष्ट योग्यता यह थी कि वे आरएसएस के "खांटी स्वयंसेवक और पूर्व एबीवीपी नेता" थे, (नीट कांड के बाद अब इस महानुभाव को हटा दिया गया है)। इस संस्था के पास 'अपना' कहने वाले कर्मचारियों की संख्या केवल 25 हैं और अन्य निजी संस्थाओं (आऊट सोर्सिंग) के जरिए ही यह पूरे देश में परीक्षाओं का आयोजन करती है। ये संस्थाएं किस स्तर पर किस प्रकार की गड़बड़ियों, हेर-फेर और भ्रष्टाचार में शामिल है, इसका पता तब ही चलता है, जब लाखों परीक्षार्थियों का भविष्य बर्बाद हो चुका होता है और इसकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई सामने नहीं आता, सरकार भी नहीं। साफ है कि मोदी राज में एक सार्वजनिक और पारदर्शी परीक्षा प्रणाली का आऊट सोर्सिंग के जरिए पूरी तरह निजीकरण कर दिया गया है, जिसमें पारदर्शिता और उत्तरदायिता का तत्व पूरी तरह से गायब है।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच सालों में 15 राज्यों में कम-से-कम 48 पेपर लीक के मामले सामने आए हैं और इसने लगभग 1.2 लाख पदों के लिए कम-से-कम 1.4 करोड़ आवेदकों के जीवन को प्रभावित किया है। इन सभी में राज्य स्तरीय परीक्षाओं का संचालन आऊट सोर्सिंग के जरिए किया गया था। साफ है कि निजीकरण की राह पर चलने वाली राज्य सरकारों ने भी स्वच्छ, निष्पक्ष और पारदर्शी परीक्षाओं के आयोजन की अपनी जिम्मेदारी को छोड़ दिया है। हर क्षेत्र का निजीकरण मोदी सरकार का मूल मंत्र है और एनटीए के जरिए परीक्षाओं का आयोजन इसी नीति का हिस्सा है। वैसे भी मोदी सरकार उच्च पदों पर भर्ती का अधिकार सीधे अपने हाथ में लेना चाहती है, तो प्रतियोगी परीक्षाओं की भी कोई प्रासंगिकता नहीं रहने वाली है।


अब एक श्रद्धांजलि ढहती शिक्षा प्रणाली के लिए। हालांकि शिक्षा एक विषय के रूप में संविधान की समवर्ती सूची में है, लेकिन मोदी सरकार द्वारा इस क्षेत्र में भी संघवाद का उल्लंघन करके राज्यों का अधिकार हड़पा जा रहा है। मोदी सरकार द्वारा लागू की जा रही नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य शिक्षा का निजीकरण करना और पाठ्यक्रम में आरएसएस के सांप्रदायिक नजरिए को घुसाना, और इस प्रकार सार्वभौमिक और वैज्ञानिक शिक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक धर्मनिरपेक्ष वस्तुपरकता का त्याग करना है। नतीजन, पूरे देश में सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं और निजी स्कूलों की संख्या बढ़ रही है। मोदी सरकार के आंकड़ों के अनुसार ही, देश में वर्ष 2018-19 में स्कूलों की संख्या 15,50,476 थी, जो वर्ष 2021-22 में घटकर 14,89,115 रह गई थी। दो वर्षों में ही 61,361 स्कूलों के कम होने का अर्थ है, 5-6 करोड़ बच्चों का शिक्षा क्षेत्र से बाहर होना। निश्चित ही, ये बच्चे कमजोर सामाजिक-आर्थिक समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और इनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों से होंगे। साफ है कि हमारे बच्चों को "संस्कारित" करने का दावा करने वाली यह शिक्षा नीति गरीब और पिछड़े समुदायों के बच्चों को अज्ञानता के अंधकार में ही ढकेलने वाली साबित होने जा रही है। यह नीति उच्च शिक्षा के स्तर से आम जनता को वंचित करने की सोची-समझी नीति है।
जिस प्रकार पौराणिक कथाओं और मिथकों को इतिहास के रूप में स्थापित करने की मुहिम चलाई जा रही है, वह देश के जन मानस को आधुनिक और वैज्ञानिक विश्व दृष्टि से दूर करने का ही काम करेगी। इसी संदर्भ में, एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों में त्रुटियों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। एक स्वस्थ और वैज्ञानिक शिक्षा हमारे देश की 'विविधता में एकता' को बढ़ावा देगी, लेकिन एक पोंगापंथी और सांप्रदायिक शिक्षा 'विविधता में एकता को छिन्न-भिन्न' करेगी, सौहार्द्र और सद्भाव की जगह नफरत का प्रचार करेगी। मोदी-शाह के नेतृत्व में संघी गिरोह शिक्षा नीति का एक ऐसे हथियार के रूप उपयोग करना चाहता है, जिसके जरिए धर्मनिरपेक्ष भारत को एक "संकीर्णतावादी और फासीवादी हिंदू राष्ट्र" में तब्दील किया जा सके।

शिक्षा नीति को एक सांप्रदायिक हथियार में ढालकर पूरी शिक्षा प्रणाली को बर्बाद करने और परीक्षा प्रणाली का निजीकरण करके चंद धनाढ्यों के लिए 'अवसर' सुनिश्चित करने की मोदी सरकार की साजिशों के खिलाफ आम जनता और इस देश के छात्र समुदाय को लड़ना होगा। 4 जुलाई को आहूत अखिल भारतीय छात्र हड़ताल इसकी अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। यह संघर्ष मोदी सरकार के कुकर्मों को अनकिया करने तक जारी रहने की घोषणा है।
(लेखक : संजय पराते स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, मध्यप्रदेश के पूर्व अध्यक्ष और अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष)*

  राजनीती / शौर्यपथ / प्रदेश में एक पद मंत्रालय का खाली है एवं दूसरा पद (मंत्री बृजमोहन अग्रवाल) सांसद चुनाव जितने के बाद खाली होने की राह देख रहा है जिस पर संशय के बादल नजर आ रहे है वैसे अभी 18 जून तक समय है किन्तु राजनीती में चंद मिनटों में ही फैसले का असर दशा और दिशा सब बदल जाती है .
  वर्तमान समय में माना जाए तो एक पद खाली है जिस पर सभी की नजर है ऐसे में दुर्ग शहर विधायक के जन्मदिन का कार्यक्रम पृथ्वी पैलेसपर होना शहर में चर्चा का विषय है . पृथ्वी पैलेस में जन्मदिन मनाने पर अलग अलग चर्चाओं का बाजार गर्म है . दुर्ग जिले में ऐसा पहली बार हो रहा है कि किसी विधायक के द्वारा जन्मदिन का उत्सव घर में ना मना कर होटल में वो भी शहर से दूर और महंगे होटल में शुमार पृथ्वी पैलेस जिसके एक दिन का किराया ही लाखो रूपये का है जहाँ हजार पांच सौ लोगो का खाना ही लाखो में पहुँच जाता है ऐसे में चर्चा के अनुसार चार से पांच हजार लोगो का न्योता और कई व्ही आई पी लोगो के आने की संभावना व्यक्त की जा रही है जिससे राजनितिक हलको में यह चर्चा है कि साय सरकार के मंत्री मंडल विस्तार में गजेन्द्र यादव का नाम लगभग तय माना जा रहा है और यह पार्टी उसी कड़ी का एक हिस्सा के रूप में देखा जा रहा है . वही दूसरी तरफ ऐसी भी चर्चा है कि सक्रियता के मामले में क्षेत्र की जनता विधायक यादव से नाखुश है चंद लोगो से घिरे होने और संगठन तथा निगम के जनप्रतिनिधियों से दुरी मंत्री पद की राह में एक बड़ा स्पीड ब्रेकर नजर आ रहा है संघ से पिता का गहरा सम्बन्ध कुछ सकारात्मक पहल के रूप में भी अब नजर नहीं आ रहा . पिछले कुछ समय से संघ और भाजपा संगठन में कोल्ड वार खुलकर सामने आ गए है . राष्ट्रिय अध्यक्ष जे पी नड्डा का ब्यान अब हमें संघ की जरुरत नहीं वही संघ प्रमुख का भाजपा संगठन के चुनाव लड़ने की प्रणाली पर दिया गया बयान से यह भी उम्मीद नहीं की जा सकती की संघ से मंत्री पद के लिए दबाव बनाया जाएगा . ऐसे में पहली बार विधायक निर्वाचित होने के बाद शहर विधायक का शहर से दूर जन्मदिन मनाये जाने पर सबकी नजर है . शहर भर में जिस तरह से पूर्व विधायक , सांसद एवं अन्य जनप्रतिनिधियों के पोस्टर जन्मदिन के अवसर पर लगे होते थे ऐसा वर्तमान में देखने को नहीं मिला , मीडिया से दुरी गिनती के अखबारों में जन्मदिन कि बधाई सन्देश जिसमे से प्रकाश सांखला और इन्द्रजीत सिंग (छोटू भैया ) हैवी ट्रांसपोर्ट के आलावा किसी स्थानीय या मझोले अखबार , इलेक्ट्रोनिक मिडिया जैसे प्लेट फ़ार्म में सालो बाद दुर्ग में एक नए चेहरे के जन्मदिन की कही झलक नजर नहीं आ रही फिर भी सभी की नजर शाम को होने वाले उत्सव और उसके बाद के नतीजो पर है .....


शौर्यपथ समाचार परिवार की तरफ से दुर्ग शहर विधायक गजेन्द्र यादव को जन्मदिन कि हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाये

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