पटना। शौर्यपथ।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का एक नया और दिलचस्प चेहरा अब सामने आ रहा है—जहां छत्तीसगढ़ के दो यादव नेता अलग-अलग खेमों से बिहार की सियासत में मोर्चा संभाले हुए हैं। भाजपा से छत्तीसगढ़ के मंत्री गजेंद्र यादव और कांग्रेस से विधायक देवेंद्र यादव दोनों ही अपनी-अपनी पार्टियों के लिए बिहार के यादव वोट बैंक को साधने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
यादव समुदाय, जो कि बिहार की कुल आबादी का लगभग 14.26 प्रतिशत हिस्सा है, हर चुनाव में सत्ता की कुंजी साबित होता है। इसलिए इस बार दोनों राष्ट्रीय दलों ने अपने यादव नेताओं को बिहार के मैदान में उतारकर एक तरह से ‘यादव बनाम यादव’ सियासी संघर्ष की नींव रख दी है ।
गजेंद्र यादव को भाजपा नेतृत्व ने बिहार में एनडीए के पक्ष में यादव वोटों को आकर्षित करने की प्रमुख जिम्मेदारी सौंपी है। वे न केवल प्रदेश के एकमात्र यादव मंत्री हैं, बल्कि संगठन और प्रचार की कमान भी संभाले हुए हैं। वहीँ कांग्रेस के लिए देवेंद्र यादव, जो दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और बिहार चुनाव के सह प्रभारी भी हैं, लगातार बिहार में महागठबंधन को धार देने के लिए सक्रिय हैं। देवेंद्र यादव पर पार्टी में टिकट वितरण को लेकर विवादों के बावजूद कांग्रेस का विश्वास बरकरार है ।
छत्तीसगढ़ का ये यादव समीकरण बिहार में सिर्फ यादव वोट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दोनों राज्यों की सियासत पर असर डालने लगा है। भाजपा की तरफ से गजेंद्र यादव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की चुनावी रणनीति का "संगठनिक स्तंभ" माना जा रहा है, वहीं कांग्रेस में देवेंद्र यादव की भूमिका “भूपेश बघेल टीम” के हिस्से के रूप में देखी जा रही है—जो संगठन पुनर्जीवन का प्रयास कर रही है।
राजनीतिक रणनीतिकारों के अनुसार, बिहार की इस ‘यादव बनाम यादव’ जंग का असर ना केवल नीतीश-तेजस्वी समीकरण पर पड़ेगा, बल्कि छत्तीसगढ़ के राजनीतिक शक्ति-संतुलन को भी नया आयाम देगा। गजेंद्र यादव जहां भाजपा के लिए “यादव समुदाय का सेतु” बनना चाहते हैं, वहीं देवेंद्र यादव कांग्रेस के लिए “वोटर पुनःसंयोजन का प्रतीक” बनने की दिशा में काम कर रहे हैं।
बिहार चुनाव 2025 न केवल प्रदेश की सत्ता का फैसला करेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि यादव राजनीति की आवाज किस खेमे से अधिक गूंजेगी—गजेंद्र या देवेंद्र?