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छत्तीसगढ़ की जंगलों में है कुदरत की देन, वरिष्ठ लेखक संजीव बख्शी की किताब में जानिए इस कुदरती खजाने को

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राजनांदगांव।शौर्यपथ /छत्तीसगढ़ के जंगलों को कुदरत ने हरेक संसाधनों से नवाजा है। यहां की वनस्पतियां शोध का केंद्र रहा है। आज हम बात करेंगे भूलन कांदा के बारे में यह ऐसा कांदा है जिसके पैर में पड़ते ही मनुष्य रास्ता ही भूल जाता है। इस कांदे की अनेक खासियत है जिसे आप भूलन कांदा वरिष्ठ लेखक संजीव बख्शी द्वारा लिखित उपन्यास में पढ़ सकते है। इस बुक में आप जंगलों की हसीन यात्रा में निकलेंगे जिसकी यादें रोमांचित करने वाली है। भूलन कांदा छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पर पैर पड़ने से लोग भटक जाते हैं और जब तक कोई आकर छू ना ले वह भटके हुए होते हैं। इसी तरह से कुछ व्यवस्थाएं भी भटकी हुई हैं। कुछ न्याय व्यवस्था भी भटकी हुई है और विशेषकर गांव में जो बैठक कर फैसला करते हैं, उसमें भी भटकाव है। इन सब बातों को लेकर ही यह उपन्यास तैयार हुआ है। विष्णु खरे ने इस उपन्यास के बारे में कहा है कि यह नौशाद की संगीत की तरह है, जो जितना पुराना होगा उतना ही और लोगों में लोकप्रिय होगा। भूलन द मेज फिल्म संजीव बख्शी के जिस उपन्यास भूलन कांदा पर आधारित है। अब वो उपन्यास अंग्रेजी में भी उपलब्ध है और 15 अगस्त तक इसमें शिपिंग चार्ज की छूट है, इसका लाभ उठाइये और इस अद्भुत उपन्यास को जरूर पढ़िए। वरिष्ठ लेखक संजीव बख्शी बताते है कि, भूलन कांदा के अंग्रेजी अनुवाद उमा राम के एस राम ने किया है। इसके बारे में एक और रोचक बात हुई कि इसके कवर बनाने के लिए मैंने प्रोफेसर संत कुमार श्रीवास्तव की एक पेंटिंग को मन ही मन चुन लिया था कि इसे ही कवर बनाना है, यह बस्तर हाट से संबंधित पेंटिंग थी और बहुत ही सुंदर थी, लेकिन श्रीवास्तव साहब से संपर्क करने पर पता लगा कि यह पेंटिंग काफी पहले अमेरिका के एक संस्कृति विश्व विद्यालय के पास है और उनसे कई वर्षों से संपर्क नहीं हुआ है, मेरे आग्रह पर उन्होंने उनका फोन नंबर ढूंढ निकाला और उनसे बात भी की, जिससे वहां से पेंटिंग की फोटो खींच कर उसे भेजने की व्यवस्था की गई और इस तरह यह कवर पृष्ठ बन गया। यह पेंटिंग अभी भी विश्व विद्यालय के हाल में शोभा बढ़ा रही है। --------------

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Mrinendra choubey

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