0 जिस कानून को कांग्रेस की सरकार ने पूरे देश मे लागू कराया वही कानून आज कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में मजाक बन कर रह गया है
राजनांदगांव / शौर्यपथ / जिस कानून को कांग्रेस की सरकार ने पूरे देश मे लागू कराया वही कानून आज कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में मजाक बन कर रह गया है। पीड़ित पालक रोमेश ठाकूर ने प्रधानमंत्री को अपनी पीड़ा पत्र लिखकर बताया है कि कैसे तीन वर्षो तक जिम्मेदार अधिकारीयों के समक्ष आग्रह करने के बावजूद उनके पुत्र को निःशुल्क शिक्षा दिलाने में वे असफल रहे। पीड़ित पालक प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आरटीई कानून की धारा 8 एंव 9 को विलोपित करने की मांग कर रहे है क्योंकि इस धारा का पालन प्रदेश और जिले के अधिकारी नही कराना चाहते है। शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 8 एंव 9 में यह स्पष्ट उल्लेखित है कि बच्चों को अनिवार्य प्रवेश से लेकर शिक्षा पूर्ण कराने की बाध्यता राज्य और स्थानीय प्रशासन की है लेकिन जिम्मेदार अधिकारी ने इसे पालको का कर्तव्य बता कर अपने पदीय कर्तव्य को पूरा करने से बचते नजर आए। जब कोई भी प्रायवेट स्कूल बंद हो जाता है तो उसमें प्रवेशित आरटीई के बच्चों को अन्य स्कूल में अंयन्त्र प्रवेश दिलाने की पूरी बाध्यता स्थानीय प्रशासन की होती है लेकिन कोरोना काल वर्ष 2019 से लेकर 2021 तक लगभग 45 प्रायवेट स्कूल जिले में बंद हुए जिसमें लगभग 1500 आरटीई के बच्चे प्रवेशित थे, जिन्हे अंयन्त्र स्कूलों में प्रवेश दिलाने की पूरी जिम्मेदारी आरटीई नोडल अधिकारी आदित्य खरे की थी, लेकिन उनके पदीय कर्तव्यों के प्रति घोर लापरवाही बरतने के कारण आज वे बच्चे या तो शालात्यागी हो गए या मजबूरी में पैसे उधार लेकर किसी प्रायवेट स्कूल में मोटी फीस देकर पढ़ रहे है। जिम्मेदार अधिकारी आदित्य खरे ने लिखित में अपने उच्च अधिकारी कलेक्टर को जवाब दे दिया कि यदि कोई प्रायवेट स्कूल बंद हो गया है तो यह पालको का कर्तव्य है कि वे अपने आरटीई के बच्चों को किसी अन्य स्कूल में पैसे देकर पढ़ाए और उच्च अधिकारी ऐसे जिम्मेदार अधिकारी की इस तर्क से संतुष्ट भी है। वरना आज श्री खरे निलंबित तो जरूर हो गए होते या उन्हे उनके मूल पद में भेज दिया गया होता। वैसे भी आदित्य खरे का मूलपद प्राचार्य है और वे विगत 20 वर्षो से डीईओ कार्यालय में बाबूगिरी कर रहे और बीस वर्षो से बिना अध्ययपन कराए ही वेतन ले रहे है और जिला प्रशासन यह सब जानबूझकर भी होने दे रहा है।