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खाद्य एवं औषधि विभाग की दोहरी नीति ने खोली सच्चाई — नशे के धंधे में ‘सितार’ का काला कारोबार जारी, गुरमुख जुमनानी का नाम बार-बार उजागर, फिर भी कार्रवाई शून्य

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गोगो पर छापा… सितार पर खामोशी!

मुख्य बिंदु  
    गोगो सिगरेट पर छापामारी और कार्रवाई, पर सितार गुटखा पर विभाग की खामोशी
    निर्माण फैक्ट्री पर कई बार छापे — मालिक और मजदूर हर बार गायब
    गुरमुख जुमनानी का नाम बार-बार, फिर भी अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं
    शहर के हर चौक-चौराहे पर बेखौफ बिक्री, युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में
    विभाग और जिला प्रशासन की चुप्पी पर जनता में सवाल

दुर्ग। शौर्यपथ /
   शहर में अवैध गोगो सिगरेट पर छापामारी कर खाद्य एवं औषधि विभाग ने अपनी पीठ थपथपाई, परंतु इसी शहर में खुलेआम बिक रहे “सितार” नामक जानलेवा गुटखा पर विभाग की चुप्पी सवालों के घेरे में है। स्वास्थ्य मानकों की बात करें तो “सितार” गुटखा कहीं से भी निर्धारित नियमों पर खरा नहीं उतरता, फिर भी इसकी बिक्री बेखौफ जारी है।
  पिछले कुछ वर्षों में विभाग ने कई बार “सितार” गुटखा निर्माण फैक्ट्रियों का भंडाफोड़ किया — राजनांदगांव से लेकर गनियारी तक — लेकिन हर बार नतीजा वही… फैक्ट्री में मालिक, मजदूर और पूरा स्टाफ छापे से पहले ही गायब! और हैरानी की बात, इन फैक्ट्रियों का नाम लगातार एक ही शख्स से जुड़ता रहा — गुरमुख जुमनानी । अखबारों और टीवी चैनलों में कई बार इनका नाम “सितार” गुटखा निर्माता के रूप में सुर्खियों में आया, परंतु अब तक उनके खिलाफ ऐसी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई जो उनके “नशे के साम्राज्य” को तोड़ सके।
   नतीजा— शहर के हर चौक-चौराहे, स्कूल-कॉलेज के आसपास तक, यह जहरीला/ अवैधानिक  गुटखा खुलेआम बिक रहा है। युवा पीढ़ी इस सस्ते नशे के जाल में फंस रही है, और विभाग की नज़रें मानो इस ओर से मूंद ली गई हों। न रिटेल दुकानों पर छापे, न गोदामों पर कार्रवाई, न ही सप्लाई चेन पर रोक।
आख़िर सवाल ये है—
    क्या विभाग “गोगो” पर सख्ती दिखाकर और “सितार” पर खामोशी साधकर किसी अदृश्य दबाव में काम कर रहा है?
    क्या जिला प्रशासन इस ढुलमुल रवैये पर संज्ञान लेगा और दोषियों पर ऐसी कार्रवाई करेगा जो पूरे प्रदेश में उदाहरण बने?
    या फिर, यह खेल यूं ही चलता रहेगा और शहर का भविष्य नशे की अंधेरी खाई में धंसता जाएगा?
   समाज के स्वास्थ्य और आने वाली पीढ़ी के भविष्य से खिलवाड़ करने वालों पर नकेल कसने का समय अब आ चुका है। यदि आज भी प्रशासनिक और विभागीय कार्रवाई में साहस और निष्पक्षता नहीं दिखाई गई, तो कल इतिहास यह दर्ज करेगा कि दुर्ग के युवाओं को नशे में धकेलने में केवल व्यापारी ही नहीं, बल्कि व्यवस्था भी बराबर की दोषी रही।

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