भिलाई। आईआईटी भिलाई की शोध टीम ने आईआईटी मद्रास और जर्मनी के शीर्ष संस्थानों के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है, जिसके जरिए महंगे व जहरीले धातुओं की जगह सस्ते, प्रचुर और सुरक्षित धातु—लोहे का उपयोग कर उच्च गुणवत्ता वाले प्लास्टिक और पॉलिमर बनाए जा सकेंगे।
टीम में अमूल जैन, भानेंद्र साहू और डॉ. संजीव बनर्जी शामिल हैं, जिन्होंने विशेष लौह-आधारित उत्प्रेरकों की मदद से यह विधि तैयार की। यह तकनीक सामान्य कमरे के तापमान पर सटीक रूप से नियंत्रित पॉलिमर तैयार करती है, जिससे प्रक्रिया न केवल पर्यावरण-अनुकूल और सुरक्षित बनती है बल्कि उद्योगों व छोटे व्यवसायों (MSME) के लिए किफायती और मापनीय भी।
शोध में पहली बार रेडॉक्स और नियर-इन्फ्रारेड (NIR) सक्रिय लौह ट्राइरेडिकल कॉम्प्लेक्स आधारित पॉलीमराइजेशन प्लेटफॉर्म का उपयोग किया गया। यह प्लेटफॉर्म हल्के और सामान्य परिस्थितियों में एक्रिलामाइड्स और मेथैक्रिलेट्स का नियंत्रित रेडिकल पॉलीमराइजेशन संभव बनाता है। नतीजतन, अभूतपूर्व चेन-एंड फिडेलिटी, संकीर्ण फैलाव और उच्च पर्यावरणीय सुरक्षा के साथ पॉलिमर व डिब्लॉक कोपॉलीमर तैयार होते हैं।
यह तकनीक बायोमेडिसिन, स्मार्ट कोटिंग्स और प्रतिक्रियाशील प्रणालियों के लिए उन्नत कार्यात्मक सामग्री विकसित करने का मार्ग खोलती है। इसके जरिए भारत के उद्योग और MSME अब महंगे या जहरीले धातुओं की निर्भरता घटाकर, हरित और उच्च प्रदर्शन वाले पॉलिमर का उत्पादन कर सकेंगे।
इस परियोजना को भारत सरकार के DSIR–CRTDH कार्यक्रम से सहायता मिली। शोध पत्र विश्व-प्रसिद्ध एंग्वैंड्टे केमी इंटरनेशनल एडिशन (Wiley-VCH) में प्रकाशित हुआ है, जो पॉलिमर रसायन विज्ञान के भविष्य में इस खोज के महत्व को रेखांकित करता है।