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खतरे में बाज़ार , क्या मूल स्वरुप बदलने से भवन हुए जर्जर , कभी भी हो सकती है बड़ी दुर्घटना

    दुर्ग / शौर्यपथ खास खबर / दुर्ग जिला मुख्यालय के मध्य स्थिति इंदिरा मार्किट शहर का मुख्य व्यावसायिक केंद्र है . इस बाज़ार की स्थापना सालो पहले से हुई है . इंदिरा मार्केट में निगम प्रशासन द्वारा सालो पहले दुकानों का निर्माण कर व्यापारियों को सशर्त लीज पर दिया गया और यही मंशा के साथ कि शहर का गौरव इंदिरा मार्केट सहसर की शान बने . किन्तु इंदिरा मार्केट की निगम अधीन इमारतो की हालत कई स्थानों से जर्जर हो गयी है , प्रेस काम्प्लेक्स की इमारत , मछली बाज़ार की ईमारत सहित सब्जी मार्केट की इमारतो की हालत भी खस्ता हाल है और कारण है कई व्यापारियों की मनमानी .
बिना अनुमति किया गया बदलाव
    इंदिरा मार्केट में निगम द्वारा तय नियमो और मानको के आधार पर शापिंग काम्प्लेक्स का निर्माण हुआ और व्यापारियों को आबंटित हुआ किन्तु कुछ व्यापारियों की गलती या लालच की प्रवित्ति कह ले आज काम्प्लेक्स की इमारत जर्जर अवस्था में हो गयी . निगम प्रशासन द्वारा आबंटन के समय लीज धारक व्यापारियों को इस शर्त पर दुकाने आबंटित की गयी थी कि कोई भी व्यापारी दुकानों के मूल रूप में परिवर्तन करने से पहले निगम प्रशासन की अनुमति ले किन्तु दुकानदारों द्वारा ऐसा नहीं किया गया कई दुकानदारों द्वारा दुकानों के मूल स्वरुप में बदली की गयी अधिकतर बदलाव भूतल पर संचालित दुकानों में की गयी . भूतल में बदलाव और बिना अनुमति व बिना विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में हुए निर्माण के कारण दो माले भवन में उपरी माला कही कही से कमजोर हो गया .
लालम यह है कि मचली बाज़ार से लगी हुई इमारत तो इतनी जर्जर हो गयी कि ऊपर जाने की सीढी भी नेस्तनाबूद हो गयी . प्रेस काम्प्लेक्स भवन के छज्जा गिरने की घटना कई बार हो चुकी है . निगम पिछले कई सालो से भवन के संधारण के नाम पर लाखो खर्च कर चुका है किन्तु किसी भी निगम इंजिनियर ने शायद ये रिपोर्ट नहीं दी होगी कि संधारण से इमारत की स्थिति में कोई सार्थक सुधार होगा और इस तरह निगम के लाखो रूपये बर्बाद होने के बाद स्थिति जस की तस है .
बाज़ार विभाग की गलती का खामियाजा भुगत रही है जनता
    निगम प्रशासन में बाज़ार की व्यवस्थाओ पर और अव्यवस्था पर निगाह रखने के लिए निगम प्रशासन में बाज़ार विभाग नाम की एक शाखा है . इस विभाग की जिम्मेदारी है कि बाज़ार में निगम की संपत्ति पर कोई गैर क़ानूनी कार्य ना करे , निर्धारित जगह से ज्यादा स्थान पर अतिक्रमण ना करे , दुकानों के मूल स्वरुप में बिना अनूमति बदलाव ना करे , बाज़ार शासन के नियमो के अनुसार चले और इसके लिए विभाग के कर्मचारियों को शासन द्वारा लाखो रूपये मानदेय के रूप में दिया जाता है किन्तु शायद निगम का बाज़ार विभाग अपने कार्यो के निर्वहन करने में असफल रहा और निगम प्रशासन को लगातार दिग्भ्रमित करता रहा . ऐसा नहीं कि कि बाज़ार विभाग के कर्मचारी 2-4 साल में स्थानांतरित होते हो और नए कर्मचारी आते हो जिसके कारण व्यापारियों द्वारा इसका लाभ लेकर अवैध तरीके से निर्माण कर लिया जाता हो और मूल रूप में परिवर्तन किया जाता हो . प्राप्त जानकारी के अनुसार बाज़ार मुहर्रिर , कर्मचारी व बाबू ऐसे लोग नियुक्त है जिनकी सालो से नियुक्ति हुई है और सालो से ही बाज़ार विभाग का कार्य कर रहे है शायद ही बाज़ार का कोई व्यापारी हो जो इन अधिकारियों कर्मचारियों को जानता नहीं हो . फिर भी बाज़ार के कई संस्थानों द्वारा बिना अनुमति निर्माण के बाद भी बाज़ार विभाग का मौन रहना किसी तरह की कोई दंडात्मक कार्यवाही का ना होना दर्शाता है कि निगम का बाज़ार विभाग किस तरह की कार्यप्रणाली के तहत कार्य कर रहा है .
लाइसेंस विभाग की मिलीभगत का अंदेशा?
    व्यापार के लिए प्रत्येक व्यापारिक संसथान को निगम से अनुज्ञप्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है अनुज्ञा प्रमाणपत्र के नवीनीकरण के समय लैसेंक विभाग दूकान की स्थित का आंकलन करने के बाद ही व्यापार संचालित करने के प्रमाण पत्र ज़ारी करता है किन्तु शायद ही ऐसा कोई मामला सामने आया हो जिसकी अनुज्ञा प्रमाण्पत्र निरस्त हुई हो निगम अधीन दुकानों के मूल रूप परिवर्तन के कारण . साफ प्रतीत होता है कि लाइसेंस विभाग सिर्फ दस्तावेजो के आधार पर ही नवीनीकरण करता रहा अगर स्थल निरिक्षण किया जाता तो वर्तमान की स्थिति निर्मित ही नहीं होती .
बड़े बड़े व्यापारियों द्वारा किया गया अतिक्रमण पर निगम प्रशासन रहता है मौन
इंदिरा मार्केट में निगम द्वारा बनाए गए व्यावसायिक परिसर की एक श्रंखला है जो सब्जी मार्केट के चारो तरफ है वही प्रेस काम्प्लेक्स ए ,बी , सी की श्रृंखला है इन काम्प्लेक्स में भी कई दुकानों द्वारा मूल स्वरुप बदला गया मूल स्वरुप बदलने के लिए किसने अनुमति ली किसने नहीं इसकी जानकारी भी बाज़ार विभाग से प्राप्त नहीं हो सकी . कुछ दिनों पहले ही प्रेस काम्प्लेक्स से छज्जा का कुछ हिस्सा टूट कर गिरने की घटना हुई थी जिसके बाद इसे संध्रण के लिए दुर्ग विधायक द्वारा निर्देशित किया गया था .

महापौर और विधायक को कार्यवाही के समय रहना चाहिए सामने ?
निगम प्रशासन की सत्ता 20 सालो से भाजपा के अधीन थी इन 20 सालो में बाज़ार की व्यवस्था पूरी तरह बिगड़ गयी अब जबकी 20 साल बाद दुर्ग निगम में कांग्रेस की सत्ता है , विधान सभा क्षेत्र में जहाँ कांग्रेस के विधायक है और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है ऐसे में दुर्ग के दो जनप्रतिनिधि जिनकी छवि भ्रष्टाचार से मुक्त है ऐसे दोनों जनप्रतिनिधि महापौर बाकलीवाल और विधायक अरुण वोरा ही बाज़ार के व्यापारियों निगम के कार्यो में सहयोग के लिए अपील कर सकते है समझाईश दे सकते है ताकि दुर्ग इंदिरा मार्केट के व्यापारी और जनता को किसी प्रकार की क्षति ना हो . बाज़ार के जर्जर भवन का पूर्ण संधारण ही एवं नियमो सहित सञ्चालन ही एक मात्र रास्ता है सुव्यवस्थित और सुरक्षित बाज़ार का ...

अतिक्रमण व मूल स्वरुप बदलने वालो पर क्या निगम प्रशासन करेगी कार्यवाही या फिर किसी बड़े हादसे का है इंतज़ार
निगम प्रशासन द्वारा बनाया गया व्यावसायिक परिसर शासन के मापदंडो को पूर्ण करके बनाया गया था . किन्तु कई व्यापारियों द्वारा बरामदे सही सड़क तक सामन फैला कर व्यापार किया जा रहा कई व्यापारी तो सड़क पर भी व्यापार कर रहे है किन्तु बाज़ार विभाग का मौन विभाग की कार्यप्रणाली से कई तरह के भ्रष्टाचार का संदेह पैदा करता है . अब निगम प्रशासन के मुखिया की जिम्मेदारी बनती है कि इंदिरा मार्केट के ऐसे व्यापारी जो बरामदे व सड़क तक सामान फैला कर व्यापार कर रहे है उस पर कड़ी कार्यवाही करे , जो व्यापारी दुकानों के मूल स्वरुप में परिवर्तना कर दिए है बिना अनुमति के उन पर कार्यवाही करे और आम जनता को अपने इस कार्य से सन्देश दे कि निगम प्रशासन व्यापारियों के दबाव में नहीं शासन के नियमो के तहत कार्य करता है .

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