शौर्यपथ संवाददाता/रायपुर/
रायपुर नगर निगम क्षेत्र के प्रमुख स्थलों में से एक पचपेड़ी नाका का नाम बदलने की अधिसूचना जारी होते ही पूरे शहर में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उबाल देखने को मिला। जहां एक ओर नगर निगम की ओर से नाम परिवर्तन की प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी, वहीं दूसरी ओर स्थानीय संगठनों, राजनीतिक दलों और आम नागरिकों ने कड़ा विरोध जताया।
नगर निगम की अधिसूचना ने मचाई हलचल
नगर निगम रायपुर ने बीते दिनों एक अधिसूचना जारी कर पचपेड़ी नाका का नाम बदलने के प्रस्ताव पर आपत्तियाँ और सुझाव आमंत्रित किए थे। इस अधिसूचना ने स्थानीय समाज और संगठनों को चौंका दिया, क्योंकि पचपेड़ी नाका रायपुर की ऐतिहासिक सांस्कृतिक पहचान का केंद्र रहा है।
विरोध में उतरीं ये संस्थाएँ और संगठन:
छत्तीसगढ़ जोहार पार्टी: इस संगठन ने सबसे पहले खुलकर विरोध किया। उनका कहना था कि यह कदम “आदिवासी सांस्कृतिक विरासत के खिलाफ़ है।” पार्टी ने महापौर को ज्ञापन सौंपते हुए नाम परिवर्तन को "सांस्कृतिक आक्रोश" से जोड़ा। छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज, प्रबुद्ध नागरिक मंच, संस्कृति बचाओ मोर्चा, लोक साहित्य समिति जैसे कई संगठनों ने भी प्रेस कांफ्रेंस कर विरोध जताया।
सोशल मीडिया पर विरोध:
ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर #SavePachpediNaka ट्रेंड करता रहा। युवाओं और छात्रों ने भी इस पर वीडियो बनाकर विरोध जताया।
महापौर मीनल चौबे का पलटवार बयान
स्थिति बिगड़ती देख रायपुर नगर निगम की महापौर मीनल चौबे ने मीडिया में स्पष्ट कहा: “पचपेड़ी नाका का नाम बदलने का कोई निर्णय निगम स्तर पर नहीं लिया गया है। यह मात्र एक विभागीय प्रक्रिया थी।”हालाँकि, विरोध करने वाले संगठनों का कहना है कि यदि अधिसूचना जारी हुई थी, तो महापौर की जानकारी में कैसे नहीं थी? वे इसे राजनीतिक दबाव में लिया गया यू-टर्न मानते हैं।
समर्थन करने वालों की भी मौजूदगी
इस बीच कुछ संगठनों और व्यक्तियों ने नाम परिवर्तन का समर्थन भी किया.इनका मानना था कि पचपेड़ी नाका का नाम किसी महान व्यक्ति या आधुनिक प्रतीक पर आधारित होना चाहिए। रायपुर शहर में कई पुराने स्थानों के नाम बदले गए हैं — यह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा है।हालांकि इस पक्ष को बहुमत का समर्थन नहीं मिल पाया।
पचपेड़ी नाका: सिर्फ एक चौराहा नहीं, पहचान का प्रतीक
पचपेड़ी नाका, रायपुर का एक ऐतिहासिक द्वार है जहाँ से ग्रामीण और शहरी क्षेत्र का जुड़ाव होता है। यह न केवल ट्रैफिक हब है, बल्कि आदिवासी संस्कृति, धार्मिक मेलों, व्यापार और स्थानीय बोली के आदान-प्रदान का केंद्र रहा है।
फिलहाल, नगर निगम ने नाम परिवर्तन प्रक्रिया को रोक दिया है। जन सुनवाई या प्रस्ताव की समीक्षा के लिए कोई नई तिथि घोषित नहीं की गई है। विरोध करने वाले संगठनों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजने की चेतावनी दी है, यदि भविष्य में इस तरह की प्रक्रिया फिर से शुरू की गई।
निष्कर्ष:पचपेड़ी नाका नाम बदलने का विवाद केवल नाम परिवर्तन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्थानीय अस्मिता, सांस्कृतिक विरासत और राजनीतिक पारदर्शिता के बड़े सवाल खड़े करता है। रायपुर के नागरिकों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऐसी किसी भी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी और सहमति आवश्यक है।