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दुर्ग का मासूम और नेताओं की मानवीय परीक्षा: संवेदनशीलता के बीच राजनीति की परछाई

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  दुर्ग / शौर्यपथ /

   दीपावली का पर्व रोशनी और खुशियों का प्रतीक है, पर कभी-कभी यही रोशनी किसी घर के लिए अंधकार बन जाती है। दुर्ग जिले में पटाखों की चपेट में आकर घायल हुए दस वर्षीय अभिषेक यादव का मामला ऐसी ही एक घटना है जिसने प्रशासन, समाज और राजनीति — तीनों की संवेदनशीलता को एक साथ परखा है।
 घटना के बाद जब वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन को सूचना मिली, तो उन्होंने तत्काल हस्तक्षेप कर घायल बालक को बेहतर चिकित्सा सुविधा दिलाने की पहल की। सेक्टर 9 अस्पताल के बर्न यूनिट में भर्ती कराने की प्रक्रिया से लेकर जिला अस्पताल के डॉक्टरों से समन्वय तक — हर स्तर पर उन्होंने व्यक्तिगत रूप से सक्रियता दिखाई।
  वैशाली नगर विधायक की सक्रियता की खबर सोशल मिडिया में वाइरल होने और उनकी पहल एक ऐसे विधान सभा क्षेत्र में जो उनके कार्य क्षेत्र में नहीं आता बावजूद संज्ञान लेना और मदद की ओर आगे हाथ बढ़ाना जिसकी खूब तारीफ़ हुई जिसके बाद स्थानीय विधायक और प्रदेश सरकार के मंत्री समर्थक भी मदद के लिए आगे आये और दुसरे दिन हॉस्पिटल जाकर परिजनों की मदद की जिसका वीडियो बनकर विरल भी किया गया जिस्मेमंत्री से वार्ता भी शामिल रही . दोनों जनप्रतिनिधियों के प्रयास से उपचार में तेजी आई और अंतत: अभिषेक सुरक्षित घर लौट सका।
  परंतु, इस मानवीय प्रयास के बीच राजनीतिक स्वर भी गूंजने लगे। सोशल मीडिया पर कुछ समूहों ने आरोप लगाया कि गजेंद्र यादव केवल अपने विधानसभा क्षेत्र तक सीमित रहे, जबकि वैशाली नगर के विधायक ने व्यापक दृष्टिकोण से मदद की। जो कि "राजनीति" से प्रेरित आलोचना ने मानवीय पहल की गरिमा को आहत किया।
यह राजनितिक चर्चा एक गहरी सच्चाई की ओर संकेत करता है —
हमारा समाज संवेदनशील तो है, पर संवेदनशीलता को भी राजनीतिक चश्मे से देखने की आदत बना चुका है। जब मदद की नीयत पर भी प्रश्न उठने लगें, तो यह केवल राजनीति की नहीं बल्कि समाज की मानसिकता की भी परीक्षा बन जाती है।
 रिकेश सेन का त्वरित कदम और मंत्री गजेंद्र यादव समर्थकों का सहयोग, दोनों ही मानवता के उदाहरण हैं। लेकिन यह सवाल अब भी प्रासंगिक है — क्या किसी बच्चे की पीड़ा को भी क्षेत्र और पार्टी के आधार पर मापा जाना चाहिए? क्या मदद का कार्य भी प्रचार का विषय बनना चाहिए?
  राजनीति में प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है, पर मानवता की सीमा से परे प्रतिस्पर्धा असंवेदनशीलता में बदल जाती है। अभिषेक यादव का उपचार भले ही सफल रहा हो, लेकिन इस घटना ने समाज को यह सोचने पर विवश किया है कि हमें सहायता के क्षणों को प्रचार के मंच में बदलने से बचना होगा।
दुर्ग की यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि एक संदेश है —
जब जीवन संकट में हो, तब राजनीति मौन रहनी चाहिए और मानवता बोलनी चाहिए।
सच्ची सेवा वही है जो शोर के बिना की जाए, और सच्चा नेतृत्व वही जो हर बच्चे को अपना मानकर कार्य करे।
क्योंकि अंतत:, एक मासूम की मुस्कान — किसी भी राजनीतिक विजय से कहीं अधिक कीमती होती है।

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