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जिम्मेदार कुर्सी पर सोए हैं इसलिए, नियमों की नहीं, लापरवाही की झूले पर झूल रहा मीना बाजार?

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By - नरेश देवांगन 

जगदलपुर, शौयपथ। हमने पूर्व में राजमहल परिसर में लगे मीना बाजार की सुरक्षा नियमों की अनदेखी और अव्यवस्थाओं पर समाचार प्रकाशित किया था, लेकिन विभाग के जिम्मेदारों ने आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया। शहर के मीना बाजार में सुरक्षा नियमों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। "शौर्यपथ" ने बिना सेफ्टी बेल्ट, बिना जूते-हेलमेट के मजदूरों से ऊँचाई पर झूले लगवाए, झूले की अनुमति व फिटनेस जाँच , कटे तार ,मौत के कुएँ में 30 साल से अधिक पुरानी गाड़ियाँ बिना फिटनेस जाँच के चलवाई गईं। प्रवेश टिकट दरों पर न तो जीएसटी का उल्लेख है, न ही कोई अधिकृत दर सूची प्रदर्शित की गई और महिलाओं के लिए शौचालय की कोई सुसज्जित व्यवस्था भी नहीं की गई।

हम लगातार जिम्मेदारों को समाचार के माध्यम से अवगत कराते रहे, फिर भी कार्रवाई नहीं हुई। विभागीय आदेशों में स्पष्ट लिखा है कि किसी भी दुर्घटना की स्थिति में संचालक जिम्मेदार होगा, फिर भी झूला संचालकों ने खुलेआम पोस्टर चिपकाकर लिखा — “दुर्घटना होने पर कंपनी जिम्मेदार नहीं।” यह सीधे-सीधे विभागीय आदेशों की अवहेलना है और जनता की सुरक्षा के साथ खिलवाड़।

 

अब नया मोड़:

समाचार प्रकाशित होने के बाद RTO विभाग ने जांच के नाम पर महज़ खानापूर्ति की। जांच का उद्देश्य यह होना चाहिए था कि मौत के कुएँ के संचालन की अनुमति दी गई है या नहीं, और यदि दी गई है, तो किस नियम के तहत। लेकिन विभाग ने उस मुख्य सवाल से बचते हुए सिर्फ इतना बताया कि सभी गाड़ियों के दस्तावेज वैध हैं। प्रश्न यह उठता है कि क्या वैध दस्तावेज ही मौत के कुएँ में दौड़ने की अनुमति दे देते हैं? क्या विभाग ने यह परखा कि ये गाड़ियाँ तकनीकी रूप से ऐसे खतरनाक खेल के लिए फिट हैं या नहीं? क्या वाहन चालकों के द्वारा सुरक्षा नियमों का पालन किया जा रहा है यां नहीं? और तो और, जिस अधिकारी को जिले के बड़े अधिकारी ने इसकी जाँच के लिए कहा था , उनके बारे में चर्चा है कि उन्हें मीना बाजार की व्यवस्था से ज़्यादा वहाँ के जीने और खाने की चिंता रहती है। ऐसे में निष्पक्ष जांच की उम्मीद करना जनता के साथ मज़ाक है।

 

बाबा साहेब ने कहा था — “संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, अगर उसे चलाने वाले बुरे हैं तो वह बुरा साबित होगा।” आज यही सच मैदान में दिख रहा है। कानून है, आदेश हैं, लेकिन उन्हें लागू करने वाले जिम्मेदारों की नीयत सो चुकी है। अब सवाल यह नहीं कि नियम क्या हैं, बल्कि यह है कि नियमों को तोड़ने वाले और आँख बंद करने वाले कौन हैं?

 

जनता के जीवन से खेलने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं —

यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि प्रशासनिक बेईमानी और संवेदनहीनता की चरम सीमा है।

 

अब सवाल सीधा है —

क्या विभाग जनता की सुरक्षा करेगा, या मीना बाजार की मौज में डूबे अधिकारी?

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Naresh Dewangan

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