दुर्ग। शौर्यपथ।
संविधान की शपथ इस भावना के साथ ली जाती है कि पद पर रहते हुए अधिकारी और जनप्रतिनिधि निष्पक्षता, समानता और न्याय के सिद्धांतों पर कार्य करेंगे। परंतु दुर्ग नगर पालिक निगम की महापौर श्रीमती अलका बाघमार की हालिया कार्यप्रणाली ने इस शपथ की भावना पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इन दिनों शहर के मध्य स्थित इंदिरा मार्केट में “मोर शहर मोर जिम्मेदारी” अभियान के तहत सौंदर्यीकरण और अतिक्रमण हटाने का कार्य जारी है। अभियान के दौरान कपड़ा लाइन क्षेत्र में दुकानदारों — जिनमें एक जाति विशेष समुदाय के लोग अधिक हैं — के अवैध कब्जों को हटाया जा रहा है। परंतु इसी कपड़ा लाइन से कुछ ही दूरी पर स्थित कुआ चौक में ठेले वालों के कब्जे और जाम की स्थिति पर नगर निगम प्रशासन की चुप्पी चर्चा का विषय बन गई है।
कपड़ा लाइन में की जा रही सख्त कार्रवाई और कुआ चौक पर अतिक्रमण शाखा की चुप्पी के बीच का यह विरोधाभास अब जनता के बीच सवालों में है। आखिर क्यों दो कदम की दूरी पर दो तरह की नीति अपनाई जा रही है?
इसी चौक के सामने एक जूस दुकान द्वारा बरामदे से लेकर सड़क तक कब्जा कर लिया गया है, जिससे राहगीरों को परेशानी हो रही है। फिर भी, न तो बाजार शाखा और न ही अतिक्रमण विभाग की टीम ने अब तक कोई कदम उठाया है। यह मौन नगर निगम की निष्पक्ष कार्यप्रणाली पर गहरे प्रश्नचिह्न लगा रहा है।
जनता का कहना है कि उन्होंने बिना भेदभाव और पूरे विश्वास के साथ श्रीमती अलका बाघमार को महापौर चुना था, ताकि शहर के हर नागरिक के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार हो। परंतु वर्तमान में चल रही कार्यवाहियों से यह धारणा बनती जा रही है कि निगम प्रशासन चयनात्मक कार्रवाई के रास्ते पर चल पड़ा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि शहरी सरकार की मुखिया के रूप में महापौर की यह जिम्मेदारी है कि वे प्रत्येक कार्यवाही में निष्पक्षता और समानता को सर्वोपरि रखें। यदि शहर में कार्रवाई के दौरान भेदभाव का भाव दिखाई देता है, तो यह प्रशासनिक स्थिरता और सामाजिक सौहार्द — दोनों के लिए ही खतरा बन सकता है।
नगर निगम को चाहिए कि शहर में सौंदर्यीकरण और अतिक्रमण हटाने की दिशा में एक एकसमान नीति अपनाए, ताकि जनता के बीच विश्वास कायम रहे और शहर वास्तव में “मोर शहर मोर जिम्मेदारी ” के विचार को साकार कर सके।