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सांसद बघेल का संकट की घडी में विरोध के आखिर क्या मायने ? Featured

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    दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग लोकसभा के सांसद विजय बघेल द्वारा ये ब्यान दिया गया कि मजदूरो से केंद्र सरकार यात्रा पैसे नहीं ले रही और ८५ प्रतिशत की सब्सिडी दे रही किरायो में किन्तु सच्चाई यह है कि १ मई से ४ मई तक के हर प्रमुख अखबारों में चेनल में रेलवे विभाग द्वारा ब्यानके के आधार पर खबर प्रकाशित हुई थी कि रेल्वे द्वारा मजदूरो से टिकिट के पैसे लिए जा रहे है और कई विडिओ भी वाइरल हुए . टिकिट के घमासान में जब कांग्रेस अध्यक्ष ने टिकिट के खर्चे का वहां करने का एलान किया तब रेल विभाग द्वारा टिकिट में ८५ प्रतिशत केंद्र और १५ प्रतिशत का किराया राज्यों की सरकार से लेने की बात कही . दुर्ग सांसद विजय बघेल इसे राजनीती परिपेक्ष्य में जोड़ कर कांग्रेस को आड़े हांथो लिया किन्तु ब्यान देते समय शायद १ मई से ४ मई तक की कार्य प्रणाली और टिकिट के घमासान को याद नहीं रखे . क्या आम जनता को अधूरा सच परोसना वर्तमान समय में सही है ऐसी हालत में जब देश के प्रधानमंत्री बार-बार सन्देश दे रहे है कि सभी राज्य की सरकारों का पूर्ण सहयोग मिल रहा है ऐसे में अधूरी बातो के आधार पर राजनीती कहा तक न्यायसंगत है . देश की दो बड़ी पार्टी कांग्रेस और भाजपा के विचारधारा में विरोधाभास है और लोकतंत्र में लोकतान्त्रिक विरोध का भी एक महत्तवपूर्ण स्थान होता है यही लोकतंत्र की खूबसूरती भी है किन्तु वर्तमान समय में जिस तरह की पीड़ा देश झेल रहा है और आम जनता की आर्थिक स्थिति बिगड़ गयी है वैसे समय भी राजनीती का ऐसा परिदृश्य कहा तक जायज है . वर्तमान समय में संकट में सिर्फ जनता ही नहीं राज्य सरकारों की भी आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गयी है .
    सरकार आर्थिक स्थिति पर नियंत्रण करने अलग अलग तरह के उपाय कर रही है . छत्तीसगढ़ में शराब विक्रय पर राजनीती जोरो पर है विपक्ष भाजपा लगातार सरकार को चुनावी वादे याद दिला रही है . कोई भी पार्टी चुनावी के समय दर्जनों में चुनावी वादे करती है ऐसा सिर्फ एक ही पार्टी के साथ नहीं सभी के साथ होता है . भाजपा ने चुनावी वादे में प्रतिवर्ष करोडो की नौकरी की बात कही थी , अन्तराष्ट्रीय बाज़ार में रूपये की स्थिति मजबूती की बात कही थी कच्चे तेल की कीमत के अनुसार बाज़ार मूल्य की बात कही , ऍफ़डीआई में ४९ प्रतिशत का विरोध की बात कही ऐसे कई वादे है जो चुनावी वादे ही साबित हुए जिसका विरोध विपक्षी पार्टी करती रही है उसी तरह कांग्रेस ने भी चुनावी वादों की झड़ी लगाईं जिसमे किसानो की कर्ज माफ़ी , समर्थन मूल्य पर धान खरीदी , शराब बंदी , जैसे कई वादे किये उसमे से कुछ पूरा किये और कुछ को पूरा करने की तयारी कर रहे है . किन्तु वर्तमान समय में सांसद बघेल द्वारा शराब बंदी पर सरकार को घेरना ऐसे समय में जब सरकार ने आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए आम जनता से सहयोग की और मदद की अपील की उस समय सरकार को चुनावी वादे याद दिलाने से ज्यादा ज़रूरी है कि सांसद होने के नाते केंद्र सरकार से छत्तीसगढ़ की जनता के लिए आर्थिक सहायता राशि की मांग करे . छत्तीसगढ़ ने ९ सांसद देश को दिए है किन्तु ९ सांसद में से शायद ही किसी संसद ने प्रदेश के सरकार के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की मांग की होगी . कहा थे ये संसद जब प्रदेश सरकार ने समर्थन मूल्य बढाने के लिए और किसानो को उनके फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए केंद्र से गुहार लगाईं थी आखिर फसल की कीमत में वृद्धि होती तो किसानो का ही फायदा होता ना कि प्रदेश सरकार कार का आखिर में प्रदेश सरकार ने ही किसानो के अंतर मूल्य को देने का वादा किया और इस संकट की घडी में उसे देने का भी एलान कर दिया . प्रदेश की जनता की खुशहाली के लिए प्रदेश के ही जनप्रतिनिधियों का मौन रहना क्या तर्क संगत है .
        भाजपा ने १५ साल के राज में ऐसी कई योजना निकाली और गरीब परिवार को जन्म से लेकर मृत्यु तक की वस्तुए मुफ्त में देने की कवायद शुरू की साथ ही प्रदेश में १५ सालो तक जनता को खुलकर शराब भी पिलाई सत्ता के आखिरी पड़ाव में शराब बिक्री का अधिकार भी शासन ने अपने हांथो में ले जनता को खूब झक कर शराब भी पिलाई अब शराब बंदी की बात कह रही है . भूपेश सरकार ने शराब बंदी का वडा किया और उसे चुनाव पूर्व तक इसको अमल में लाना ही होगा किन्तु शराब बंदी के कारण होने वाली आर्थिक हानि के भरपाई के लिए भी कोई मार्ग निकलना होगा . समय के साथ जिस तरह वादे पुरे हो रहे है शराबबंदी पर भी किया वादा पूरा होगा और अगर ऐसा न हुआ तो जनता मतदान में इसका जवाब देगी किन्तु वर्तमान समय में कोरोना संकट से जंग ज़रूरी है और इस समय कोरोना को हराना है ना कि एक दुसरे पर आरोप लगाना है .
      प्रदेश में दुर्ग सांसद जिस तरह से सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे है क्या उनका उद्देश्य शराबबंदी है या शराब बंदी के सहारे प्रदेश अध्यक्ष के दौड़ में अपनी उपस्थिति दर्ज करने की .स्थिति चाहे जो भी हो राजनितिक परिवेश चाहे जो भी हो किन्तु वर्तमान समय में राजनीति से ज्यादा ज़रूरी कोरोना से मुक्ति की है . कोरोना की जंग अगर समाज ना जीत पाए तो शायद राजनीती करने वाले ही ना रहे , आम जनता ही ना रहे , गरीब ही ना रहे . कोरोना के कारण ऐसे कई परिवार है जो आर्थिक बोझ के तले दबे हुए है और सामान्य स्थिति में आने में जाने कितने साल लग जाए . आज देश का हर नागरिक चिंतित है और कोरोना से मुक्ति का साधन खोज रहा है ऐसे समय में राजनीती ना कर सिर्फ जनता के हित का ही सोंचना ज्यादा ज़रूरी है . शराब समाज के लिए हानिकारक है किन्तु सालो की आदत को एक ही पल में ख़त्म करना असंभव सा है किन्तु असंभव नहीं शराब बंदी से एक स्वक्ष समाज का निर्माण होता है और इसका विरोध सही है किन्तु वर्तमान समय में शराबबंदी से ज्यादा ज़रूरी कोरोना से मुक्ति है जिसके लिए सभी को मिलकर लड़ना है और महामारी को भगाना है ...

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