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दुर्ग : जनता की अनदेखी और अंधेरे में डूबा विकास, जिम्मेदार कौन?
दुर्ग / शौर्यपथ विशेष /
दुर्ग नगर निगम और विधानसभा क्षेत्र की जनता इन दिनों गहरी निराशा और असंतोष का अनुभव कर रही है। महापौर श्रीमती अलका बाघमार और क्षेत्रीय विधायक गजेंद्र यादव – दोनों ही निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से शहरवासियों ने जो अपेक्षाएँ की थीं, वे अब सवालों के कटघरे में हैं। विकास की जगह अनदेखी, और विश्वास की जगह अब पछतावा सामने आ रहा है।
आवारा मवेशियों का आतंक और अतिक्रमण की भरमार
शहर की सड़कों पर मवेशियों की लगातार बढ़ती मौजूदगी यातायात बाधित कर रही है, साथ ही दुर्घटनाओं की आशंका को बढ़ा रही है। विडंबना यह है कि जहाँ एक ओर शहर की मुख्य सड़कों पर यह संकट है, वहीं दूसरी ओर महापौर कभी नालियों की सफाई निरीक्षण में, तो कभी छोटे कार्यक्रमों में व्यस्त रहती हैं। जनता सवाल पूछ रही है कि प्राथमिक समस्याओं की अनदेखी आखिर क्यों?
इसी प्रकार, कपड़ा लाइन और चप्पल लाइन में अतिक्रमण हटाने की निगम की कार्रवाई महज 'कागजी कार्रवाईÓ बनकर रह गई है। न व्यापारियों को कोई ठोस नुकसान पहुँचा, न आम जनता को कोई राहत मिली। अतिक्रमण का वही पुराना चेहरा अब फिर उभर आया है।
स्ट्रीट लाइट की रोशनी बुझी, उम्मीदें भी फीकी
पटेल चौक से ग्रीन चौक तक की स्ट्रीट लाइट्स का हाल बेहाल है कुआं चौक से पुराने बस स्टैंड तक का क्षेत्र अंधेरे में डूबा हुआ है। यहाँ तक कि इंदिरा मार्केट मुख्य मार्ग, जहाँ चंद महीने पहले विधायक गजेंद्र यादव ने स्ट्रीट लाइट का उद्घाटन किया था, वहाँ की लाइटें दो से ढाई महीने से बंद हैं। उद्घाटन के समय बड़े-बड़े वादे किए गए थे, लेकिन वे वादे रोशनी की तरह ही बुझ गए हैं।
इसी तरह गौरवपथ, जो कभी शहर की शोभा कहलाता था, अब बरसात में आवारा मवेशियों और अंधेरे की मिसाल बन गया है। पिछली सरकार ने इसके सौंदर्यीकरण पर लाखों खर्च किए थे, लेकिन वर्तमान समय में वहाँ न रख-रखाव है, न रोशनी।
गंदगी, कचरे के ढेर और गुटबाजी की सियासत
सड़क किनारे लगे कचरे के ढेर, बदबूदार नालियाँ और खुले में घूमते पशु यह बताने के लिए काफी हैं कि नगर निगम की साफ-सफाई व्यवस्था चरमराई हुई है। जनता का आक्रोश तब और बढ़ जाता है जब उन्हें यह एहसास होता है कि यह सब उस शहर में हो रहा है जिसने विधानसभा, नगर निगम और लोकसभा तीनों स्तरों पर अपने मतों से प्रतिनिधियों को चुना है।
जनता का कहना है कि जब नगर निगम महापौर और विधायक दोनों एक ही दल के हों, तब इस तरह की बदहाल स्थिति नहीं होनी चाहिए। लेकिन वर्तमान में गुटबाजी और आपसी समन्वय की कमी विकास कार्यों पर भारी पड़ रही है। जनप्रतिनिधियों के बीच दिख रही यह 'राजनीतिक दूरीÓ कहीं न कहीं शहर की अधूरी सड़कों, जले हुए बल्बों, और कूड़े के ढेर में झलक रही है।
जनता पूछ रही है सवाल, जवाब कौन देगा?
अब जनता सवाल कर रही है –क्या केवल उद्घाटन कर देना ही विकास है?,क्या वार्डों में घूमकर नालियाँ देखना ही समाधान है?,क्या शहर को अंधेरे, अतिक्रमण और कचरे के हवाले छोड़ देना ही राजनीति है?
शहर के दोनों प्रमुख जनप्रतिनिधियों – विधायक गजेंद्र यादव और महापौर अलका बाघमार – की जिम्मेदारी बनती है कि वे आपसी गुटबाजी से ऊपर उठकर जनता के हित में समन्वय से काम करें।
जनता ने उन्हें 5 वर्षों के लिए चुना है, अपनी सेवा के लिए – न कि बहानों, दिखावे और उदासीनता के लिए।
यदि यही हाल रहा तो दुर्ग की जनता का भरोसा न केवल टूटा हुआ माना जाएगा, बल्कि यह भी साबित होगा कि विकास कार्यों को लेकर की जा रही लापरवाही एक सुनियोजित राजनीतिक चुप्पी का हिस्सा है।
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