“दुर्ग में विपक्ष गायब! नेता प्रतिपक्ष को बस शासकीय सुविधा चाहिए, जनता की आवाज़ नहीं”
“इतना शांत विपक्ष कभी नहीं देखा—संजय कोहले की चुप्पी ने कांग्रेस संगठन की पोल खोल दी”
दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग नगर निगम में विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस आजकल एक सवाल से घिरी हुई है—क्या उनका नेता प्रतिपक्ष जनता की आवाज़ उठाने के लिए चुना गया था या सिर्फ शासकीय कक्ष पाने के लिए?
शहर में आज यही चर्चा है कि बीते छह महीने में विपक्ष के नेता संजय कोहले की आवाज़ सिर्फ एक ही मुद्दे पर सुनाई दी—अपने लिए कक्ष का आवंटन।
जहाँ दुर्ग में बदबूदार मोहल्लों की समस्या,मुख्य मार्गों पर जानवरों की फौज,गड्ढों से पटी सड़कें,अंधेरी गलियाँ,शनिवार बाजार का अवैध संचालन,नलघर हादसा,और अतिक्रमण पर पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयाँ
लगातार जनता को परेशान कर रही थीं वहीं दूसरी ओर विपक्ष के नेता को इन मुद्दों पर न किसी आंदोलन की ज़रूरत महसूस हुई, न किसी सशक्त विरोध की।
कक्ष मिला… और विपक्ष मौन
संजय कोहले ने छह महीनों तक आयुक्त कार्यालय के नीचे जमीन पर बैठकर अपना “कार्यालय” बनाकर विरोध जताया। पर जैसे ही निगम ने कक्ष का आवंटन कर दिया—विरोध भी समाप्त, आवाज़ भी समाप्त, और विपक्ष भी समाप्त।इस खामोशी ने विपक्ष की विश्वसनीयता पर जोरदार सवाल खड़े कर दिए हैं।
जनता तंज कसते हुए कह रही है—
“कोहले जी की आवाज़ जनता के लिए नहीं, बल्कि सिर्फ कक्ष के लिए निकलती है!”
इतिहास में इतना कमजोर विपक्ष कभी नहीं दिखा
दुर्ग के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इतना निष्क्रिय विपक्ष शहर ने दशक भर में पहली बार देखा है।जबकि पिछली परिषद में, तब कम संख्या बल के बावजूद BJP नेता प्रतिपक्ष अजय वर्मा
लगातार—आंदोलन,धरना,तीखे विरोध,और हर नीति-विरुद्ध निर्णय पर सख्त बयान देकर जनता की आवाज़ बनते थे। मगर वर्तमान में नेता प्रतिपक्ष संजय कोहले के कामों का मूल्यांकन जनता यूँ कर रही है—
“10% भी विपक्ष की भूमिका निभा लेते तो बड़ी बात होती।”
क्या परदे के पीछे कोई ‘सेटिंग’?
शहर में यह सवाल अब खुलेआम उठ रहा है कि “क्या शहरी सरकार और विपक्ष के बीच कोई बड़ी सेटिंग है, जिसके कारण कोहले हर मामले में मौन हैं?”कई कांग्रेसी पार्षद भी निजी बातचीत में इस बात पर हैरानी जताते हैं कि इतने बड़े मुद्दों पर संजय कोहले की चुप्पी ने संगठन की छवि को गंभीर नुकसान पहुँचाया है।
पूर्व महापौर धीरज बाकलीवाल की छवि पर भी सवाल
नेता प्रतिपक्ष के चयन में जो महत्वपूर्ण भूमिका पूर्व महापौर धीरज बाकलीवाल की थी,उस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि—“क्या ऐसे निर्जीव नेतृत्व को विपक्ष की बागडोर देना सही निर्णय था?”
कांग्रेस की स्थिति—अस्तित्व संकट?
शहर की राजनीतिक हवा कह रही है कि अगर विपक्ष की यही स्थिति रही तो आने वाले वर्षों में दुर्ग में कांग्रेस का रहा-सहा अस्तित्व भी गायब हो सकता है।आज की स्थिति यह है कि नेता प्रतिपक्ष संजय कोहले अपनी भूमिका का निर्वहन बस कुछ ज्ञापन देकर और कागजी बयान जारी कर कर रहे हैं—
और शहर की जनता पूछ रही है—
“क्या यही है दुर्ग का विपक्ष? या फिर यह विपक्ष सिर्फ सुविधा पाने वाली संस्था बन चुका है?”