August 11, 2025
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विशेष आलेख
बिलासपुर के सांसद-नेता और अनुभवी वकील अरुण साव का राजनीतिक उत्थान, 9 अगस्त 2022 के नेतृत्व वितरण से नवम्बर 2023 में उपमुख्यमंत्री बनने तक का क्रम — एक ऐसा अध्याय जो उनके समर्थकों और प्रदेश की राजनीति दोनों के लिए निर्णायक साबित हुआ।

छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री अरुण साव (जन्म: 25 नवम्बर 1968) का राजनीतिक और वैधानिक सफर पारंपरिक पृष्ठभूमि से निकलकर राज्य के उच्चतम राजनीतिक मंच तक पहुंचने का प्रेरक अंकन है। रायपुर में जन्मे अरुण साव किसान परिवार से आते हैं; उनके पिता स्वर्गीय श्री अभय राम साव और माता श्रीमती प्रमिला साव हैं। उन्होंने 17 अप्रैल 2000 को श्रीमती मीना साव से विवाह किया और उनका एक पुत्र है। शिक्षा की दृष्टि से उन्होंने मुंगेली के शासकीय एस.एन.जी. कॉलेज से बी.कॉम. और बिलासपुर के कौशलेन्द्र राव लॉ कॉलेज से एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की।

विधिक जीवन में अरुण साव ने मुंगेली सिविल कोर्ट में प्रैक्टिस से अपने करियर की शुरुआत की और बाद में बिलासपुर उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्य करते हुए राज्य की सेवा में भी गहन भूमिका निभाई। उनकी सरकारी सेवा-भूमिका इस प्रकार रही: मार्च 2005 से फरवरी 2006 तक उप शासकीय अधिवक्ता, मार्च 2006 से अगस्त 2013 तक शासकीय अधिवक्ता, और सितम्बर 2013 से जनवरी 2018 तक छत्तीसगढ़ के उप महाधिवक्ता के रूप में उन्होंने दायित्व निभाये — एक ऐसा क्रम जो उन्हें विधिक विशेषज्ञता के साथ प्रशासनिक अनुभव भी देता है।

सामाजिक और छात्र-जीवन में वे 1990 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व अन्य संगठनों से सक्रिय रहे, तथा साहू समाज के तहसील, जिला और प्रादेशिक स्तर पर विभिन्न जिम्मेदारियाँ निभाईं। खेलों और सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रति उनकी रुचि—कबड्डी, वॉलीबाल, क्रिकेट और बैडमिंटन—उन्हें जमीनी स्तर से जोड़ती है और संगठनात्मक क्षमता के विकास में मदद करती है।

राजनीतिक रूप से अरुण साव का बड़ा पड़ाव 2019 में आया जब वे बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए। 17वीं लोकसभा में वे कोयला व खान मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति तथा कोयला और इस्पात संबंधी स्थायी समिति के सदस्य रहे — जिनसे उनके संसदीय अनुभव और क्षेत्रीय उद्योगों के साथ जुड़ाव को मजबूती मिली।

उनके राजनीतिक जीवन का निर्णायक मोड़ था 9 अगस्त 2022 — जिस दिन उन्हें भारतीय जनता पार्टी, छत्तीसगढ़ का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उस समय प्रदेश में सत्तारूढ़ सरकार के बावजूद संगठनात्मक मजबूती और विरोधी राजनीति को संगठित करने की जिम्मेदारी अरुण साव के हाथों सौंपी गई। भाजपा संगठन ने 9 अगस्त 2022 के बाद संगठनात्मक पुनर्रचना और सक्रियता बढ़ाकर लगभग चौदह माह के भीतर वह राजनीतिक माहौल तैयार कर दिया, जिसका फल नवम्बर 2023 में भाजपा की प्रदेश में सत्ता वापसी के रूप में सामने आया। परिणामस्वरूप राज्य सरकार बनने पर अरुण साव को उपमुख्यमंत्री का महत्त्वपूर्ण पद भी सोंपा गया — एक पद जिसे वे अपने व्यापक संगठनात्मक और विधिक अनुभव के साथ निभा रहे हैं।
9 अगस्त 2022 का सोशल मीडिया संदेश और नियुक्ति पत्र

उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने इस दिन को अपने जीवन का अहम मोड़ मानते हुए अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा—

    "आज के ही दिन 9 अगस्त 2022 को भारतीय जनता पार्टी केंद्रीय नेतृत्व ने मुझे जैसे सामान्य कार्यकर्ता को छत्तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की कमान संभालने का अवसर दिया था।
    पूरे प्रदेश का दौरा कर, बूथ से लेकर प्रदेश स्तर के कार्यकर्ताओं को उनकी शक्ति का अहसास दिलाया और प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं और साथी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर हमने कांग्रेस सरकार के भ्रष्ट किले को ढहा दिया।
    और 14 माह के सामूहिक परिश्रम और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मोदी की गारंटी की आधार पर प्रदेश की जनता ने भाजपा की सुशासन सरकार को चुना।"

इसके साथ ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह द्वारा जारी आधिकारिक नियुक्ति पत्र भी साझा किया, जिसमें 9 अगस्त 2022 से प्रभावी रूप से उन्हें छत्तीसगढ़ भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
आलेख - शरद पंसारी
संपादक - दैनिक समाचार

  रायपुर / शौर्यपथ /

    छत्तीसगढ़ के राजस्व तंत्र को पिछले सात दिनों से ठप करने वाली तहसीलदार और नायब तहसीलदारों की अनिश्चितकालीन हड़ताल आखिरकार बुधवार को स्थगित कर दी गई। प्रदेश भर के करीब 550 राजस्व अधिकारी अब दोबारा काम पर लौट आए हैं। यह निर्णय बुधवार को राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा और तहसीलदार संघ के प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई अहम बैठक के बाद लिया गया।
  तहसीलदार संघ के प्रदेश अध्यक्ष कृष्ण कुमार लहरे ने कहा,
"हमारी 17 सूत्रीय मांगों को मंत्री ने गंभीरता से सुना है और आश्वासन दिया है कि इन पर शीघ्र कार्यवाही होगी। इसी विश्वास के आधार पर हम फिलहाल हड़ताल स्थगित कर रहे हैं।"

30 जुलाई से थे हड़ताल पर

    तहसीलदार और नायब तहसीलदार 30 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे। राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के सभी जिलों में राजस्व से जुड़े कार्य पूरी तरह ठप पड़ गए थे। जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, सीमांकन, बटांकन, भूमि अभिलेख सुधार जैसी जनहित से जुड़ी सेवाएं प्रभावित हुई थीं।

प्रमुख मांगें जो बनीं संघर्ष का कारण
 तहसीलदार संघ ने सरकार के समक्ष 17 सूत्रीय मांगों की एक विस्तृत सूची पेश की थी, जिनमें प्रशासनिक ढांचे से लेकर सेवा शर्तों तक कई अहम मुद्दे शामिल थे:
     तहसीलों में पर्याप्त स्टाफ की नियुक्ति - पटवारी, कंप्यूटर ऑपरेटर, चपरासी जैसे पदों की कमी से जूझ रहे तहसीलों को लोक सेवा गारंटी अधिनियम से छूट देने की मांग।
    पदोन्नति नियमों में सुधार-तहसीलदार से डिप्टी कलेक्टर बनने की प्रक्रिया में पुराने 50:50 अनुपात की बहाली।
    राजपत्रित दर्जा और ग्रेड पे में वृद्धि-नायब तहसीलदारों को राजपत्रित अधिकारी घोषित करने व ग्रेड पे में संशोधन की मांग।
    कार्य सुविधा व सुरक्षा-कार्यालयीय वाहन, सरकारी मोबाइल नंबर, सुरक्षा गार्ड, तकनीकी स्टाफ और कोर्ट ड्यूटी को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश।
    निलंबन व जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता-जांच अवधि 15 दिनों में समाप्त करने व बिना उचित कारण के निलंबन पर रोक।
    संघ की मान्यता व संवाद की व्यवस्था-तहसीलदार संघ को आधिकारिक मान्यता देने की मांग ताकि शासन के साथ सीधा संवाद संभव हो सके।
प्रशासन को राहत, जनता को उम्मीद

  हड़ताल खत्म होने के बाद तहसील कार्यालयों में फिर से कामकाज शुरू हो गया है। इससे न केवल राजस्व कार्यों की लंबित फाइलों को गति मिलेगी, बल्कि आम नागरिकों को भी राहत मिलेगी। कई जिलों में सीमांकन और मुआवजा वितरण जैसे कार्य प्राथमिकता पर लिए जा रहे हैं।

राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अहम घटनाक्रम
  इस हड़ताल को लेकर सरकार पर प्रशासनिक असंतोष संभालने में विफल होने के आरोप लग रहे थे। अब जबकि संघ ने सरकार के आश्वासन पर हड़ताल स्थगित की है, यह सरकार के लिए भी एक अवसर है कि वह संवाद और समाधान की नीति से प्रशासनिक तंत्र को मजबूत करे।

आगे की राह
  हालांकि हड़ताल "स्थगित" की गई है, समाप्त नहीं। इसका अर्थ यह भी है कि यदि सरकार ने शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए, तो राजस्व विभाग फि र से संकट में आ सकता है। आने वाले सप्ताह सरकार की मंशा और कार्यशैली इस पूरे घटनाक्रम का भविष्य तय करेगी।
 विशेष टिप्पणी: राजस्व विभाग किसी भी राज्य के प्रशासनिक और विकासात्मक ढांचे की रीढ़ होता है। तहसीलदारों की मांगें केवल व्यक्तिगत सुविधाओं तक सीमित नहीं, बल्कि कार्यकुशलता और जवाबदेही से जुड़ी हैं। सरकार यदि इस अवसर को संरचनात्मक सुधार के रूप में लेती है, तो यह छत्तीसगढ़ के राजस्व प्रशासन में ऐतिहासिक परिवर्तन का आधार बन सकता है।

    रायपुर / शौर्यपथ / क्रेडा अध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी पर तीन प्रतिशत कमीशन मांगने और ठेकेदारों को धमकाने के आरोपों के बाद अब इस प्रकरण में सियासी तापमान और बढ़ गया है। जहां एक ओर कांग्रेस ने खंडन पत्रों को दबाव और डर के तहत कराया गया बताया है, वहीं भाजपा खामोश नजर आ रही है। कांग्रेस ने पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए भूपेंद्र सवन्नी को तत्काल पद से हटाने की मांग की है।
  प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने आज मीडिया से चर्चा करते हुए कहा, "यह पहला मौका है जब किसी शिकायत की जांच नहीं की जा रही, बल्कि खंडन करवाया जा रहा है। मुख्यमंत्री को भेजी गई ठेकेदारों की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री सचिवालय ने स्वयं इस पर पत्र जारी कर पूरी जानकारी मांगी थी। बावजूद इसके, अब जो खंडन सामने आ रहे हैं, वो शिकायतकर्ताओं से नहीं, बल्कि अन्य ठेकेदारों से करवाए जा रहे हैं, जोकि बेहद गंभीर मामला है।"
  धनंजय ठाकुर ने सीधे तौर पर भूपेंद्र सवन्नी पर आरोप लगाया कि उन्होंने शिकायतकर्ताओं को धमका कर, दबाव बना कर खंडन के लिए विवश किया। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि यही तरीका अगर मुख्यमंत्री तक की गई शिकायतों के साथ अपनाया जा रहा है, तो आम नागरिकों को न्याय की उम्मीद कैसे होगी?

    "क्या भूपेंद्र सवन्नी मुख्यमंत्री से भी ऊपर हैं, जो जांच के आदेश के बाद भी वह ठेकेदारों को धमका रहे हैं? क्या भाजपा सरकार में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है?" – धनंजय ठाकुर

? पृष्ठभूमि में क्या है मामला?

इस पूरे विवाद की शुरुआत भूपेंद्र सवन्नी के खिलाफ ठेकेदारों की ओर से मुख्यमंत्री को भेजी गई शिकायत के सोशल मिडिया में उजागर होने के बाद राजनैतिक रंग चढ़ा । शिकायत में आरोप था कि क्रेडा में कार्य कराने वाले ठेकेदारों से भूपेंद्र सवन्नी तीन प्रतिशत कमीशन मांगते हैं और मना करने पर काम में अड़चन डालने की धमकी देते हैं।
  शिकायत पर मुख्यमंत्री सचिवालय ने विभागीय स्तर पर संज्ञान लेते हुए क्रेडा से विवरण मांगा था, लेकिन इसके तुरंत बाद ही कुछ ठेकेदारों के नाम से खंडन पत्र सामने आने लगे, जिनमें आरोपों को निराधार बताया गया।
  हालांकि, अब कांग्रेस का दावा है कि जो खंडन दिए जा रहे हैं, वे उन्हीं ठेकेदारों से नहीं हैं जिन्होंने शिकायत की थी। कांग्रेस इसे भाजपा द्वारा प्रशासनिक दबाव और राजनीतिक संरक्षण के तहत कराया गया ‘खंडन प्रबंधन’ बता रही है।
? कांग्रेस ने क्या मांग की है?

कांग्रेस की मांग है कि इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय स्वतंत्र जांच हो। जब तक जांच पूरी न हो, भूपेंद्र सवन्नी को उनके पद से हटाया जाए। जिन ठेकेदारों ने शिकायत की है, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
  धनंजय सिंह ठाकुर ने आगे कहा, “भाजपा की सरकार में सुशासन की बात बेमानी हो चुकी है। जब मुख्यमंत्री तक की गई शिकायतों को दबाया जा रहा है तो यह संकेत है कि प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं खतरे में हैं। गुंडागर्दी की ये राजनीति अब उजागर हो रही है।”

रायपुर, 29 जुलाई 2025 | विशेष संवाददाता

छत्तीसगढ़ भाजपा के युवा नेता एवं केड्रा इकाई रायपुर के नव नियुक्त अध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी इन दिनों गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। ऊर्जा विभाग से संबंधित एक कार्य में निजी ईकाइयों से 3% कमीशन की मांग और न देने पर धमकी देने की शिकायत मुख्यमंत्री सचिवालय तक पहुँच चुकी है। इस पत्र की प्रति सार्वजनिक होने के बाद मामला गरमा गया है और अब यह एक बड़े राजनीतिक विवाद का रूप ले चुका है।


शिकायत और मुख्यमंत्री सचिवालय की कार्रवाई
दिनांक 20 जून 2025 को रायपुर की एक ईकाई द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में यह आरोप लगाया गया कि भूपेंद्र सवन्नी ऊर्जा विभाग के तहत नए सिस्टम निर्माण संबंधी कार्यों के लिए ठेकेदारों और ईकाइयों से 3% की कथित मांग कर रहे हैं। शिकायत में कहा गया है कि जो ईकाइयाँ यह "हिस्सा" देने से इनकार करती हैं, उन्हें धमकाया जाता है और उनके कार्य रोके जाते हैं।

इस पर मुख्यमंत्री सचिवालय ने त्वरित संज्ञान लेते हुए ऊर्जा विभाग को पत्राचार भेजकर पूरे प्रकरण की जनहित में वेब पोर्टल पर अपलोडिंग सहित नियमानुसार कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। अवर सचिव अरविंद कुमार खोपड़े द्वारा जारी पत्र में स्पष्ट किया गया है कि मामला गंभीर है और इसकी पड़ताल आवश्यक है।


प्रदेश कांग्रेस ने बनाया बड़ा राजनीतिक हथियार
शिकायत पत्र के सार्वजनिक होते ही यह मुद्दा प्रदेश कांग्रेस के लिए बैठे-बैठाए एक बड़ा राजनीतिक हथियार बन गया है। कांग्रेस नेताओं द्वारा इसे सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर तेजी से साझा किया जा रहा है।
ट्विटर (एक्स), फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे मंचों पर कांग्रेस प्रवक्ताओं और नेताओं ने भूपेंद्र सवन्नी को ‘भ्रष्टाचार का प्रतीक’ बताते हुए भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है। कई वरिष्ठ नेताओं ने मांग की है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच हो और दोषी को पार्टी से निष्कासित किया जाए।

कांग्रेस प्रवक्ता का कहना है कि “यह मामला भाजपा के युवाओं में फैलते सत्ता-प्रदत्त भ्रष्टाचार का प्रमाण है। जब युवा नेतृत्व ही भ्रष्टाचार में लिप्त होगा तो राज्य की राजनीतिक संस्कृति का क्या होगा?”


भूपेंद्र सवन्नी और पूर्व विवाद
भूपेंद्र सवन्नी पर यह कोई पहला आरोप नहीं है। पूर्व में भी मंडल एवं अन्य शासकीय कार्यों में हस्तक्षेप, नियुक्तियों में मनमानी और अधिकारियों पर दबाव डालने जैसे आरोप उन पर लग चुके हैं। हालांकि, इस बार मामला दस्तावेजी प्रमाणों के साथ सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुँच चुका है, जिससे इसकी संवेदनशीलता और भी बढ़ गई है।


राजनीतिक विश्लेषण
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला अब केवल प्रशासनिक जांच का नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति और साख का मुद्दा बन गया है। भाजपा को जहाँ आंतरिक स्तर पर इस पर संज्ञान लेना होगा, वहीं कांग्रेस इस पूरे प्रकरण को आगामी नगर निकाय और पंचायत चुनावों से पहले एक नैतिक मुद्दा बनाकर जनता के बीच ले जाने की तैयारी में है।


निष्कर्ष
भूपेंद्र सवन्नी के खिलाफ लगे आरोपों ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। एक ओर भाजपा के लिए यह नेतृत्व की जवाबदेही का सवाल है, वहीं कांग्रेस इसे भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनजागरण का अवसर मान रही है। अगर जांच निष्पक्ष होती है, तो यह पूरे राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकती है।


(यह रिपोर्ट तीन आधिकारिक पत्रों एवं सोशल मीडिया पर जारी प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण पर आधारित है। संबंधित पक्षों से सफाई या प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर उसे आगामी संस्करण में प्रकाशित किया जाएगा।)

दुर्ग। शौर्यपथ।
नगर पालिका निगम दुर्ग में नवनियुक्त महापौर श्रीमती अलका बाघमार ने अपने 100 दिनों के कार्यकाल में ही अपनी कार्यशैली की ऐसी अमिट छाप छोड़ दी है, जिसे जनता पीढ़ियों तक याद रखेगी! दुर्ग निगम क्षेत्र इन दिनों खुशहाली के ऐसे वातावरण में जी रहा है कि मानो स्वर्ग ही धरती पर उतर आया हो।

    दुर्ग नगर निगम अब केवल नगर निगम नहीं, बल्कि "विकास तीर्थ" बन चुका है, जहां आकर योजनाएं मोक्ष प्राप्त करती हैं और समस्याएं स्वर्गवास को प्राप्त हो जाती हैं।

जन-जन की महापौर: सुलभता की नई मिसाल


पूर्व के शासनकाल में शहरी सरकार के मुखिया से मिलने के लिए महीनों गुजर जाते थे, क्योंकि वे चाटुकारों से घिरे रहते थे। परंतु वर्तमान समय में ऐसी स्थिति बिल्कुल भी नहीं है। अब आम जनता महापौर से आसानी से मिल सकती है! मानो महापौर महोदया हर समय जनता-जनार्दन के लिए ही उपलब्ध हों। यह सुलभता ही उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण है।" लोग अब राशन की दुकान से कम और महापौर के दर्शन से ज़्यादा तृप्ति पा रहे हैं।"

दुर्ग का कायाकल्प: सुंदरता और स्वच्छता का संगम

क्या सड़कें, क्या गलियां – हर तरफ स्वच्छता का अद्भुत साम्राज्य! आधे घंटे की बारिश तो छोड़िए, अगर प्रलय भी आ जाए तो नालियों में जाम की स्थिति नहीं रहेगी। पूरे शहर में कहीं भी पानी का जमावड़ा देखने को नहीं मिलता है; सड़कें गड्ढा रहित होकर ऐसी हो गई हैं जैसे घर का आंगन हो।

   " ऐसी सफाई तो कभी इंसान के मन में भी नहीं देखी गई, जैसी दुर्ग की गलियों में देखी जा रही है! अब कचरा खुद चलकर स्वेच्छा से डंपिंग यार्ड में चला जाता है।"
  "रात के समय शहर में घूमने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे चांद की रोशनी अपनी छटा बिखेर रही हो, हर कोना जगमगा रहा है।"

   शहर के मध्य सुराना कॉलेज के सामने का क्षेत्र जो कभी बदबूदार वातावरण से घिरा रहता था, अब खुशबूदार वातावरण में निर्मित है। कभी यहां कचरे का ढेर होता था, अब सुंदर उद्यान बन चुके हैं। चौक-चौराहों की बात करें तो उनकी सुंदरता अद्भुत है, मानो हर चौराहा कला का एक नायाब नमूना हो। कचरा निष्पादन के लिए बड़ी-बड़ी डंपिंग मशीनें लग चुकी हैं, जिससे शहर की गंदगी का नामोनिशान मिट गया है।
अतिक्रमण मुक्त दुर्ग: न्याय और व्यवस्था का राज

दुर्ग निगम क्षेत्र की सड़कें अतिक्रमण मुक्त हो गई हैं, और आम जनता के यातायात में अतिक्रमणकारियों के कारण हो रही बाधाएं अब दूर हो गई हैं। हर तरफ खुशी का वातावरण है।

    "सड़कों से अतिक्रमण इस कदर हट गया है कि अब हर वाहन को चलने से पहले सड़क से अनुमति लेनी पड़ती है कि कहीं वह उसकी स्वच्छता तो नहीं बिगाड़ रहा।"

   अवैध रूप से बिल्डिंग/घर बनाने वालों को ख्वाब में भी अब निगम के भवन विभाग जाना पड़ता है, और शहर में अवैध प्लाटिंग पूरी तरह बंद हो गई है। सड़कों पर अब आवारा गाय कहीं नजर नहीं आतीं – वे भी शायद महापौर के शासन से प्रभावित होकर अनुशासित हो गई हैं! इंदिरा मार्केट अब प्रदेश का सबसे सुंदर बाजार नजर आने लगा है। व्यापारियों ने बरामदे का स्थान खाली कर दिया है ताकि आम जनता के आवागमन में किसी प्रकार की दिक्कत न हो।

जिस भावभूमि बिल्डर द्वारा निगम की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था, वह अब कब्जा मुक्त हो चुका है। यह महापौर की दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि उन्होंने न्याय और व्यवस्था को सर्वोपरि रखा है। गोठान की गायों के लिए भरपूर चारा उपलब्ध कराने में शहरी सरकार की अहम भूमिका नजर आ रही है, जो पशु कल्याण के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है।

भ्रष्टाचार का युग समाप्त: पारदर्शिता और ईमानदारी का नया दौर

घोटाले की बात करें तो अब घोटाले की बात बहुत दूर नजर आती है। आम जनता के सपनों में भी घोटाले नजर नहीं आते। अब तो आम जनता निगम के नोटिस को देखते ही कांप जाती है – भ्रष्टाचार का निगम के दरवाजे में आगमन बिल्कुल बंद हो चुका है।

    "जिन अफसरों पर कभी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, अब वे ध्यान और प्रायश्चित में लीन हो चुके हैं। बताया जाता है कि कुछ तो हिमालय की ओर भी प्रस्थान कर चुके हैं।"

  "निगम के कर्मचारी रोज सुबह उठकर शहरी सरकार के कार्यों की आराधना करते हैं, मानो वे देवता समान हों।"

भले ही शहरी सरकार भाजपा की है, परंतु शहरी सरकार की न्याय प्रणाली में सुशासन एक बड़ा महत्वपूर्ण अंग माना जा रहा है। जिस अपंजीकृत संस्था राम रसोई के भूमि आवंटन पर विवाद उत्पन्न हुआ था, उस मामले पर शहरी सरकार ने दस्तावेजों का निरीक्षण किया और सभी गलतियों को संज्ञान में लेते हुए, भाजपा नेता और राम रसोई के संरक्षक चतुर्भुज राठी से राजनीतिक संबंधों को न निभाते हुए, निष्पक्ष कार्यवाही की और बस स्टैंड को एक व्यवस्थित बस स्टैंड के रूप में बना दिया।

    "यह महापौर का ही जादू है कि अब कागजों में भी सच्चाई झलकने लगी है – दस्तावेज़ भी डर के मारे झूठ बोलने से परहेज़ करते हैं।"

राजस्व वसूली में क्रांति: निगम बना आत्मनिर्भर

राजस्व वसूली के मामले में तो अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि साल भर में कम से कम ₹100 करोड़ की राजस्व वसूली हो जाएगी, जो कि एक अभूतपूर्व उपलब्धि है!

    "करदाता अब अपनी खुशी से टैक्स देने पहुंचते हैं, कुछ तो अतिरिक्त टैक्स देकर निकलते हैं यह कहते हुए कि "राशि कम लग रही है, कुछ और लें!"

प्रदेश सरकार से दुर्ग निगम में करोड़ों रुपए के कार्य अब तक महापौर के सानिध्य में आ चुके हैं, और ऐसी चर्चा है कि कई हजार करोड़ रुपए भी अब आने वाले समय में दुर्ग निगम में आ जाएंगे।

    शहरी सरकार, प्रदेश सरकार और उनके जनप्रतिनिधियों के साथ ऐसा तालमेल बैठाकर चल रही है कि मानो राज्य सरकार पैसे लेकर निगम के दरवाजे पर खड़ी हो, मिन्नतें कर रही हो कि दुर्ग निगम ये पैसे ले ले!

सामंजस्य और सम्मान: विपक्ष भी हुआ नतमस्तक

  पूर्व की शहरी सरकारो ने हमेशा विपक्ष का अपमान किया है, परंतु वर्तमान समय में शहरी सरकार के द्वारा विपक्ष के नेताओं का भी पूरा सम्मान किया जा रहा है। उन्हें बड़े-बड़े कार्यालय दिए गए हैं ताकि वे जनता की बातों को सुन सकें और अपनी बातों को शहरी सरकार के सामने रख सकें।

   अतिश्योक्ति " नगर निगम के मंत्रिमंडल में इतनी एकता है कि एक मंत्री खांसी भी करता है तो दूसरा टॉवल लेकर दौड़ पड़ता है। ऐसी सामूहिक भावना केवल महापौर के करिश्मे से संभव हो पाई है।"यह लोकतंत्र में सद्भाव की अद्भुत मिसाल है!

शहरी सरकार के मंत्रिमंडल की काबिलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर मंत्री आपस में अपनी कार्यो की रूपरेखा को भली-भांति उचित ढंग से निर्वाहन कर रहा है। आपसी मतभेद की कहीं बातें नजर नहीं आ रही हैं, और शहर के विधायक के साथ सामंजस्य की अद्भुत मिसाल सबके सामने नजर आ रही है। शासकीय सुविधाओं का दोहन करने के बजाय आम जनता की सुविधाओं के लिए शहरी सरकार कटिबद्ध है।

    अब नगर निगम के कर्मचारियों की सुबह 'सुशासन मंत्र' के जाप से शुरू होती है और रात 'महापौर चालीसा' के पाठ से समाप्त होती है।

निष्कर्ष: स्वर्णिम युग का प्रारंभ

पूर्व की शहरी सरकार के कार्यकाल को अब जनता बिल्कुल भूल चुकी है। ऐसी कोई बातें हैं जिनकी व्याख्या करते-करते सुबह से रात हो जाएगी, परंतु वर्तमान की शहरी सरकार की कार्यप्रणाली और सुशासन की बातें कभी खत्म नहीं होंगी। हर दृष्टिकोण से वर्तमान की शहरी सरकार, महापौर श्रीमती अलका बाघमार के सानिध्य में नई ऊंचाइयों को छू रही है, और हम धन्य हैं कि हम इस स्वर्णिम युग के साक्षी हैं!

    "यदि वर्तमान महापौर जी इसी गति से कार्य करती रहीं, तो संभावना है कि आने वाले दिनों में संयुक्त राष्ट्र भी दुर्ग निगम को 'ग्लोबल रोल मॉडल फॉर अर्बन गवर्नेंस' घोषित कर देगा।"

  भाजपा नेता के अपंजीकृत संस्था पर कार्यवाही हो गई ( विकाश के चश्मे से )

   मुक्तिधाम में पशु मृत आत्मा को श्रधांजलि देते हुए ( विकाश के चश्मे से )

   सडको पर अब आवारा पशु नजर नहीं आते (विकास के चश्मे से )

   इंदिरा मार्केट का सुन्दर रूप बरामदा हुआ कब्ज़ा मुक्त (विकास के चश्मे से )

लेखक: शरद पंसारी
(यह व्यंग्य लेख नगर निगम दुर्ग की प्रेस विज्ञप्तियों में दर्शाए गए विकास और जमीनी सच्चाई के तुलनात्मक विश्लेषण पर आधारित है। विकास के चश्मे से शहर में विकास कार्य और सुशासन चरम सीमा पर है )

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