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नई दिल्ली / एजेंसी / देश के लोकतंत्र के महापर्व के प्रथम चरम में 102 लोकसभा सीटो पर 21 राज्यों में चुनाव संपन्न हुआ . पिछले लोकसभा के मुकाबले इस बार वोट प्रतिशत कम रहा वही नागालैंड के ३० विधानसभा (०६ जिलो ) में जीरो प्रतिशत मतदान की खबर ने देश में बहस का मुद्दा छेड़ दिया . इन छह जिलो में पिछले विधानसभा चुनाव में मतदान हुआ किन्तु लोकसभा में जीरो प्रतिशत मतदान ने नागालैंड के विकास के मुद्दों की बात को देश के सामने ला दिया इसमें से कुछ विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के विधायक भी शामिल थे.
ईस्टर्न नागालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन काफी समय से एक अलग प्रशासन या राज्य की मांग कर रहा है, उसकी स्थानीय लोगों से चुनाव का बहिष्कार की अपील के बाद नागालैंड के छह जिलों में आज अब तक लगभग शून्य फीसदी मतदान दर्ज किया गया है. ये समूह वर्ष 2010 से छह पिछड़े जिलों को मिलाकर एक अलग प्रशासन या राज्य की मांग कर रहे हैं. उत्तर-पूर्वी राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी ने चुनावी प्रक्रिया को बाधित करने के लिए ईएनपीओ को नोटिस जारी किया है.
एक बयान में, शीर्ष चुनाव अधिकारी ने कहा कि समूह ने "आम चुनाव में मतदान करने के लिए पूर्वी नागालैंड क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के स्वतंत्र अभ्यास में हस्तक्षेप करके. अनुचित प्रभाव का डालने का प्रयास किया था." अधिकारी ने कहा, इसलिए ईएनपीओ को "कारण बताने का निर्देश दिया जाता है...कि भारतीय दंड संहिता की धारा 171सी की उपधारा के तहत कार्रवाई क्यों नहीं शुरू की जानी चाहिए."
ईएनपीओ ने जवाब दिया है कि सार्वजनिक अधिसूचना का "मुख्य लक्ष्य" पूर्वी नागालैंड क्षेत्र में गड़बड़ी की संभावना को कम करना था, जो हमारे अधिकार क्षेत्र में है, और असामाजिक तत्वों के जमावड़े से जुड़े जोखिम को कम करना है. संगठन ने इस तथ्य को रेखांकित किया कि "पूर्वी नागालैंड क्षेत्र वर्तमान में सार्वजनिक आपातकाल के अधीन है", और यह हितधारकों के साथ परामर्श के बाद घोषित किया गया था.
ईएनपीओ ने कहा, यह लोगों द्वारा एक "स्वैच्छिक पहल" थी, यह तर्क देते हुए कि धारा 171सी के तहत कार्रवाई "लागू नहीं है... क्योंकि किसी भी चुनाव में अनुचित प्रभाव से संबंधित कोई अपराध नहीं किया गया है..." बयान में कहा गया है, "यह देखते हुए कि बंद लोगों की स्वैच्छिक पहल थी, ईएनपीओ या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा जबरदस्ती या प्रवर्तन का कोई सवाल ही नहीं था." बयान में यह भी कहा गया है कि वह चुनाव आयोग के साथ सहयोग करने को तैयार है. कोई ग़लतफ़हमी या ग़लत व्याख्या हुई है."
30 मार्च को ईएनपीओ ने 20 विधायकों और अन्य संगठनों के साथ एक लंबी बैठक की, जिसमें उन्होंने लोकसभा चुनाव से पूरी तरह दूर रहने की बात दोहराई. पूर्वी नागालैंड विधायक संघ - जिसमें 20 विधायक शामिल हैं. उसने ईएनपीओ से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा था.
अगले दिन ईएनपीओ ने भारत निर्वाचन आयोग को चुनाव में वोट न डालने के अपने कदम के बारे में बताया. इसमें कहा गया है कि निर्णय को हल्के में नहीं लिया गया और यह "पूर्वी नागालैंड के लोगों की भावनाओं और आकांक्षाओं को दर्शाता है, जिन्होंने लोकतांत्रिक शासन के ढांचे के भीतर हमारे अधिकारों और आकांक्षाओं की अथक वकालत की है." इसमें कहा गया है कि यह निर्णय लोकतंत्र बनाम अवज्ञा का कार्य नहीं है.
ईएनपीओ ने पिछले साल के विधानसभा चुनाव से पहले भी बहिष्कार का आह्वान किया था, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आश्वासन के बाद इसे वापस ले लिया गया था. नागालैंड में एक लोकसभा सीट है, जिस पर 2018 के उपचुनाव के बाद से नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के तोखेहो येप्थोमी का कब्जा है, एनडीपीपी भाजपा की सहयोगी है.
नागालैंड के अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी एवा लोरिंग ने बताया कि इन 6 जिलों के 638 पोलिंग स्टेशंस पर चुनाव अधिकारी तैनात किए गए थे. इन 6 जिलों में 4 लाख से ज्यादा मतदाता हैं. इन मतदाताओं ने ENPO के प्रति अपना समर्थन दिखाया और चुनाव का बहिष्कार कर दिया.
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