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दुर्ग। शौर्यपथ। इस बार दीपावली से पहले ही शहर के दीये बुझने की चिंता आम हो चुकी है। नगर निगम दुर्ग का हाल ऐसा है कि उजाले का उत्सव अब सिर्फ एक ओर झुक गया है — महापौर श्रीमती अलका बाघमार के निवास की ओर। शहर की सड़कों, ठेकेदारों के घरों और कार्यालयों में अंधकार और निराशा पसरी है, जबकि महापौर निवास पर रोशनी के झरने और सजावटें यह बता रही हैं कि सत्ता का उत्सव जनता की भावनाओं से अलग राह पर बढ़ चला है।कभी शहर की जनता ने बहुत विश्वास और उम्मीद के साथ श्रीमती अलका बाघमार को चुना था। जनता का मानना था कि यह नाम दुर्ग के विकास का नया अध्याय लिखेगा, पर अब वही जनता अपने ही निर्णय पर मौन पछतावा व्यक्त कर रही है।
दरअसल, नगर निगम दुर्ग के इतिहास में यह पहला कार्यकाल है जब जनता, ठेकेदार और अधिकारी-कर्मचारी—तीनों ही वर्ग एक साथ हतोत्साहित और निराश नजर आ रहे हैं। ऐसा सामूहिक अवसाद पहले कभी किसी महापौर के कार्यकाल में देखने को नहीं मिला।शहर के हालात खुद बयान दे रहे हैं —
सड़कों पर गड्ढे आम दृश्य बन चुके हैं, गलियों में कचरे के ढेर सजावटी झालरों का मज़ाक उड़ाते हैं, आवारा पशु रात्रि प्रहरी बने बैठे हैं, और प्रशासन बस ‘दीये जलाओ, सच्चाई मत दिखाओ’ की नीति पर चलता दिख रहा है।वित्तीय मोर्चे पर स्थिति और भी गंभीर है — ठेकेदार महीनों से भुगतान की प्रतीक्षा में हैं। सूत्रों के अनुसार, इस बार दीपावली के पहले उन्हें मात्र 20 से 30 प्रतिशत रकम ही दी जा सकेगी। बाकी रकम का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं। इस कारण ठेकेदारों के पास न तो मजदूरी बांटने को धन है, न अपने घरों में दीये जलाने की हिम्मत।फिर भी, महापौर के आवास पर इस बार दीपों का उत्सव पहले से कहीं अधिक चमकदार रहेगा। आखिरकार प्रोटोकॉल का आनंद उजाले की गारंटी देता है, और विकास कार्यों की अधूरी फाइलें उस प्रकाश में शायद कम ही दिखाई देती हैं।
बाघमार जी के नेतृत्व में नगर सरकार के कार्यक्रम भले ही फोटो फ्रेम में परफेक्ट दिखते हों, पर जमीनी शहर बदहाली के अंधेरे में डूबा है।जनता आज यही सोच रही है —
"जिनके घर में बिजली हर वक्त रहती है, उन्हें शहर के अंधेरे का एहसास कैसे होगा?"
दिवाली का यह विरोधाभास पूरे शहर में गूंज रहा है — महापौर की जगमग दिवाली और शहर की बुझी उम्मीदें।इतिहास के पन्नों में यह वर्ष शायद उसी नाम से याद किया जाएगा —
जब नगर निगम दुर्ग की महापौर श्रीमती अलका बाघमार के नेतृत्व में विकास नहीं, बल्कि हताशा ने रिकॉर्ड बनाया।फिलहाल, शहर की दीवारें अब भी रोशनी के इंतजार में हैं,
और जनता अब भी यह उम्मीद संजोए हुए है कि कभी ऐसा सवेरा आएगा जब दीप सबके घर जलेंगे — न कि सिर्फ सत्ता के घर।
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