August 11, 2025
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दुर्ग / शौर्यपथ विशेष
   राजनीति में कुछ लोग आते हैं, पद पाते हैं और समय के साथ गुमनाम हो जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे होते हैं जो पद से नहीं, अपने कार्य से पहचाने जाते हैं। दुर्ग भाजपा के निर्वतमान जिलाध्यक्ष जितेंद्र वर्मा ऐसे ही नेता हैं, जिन्होंने संगठन को केवल चलाया नहीं, बल्कि उसमें नई ऊर्जा भर दी। आज, 10 अगस्त, उनका जन्मदिन है—और यह तारीख न केवल उनके जीवन का, बल्कि दुर्ग भाजपा के इतिहास का भी एक अहम दिन है।
जब चुनौती थी पहाड़ जैसी…
   प्रदेश में कांग्रेस की सरकार, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का गृह जिला दुर्ग, और भाजपा की स्थिति—पांच विधानसभा में से एक भी सीट अपने पास नहीं। ऐसे कठिन समय में पार्टी ने पाटन के एक छोटे से गांव से उठाकर जितेंद्र वर्मा को दुर्ग जिले की कमान सौंपी। चुनौती केवल कांग्रेस को टक्कर देने की नहीं थी, बल्कि टूटे-बिखरे संगठन को एकजुट कर नई राह पर ले जाने की थी।
संगठन को दी नई दिशा, कार्यकर्ताओं में जगाई आग
  जिला अध्यक्ष बनने के बाद जितेंद्र वर्मा ने हर गुट के कार्यकर्ताओं को बराबरी से महत्व दिया। अपने राजनीतिक गुरुओं के साथ जुड़े कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सौंपी और "एक आवाज, एक लक्ष्य" का मंत्र दिया। परिणाम—सड़कों पर आंदोलन की कतारें लंबी हुईं, कार्यकर्ताओं में जोश लौटा, और दुर्ग भाजपा एकजुट होकर मैदान में उतरी।
विधानसभा में रचा जीत का इतिहास
उनकी रणनीति और नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनावों में दुर्ग भाजपा ने चमत्कार कर दिखाया—

    साजा से ईश्वर साहू
    अहिवारा से डोमन लाल कोर्सेवाड़ा
    दुर्ग ग्रामीण से ललित चंद्राकर
    दुर्ग शहर से गजेंद्र यादव

    इन नए चेहरों ने जीत दर्ज की, जबकि सांसद विजय बघेल ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उनके गढ़ पाटन में बांधे रखा, जिससे अन्य सीटों पर भाजपा की जीत आसान हुई।
रिकॉर्ड सदस्यता और सामंजस्य की मिसाल
  अपने कार्यकाल में जितेंद्र वर्मा ने संगठनात्मक स्तर पर नए आयाम गढ़े। हाल के सदस्यता अभियान में दुर्ग भाजपा ने पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया। मंडल अध्यक्षों के चुनाव में जिस सामंजस्य और आपसी तालमेल का प्रदर्शन हुआ, वह कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
व्यक्तिगत कठिनाइयों में भी निभाई जिम्मेदारी
   नगरीय निकाय चुनाव के दौरान जब उनके प्रिय पिताजी गंभीर रूप से बीमार थे और वे स्वयं स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे, तब भी उन्होंने चुनावी मैदान में डटे रहकर जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। नतीजा—निकाय चुनाव में दुर्ग भाजपा की चारों ओर जीत।
धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव
   कांवड़ यात्रा जैसे धार्मिक आयोजनों के माध्यम से उन्होंने जिले की धार्मिक भावनाओं को एक सूत्र में पिरोया। इससे न केवल संगठन, बल्कि समाज के हर वर्ग में उनकी स्वीकार्यता बढ़ी।
एक मजबूत विरासत छोड़कर गए
   5 जनवरी को नए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के साथ वे पद से मुक्त हुए, लेकिन वे संगठन को मजबूती, सामंजस्य और जीत की परंपरा का खजाना सौंप गए—एक ऐसी विरासत जिसे आने वाले वर्षों तक याद रखा जाएगा।
  आज उनके जन्मदिन पर मित्र, संगठन के साथी और शुभचिंतक लगातार शुभकामनाएं दे रहे हैं। शौर्यपथ परिवार भी उन्हें जन्मदिन की हार्दिक बधाई और दीर्घायु की शुभकामनाएं देता है।

— शौर्यपथ विशेष संपादकीय टीम

शौर्यपथ विशेष रिपोर्ट

   "अगर केंद्र, राज्य और नगर निगम में एक ही पार्टी की सरकार होगी, तो विकास दौड़ेगा!"
    यह था भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुश्री सरोज पांडे का वादा, जब उन्होंने दुर्ग की जनता से "ट्रिपल इंजन" का समर्थन मांगा था।
   लेकिन आज, जब ट्रिपल इंजन से चलने वाला दुर्ग शहर गड्ढों, गंदगी और गुटबाजी के दलदल में फंसा है, जनता खुद सवाल पूछ रही है - "वादा किया था रोशनी का, फिर क्यों पसरा है अंधेरा?"

 जब सरोज पांडे थीं महापौर: दुर्ग बना था विकास का पर्याय
   महापौर रहते सुश्री सरोज पांडे ने दुर्ग नगर निगम को विकास की दिशा में एक नई पहचान दी थी।चौड़ी सड़कें,सुव्यवस्थित बाजार,सुंदर उद्यान,और सफाई व्यवस्था -
उस दौर में दुर्ग को "छोटा स्मार्ट सिटी" कहने लगे थे लोग।
  आज उसी शहर में, जहां उन्होंने विकास की नींव रखी, वहीं अब बदहाल व्यवस्थाएं और टूटी उम्मीदें एक कटु सच्चाई बन चुकी हैं।
 आज का दुगर्: नालियां जाम, सड़कों पर जान का खतरा ,अतिक्रमण से जकड़े बाजार ,आवारा पशुओं से भरा शहर ,अधूरी सड़कें , और राजेंद्र चौक जैसे व्यावसायिक हब पर सरकारी सुस्ती ,नगर निगम की 6 महीने की सत्ता और राज्य सरकार के 20 महीनों के कार्यकाल में सुधार की बजाय गिरावट ही सामने आई है।
 नालियों की सफाई अब भी "प्रक्रिया में" है, पार्कों की घास सूख रही है, और जनता धूल, दुर्गंध और दुश्वारियों के बीच जूझ रही है।
 गुटबाजी का गड्ढा: महापौर बनाम विधायक
  शहर के दो जिम्मेदार चेहरे - महापौर और स्थानीय विधायक – आमने-सामने हैं। कोई काम अगर हो भी गया, तो उसका श्रेय लेने की राजनीतिक होड़ जारी है। सामंजस्य और टीमवर्क जैसे शब्द शहरी प्रशासन की डिक्शनरी से नदारद हो चुके हैं। विपक्ष को परिषद में बोलने तक का मौका नहीं देना लोकतांत्रिक मर्यादा का खुला उल्लंघन है।

 गरीबों पर सख्ती, रसूखदारों को संरक्षण
  इंदिरा मार्केट हो या कपड़ा लाइन - जहां आम ठेलेवालों को हटाया जा रहा है, वहीं बड़े दुकानदारों द्वारा बरामदे पर कब्जा बरकरार है।
भाजपा नेता के संरक्षण में राम रसोई को गलत दस्तावेजों के आधार पर करोड़ों की भूमि का आवंटन भी अब चर्चा में है, लेकिन कार्रवाई शून्य।

 जनता पूछ रही - "अब किससे लें जवाब?"
  क्या जवाब दें वो भाजपा संगठन जो विपक्ष में रहकर हर गड्ढे पर धरना देता था? या वो राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सरोज पांडे, जिन्होंने वादा किया था कि "ट्रिपल इंजन" से दुर्ग दौड़ेगा?"
अब जब वही इंजन धुएं में उलझ गया है, तो जनता सिर्फ इंतज़ार में है कि -"कोई आए, और इन सवालों का ईमानदारी से जवाब दे!"

 आईना देखिए, पोस्टर नहीं
  यह सिर्फ बदहाल दुर्ग की रिपोर्ट नहीं, बल्कि उन तमाम वादों का आइना है, जो वोट से पहले बड़े-बड़े मंचों पर बोले गए थे।
महापौर रहते सरोज पांडे का विकास मॉडल आज खुद सवाल कर रहा है - "क्या भाजपा की आज की नगर सरकार उस स्तर को भी छू पाई?"
अब जनता तय करेगी -बातों के ट्रिपल इंजन से शहर नहीं चलता, ज़मीन पर पसीने से काम करना होता है।

दुर्ग। शौर्यपथ।

  दुर्ग नगर निगम में हाल ही में तीन कर्मचारियों के निलंबन के बाद माहौल अत्यधिक तनावपूर्ण हो गया है। त्वरित निलंबन आदेश जारी करने के बाद अब निगम प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। इसी क्रम में एक चिंताजनक घटना सामने आई जब निलंबित कर्मचारियों में से एक महिला कर्मचारी ने गुरुवार देर शाम महमरा डैम में आत्महत्या करने की कोशिश की। गनीमत रही कि वहां मौजूद कुछ लोगों की तत्परता से उनकी जान बच गई, अन्यथा यह मामला बहुत बड़े संकट का रूप ले सकता था।
  इस घटना ने निगम कर्मचारियों और शहरवासियों दोनों को झकझोर कर रख दिया है। निगम प्रशासन पर यह आरोप लग रहे हैं कि कई वर्षों से लंबित और गंभीर शिकायतों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन हाल ही में आई एक शिकायत पर मात्र 24 घंटे में निलंबन आदेश जारी कर दिया गया। इससे निगम की कार्यप्रणाली में भेदभाव और पक्षपात की आशंका गहराई है।

चर्चा में है लॉलीपॉप अनुबंध घोटाला
   निगम कर्मचारी थान सिंह यादव द्वारा लॉलीपॉप अनुबंध में राजस्व को हुए नुकसान का मामला भी चर्चा का विषय बना हुआ है। कर्मचारियों का कहना है कि जब इतने बड़े राजस्व नुकसान की जांच तक नहीं हुई, तो हालिया मामूली आरोपों में त्वरित निलंबन की कार्रवाई जल्दबाजी और पूर्वाग्रह से ग्रसित लगती है।

पारिवारिक लाभ और पद दुरुपयोग पर भी उठे सवाल
  इसी बीच यह भी सामने आया है कि कुछ अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपात्र पुत्रों को शासकीय सुविधाएं दिलवाईं, फिर भी उन मामलों पर आज तक कोई जांच शुरू नहीं की गई। ऐसे मामलों की अनदेखी और कुछ मामलों में त्वरित निलंबन से निगम में कार्यरत कर्मचारी अब खुलकर सवाल उठा रहे हैं।

पूर्व में अशोक करिहार कांड की याद ताजा

  महिला कर्मचारी की आत्महत्या की कोशिश ने पूर्व में निगमकर्मी अशोक करिहार द्वारा प्रताडऩा से तंग आकर आत्महत्या किए जाने की घटना की याद ताजा कर दी है। कर्मचारियों में भय और असंतोष स्पष्ट झलक रहा है। यदि कुछ क्षणों की देरी हो जाती, तो आज एक और परिवार उजड़ जाता।

अब निगाहें आयुक्त सुमित अग्रवाल पर
  निगम आयुक्त सुमित अग्रवाल पर अब यह जिम्मेदारी है कि वे इस पूरे मामले में निष्पक्ष और संवेदनशील कार्रवाई करें। आम जनता और निगम के कर्मचारी यह उम्मीद कर रहे हैं कि लॉलीपॉप अनुबंध, गुमठी आवंटन, एनयूएलएम योजनाओं में मिलीभगत, अपात्र लाभार्थियों को सरकारी सुविधाएं दिलाने जैसे मामलों में भी शीघ्र जांच हो और दोषियों पर कठोर कार्रवाई की जाए।
  मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उपमुख्यमंत्री नगरीय प्रशासन मंत्री अरुण साव के "जीरो टॉलरेंस" और "सुशासन" की नीति तभी सार्थक होगी जब हर स्तर पर निष्पक्ष और निर्भीक कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।

दुर्ग। शौर्यपथ।
नगर पालिका निगम दुर्ग में नवनियुक्त महापौर श्रीमती अलका बाघमार ने अपने 100 दिनों के कार्यकाल में ही अपनी कार्यशैली की ऐसी अमिट छाप छोड़ दी है, जिसे जनता पीढ़ियों तक याद रखेगी! दुर्ग निगम क्षेत्र इन दिनों खुशहाली के ऐसे वातावरण में जी रहा है कि मानो स्वर्ग ही धरती पर उतर आया हो।

    दुर्ग नगर निगम अब केवल नगर निगम नहीं, बल्कि "विकास तीर्थ" बन चुका है, जहां आकर योजनाएं मोक्ष प्राप्त करती हैं और समस्याएं स्वर्गवास को प्राप्त हो जाती हैं।

जन-जन की महापौर: सुलभता की नई मिसाल


पूर्व के शासनकाल में शहरी सरकार के मुखिया से मिलने के लिए महीनों गुजर जाते थे, क्योंकि वे चाटुकारों से घिरे रहते थे। परंतु वर्तमान समय में ऐसी स्थिति बिल्कुल भी नहीं है। अब आम जनता महापौर से आसानी से मिल सकती है! मानो महापौर महोदया हर समय जनता-जनार्दन के लिए ही उपलब्ध हों। यह सुलभता ही उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण है।" लोग अब राशन की दुकान से कम और महापौर के दर्शन से ज़्यादा तृप्ति पा रहे हैं।"

दुर्ग का कायाकल्प: सुंदरता और स्वच्छता का संगम

क्या सड़कें, क्या गलियां – हर तरफ स्वच्छता का अद्भुत साम्राज्य! आधे घंटे की बारिश तो छोड़िए, अगर प्रलय भी आ जाए तो नालियों में जाम की स्थिति नहीं रहेगी। पूरे शहर में कहीं भी पानी का जमावड़ा देखने को नहीं मिलता है; सड़कें गड्ढा रहित होकर ऐसी हो गई हैं जैसे घर का आंगन हो।

   " ऐसी सफाई तो कभी इंसान के मन में भी नहीं देखी गई, जैसी दुर्ग की गलियों में देखी जा रही है! अब कचरा खुद चलकर स्वेच्छा से डंपिंग यार्ड में चला जाता है।"
  "रात के समय शहर में घूमने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे चांद की रोशनी अपनी छटा बिखेर रही हो, हर कोना जगमगा रहा है।"

   शहर के मध्य सुराना कॉलेज के सामने का क्षेत्र जो कभी बदबूदार वातावरण से घिरा रहता था, अब खुशबूदार वातावरण में निर्मित है। कभी यहां कचरे का ढेर होता था, अब सुंदर उद्यान बन चुके हैं। चौक-चौराहों की बात करें तो उनकी सुंदरता अद्भुत है, मानो हर चौराहा कला का एक नायाब नमूना हो। कचरा निष्पादन के लिए बड़ी-बड़ी डंपिंग मशीनें लग चुकी हैं, जिससे शहर की गंदगी का नामोनिशान मिट गया है।
अतिक्रमण मुक्त दुर्ग: न्याय और व्यवस्था का राज

दुर्ग निगम क्षेत्र की सड़कें अतिक्रमण मुक्त हो गई हैं, और आम जनता के यातायात में अतिक्रमणकारियों के कारण हो रही बाधाएं अब दूर हो गई हैं। हर तरफ खुशी का वातावरण है।

    "सड़कों से अतिक्रमण इस कदर हट गया है कि अब हर वाहन को चलने से पहले सड़क से अनुमति लेनी पड़ती है कि कहीं वह उसकी स्वच्छता तो नहीं बिगाड़ रहा।"

   अवैध रूप से बिल्डिंग/घर बनाने वालों को ख्वाब में भी अब निगम के भवन विभाग जाना पड़ता है, और शहर में अवैध प्लाटिंग पूरी तरह बंद हो गई है। सड़कों पर अब आवारा गाय कहीं नजर नहीं आतीं – वे भी शायद महापौर के शासन से प्रभावित होकर अनुशासित हो गई हैं! इंदिरा मार्केट अब प्रदेश का सबसे सुंदर बाजार नजर आने लगा है। व्यापारियों ने बरामदे का स्थान खाली कर दिया है ताकि आम जनता के आवागमन में किसी प्रकार की दिक्कत न हो।

जिस भावभूमि बिल्डर द्वारा निगम की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था, वह अब कब्जा मुक्त हो चुका है। यह महापौर की दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि उन्होंने न्याय और व्यवस्था को सर्वोपरि रखा है। गोठान की गायों के लिए भरपूर चारा उपलब्ध कराने में शहरी सरकार की अहम भूमिका नजर आ रही है, जो पशु कल्याण के प्रति उनकी संवेदनशीलता को दर्शाता है।

भ्रष्टाचार का युग समाप्त: पारदर्शिता और ईमानदारी का नया दौर

घोटाले की बात करें तो अब घोटाले की बात बहुत दूर नजर आती है। आम जनता के सपनों में भी घोटाले नजर नहीं आते। अब तो आम जनता निगम के नोटिस को देखते ही कांप जाती है – भ्रष्टाचार का निगम के दरवाजे में आगमन बिल्कुल बंद हो चुका है।

    "जिन अफसरों पर कभी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, अब वे ध्यान और प्रायश्चित में लीन हो चुके हैं। बताया जाता है कि कुछ तो हिमालय की ओर भी प्रस्थान कर चुके हैं।"

  "निगम के कर्मचारी रोज सुबह उठकर शहरी सरकार के कार्यों की आराधना करते हैं, मानो वे देवता समान हों।"

भले ही शहरी सरकार भाजपा की है, परंतु शहरी सरकार की न्याय प्रणाली में सुशासन एक बड़ा महत्वपूर्ण अंग माना जा रहा है। जिस अपंजीकृत संस्था राम रसोई के भूमि आवंटन पर विवाद उत्पन्न हुआ था, उस मामले पर शहरी सरकार ने दस्तावेजों का निरीक्षण किया और सभी गलतियों को संज्ञान में लेते हुए, भाजपा नेता और राम रसोई के संरक्षक चतुर्भुज राठी से राजनीतिक संबंधों को न निभाते हुए, निष्पक्ष कार्यवाही की और बस स्टैंड को एक व्यवस्थित बस स्टैंड के रूप में बना दिया।

    "यह महापौर का ही जादू है कि अब कागजों में भी सच्चाई झलकने लगी है – दस्तावेज़ भी डर के मारे झूठ बोलने से परहेज़ करते हैं।"

राजस्व वसूली में क्रांति: निगम बना आत्मनिर्भर

राजस्व वसूली के मामले में तो अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि साल भर में कम से कम ₹100 करोड़ की राजस्व वसूली हो जाएगी, जो कि एक अभूतपूर्व उपलब्धि है!

    "करदाता अब अपनी खुशी से टैक्स देने पहुंचते हैं, कुछ तो अतिरिक्त टैक्स देकर निकलते हैं यह कहते हुए कि "राशि कम लग रही है, कुछ और लें!"

प्रदेश सरकार से दुर्ग निगम में करोड़ों रुपए के कार्य अब तक महापौर के सानिध्य में आ चुके हैं, और ऐसी चर्चा है कि कई हजार करोड़ रुपए भी अब आने वाले समय में दुर्ग निगम में आ जाएंगे।

    शहरी सरकार, प्रदेश सरकार और उनके जनप्रतिनिधियों के साथ ऐसा तालमेल बैठाकर चल रही है कि मानो राज्य सरकार पैसे लेकर निगम के दरवाजे पर खड़ी हो, मिन्नतें कर रही हो कि दुर्ग निगम ये पैसे ले ले!

सामंजस्य और सम्मान: विपक्ष भी हुआ नतमस्तक

  पूर्व की शहरी सरकारो ने हमेशा विपक्ष का अपमान किया है, परंतु वर्तमान समय में शहरी सरकार के द्वारा विपक्ष के नेताओं का भी पूरा सम्मान किया जा रहा है। उन्हें बड़े-बड़े कार्यालय दिए गए हैं ताकि वे जनता की बातों को सुन सकें और अपनी बातों को शहरी सरकार के सामने रख सकें।

   अतिश्योक्ति " नगर निगम के मंत्रिमंडल में इतनी एकता है कि एक मंत्री खांसी भी करता है तो दूसरा टॉवल लेकर दौड़ पड़ता है। ऐसी सामूहिक भावना केवल महापौर के करिश्मे से संभव हो पाई है।"यह लोकतंत्र में सद्भाव की अद्भुत मिसाल है!

शहरी सरकार के मंत्रिमंडल की काबिलियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर मंत्री आपस में अपनी कार्यो की रूपरेखा को भली-भांति उचित ढंग से निर्वाहन कर रहा है। आपसी मतभेद की कहीं बातें नजर नहीं आ रही हैं, और शहर के विधायक के साथ सामंजस्य की अद्भुत मिसाल सबके सामने नजर आ रही है। शासकीय सुविधाओं का दोहन करने के बजाय आम जनता की सुविधाओं के लिए शहरी सरकार कटिबद्ध है।

    अब नगर निगम के कर्मचारियों की सुबह 'सुशासन मंत्र' के जाप से शुरू होती है और रात 'महापौर चालीसा' के पाठ से समाप्त होती है।

निष्कर्ष: स्वर्णिम युग का प्रारंभ

पूर्व की शहरी सरकार के कार्यकाल को अब जनता बिल्कुल भूल चुकी है। ऐसी कोई बातें हैं जिनकी व्याख्या करते-करते सुबह से रात हो जाएगी, परंतु वर्तमान की शहरी सरकार की कार्यप्रणाली और सुशासन की बातें कभी खत्म नहीं होंगी। हर दृष्टिकोण से वर्तमान की शहरी सरकार, महापौर श्रीमती अलका बाघमार के सानिध्य में नई ऊंचाइयों को छू रही है, और हम धन्य हैं कि हम इस स्वर्णिम युग के साक्षी हैं!

    "यदि वर्तमान महापौर जी इसी गति से कार्य करती रहीं, तो संभावना है कि आने वाले दिनों में संयुक्त राष्ट्र भी दुर्ग निगम को 'ग्लोबल रोल मॉडल फॉर अर्बन गवर्नेंस' घोषित कर देगा।"

  भाजपा नेता के अपंजीकृत संस्था पर कार्यवाही हो गई ( विकाश के चश्मे से )

   मुक्तिधाम में पशु मृत आत्मा को श्रधांजलि देते हुए ( विकाश के चश्मे से )

   सडको पर अब आवारा पशु नजर नहीं आते (विकास के चश्मे से )

   इंदिरा मार्केट का सुन्दर रूप बरामदा हुआ कब्ज़ा मुक्त (विकास के चश्मे से )

लेखक: शरद पंसारी
(यह व्यंग्य लेख नगर निगम दुर्ग की प्रेस विज्ञप्तियों में दर्शाए गए विकास और जमीनी सच्चाई के तुलनात्मक विश्लेषण पर आधारित है। विकास के चश्मे से शहर में विकास कार्य और सुशासन चरम सीमा पर है )

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