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दुर्ग। शौर्यपथ।
दुर्ग नगर पालिक निगम में आयुक्त सुमित अग्रवाल लगातार प्रशासनिक कसावट और सुशासन की दिशा में निर्णायक कदम उठा रहे हैं। उनके कई फैसले जहां पारदर्शिता और जिम्मेदारी की मिसाल पेश कर रहे हैं, वहीं कुछ निर्णय चर्चा का विषय भी बन रहे हैं। ऐसा ही एक ताज़ा मामला है—इंदिरा मार्केट सहित नगर के बाजार प्रबंधन की कमान एक बार फिर ईश्वर वर्मा को सौंपना।
पूर्व आयुक्त लोकेश चंद्राकर के कार्यकाल में भी ईश्वर वर्मा को बाजार प्रभारी बनाया गया था, लेकिन कुछ ही महीनों में उनके कार्यों में अनियमितताओं के आरोप लगने के बाद उन्हें पद से हटा दिया गया था हालाँकि पद से हटाने का कारण प्रशासनिक व्यवस्तथा बताई गई किन्तु चंद महीनो में ही मूल पद में स्थानातरण चर्चा का विषय रहा । सूत्रों के अनुसार, उनके उस कार्यकाल में बाजार व्यवस्था में सुधार की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई। उनकी प्रमुख गतिविधि केवल पेंडिंग पड़ी नामांतरण एवं पंजीयन फाइलों को निपटाने तक सीमित रही, जबकि बाजार में दुकानों के मूल स्वरूप में बड़े पैमाने पर हुए बदलाव और बरामदों तक फैली दुकानदारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इंदिरा मार्केट की स्थिति किसी से छिपी नहीं है—बरामदों को दुकानों में बदलना, सड़कों तक अतिक्रमण, और निगम अधीन दुकानों में बिना अनुमति संरचनात्मक परिवर्तन वर्षों से जारी हैं। सहायक राजस्व निरीक्षक के रूप में लंबे समय तक जिम्मेदारी संभालने वाले ईश्वर वर्मा ने इन मामलों में कार्रवाई की अनुशंसा तक नहीं की, जिससे उनकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हुए।
यही कारण था कि पूर्व आयुक्त लोकेश चंद्राकर ने उन्हें महज़ कुछ महीनों में ही प्रभार से मुक्त कर दिया था। अब, आयुक्त सुमित अग्रवाल ने एक बार फिर उनके ऊपर भरोसा जताते हुए उन्हें बाजार प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी है। प्रशासनिक मुखिया के रूप में सुमित अग्रवाल की छवि सख्त और सुशासनप्रिय अधिकारी की रही है, लेकिन इस नियुक्ति ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह निर्णय बाजार व्यवस्था सुधारने में कारगर होगा या फिर अतीत की गलतियां दोहराई जाएंगी।
जनता की निगाह अब ईश्वर वर्मा पर है—क्या वे उन दुकानदारों पर कार्रवाई करेंगे जिन्होंने अपने मूल स्वरूप को बदला और बरामदों तक कब्जा जमाया? क्या वे न्यू जनता बूट हाउस, बजाज बूट हाउस जैसे बड़े नामों के खिलाफ भी सख्त कदम उठाएंगे, या फिर बाजार विभाग की कुर्सी एक बार फिर "मौन स्वीकृति" की गवाही देगी?
दुर्ग के नागरिक यह देखने को आतुर हैं कि क्या ईश्वर वर्मा इस बार आयुक्त सुमित अग्रवाल के भरोसे पर खरे उतरेंगे और बिगड़ी बाजार व्यवस्था को पटरी पर लाएंगे, या फिर बाजार की सूरत सुधारने का सपना फिर अधूरा रह जाएगा।
विशेष आलेख
बिलासपुर के सांसद-नेता और अनुभवी वकील अरुण साव का राजनीतिक उत्थान, 9 अगस्त 2022 के नेतृत्व वितरण से नवम्बर 2023 में उपमुख्यमंत्री बनने तक का क्रम — एक ऐसा अध्याय जो उनके समर्थकों और प्रदेश की राजनीति दोनों के लिए निर्णायक साबित हुआ।
छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री अरुण साव (जन्म: 25 नवम्बर 1968) का राजनीतिक और वैधानिक सफर पारंपरिक पृष्ठभूमि से निकलकर राज्य के उच्चतम राजनीतिक मंच तक पहुंचने का प्रेरक अंकन है। रायपुर में जन्मे अरुण साव किसान परिवार से आते हैं; उनके पिता स्वर्गीय श्री अभय राम साव और माता श्रीमती प्रमिला साव हैं। उन्होंने 17 अप्रैल 2000 को श्रीमती मीना साव से विवाह किया और उनका एक पुत्र है। शिक्षा की दृष्टि से उन्होंने मुंगेली के शासकीय एस.एन.जी. कॉलेज से बी.कॉम. और बिलासपुर के कौशलेन्द्र राव लॉ कॉलेज से एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की।
विधिक जीवन में अरुण साव ने मुंगेली सिविल कोर्ट में प्रैक्टिस से अपने करियर की शुरुआत की और बाद में बिलासपुर उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में कार्य करते हुए राज्य की सेवा में भी गहन भूमिका निभाई। उनकी सरकारी सेवा-भूमिका इस प्रकार रही: मार्च 2005 से फरवरी 2006 तक उप शासकीय अधिवक्ता, मार्च 2006 से अगस्त 2013 तक शासकीय अधिवक्ता, और सितम्बर 2013 से जनवरी 2018 तक छत्तीसगढ़ के उप महाधिवक्ता के रूप में उन्होंने दायित्व निभाये — एक ऐसा क्रम जो उन्हें विधिक विशेषज्ञता के साथ प्रशासनिक अनुभव भी देता है।
सामाजिक और छात्र-जीवन में वे 1990 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद व अन्य संगठनों से सक्रिय रहे, तथा साहू समाज के तहसील, जिला और प्रादेशिक स्तर पर विभिन्न जिम्मेदारियाँ निभाईं। खेलों और सांस्कृतिक गतिविधियों के प्रति उनकी रुचि—कबड्डी, वॉलीबाल, क्रिकेट और बैडमिंटन—उन्हें जमीनी स्तर से जोड़ती है और संगठनात्मक क्षमता के विकास में मदद करती है।
राजनीतिक रूप से अरुण साव का बड़ा पड़ाव 2019 में आया जब वे बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद निर्वाचित हुए। 17वीं लोकसभा में वे कोयला व खान मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति तथा कोयला और इस्पात संबंधी स्थायी समिति के सदस्य रहे — जिनसे उनके संसदीय अनुभव और क्षेत्रीय उद्योगों के साथ जुड़ाव को मजबूती मिली।
उनके राजनीतिक जीवन का निर्णायक मोड़ था 9 अगस्त 2022 — जिस दिन उन्हें भारतीय जनता पार्टी, छत्तीसगढ़ का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उस समय प्रदेश में सत्तारूढ़ सरकार के बावजूद संगठनात्मक मजबूती और विरोधी राजनीति को संगठित करने की जिम्मेदारी अरुण साव के हाथों सौंपी गई। भाजपा संगठन ने 9 अगस्त 2022 के बाद संगठनात्मक पुनर्रचना और सक्रियता बढ़ाकर लगभग चौदह माह के भीतर वह राजनीतिक माहौल तैयार कर दिया, जिसका फल नवम्बर 2023 में भाजपा की प्रदेश में सत्ता वापसी के रूप में सामने आया। परिणामस्वरूप राज्य सरकार बनने पर अरुण साव को उपमुख्यमंत्री का महत्त्वपूर्ण पद भी सोंपा गया — एक पद जिसे वे अपने व्यापक संगठनात्मक और विधिक अनुभव के साथ निभा रहे हैं।
9 अगस्त 2022 का सोशल मीडिया संदेश और नियुक्ति पत्र
उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने इस दिन को अपने जीवन का अहम मोड़ मानते हुए अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा—
"आज के ही दिन 9 अगस्त 2022 को भारतीय जनता पार्टी केंद्रीय नेतृत्व ने मुझे जैसे सामान्य कार्यकर्ता को छत्तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की कमान संभालने का अवसर दिया था।
पूरे प्रदेश का दौरा कर, बूथ से लेकर प्रदेश स्तर के कार्यकर्ताओं को उनकी शक्ति का अहसास दिलाया और प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं और साथी कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर हमने कांग्रेस सरकार के भ्रष्ट किले को ढहा दिया।
और 14 माह के सामूहिक परिश्रम और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की मोदी की गारंटी की आधार पर प्रदेश की जनता ने भाजपा की सुशासन सरकार को चुना।"
इसके साथ ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह द्वारा जारी आधिकारिक नियुक्ति पत्र भी साझा किया, जिसमें 9 अगस्त 2022 से प्रभावी रूप से उन्हें छत्तीसगढ़ भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
आलेख - शरद पंसारी
संपादक - दैनिक समाचार
दुर्ग / शौर्यपथ / दुर्ग नगर पालिक निगम में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जो सीधे तौर पर महापौर श्रीमती अलका बाघमार के निर्देशों की अवहेलना और निगम की प्रशासनिक कमजोरी को उजागर करता है। महापौर के आदेश के बावजूद, मिशन क्लीन सिटी (MCC) की एक कर्मचारी अब भी जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र शाखा में काम कर रही है, जबकि उसका मूल कार्यक्षेत्र वार्डों में सफाई का है। यह घटना न केवल नियमों के उल्लंघन का प्रतीक है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि क्या दुर्ग निगम में महापौर से भी ज़्यादा प्रभावशाली कोई और है?
पिछले महीने, महापौर अलका बाघमार ने स्वयं इस नियम विरुद्ध कार्य को देखा था और स्वास्थ्य अधिकारी को तुरंत उस कर्मचारी को उसके मूल कार्य पर वापस भेजने का निर्देश दिया था। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से, महापौर के स्पष्ट आदेश के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इस मामले की जानकारी शहरी सरकार के स्वास्थ्य प्रभारी निलेश अग्रवाल को भी दी गई थी, जिन्होंने कार्रवाई का आश्वासन दिया, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं हुआ।
यह स्थिति सीधे तौर पर प्रशासनिक अधिकारियों की मनमर्जी और महापौर के निर्देशों की खुली अवहेलना को दर्शाती है। जब शहर की प्रथम नागरिक के आदेशों का पालन नहीं हो रहा है, तो यह निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। इस तरह की निष्क्रियता न केवल मेयर के पद की गरिमा को कम करती है, बल्कि यह भी बताती है कि अधिकारी और जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारियों के प्रति कितने उदासीन हैं।
इस मामले पर अब स्वास्थ्य विभाग के नोडल अधिकारी और निगम के उपायुक्त मोहेंद्र साहू के संज्ञान लेने की खबर सामने आई है। अब देखना यह है कि क्या वे इस मामले में ठोस कदम उठाते हैं या यह मामला भी पिछली शिकायतों की तरह ठंडे बस्ते में चला जाएगा। यह घटना दुर्ग के प्रशासनिक ढांचे की पोल खोलती है और यह दिखाती है कि अगर शीर्ष नेतृत्व के आदेशों का भी पालन न हो, तो आम जनता के लिए न्याय और व्यवस्था की उम्मीद रखना कितना मुश्किल है।
क्या दुर्ग निगम के अधिकारी महापौर के निर्देशों का पालन करेंगे या एक 'MCC' कर्मचारी का पदस्थापन ही अंतिम निर्णय माना जाएगा, यह समय ही बताएगा।
रायपुर / शौर्यपथ /
छत्तीसगढ़ के राजस्व तंत्र को पिछले सात दिनों से ठप करने वाली तहसीलदार और नायब तहसीलदारों की अनिश्चितकालीन हड़ताल आखिरकार बुधवार को स्थगित कर दी गई। प्रदेश भर के करीब 550 राजस्व अधिकारी अब दोबारा काम पर लौट आए हैं। यह निर्णय बुधवार को राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा और तहसीलदार संघ के प्रतिनिधिमंडल के बीच हुई अहम बैठक के बाद लिया गया।
तहसीलदार संघ के प्रदेश अध्यक्ष कृष्ण कुमार लहरे ने कहा,
"हमारी 17 सूत्रीय मांगों को मंत्री ने गंभीरता से सुना है और आश्वासन दिया है कि इन पर शीघ्र कार्यवाही होगी। इसी विश्वास के आधार पर हम फिलहाल हड़ताल स्थगित कर रहे हैं।"
30 जुलाई से थे हड़ताल पर
तहसीलदार और नायब तहसीलदार 30 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे। राजधानी रायपुर सहित प्रदेश के सभी जिलों में राजस्व से जुड़े कार्य पूरी तरह ठप पड़ गए थे। जाति प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, सीमांकन, बटांकन, भूमि अभिलेख सुधार जैसी जनहित से जुड़ी सेवाएं प्रभावित हुई थीं।
प्रमुख मांगें जो बनीं संघर्ष का कारण
तहसीलदार संघ ने सरकार के समक्ष 17 सूत्रीय मांगों की एक विस्तृत सूची पेश की थी, जिनमें प्रशासनिक ढांचे से लेकर सेवा शर्तों तक कई अहम मुद्दे शामिल थे:
तहसीलों में पर्याप्त स्टाफ की नियुक्ति - पटवारी, कंप्यूटर ऑपरेटर, चपरासी जैसे पदों की कमी से जूझ रहे तहसीलों को लोक सेवा गारंटी अधिनियम से छूट देने की मांग।
पदोन्नति नियमों में सुधार-तहसीलदार से डिप्टी कलेक्टर बनने की प्रक्रिया में पुराने 50:50 अनुपात की बहाली।
राजपत्रित दर्जा और ग्रेड पे में वृद्धि-नायब तहसीलदारों को राजपत्रित अधिकारी घोषित करने व ग्रेड पे में संशोधन की मांग।
कार्य सुविधा व सुरक्षा-कार्यालयीय वाहन, सरकारी मोबाइल नंबर, सुरक्षा गार्ड, तकनीकी स्टाफ और कोर्ट ड्यूटी को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश।
निलंबन व जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता-जांच अवधि 15 दिनों में समाप्त करने व बिना उचित कारण के निलंबन पर रोक।
संघ की मान्यता व संवाद की व्यवस्था-तहसीलदार संघ को आधिकारिक मान्यता देने की मांग ताकि शासन के साथ सीधा संवाद संभव हो सके।
प्रशासन को राहत, जनता को उम्मीद
हड़ताल खत्म होने के बाद तहसील कार्यालयों में फिर से कामकाज शुरू हो गया है। इससे न केवल राजस्व कार्यों की लंबित फाइलों को गति मिलेगी, बल्कि आम नागरिकों को भी राहत मिलेगी। कई जिलों में सीमांकन और मुआवजा वितरण जैसे कार्य प्राथमिकता पर लिए जा रहे हैं।
राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अहम घटनाक्रम
इस हड़ताल को लेकर सरकार पर प्रशासनिक असंतोष संभालने में विफल होने के आरोप लग रहे थे। अब जबकि संघ ने सरकार के आश्वासन पर हड़ताल स्थगित की है, यह सरकार के लिए भी एक अवसर है कि वह संवाद और समाधान की नीति से प्रशासनिक तंत्र को मजबूत करे।
आगे की राह
हालांकि हड़ताल "स्थगित" की गई है, समाप्त नहीं। इसका अर्थ यह भी है कि यदि सरकार ने शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए, तो राजस्व विभाग फि र से संकट में आ सकता है। आने वाले सप्ताह सरकार की मंशा और कार्यशैली इस पूरे घटनाक्रम का भविष्य तय करेगी।
विशेष टिप्पणी: राजस्व विभाग किसी भी राज्य के प्रशासनिक और विकासात्मक ढांचे की रीढ़ होता है। तहसीलदारों की मांगें केवल व्यक्तिगत सुविधाओं तक सीमित नहीं, बल्कि कार्यकुशलता और जवाबदेही से जुड़ी हैं। सरकार यदि इस अवसर को संरचनात्मक सुधार के रूप में लेती है, तो यह छत्तीसगढ़ के राजस्व प्रशासन में ऐतिहासिक परिवर्तन का आधार बन सकता है।
नया रायपुर / शौर्यपथ / छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से एक बड़ा प्रशासनिक फेरबदल करते हुए भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारियों का तबादला किया है। यह आदेश आज शाम सामान्य प्रशासन विभाग, मंत्रालय, महानदी भवन, नया रायपुर अटल नगर द्वारा जारी किया गया।
जारी आदेश के अनुसार, राज्य शासन ने कुल 10 आईएएस अधिकारियों का स्थानांतरण किया है। इस फेरबदल में कुछ अधिकारियों को वर्तमान दायित्वों के साथ-साथ अतिरिक्त प्रभार भी सौंपा गया है, जबकि कुछ अधिकारियों को नई जिम्मेदारियां दी गई हैं।
मुख्य बिंदुओं पर एक नजर:
* श्री अविनाश चंपावत (भा.प्र.से. 2003), सचिव, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन तथा पुनर्वास विभाग को उनके वर्तमान कर्तव्यों के साथ-साथ सचिव, खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।
* श्री रितेश कुमार अग्रवाल (भा.प्र.से. 2012), संचालक, कोष एवं लेखा तथा अति. प्रभार संचालक, पेंशन, पंजीयक, फर्म एवं संस्थाएं को अब आगामी आदेश पर्यंत प्रबंध संचालक, छ.ग. मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन, रायपुर के पद पर पदस्थ किया गया है।
* श्री रवि मित्तल (भा.प्र.से. 2016), आयुक्त, जनसंपर्क तथा अति. प्रभार मुख्य कार्यपालन अधिकारी, संवाद को आयुक्त, जनसंपर्क तथा मुख्य कार्यपालन अधिकारी, संवाद के अतिरिक्त प्रभार सौंपे गए हैं।
* श्रीमती पद्मिनी भोई साहू (भा.प्र.से. 2016), प्रबंध संचालक, छ.ग. मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन, रायपुर को आगामी आदेश पर्यंत प्रबंध संचालक, कोष एवं लेखा तथा संचालक, पेंशन और पंजीयक, फर्म एवं संस्थाएं का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है।
* श्रीमती हीना अनिमेष नेताम (भा.प्र.से. 2016), उप सचिव, राजभवन, रायपुर को आगामी आदेश पर्यंत संचालक, आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के पद पर पदस्थ किया गया है।
सरकार ने प्रशासनिक कार्यों में गति लाने और जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को और प्रभावी बनाने के लिए यह निर्णय लिया है। इन तबादलों को राज्य की प्रशासनिक मशीनरी को और अधिक चुस्त-दुरुस्त करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है। राज्यपाल के नाम से जारी यह आदेश छत्तीसगढ़ शासन के सामान्य प्रशासन विभाग के अवर सचिव, रजत कुमार, द्वारा हस्ताक्षरित है।
यह प्रशासनिक बदलाव राज्य में शासन-प्रशासन के स्तर पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगा और विभिन्न विभागों के कामकाज में नई ऊर्जा का संचार होने की उम्मीद है।