December 07, 2025
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दीपक वैष्णव की ख़ास रिपोर्ट
कोंडागांव / शौर्यपथ / कोंडागांव के दक्षिण वनमण्डल में हुई अवैध कटाई और भ्रष्टाचार ने आखिरकार प्रशासन की नींद उड़ा दी है। शौर्यपथ समाचार द्वारा उठाए गए जनहित के मुद्दों पर कार्रवाई करते हुए वन विभाग ने नारंगी रेंज के अधिकारियों—नरेन्द्र साहू, घनश्याम सिंह तारम और सुभाष नाग को निलंबित कर दिया है।
मिली जानकारी अनुसार इनके खिलाफ (कार्य में लापरवाही ) लकड़ी की अंधाधुंध कटाई करके उसे मिलों में बेचने का मामला प्रकाश में आया था, जिसका खुलासा शौर्यपथ टीम के वीडियो सबूतों से भी हुआ। वन मंत्री केदार कश्यप की सख्त टिप्पणियों और वनमंडलाधिकारी चूणामणि सिंह के आदेश से जांच दल का गठन कर जाँच हुई, जिसने भ्रष्ट अधिकारियों की पहचान सुनिश्चित की।
कोंडागांव मुख्यालय के जोगेंदर सॉ मिल एवं शारदा विजय सॉ मिल को भी उड़नदस्ता टीम ने सील किया है। लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है कि भ्रष्टाचार के ऐसे गंभीर मामलों में कार्रवाई क्यों चयनात्मक होती है।
गैरजरूरी एंट्री गेट निर्माण पर कार्यवाही का इंतज़ार ...
शौर्यपथ की पुरानी खबरों के अनुसार डोंगरीगुड़ा पहाड़ी पर गैरजरूरी एंट्री गेट निर्माण और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले डामर मिक्सर प्लांट की अनदेखी अभी तक क्यों हो रही है? दहिकोंगा रेंजर बीजन शर्मा के खिलाफ कब कार्रवाई होगी, यह रहता है प्रशासन के लिए चुनौती।


क्या है पूरा मामला ...
बता दे कि कुछ समय पहले शौर्यपथ ने डोंगरीगुड़ा पहाड़ी पर हुए भ्रष्टाचार की खबर प्रकाशित किया था जहाँ अधिकारी द्वारा एन्ट्री गेट के होते हुए कुछ दूरी पर एक और एंट्री गेट लाखों रुपये का बना दिया गया, जो किसी कार्य का नही है सिर्फ पैसों की बर्बादी ही कह सकते हैं। साथ बन रहे बाई पास के लिए डामर मिक्सर प्लांट नया बस स्टैंड के पीछे लगा दिया गया है जो पूरे पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है मगर इसके बाद भी दहिकोंगा रेंज के जिम्मेदार अधिकारी बीजन शर्मा के ऊपर कब कार्यवाही किया जाएगा ये देखने वाली बात है।


शौर्यपथ समाचार के बस्तर संभाग प्रमुख दीपक वैष्णव द्वारा उठाए गए भ्रष्टाचार के मुद्दों ने विभाग में हड़कंप मचा दिया है। जनहित की लड़ाई में प्रेस की भूमिका साफ दिख रही है।यह घटना स्पष्ट करती है कि जब मीडिया, जनता और सरकार मिलकर सच को सामने लाते हैं तब ही भ्रष्टाचार पर लगाम लगती है। अब बारी है कि वन विभाग भ्रष्टाचार के समस्त स्तरों को नियंत्रित कर दहिकोंगा रेंजर समेत अन्य दोषियों पर भी गाज गिराए।

दुर्ग। शौर्यपथ।
दुर्ग शहर का प्रशासन इस समय जिस तरह की निष्क्रियता और अनदेखी का परिचय दे रहा है, वह न केवल जनता के लिए चिंता का विषय है बल्कि शासन की छवि पर भी गहरा प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
इंदिरा मार्केट से बस स्टैंड के बीच स्थित प्रसिद्ध गणेश मंदिर के सामने, जहां हर बुधवार को हजारों की भीड़ उमड़ती है, वहां राम रसोई संचालक द्वारा सड़क पर ही अवैध कब्ज़ा कर होटल संचालन की तैयारी प्रशासन की नाकामी की सबसे बड़ी मिसाल बनकर सामने आई है।
गणेश पक्ष के दौरान लगातार 10 दिनों तक यहां श्रद्धालुओं का भारी आवागमन बना रहता है। ऐसे समय और ऐसी संवेदनशील जगह पर सड़क घेरकर कब्ज़ा करना सीधे-सीधे जनता के जीवन, धार्मिक आस्था और शहर की यातायात सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है।

लेकिन सवाल उठता है—
क्या यह सब शहर की प्रथम नागरिक को नहीं दिख रहा?
क्या महापौर अलका बाघमार की नजर सिर्फ कुर्सी की सुविधाओं, विशेष चाय और प्रशासकीय दिखावे तक सीमित रह गई है?

धार्मिक आस्था के सामने होटल संचालन का समर्थन?

जहां जनता गणेश मंदिर में आस्था लेकर आती है,वहीं महापौर बाघमार की निष्क्रियता ने ऐसा वातावरण बना दिया है कि प्रभु राम के नाम का उपयोग कर होटल चलाने वाले संचालक अब सड़क को अपनी निजी संपत्ति समझने लगे हैं।
यह स्थिति सिर्फ दुर्ग शहर के नागरिकों का अपमान नहीं है बल्कि छत्तीसगढ़ की साय सरकार और केंद्र की मोदी सरकार की धर्म और आस्था के प्रति गहरे प्रेम की छवि को भी धूमिल करती है। यह वही सरकार है जो “अवैध कब्ज़ों पर जीरो टॉलरेंस” की बात करती है, लेकिन दुर्ग में उसके ही महापौर के रहते सड़क पर कब्ज़ा कर धार्मिक स्थल के सामने धंधा चलना आम बात बन गया है।

भीड़, अराजकता और महापौर की चुप्पी

गणेश मंदिर के सामने प्रतिदिन और विशेष दिनों में बढ़ती भीड़ के बावजूद महापौर बाघमार की ओर से
न कोई कार्रवाई, न चेतावनी, न रोकथाम—कुछ भी नहीं। ऐसा लगता है कि शहर की समस्याएँ उनके प्रशासनिक एजेंडे में कहीं हैं ही नहीं। शहर जाम से भर जाए, श्रद्धालु परेशान हों, सड़क पर अफरातफरी हो—लेकिन महापौर की प्राथमिकताएँ कुछ और ही हैं।

जनता यह सवाल पूछ रही है—
क्या हमने महापौर चुना था या अवैध कब्ज़ों का संरक्षण करने वाली प्रशासकीय ढाल?
क्या महापौर की सक्रियता सिर्फ कर्मचारियों पर दबाव बनाने, छोटी-मोटी दिखावे की बैठकों तक सीमित है?
क्या दुर्ग शहर एक निष्क्रिय नेतृत्व की वजह से अपने सबसे बुरे दौर में प्रवेश कर चुका है?

गणेश मंदिर जैसे धार्मिक स्थल के सामने सड़क पर कब्ज़ा कोई साधारण मामला नहीं है। यह शहर की संस्कृति, श्रद्धा, यातायात सुरक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही का प्रश्न है। और इन सभी मोर्चों पर महापौर अलका बाघमार की पूर्ण असफलता और निष्क्रियता अब जनता के लिए असहनीय होती जा रही है।

नगर निगम की राजनीति में ‘पोस्टर से गायब चेहरा’ बन गया नया संकेत;

शहर की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक छिड़ी बहस — क्या टूट रही है सरकार और निगम की साझी तालमेल की डोर?

दुर्ग। शौर्यपथ।

राजनीति में चेहरे बहुत कुछ कह जाते हैं — खासकर तब, जब किसी आयोजन या उत्सव की तस्वीरों में कोई चेहरा जानबूझकर गायब किया गया हो। ऐसी ही एक तस्वीर ने आज दुर्ग की नगर राजनीति में नए विवाद को जन्म दे दिया है। नगर निगम दुर्ग की महापौर श्रीमती अलका बाघमार ने हाल ही में जीएसटी-2 बी फार्मा उत्सव पर सोशल मीडिया पर खुशी जाहिर करते हुए एक पोस्ट साझा की। लेकिन इस पोस्ट में सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि उसमें प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री और दुर्ग विधानसभा क्षेत्र के विधायक गजेन्द्र यादव की तस्वीर नदारद थी — जबकि उसी पोस्ट में दूसरे नेताओं और जनप्रतिनिधियों को स्थान मिला।

इस एक ‘गायब चेहरे’ ने अब पूरे शहर में राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। सोशल मीडिया से लेकर चौक-चौराहों तक चर्चा यही है कि आखिर महापौर और मंत्री के बीच ठंडी जंग क्यों चल रही है?

? क्या यह दूरी सिर्फ राजनीतिक है या व्यक्तिगत भी?

महापौर अलका बाघमार और मंत्री गजेन्द्र यादव, दोनों ही एक ही दल से आते हैं। इसके बावजूद दोनों के बीच संबंधों में रंजिश और दूरी लंबे समय से सुर्खियों में रही है। जानकारों का कहना है कि नगर निगम के कई विकास कार्यों और बजट अनुमोदन के दौरान भी महापौर ने मंत्री की सिफारिशों को नज़रअंदाज़ किया था।

अब जब महापौर ने सार्वजनिक रूप से सोशल मीडिया पोस्ट में मंत्री को दरकिनार कर दिया, तो यह संकेत काफी गहरे हैं — मानो यह कहा जा रहा हो कि “निगम अब अपने बूते चलेगा।”

? क्या विकास की गाड़ी अब पटरी से उतर रही है?

शहर की मौजूदा स्थिति इस राजनीतिक खींचतान की कीमत चुका रही है।

मुख्य मार्गों पर फैला कचरा, सड़कों के गड्ढे, जगह-जगह जलभराव, और स्ट्रीट लाइटों के बंद रहने से नागरिक परेशान हैं।

आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या, निर्माण कार्यों की धीमी रफ्तार और भ्रष्टाचार के आरोपों ने नगर निगम की छवि को इतिहास की सबसे बदहाल स्थिति में पहुँचा दिया है।

दीपावली के ठीक पहले ठेकेदारों को बकाया भुगतान में भी भारी कटौती ने हालात और बिगाड़ दिए। ठेकेदारों को “10–20 प्रतिशत” भुगतान कर संतोष कराने की कोशिश हुई, परंतु बाकी राशि के अभाव में कई काम ठप पड़ गए।

? जनता के मन में सवाल – “क्या अकेले महापौर शहर संभाल लेंगी?”

जनता के बीच यह चर्चा तेज है कि अगर महापौर अपनी ही सरकार के मंत्री से दूरियां बनाए रखेंगी, तो क्या निगम को प्रदेश सरकार का सहयोग मिल पाएगा?

राज्य सरकार की योजनाओं, निधियों और विकास कार्यों में तालमेल आवश्यक है — और यदि यह तालमेल टूट गया, तो उसका सीधा असर आम नागरिकों पर पड़ेगा।

? “पोस्टर पॉलिटिक्स” का संदेश क्या है?

राजनीति में कहा जाता है कि पोस्टर से गायब चेहरा, रिश्तों की सच्चाई बयान कर देता है।

महापौर की पोस्ट में मंत्री का नाम या तस्वीर शामिल न करना सिर्फ एक सोशल मीडिया घटना नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश है। यह संदेश साफ है — दुर्ग नगर निगम की प्रमुख अब अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान गढ़ने के रास्ते पर हैं।

परंतु सवाल यह भी है कि क्या इस स्वतंत्रता का खामियाजा शहर भुगतेगा?

क्या दुर्ग का विकास अब राजनीतिक अहंकार और व्यक्तिगत टकराव के बीच कुर्बान हो जाएगा?

? निष्कर्ष:

दुर्ग की जनता ने महापौर अलका बाघमार को नगर निगम का नेतृत्व इस उम्मीद से सौंपा था कि वे शहर को विकास की नई दिशा देंगी।

परंतु आज शहर की तस्वीर कुछ और कहती है — सड़कों पर गड्ढे हैं, गलियों में अंधेरा है, और सोशल मीडिया पर ‘गायब चेहरे’ की बहस जारी है।

ऐसे में यह सवाल अब और गहरा हो गया है कि —

> “क्या महापौर अलका बाघमार अपनी ही सरकार के मंत्री से दूरी बनाकर, दुर्ग के विकास की धारा को आगे बढ़ा पाएंगी?”

 

 

दुर्ग। शौर्यपथ।

नगर निगम दुर्ग प्रशासन में एक बार फिर सख्ती के संकेत नजर आ रहे हैं। निगम आयुक्त सुमित अग्रवाल ने सहायक ग्रेड-3 कर्मचारी शुभम गोईर को कंप्यूटर के आदान-प्रदान के दौरान उपकरण गायब होने के मामले में 24 घंटे के भीतर जवाब प्रस्तुत करने का नोटिस जारी किया है। जवाब नहीं देने पर दंडात्मक कार्यवाही के निर्देश दिए गए हैं।

यह नोटिस जारी होने के बाद अब निगम कर्मचारियों में चर्चा का विषय यह बन गया है कि क्या इसी तरह की सख्ती तात्कालिक बाजार अधिकारी थान सिंह यादव पर भी दिखाई जाएगी?

ज्ञात हो कि वर्ष 2021-22 में पार्किंग घोटाले से संबंधित प्रकरण में लगभग ₹80,000 की राजस्व वसूली के लिए तात्कालिक बाजार अधिकारी थान सिंह यादव को नोटिस जारी किया गया था, लेकिन अब तक उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। इसके अलावा गौरव पथ पर विज्ञापन बोर्ड के गलत साइज और आकलन के मामले में भी थान सिंह यादव का नाम चर्चा में रहा है।

वहीं दूसरी ओर, शुभम गोईर पर बीते तीन-चार महीनों में आयुक्त अग्रवाल द्वारा लगभग डेढ़ दर्जन नोटिस जारी किए जा चुके हैं और वे वर्तमान में निलंबन की स्थिति में हैं। आयुक्त की यह कार्यवाही निगम प्रशासन में अनुशासन की कसावट के रूप में देखी जा रही है।

अब कर्मचारियों के बीच यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि क्या यह सख्ती सिर्फ एक कर्मचारी तक सीमित रहेगी या फिर आयुक्त अग्रवाल निष्पक्ष प्रशासनिक सिद्धांतों का पालन करते हुए विवादित मामलों में शामिल अन्य अधिकारियों पर भी कार्रवाई करेंगे?

फिलहाल, सभी की निगाहें आयुक्त सुमित अग्रवाल के अगले कदम पर टिकी हैं — क्या थान सिंह यादव जैसे विवादित अधिकारी पर भी कार्यवाही होगी या फिर निगम प्रशासन एक बार फिर मौन साध लेगा?

नगर निगम कार्यालय में फिलहाल यही चर्चा जोरों पर है।

दुर्ग।शौर्यपथ ख़ास रिपोर्ट
    दुर्ग नगर पालिक निगम क्षेत्र आज "स्मार्ट सिटी" नहीं बल्कि "गंदगी सिटी" की पहचान से जाना जाने लगा है। जनता ने बड़े भरोसे के साथ भाजपा प्रत्याशी अलका बाघमार को महापौर और निगम की कमान सौंपी थी, परंतु अब यही जनता गंदगी, कचरे और दुर्गंध से जूझ रही है।

महापौर की पोस्टरबाज़ी बनाम जनता की नाराज़गी

   महापौर अलका बाघमार ने चुनाव से पहले स्वच्छ और व्यवस्थित दुर्ग का सपना दिखाया था। लेकिन सत्ता में आते ही उनका ध्यान जनता की समस्याओं से हटकर केवल पोस्टरबाज़ी और उत्सवों की राजनीति तक सिमट गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर "स्वच्छता सेवा पखवाड़ा" का आयोजन कर निगम शहर को स्वच्छ बताने की कोशिश कर रहा है, जबकि ज़मीनी हकीकत यह है कि हर गली और मोहल्ले में गंदगी और बदबू ने डेरा जमा लिया है। जनता पूछ रही है—"पोस्टर से पेट नहीं भरता और बदबू से जीना दूभर है, महापौर साहिबा ये कैसा सुशासन?"

स्वास्थ्य प्रभारी नीलेश अग्रवाल: अनुभवहीनता का प्रतीक

  महापौर ने सफाई और स्वास्थ्य व्यवस्था की जिम्मेदारी निगम के स्वास्थ्य प्रभारी नीलेश अग्रवाल को सौंपी है। लेकिन अग्रवाल का प्रदर्शन शहर के लिए निराशाजनक और शर्मनाक रहा है। शहर के प्रमुख स्थानों—पुलिस अधीक्षक का बंगला, छात्रावास, गर्ल्स हॉस्टल और आम नागरिकों के ठहरने-बैठने वाले स्थानों तक—हर जगह कचरे के ढेर लगे हुए हैं। नालियों से निकलती दुर्गंध और सड़कों पर बिखरे कचरे ने नागरिकों का जीना मुश्किल कर दिया है। स्वास्थ्य प्रभारी की भूमिका केवल बैठकों और बातों तक सीमित रह गई है।
  जनता कह रही है कि अगर पहली बार विधायक बने और शिक्षा मंत्री का पद संभालते ही गजेंद्र यादव सक्रियता से शिक्षा विभाग में नई ऊर्जा ला सकते हैं, तो फिर पहली बार पार्षद बने नीलेश अग्रवाल सफाई व्यवस्था में ऐसा असफल क्यों साबित हो रहे हैं? इसका जवाब शायद निगम की राजनीति के गलियारों में छिपा है।

मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की सोच को आईना

   प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार "सुशासन" और "स्वच्छ भारत" की बात करते हैं। लेकिन उनके ही नाम पर चुनी गई शहरी सरकार जब गंदगी और बदबू फैलाने में अव्वल साबित हो रही है, तो यह न केवल शहर की छवि धूमिल कर रहा है बल्कि प्रदेश और केंद्र सरकार की सोच को भी कटघरे में खड़ा कर रहा है।

सामान्य सभा की अग्निपरीक्षा

   अब पूरा शहर इस बात पर नज़र गड़ाए बैठा है कि दुर्ग नगर निगम की आगामी सामान्य सभा में क्या जनप्रतिनिधि जनता के स्वास्थ्य और सफाई जैसे गंभीर मुद्दे पर सवाल उठाएंगे? या फिर मौन रहकर केवल सत्ता सुख का आनंद लेंगे?

कटाक्ष :

"शहर डूबा कचरे में, पोस्टरों में चमक रही सरकार!"
"जनता मांगे सफाई, निगम दे रहा बदबू की कमाई!"
"अलका बाघमार की निष्क्रियता और नीलेश अग्रवाल की अनुभवहीनता ने दुर्ग को बना दिया बदबूगंज!"

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