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नई दिल्ली /शौर्यपथ/
पर्यावरण के नाम पर भारत पर कई तरह के दबाव डाले गए, ये औपनिवेशक मानसिकता का परिणाम है. यह बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के संविधान दिवस समारोह के कार्यक्रम के दौरान कहीं. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि हम सभी अलग-अलग भूमिका निभाते हैं. हमारे काम की प्रकृति अलग है. लेकिन हमारा मार्गदर्शक स्रोत और दिशानिर्देश संविधान है. आज बहुत अच्छा दिन है. हमें अपने संविधान निर्माताओं के उस सपने को पूरा करने की जरूरत है, जिसकी उन्होंने परिकल्पना की थी. हमें बहुत कुछ हासिल करना है. हमारा संविधान समावेश की अवधारणा पर जोर देता है. हमने उन लोगों के लिए सबसे अच्छा करने की कोशिश की है, जिनके घरों में शौचालय या बिजली नहीं है. हमें और करने की जरूरत है. हम बहिष्करण को समावेश में बदलने की कोशिश कर रहे हैं. इसे ही मैं संविधान निर्माताओं का सपना पूरा करना कहता हूं.
पीएम ने कहा कि जब गरीबों को समानता और समान अवसर मिले तो इसे राष्ट्र निर्माण कहते हैं. दिव्यांगों के अधिकार, जब तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया जाता है तो यह अधिकारों को बढ़ाता है. यह कई बहनों की जीत है. सबका साथ, सबका विकास हमारा आदर्श वाक्य है. हम इसका सख्ती से पालन करते हैं.
उन्होंने कहा कि गुजरात में नर्मदा में सरदार पटेल बांध देखना चाहते थे. पंडित नेहरू ने इसका शिलान्यास किया. लेकिन पर्यावरण के नाम पर आंदोलन चलाया गया. अदालतों में भी मामला कई दशकों तक उलझा रहा, अदालतें भी आदेश जारी करने में हिचकिचाती रहीं.
औपनिवेशिक मानसिकता जारी है. भारत को पर्यावरण के नाम पर उपदेश दिए जाते हैं. भारत पर तरह तरह के दबाव बनाए जाते हैं. देश के भीतर भी कुछ लोग ऐसी मानसिकता वाले हैं. बोलने की आजादी के नाम पर कुछ भी करते हैं. ये औपनिवेशिक मानसिकता वाले देश के विकास में बाधा हैं, इनको दूर करना ही होगा.
पीएम मोदी ने कहा कि दुख की बात है कि हमारे देश में ऐसे लोग भी हैं, जो अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बिना सोचे समझे देश के विकास को रोक देते हैं. इसका खामियाजा ऐसे लोगों को नहीं भुगतना पड़ता है. लेकिन उन माताओं को झेलना पड़ता है जिनके पास अपने बच्चे के लिए बिजली नहीं है.
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