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जगदलपुर/ शौर्यपथ/
नरेश देवांगन
आदिवासी विकास विभाग के तहत जिले में संचालित आश्रमों एवं छात्रावासों के अधीक्षकों की बैठक जिले के कलेक्टर समय समय पे लेकर उपलब्ध सुविधाओं तथा आधारभूत संसाधनों की समीक्षा करते रहते है । जहा आश्रम एवं छात्रावासों में निवासरत बच्चों को बेहतर वातावरण देने तथा परिसरों में आवश्यक सुविधाओं व सुरक्षात्मक उपाय सुनिश्चित करने हेतु हरसंभव प्रयास करने के निर्देश दिए जाते है । साथ ही यह भी कहा जाता है कि इसमें किसी प्रकार की कोताही अथवा लापरवाही किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सात ही अधीक्षकों को बिना अनुमति के छात्रावास नहीं छोड़ने, प्रतिदिन भोजन की गुणवत्ता परखने, बच्चों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कराने व सुरक्षा व्यवस्था की मॉनिटरिंग करने के भी सख्त निर्देश दिए गए है । बावजूद इसके भी सुकमा जिले के कोंटा ब्लॉक के बालक आश्रम पेदाकुरती के अधीक्षक उच्चधिकारी के निर्देशों का पालन करते नहीं दिख रहे है। अधीक्षक के द्वारा प्रतिदिन भोजन की गुणवत्ता पे ध्यान नहीं दिया जा रहा है और ना ही बच्चों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण करवाया जाता है बच्चों कि माने तो मेनू चार्ट के हिसाब से भोजन नहीं दिया जा रहा है। आश्रम में रखे बच्चों के लिए दवाईयों में कई दवाई एक्सपायर हो चुकी है। बच्चों से पूछने से बताया कि जब भी कोई बच्चा बीमार होता है तो दवाई अधीक्षक के द्वारा इसी डब्बे से निकाल के देते है जबकि डब्बे में रखी दवाई Chloroquine phosphate tablets EXP. 10/24 है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अधीक्षक दवाई को देने से पहले उसकी अंतिम तिथि कि जाँच नहीं करते? क्यों एक्सपायर हो चुकी दवाई को रख बच्चों को दिया जा रहा है? एक्सपायर हुई दवाई को खाने से होने वाली नुकसान का भरपाई कौन करेगा? क्यूंकि जानकारों का कहना है कि एक्सपायर हो चुकी दवाओं में बैक्टीरिया के बढ़ने का जोखिम होता है और कम शक्तिशाली एंटीबायोटिक्स संक्रमण का इलाज करने में विफल हो सकते हैं, जिससे अधिक गंभीर बीमारियाँ और एंटीबायोटिक प्रतिरोध हो सकता है। एक बार समाप्ति तिथि बीत जाने के बाद इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि दवा सुरक्षित और प्रभावी होगी।
जबकि जिम्मेदारों के द्वारा समय समय पे आश्रम / छात्रावास कि निरिक्षण करने कि बात भी कही जाती है। जिम्मेदार अगर अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा रहे है तो इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हो रही है ?
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