दुर्ग / शौर्यपथ / वैश्विक महामारी कोविड 19 से आज हमारा देश और प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया प्रभावित हुई है। ऐसे में आजीविका का संकट एक बड़ा संकट है। दूसरे प्रदेशों में रोजगार के लिए गए छत्तीसगढ़वासी बड़ी संख्या में अब अपने गांव का रुख कर चुके हैं। ऐसे में एक बड़ी जिम्मेदारी है इन श्रमिकों को उनके ही गाँव या आसपास के क्षेत्रों में रोजगार मुहैया कराना। शासन और प्रशासन द्वारा इस जिम्मेदारी को निभाने की कवायद लगातार जारी है। छत्तीसगढ़ सरकार की यही मंशा है कि सबको काम मिले।
राज्य शासन के निर्देशानुसार प्रवासी श्रमिकों को आजीविका से जोडऩे में लिए उनका स्किल मैपिंग किया गया। ताकि उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप काम मिल सके। जिला पंचायत द्वारा बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत पंजीकृत कर काम दिया जा रहा है। जिला पंचायत सीईओ श्री सच्चिदानंद आलोक ने बताया कि प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने के उद्देश्य से अब तक जनपद पंचायत दुर्ग में 1528, जनपद पंचायत धमधा में 1748 और जनपद पंचायत पाटन में 1952 इस प्रकार अब तक 5 हजार 228 प्रवासी श्रमिकों का पंजीयन किया जा चुका है। इन पंजीकृत मजदूरों में से 1027 मजदूरों को काम भी मिल गया है और वो अपने अपने गाँव में मनरेगा के तहत संचालित विभिन्न परियोजनाओं में काम भी करने लगे हैं।
मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत दुर्ग एस आलोक बताया कि जिले में निरंतर रोजगार का अवसर ग्रामीण को मिले है, जिसका नतीजा है कि महात्मा गांधी नरेगा में कुल 75 करोड़ 34 लाख व्यय हुआ है जिसमें से केवल मजदूरी भुगतान ही 57 करोड़ 70 लाख रुपए है जो लक्ष्य के विरूद्ध 90 प्रतिशत से अधिक है। इसी तरह निर्माण कार्यो के साथ आजीविका संवर्धन के गतिविधियों को बढावा देने के लिए हितग्राही मूलक कार्यों जैसे तालाब निर्माण, तालाब गहरीकरण, डबरी निर्माण कार्य, वृक्षारोपण कार्य, नाली निर्माण कार्य, चेक डेम, धान चबूतरा निर्माण, आगंनबाडी निर्माण जैसे निर्माण किया जा रहा है। जिसमें श्रमिकों को काम दिया जा रहा है।
ईंट भ_ा में काम करने नागपुर गई थी बिमला पति की मौत के बाद हैं परिवार का सहारा,मनरेगा के तहत मिला काम बोरिगारका के टुपेश, नूतन, संतुराम को भी मिला मनरेगा से काम - दुर्ग जनपद के गांव बोरीगारका की बिमला नागपुर में ईंट भ_े में काम करने गई थी। पति की मृत्यु के बाद सारी जिम्मेदारी बिमला पर आ गई। कोविड संकट के कारण उसे घर वापस लौटना पड़ा। अपने गांव आने की खुशी तो थी मगर उसे ये चिंता खाए जा रही थी कि वो लौटकर आ तो गई है मगर उसके पास काम तो है नहीं तो कैसे होगा उसके परिवार का गुजारा। लेकिन बिमला की ये परेशानी जल्दी दूर हो गई क्योंकि क्वारेंटीन अवधि पूर्ण करने के बाद उगांव में ही मनरेगा के तहत काम मिल गया।
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