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दुर्ग / शौर्यपथ
बोधगया के महाबोधि महाविहार से जुड़े धार्मिक स्वामित्व विवाद पर जहां सुप्रीम कोर्ट से लेकर पटना हाई कोर्ट तक कानूनी प्रक्रिया चल रही है, वहीं देश के विभिन्न हिस्सों में बौद्ध समाज इस विषय को लेकर मुखर हो रहा है। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में बौद्ध अनुयायी इस मांग को लेकर पिछले एक माह से शांतिपूर्ण आंदोलन चला रहे हैं कि महाबोधि महाविहार का संचालन पूरी तरह बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए।
बौद्ध धर्म के अनुसार बोधगया वह स्थल है जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह स्थान न केवल भारत, बल्कि विश्व के करोड़ों बौद्ध अनुयायियों की आस्था का केंद्र है। वर्तमान में इसका संचालन बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति अधिनियम 1949 (बी.टी.एम.सी. एक्ट) के अंतर्गत एक संयुक्त समिति द्वारा किया जाता है, जिसमें बौद्धों के साथ हिन्दू समुदाय के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।
मूल मुद्दा क्या है?
बौद्ध संगठनों का तर्क है कि यह समिति संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 में निहित धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें बी.टी.एम.सी. एक्ट को असंवैधानिक घोषित करने तथा महाविहार का नियंत्रण पूर्णतः बौद्धों को सौंपे जाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को अनुच्छेद 32 के तहत स्वीकार करने से इनकार करते हुए याचिकाकर्ता को पटना हाई कोर्ट जाने का निर्देश दिया है।
दुर्ग में चल रहा शांतिपूर्ण आंदोलन
इस न्यायिक प्रक्रिया के बीच, छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में 'ऑल इंडिया बुद्धिस्ट फोरम' की जिला इकाई द्वारा आंदोलन चलाया जा रहा है, जिसमें बौद्ध अनुयायी बोधगया मंदिर को पंडों व बाहरी नियंत्रण से मुक्त कर, बौद्धों को सौंपने की मांग कर रहे हैं। आंदोलन से जुड़े ज्ञापनों में यह भी कहा गया है कि यदि यह धार्मिक अधिकार बहाल नहीं किया गया, तो इससे देशभर में बौद्धों की आस्था को ठेस पहुंचेगी और असंतोष की स्थिति पैदा हो सकती है।
इस आंदोलन का नेतृत्व फोरम की जिला अध्यक्षा सविता बौद्ध एवं जिला प्रभारी जयंती बौद्ध द्वारा किया जा रहा है। ज्ञापन की प्रतिलिपियाँ प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय व बिहार सरकार को प्रेषित की गई हैं।
"हमारा आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण, अहिंसक और बौद्ध परंपरा की मर्यादाओं के अनुरूप है। हमारा उद्देश्य किसी समुदाय से संघर्ष नहीं, बल्कि संवैधानिक अधिकारों की पुनर्स्थापना है।"
— सविता बौद्ध, अध्यक्षा, ऑल इंडिया बुद्धिस्ट फोरम (दुर्ग)
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
महाबोधि महाविहार न केवल भारत का, बल्कि यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर स्थल है। इसका प्रबंधन और संचालन एक अत्यंत संवेदनशील विषय है, जिस पर भारत सरकार, बिहार प्रशासन और न्यायपालिका को सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
दुर्ग में चल रहा यह आंदोलन न केवल स्थानीय जनजागरण का प्रतीक है, बल्कि यह देशभर में बौद्ध समुदाय के संवैधानिक अधिकारों की पुनर्स्थापना की एक अहिंसक पहल भी बन गया है। अब देशभर की निगाहें इस विषय पर पटना हाई कोर्ट और भारत सरकार के आगामी निर्णयों पर टिकी हैं।
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