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“दुनिया से मिलने का समय — जनता से नहीं।”
दुर्ग / शौर्यपथ / जनता के समस्या-समाधान के लिए बने लगभग हर सरकारी द्वार पर आज आम नागरिकों को इंतज़ार, धक्का-मुक्की और निराशा ही हाथ लग रही है। दुर्ग निगम क्षेत्र के दो सबसे बड़े जिम्मेदार — महापौर श्रीमती अलका बाघमार और आयुक्त सुमित अग्रवाल — बड़े-बड़े कार्यक्रमों, संगठनों और आयुक्त मीटिंगों में व्यस्त दिखते हैं; वहीं जो लोग जीवन-यापन, सड़क-नालियों, स्वच्छता, कब्जा, पेंशन या राहत के लिए इन अधिकारियों से मिलने आते हैं, उन्हें महापुरुषों के कक्षों के सामने बस एक ही चीज़ देखने को मिलती है — इंतज़ार।
नागरिकों के मुताबिक़ निगम कक्ष और महापौर कार्यालय के बाहर घंटों पापड़ बेलने के बावजूद भी मिलने का समय नहीं मिलता। शिकायतकर्ता, बुजुर्ग, माँ-बच्चे और छोटे व्यापारी—सब अपने मसलों के साथ प्रशासनिक दरवाज़ों पर भटकते हुए नजर आते हैं।
क्या है समस्या — सीधे शब्दों में
किसी तय ‘जनसुबिधा-समय’ (public hour) का अभाव: आयुक्त व महापौर द्वारा आम जनता से मिलने के लिए कोई सार्वजनिक, नियमित समय निर्धारित नहीं है।
पहुँच आसान, पर मिलने का रास्ता मुश्किल: कुछ खास लोगों और पदाधिकारियों से मुलाकात सहजता से हो जाती है; सामान्य नागरिकों के लिए वही विभाग अक्सर ‘सुलभ’ नहीं बन पाते।
शिकायतों का फ़ॉलो-अप गायब: शिकायत दर्ज कराने के बाद भी आवेदक को आगे की जानकारी या समाधान नहीं मिलता; बार-बार निगम चक्कर काटने की नौबत आती है।
आचरण में पक्षपात के आरोप: शिकायतकर्ता कहते हैं कि मामलों में पक्षपात या अनियमित प्राथमिकता दिए जाने की छवि बन रही है — और यही प्रशासनिक भरोसे को चोट पहुंचा रहा है।
धरातल पर असर — जनता की तकलीफें
जो लोग सीधे मिलकर समस्याएँ बताना चाहते हैं, जैसे कि सड़क की दिक्कत, अवैध कब्जा, पेंशन का मुद्दा या सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी शिकायत — उन्हें कई बार लंबा इंतज़ार, अनदेखा किया जाना या प्राथमिकता न मिलना पड़ता है। इससे छोटे-व्यापारी, बुज़ुर्ग और कमजोर तबके के लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं। शहरी शासन पर विश्वास कम होना शुरू हो गया है — यही सबसे बड़ा प्रश्न है।
प्रशासनिक जवाबदेही — क्या चाहिए?
नागरिकों की लगातार बढ़ती नाराज़गी को देखते हुए कुछ त्वरित और व्यावहारिक सुझावः
1. साप्ताहिक ‘जनसुनवाई-घंटे’ तय करें — उसी समय पर हर सप्ताह महापौर/आयुक्त आम नागरिक मिलें।
2. ऑनलाइन अपॉइंटमेंट व ट्रैकिंग — शिकायत-रिकॉर्ड और फॉलो-अप के लिए डिजिटल सिस्टम (टोकन/अपॉइंटमेंट) सार्वजनिक करें।
3. नोडल अधिकारी व शिकायत समाधान टीम — हर वार्ड के लिए जिम्मेदार अधिकारी/नोडल प्वाइंट घोषित हों।
4. पारदर्शिता रिपोर्ट — हर महीने सार्वजनिक करें कि कितनी शिकायतें मिली, कितनी निस्तारित हुईं और किनसे निपटा गया।
5. खुले दरवाज़े की नीति — ‘विशेष मुलाक़ात’ और ‘सार्वजनिक मुलाक़ात’ में स्पष्ट अंतर रखें; विशेष मुलाक़ात के निर्णय का रेकॉर्ड भी सार्वजनिक हो।
“जब समय है बाहर कार्यक्रमों के लिए, पर जनता के लिए नहीं”
नागरिकों का तर्क है कि महापौर और आयुक्त सार्वजनिक-कार्यक्रमों, बैठकों और निजी मुलाकातों में समय दे देते हैं पर वही समय सीधे मिलने के लिए जनता को नहीं मिल पाता। सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग अक्सर ‘सुलभता’ के वादे करते हैं — पर जमीन पर वह वादा खोखला दिखता है। यह कटाक्ष केवल नाराज़गी नहीं, बल्कि एक चेतावनी भी है कि अगर प्रशासन ने समयबद्धता और सार्वजनिक पहुँच सुनिश्चित नहीं की, तो जनता का भरोसा और घटेगा — और यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।
दुर्ग के नागरिक आज भी उम्मीद करते हैं कि उनके चुने हुए जनप्रतिनिधि और सौंपे गए प्रशासक कम से कम मिलने का समय दें। महापौर अलका बाघमार और आयुक्त सुमित अग्रवाल के पास बड़े-बड़े एजेंडे और कार्यक्रम हों, यह स्वीकार्य है — पर जनता की आवाज़ सुनना और समस्याओं का समय पर निस्तारण करना ही सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रशासनिक व्यस्तता को जनता की पहुँच से ऊपर नहीं रखा जा सकता — वरना ‘सुलभ सरकार’ का नार बनकर रह जाएगा।
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Feb 09, 2021 Rate: 4.00
