October 24, 2025
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बिलासपुर, 2 अगस्त 2025 | छत्तीसगढ़ के शैक्षणिक परिदृश्य में एक बड़ा मोड़ आया जब बिलासपुर हाईकोर्ट ने निजी स्कूलों द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें वे अपनी फीस स्वतंत्र रूप से तय करने का अधिकार मांग रहे थे।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक हित में निजी विद्यालयों की फीस संरचना को विनियमित कर सके।

⚖️ मुख्य बिंदु:

? याचिका का विषय:

राज्य में संचालित कुछ प्रतिष्ठित निजी विद्यालयों ने यह याचिका दायर की थी कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गठित “फीस विनियमन समिति” उनकी स्वायत्तता में हस्तक्षेप कर रही है।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि निजी संस्थानों को आर्थिक स्वायत्तता संविधान द्वारा प्रदत्त है, और शासन को सीधे तौर पर फीस तय करने का अधिकार नहीं है।

? हाईकोर्ट का फैसला:

मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने यह स्पष्ट करते हुए याचिका खारिज की कि

> “शिक्षा एक सामाजिक जिम्मेदारी है, व्यावसायिक अवसर नहीं। राज्य सरकार को यह वैधानिक अधिकार है कि वह सार्वजनिक हित में निजी स्कूलों की फीस पर नियंत्रण रख सके।”

कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21-A (निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार) तथा शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE Act 2009) का हवाला देते हुए यह टिप्पणी दी।

? फीस विनियमन समिति की वैधता बरकरार:

राज्य शासन द्वारा वर्ष 2023 में गठित फीस विनियमन समिति की संवैधानिकता को भी कोर्ट ने वैध ठहराया है। इस समिति में शिक्षा विशेषज्ञों, विधि विशेषज्ञों और अभिभावकों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है।

? अब क्या होगा?

✅ अब सभी निजी स्कूलों को राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप फीस प्रस्ताव प्रस्तुत करना होगा।

✅ फीस वृद्धि से पहले समिति की अनुमति आवश्यक होगी।

✅ मनमानी फीस वसूली पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान रहेगा।

? राज्य शासन की प्रतिक्रिया:

छत्तीसगढ़ शासन के शिक्षा सचिव ने निर्णय का स्वागत करते हुए कहा:

> "यह फैसला छात्रों और अभिभावकों के हित में है। शिक्षा को व्यापार नहीं बनने दिया जाएगा। अब पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ फीस तय होगी।"

?‍?‍? अभिभावकों में खुशी, स्कूलों में असमंजस:

जहां अभिभावक संघों ने कोर्ट के निर्णय का स्वागत किया है, वहीं कई निजी स्कूल प्रबंधन समितियां अब इस आदेश की समीक्षा करने की बात कह रही हैं।

? पृष्ठभूमि में क्या हुआ था?

2022-23 सत्र में कई स्कूलों द्वारा 30% से 60% तक फीस बढ़ोतरी के बाद राज्यभर में विरोध शुरू हुआ था।

सरकार ने छत्तीसगढ़ निजी विद्यालय शुल्क विनियमन अधिनियम 2023 पारित कर फीस नियंत्रण के लिए एक समिति का गठन किया।

इसी के खिलाफ स्कूलों की याचिका दाखिल हुई थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया।

? निष्कर्ष:

यह निर्णय छत्तीसगढ़ में निजी शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता, संतुलन और सामाजिक जवाबदेही की दिशा में एक निर्णायक कदम है। यह स्पष्ट संकेत है कि शिक्षा को सेवा के रूप में देखा जाएगा, न कि केवल लाभ कमाने के माध्यम के रूप में।

 

   कबीरधाम / शौर्यपथ / भिलाई नगर विधायक द्वारा सोशल मिडिया में वीडियो जारी करते हुए प्रदेश के गृह मंत्री के ऊपर बड़ा आरोप लगते हुए कहा गया कि सामाजिक रूप से मुझे जानकारी मिली है की यादव समाज के एक युवा माखन यादव जो कवर्धा जिले के बोडला थाना अंतर्गत अचानकपुर तेंदूटोला निवासी युवक है । वो आज पुलिस के प्रताणना से तंग आकर फासी लगाकर आत्महत्या कर ली है ।
 ये हृदय विदारक दिल झकझोर देने वाली घटना है इस घटने के बाद मृतक परिवार यादव समाज और ग्रामीण जनों द्वारा पुलिस प्रशासन के इस अमानवीय कृत्य के खिलाफ मृत शव को लेकर न्याय की मांग पर नेशनल हाइवे जाम कर धरने पर बैठ गए है । चुकी पीड़ित परिवार,यादव समाज सहित ग्रामीणजन प्रताड़ित कर आत्महत्या पर मजबूर करने वाले पुलिस अधिकारी कर्मचारीयो के खिलाफ तुरंत कार्यवाही और शासन से मृतक के परिवार को न्यायिक मुवावजा की मांग कर रहे है जो की न्याय संगत है ।

    रायपुर / शौर्यपथ / क्रेडा अध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी पर तीन प्रतिशत कमीशन मांगने और ठेकेदारों को धमकाने के आरोपों के बाद अब इस प्रकरण में सियासी तापमान और बढ़ गया है। जहां एक ओर कांग्रेस ने खंडन पत्रों को दबाव और डर के तहत कराया गया बताया है, वहीं भाजपा खामोश नजर आ रही है। कांग्रेस ने पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए भूपेंद्र सवन्नी को तत्काल पद से हटाने की मांग की है।
  प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने आज मीडिया से चर्चा करते हुए कहा, "यह पहला मौका है जब किसी शिकायत की जांच नहीं की जा रही, बल्कि खंडन करवाया जा रहा है। मुख्यमंत्री को भेजी गई ठेकेदारों की शिकायत के बाद मुख्यमंत्री सचिवालय ने स्वयं इस पर पत्र जारी कर पूरी जानकारी मांगी थी। बावजूद इसके, अब जो खंडन सामने आ रहे हैं, वो शिकायतकर्ताओं से नहीं, बल्कि अन्य ठेकेदारों से करवाए जा रहे हैं, जोकि बेहद गंभीर मामला है।"
  धनंजय ठाकुर ने सीधे तौर पर भूपेंद्र सवन्नी पर आरोप लगाया कि उन्होंने शिकायतकर्ताओं को धमका कर, दबाव बना कर खंडन के लिए विवश किया। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि यही तरीका अगर मुख्यमंत्री तक की गई शिकायतों के साथ अपनाया जा रहा है, तो आम नागरिकों को न्याय की उम्मीद कैसे होगी?

    "क्या भूपेंद्र सवन्नी मुख्यमंत्री से भी ऊपर हैं, जो जांच के आदेश के बाद भी वह ठेकेदारों को धमका रहे हैं? क्या भाजपा सरकार में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है?" – धनंजय ठाकुर

? पृष्ठभूमि में क्या है मामला?

इस पूरे विवाद की शुरुआत भूपेंद्र सवन्नी के खिलाफ ठेकेदारों की ओर से मुख्यमंत्री को भेजी गई शिकायत के सोशल मिडिया में उजागर होने के बाद राजनैतिक रंग चढ़ा । शिकायत में आरोप था कि क्रेडा में कार्य कराने वाले ठेकेदारों से भूपेंद्र सवन्नी तीन प्रतिशत कमीशन मांगते हैं और मना करने पर काम में अड़चन डालने की धमकी देते हैं।
  शिकायत पर मुख्यमंत्री सचिवालय ने विभागीय स्तर पर संज्ञान लेते हुए क्रेडा से विवरण मांगा था, लेकिन इसके तुरंत बाद ही कुछ ठेकेदारों के नाम से खंडन पत्र सामने आने लगे, जिनमें आरोपों को निराधार बताया गया।
  हालांकि, अब कांग्रेस का दावा है कि जो खंडन दिए जा रहे हैं, वे उन्हीं ठेकेदारों से नहीं हैं जिन्होंने शिकायत की थी। कांग्रेस इसे भाजपा द्वारा प्रशासनिक दबाव और राजनीतिक संरक्षण के तहत कराया गया ‘खंडन प्रबंधन’ बता रही है।
? कांग्रेस ने क्या मांग की है?

कांग्रेस की मांग है कि इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय स्वतंत्र जांच हो। जब तक जांच पूरी न हो, भूपेंद्र सवन्नी को उनके पद से हटाया जाए। जिन ठेकेदारों ने शिकायत की है, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
  धनंजय सिंह ठाकुर ने आगे कहा, “भाजपा की सरकार में सुशासन की बात बेमानी हो चुकी है। जब मुख्यमंत्री तक की गई शिकायतों को दबाया जा रहा है तो यह संकेत है कि प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं खतरे में हैं। गुंडागर्दी की ये राजनीति अब उजागर हो रही है।”

तीन दिन में पूरी भर्ती प्रक्रिया, ढाई से तीन लाख रुपये में बेचे गए पद, कांग्रेस ने की परीक्षा रद्द करने की मांग

रायपुर, 29 जुलाई 2025।
समग्र शिक्षा विभाग में ठेका कंपनियों के माध्यम से हुई भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगाते हुए प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने इसे प्रदेश के बेरोजगार युवाओं के साथ "संस्थागत छल" बताया है। उन्होंने दावा किया कि भर्ती प्रक्रिया में गहरी अनियमितता, लेनदेन और पूर्व-निर्धारित चयन सूची जैसी तमाम खामियां उजागर हो चुकी हैं।

धनंजय सिंह ठाकुर ने प्रेस वार्ता में आरोप लगाया कि—

"ठेका कंपनियों ने युवाओं को नियुक्ति देने के नाम पर ढाई से तीन लाख रुपये वसूले। जिन युवाओं को चयनित करना था, उनसे पहले ही ₹10 के स्टांप में ‘लेनदेन नहीं करने’ का शपथ पत्र भरवाया गया, जो इस बात का साक्ष्य है कि सब कुछ पहले से तय था।"

उन्होंने कहा कि इस भर्ती में कोविडकाल में सेवा दे चुके उम्मीदवारों को 10% बोनस अंक देने का वादा किया गया था, लेकिन इसे दरकिनार कर दिया गया। इस तरह हजारों योग्य और अनुभवधारी उम्मीदवारों को बाहर कर दिया गया।

भर्ती में "तीन दिवसीय चमत्कार"
ठेका कंपनियों की कार्यप्रणाली पर तंज कसते हुए ठाकुर ने कहा—

"जेम पोर्टल से टेंडर लेकर ठेका कंपनियों ने महज तीन दिन में आवेदन, स्क्रूटिनी, परीक्षा, 35,000 से अधिक पेपरों की जांच, इंटरव्यू और रिजल्ट जारी कर दिया। ये पूरी प्रक्रिया शोध का विषय है या किसी साज़िश का पर्दाफाश?"

क्या कहते हैं अभ्यर्थी?
कई अभ्यर्थियों ने कांग्रेस के पास पहुंचकर आरोप लगाया कि—

  • आवेदन करने से पहले ही चयन की जानकारी संबंधित उम्मीदवारों को थी।

  • ठेका कंपनी ने भर्ती के लिए साइट चालू और बंद होने का समय भी "अपने लोगों" को पहले से बता दिया।

  • इंटरव्यू तक फिक्स कर लिए गए थे, जिनमें नियुक्ति पाने वाले लोग पहले से चयनित सूची में थे।

  • जो चयनित नहीं हुए, उनसे या तो मोटी रकम मांगी गई या प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया।

कांग्रेस की मांगें
धनंजय ठाकुर ने मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री से मांग की कि—

  1. समग्र शिक्षा विभाग की इस पूरी भर्ती प्रक्रिया को तत्काल निरस्त किया जाए।

  2. संबंधित ठेका कंपनियों को ब्लैकलिस्ट किया जाए।

  3. एफआईआर दर्ज कर जांच करवाई जाए कि किसके इशारे पर इतनी बड़ी भर्ती "सेटिंग" के आधार पर की गई।

  4. भविष्य की सभी संविदा भर्तियों में पारदर्शिता के लिए सीधा सरकारी पर्यवेक्षण हो और परीक्षा एजेंसियों का चयन स्वतंत्र संस्थाओं से हो।

राजनीतिक संदेश स्पष्ट
यह मुद्दा महज भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा नहीं है बल्कि आने वाले चुनावों से पहले युवाओं की नाराजगी और भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनीतिक संघर्ष का आधार बन सकता है। कांग्रेस इसे एक "युवाओं के साथ विश्वासघात" के रूप में पेश कर रही है, जो भाजपा सरकार के लिए एक संवेदनशील और संभावित संकट का विषय बन सकता है।

रायपुर, 29 जुलाई 2025 | विशेष संवाददाता

छत्तीसगढ़ भाजपा के युवा नेता एवं केड्रा इकाई रायपुर के नव नियुक्त अध्यक्ष भूपेंद्र सवन्नी इन दिनों गंभीर आरोपों के घेरे में हैं। ऊर्जा विभाग से संबंधित एक कार्य में निजी ईकाइयों से 3% कमीशन की मांग और न देने पर धमकी देने की शिकायत मुख्यमंत्री सचिवालय तक पहुँच चुकी है। इस पत्र की प्रति सार्वजनिक होने के बाद मामला गरमा गया है और अब यह एक बड़े राजनीतिक विवाद का रूप ले चुका है।


शिकायत और मुख्यमंत्री सचिवालय की कार्रवाई
दिनांक 20 जून 2025 को रायपुर की एक ईकाई द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में यह आरोप लगाया गया कि भूपेंद्र सवन्नी ऊर्जा विभाग के तहत नए सिस्टम निर्माण संबंधी कार्यों के लिए ठेकेदारों और ईकाइयों से 3% की कथित मांग कर रहे हैं। शिकायत में कहा गया है कि जो ईकाइयाँ यह "हिस्सा" देने से इनकार करती हैं, उन्हें धमकाया जाता है और उनके कार्य रोके जाते हैं।

इस पर मुख्यमंत्री सचिवालय ने त्वरित संज्ञान लेते हुए ऊर्जा विभाग को पत्राचार भेजकर पूरे प्रकरण की जनहित में वेब पोर्टल पर अपलोडिंग सहित नियमानुसार कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। अवर सचिव अरविंद कुमार खोपड़े द्वारा जारी पत्र में स्पष्ट किया गया है कि मामला गंभीर है और इसकी पड़ताल आवश्यक है।


प्रदेश कांग्रेस ने बनाया बड़ा राजनीतिक हथियार
शिकायत पत्र के सार्वजनिक होते ही यह मुद्दा प्रदेश कांग्रेस के लिए बैठे-बैठाए एक बड़ा राजनीतिक हथियार बन गया है। कांग्रेस नेताओं द्वारा इसे सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर तेजी से साझा किया जा रहा है।
ट्विटर (एक्स), फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे मंचों पर कांग्रेस प्रवक्ताओं और नेताओं ने भूपेंद्र सवन्नी को ‘भ्रष्टाचार का प्रतीक’ बताते हुए भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है। कई वरिष्ठ नेताओं ने मांग की है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच हो और दोषी को पार्टी से निष्कासित किया जाए।

कांग्रेस प्रवक्ता का कहना है कि “यह मामला भाजपा के युवाओं में फैलते सत्ता-प्रदत्त भ्रष्टाचार का प्रमाण है। जब युवा नेतृत्व ही भ्रष्टाचार में लिप्त होगा तो राज्य की राजनीतिक संस्कृति का क्या होगा?”


भूपेंद्र सवन्नी और पूर्व विवाद
भूपेंद्र सवन्नी पर यह कोई पहला आरोप नहीं है। पूर्व में भी मंडल एवं अन्य शासकीय कार्यों में हस्तक्षेप, नियुक्तियों में मनमानी और अधिकारियों पर दबाव डालने जैसे आरोप उन पर लग चुके हैं। हालांकि, इस बार मामला दस्तावेजी प्रमाणों के साथ सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुँच चुका है, जिससे इसकी संवेदनशीलता और भी बढ़ गई है।


राजनीतिक विश्लेषण
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला अब केवल प्रशासनिक जांच का नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति और साख का मुद्दा बन गया है। भाजपा को जहाँ आंतरिक स्तर पर इस पर संज्ञान लेना होगा, वहीं कांग्रेस इस पूरे प्रकरण को आगामी नगर निकाय और पंचायत चुनावों से पहले एक नैतिक मुद्दा बनाकर जनता के बीच ले जाने की तैयारी में है।


निष्कर्ष
भूपेंद्र सवन्नी के खिलाफ लगे आरोपों ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। एक ओर भाजपा के लिए यह नेतृत्व की जवाबदेही का सवाल है, वहीं कांग्रेस इसे भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनजागरण का अवसर मान रही है। अगर जांच निष्पक्ष होती है, तो यह पूरे राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकती है।


(यह रिपोर्ट तीन आधिकारिक पत्रों एवं सोशल मीडिया पर जारी प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण पर आधारित है। संबंधित पक्षों से सफाई या प्रतिक्रिया प्राप्त होने पर उसे आगामी संस्करण में प्रकाशित किया जाएगा।)

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